रिपोर्ट का सारांश
- आवास और शहरी गरीबी उपशमन (हाउसिंग एंड अर्बन पावर्टी एलिविएशन) मंत्रालय ने आवास, इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रवास के असर और आजीविका के आकलन के लिए जुलाई 2015 में एक वर्किंग ग्रुप का गठन किया था। ग्रुप ने निम्नलिखित विषयों पर विचार-विमर्श किया: (i) भारत में प्रवास की प्रवृत्तियों की समीक्षा और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों पर उसका असर, (ii) आवास, इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका और अर्थव्यवस्था पर प्रवास के असर का विश्लेषण, और (iii) विभिन्न आर्थिक समूहों में प्रवास की प्रवृत्तियों का विश्लेषण। ग्रुप ने जनवरी 2017 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। ग्रुप के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- प्रवास: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में मुख्य रूप से गांवों से गांवों (47.4%), और उसके बाद शहरों से शहरों (22.6%), गांवों से शहरों (22.1%), और शहरों से गांवों (7.9%) में प्रवास होता है। जनगणना 2001 से जनगणना 2011 के बीच गांवों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास में मामूली बढ़ोतरी हुई। यह 21.1% से बढ़कर 22.8% हो गया, जबकि शहरों से शहरों के बीच प्रवास 15.2% से बढ़कर 22.6% हुआ।
- प्रवास के कारण: जनगणना 2001 से जनगणना 2011 के बीच परिवार संबंधित प्रवास (शादी) की हिस्सेदारी (प्रवासियों की कुल संख्या में) 28% से बढ़कर 36% हो गई। परिवार संबंधित प्रवास के कारण 87% महिलाओं को पलायन करना पड़ा, जबकि पुरुषों के मामले में यह हिस्सेदारी 36% है। 50% पुरुषों ने काम के सिलसिले में पलायन किया। 2001 और 2011 की जनगणनाओं के बीच काम संबंधी प्रवास 16% से घटकर 13% हो गया। हालांकि ग्रुप ने टिप्पणी की कि ग्रामीण क्षेत्रों से काम संबंधी प्रवास 5.7 मिलियन से बढ़कर 6.9 मिलियन हो गया और शहरी क्षेत्रों में 2.8 मिलियन से बढ़कर 4.8 मिलियन हो गया।
- प्रवासी श्रमशक्ति: शहरी क्षेत्रों की श्रमशक्ति में 33% पुरुष और 56% महिला प्रवासी हैं। ग्रुप का कहना है कि प्रवासियों के बारे में यह आम धारणा होती है कि वे निम्न आय वर्ग वाले होते हैं, लेकिन ग्रुप ने यह टिप्पणी कि यह धारणा गलत है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 31% प्रवासी लोग कंजंप्शन क्विंटाइल (एक बटा पांच) के टॉप पर हैं। शहरी क्षेत्रों में 62% प्रवासी लोग कंजंप्शन क्विंटाइल के टॉप पर हैं।
- रोजगार की प्रकृति: शहरी क्षेत्रों में 33% प्रवासी पुरुष परंपरागत कार्य करते हैं (थोक और रीटेल व्यापार, होटल, परिवहन), 27% मैन्यूफैक्चरिंग और 16% आधुनिक सेवा क्षेत्रों में संलग्न हैं (रियल एस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य)। शहरी क्षेत्रों में महिला प्रवासियों में 34% पब्लिक सर्विस (पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, रेलवे, पोस्टल सेवाओं) में हैं और 23% मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में। ग्रामीण क्षेत्रों में 37% पुरुष प्रवासी प्राथमिक रोजगार (कृषि, मत्स्य, खनन) से जुड़े हुए हैं और 20% परंपरागत रोजगार से। ग्रामीण क्षेत्रों की महिला प्रवासियों में से 84% प्राथमिक रोजगार में हैं।
- रोजगार की उपलब्धता: ग्रुप ने कहा कि कई राज्यों ने रोजगार के संबंध में अधिवास (डोमिसाइल) की शर्तों को लागू किया है। इससे प्रवासियों को नुकसान होता है। ग्रुप ने यह सुझाव दिया कि अंतर राज्यीय प्रवास को देखते हुए राज्यों को अधिवास की शर्तों और दूसरे कानूनों को समाप्त करना चाहिए। कमिटी ने मौजूदा विधायी ढांचे की समीक्षा का सुझाव दिया और सभी श्रमिकों को वेतन और काम करने की शर्तों की मूलभूत गारंटी देने की बात की। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक ऐसा व्यापक कानून बनाया जाना चाहिए जो ऐसे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करे।
- सामाजिक लाभों की उपलब्धता: ग्रुप के अनुसार एक समस्या यह भी है कि प्रवासियों को कानूनी और सामाजिक लाभ (जैसे पीडीएस) अपने मूल स्थान पर ही मिलते हैं। अपने मूल स्थान पर उनका पंजीकरण होता है। प्रवास के बाद नए स्थान पर उन्हें ये लाभ नहीं मिल पाते। ग्रुप ने सुझाव दिया कि पीडीएस को पोर्टेबल बनाया जाना चाहिए और प्रवासियों को उसके दायरे में लाने के लिए उसे व्यापक बनाया जाना चाहिए।
- आवास: आवास से जुड़ी मुख्य समस्या आपूर्ति की है- अपने घर और किराए के घर, दोनों मामलों में। कम समय के लिए प्रवास करने वालों को कम अवधि के लिए आवास उपलब्ध नहीं होता। ग्रुप ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं: (i) सभी बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं (पानी की सप्लाई, बिजली) की उपलब्धता, (ii) विभिन्न प्रकार के किराए के घर, और (iii) डॉरमेटरीज़ और वर्किंग विमेन्स हॉस्टल्स की व्यवस्था।
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