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पीडीएफ

भारत के मैरिटाइम क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  •  परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: टी.जी.वेंकटेश) ने 4 अगस्त, 2021 को ‘भारत के मैरिटाइम क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्टर को बढ़ावा’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने भारतीय मैरिटाइम क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर की समीक्षा की। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • सागरमाला कार्यक्रम: केंद्र सरकार ने 2015 में सागरमाला कार्यक्रम को शुरू किया था। इसका उद्देश्य बुनियादी ढांचे में न्यूनतम निवेश के साथ विदेशी और घरेलू व्यापार में लॉजिस्टिक की लागत को कम करना है। कार्यक्रम में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) घरेलू कार्गो के परिवहन की लागत को कम करना, (ii) कंटेनर मूवमेंट को अधिक से अधिक कारगर तरीके से इस्तेमाल करना, और (iii) निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करना। कमिटी ने कहा कि 2015 से सागरमाला कार्यक्रम के तहत 802 प्रॉजेक्ट्स (5.5 लाख करोड़ मूल्य के) में से सिर्फ 172 प्रॉजेक्ट्स (88,000 करोड़ रुपए मूल्य के) पूरे हुए हैं। प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने की रफ्तार में सुधार करने के लिए कमिटी ने धनराशि उपयोग को बढ़ाने का सुझाव दिया।
     
  • बंदरगाहों का आधुनिकीकरण: कमिटी ने कहा कि बढ़ते व्यापार के लिहाज से भारतीय बंदरगाहों पर बड़े कार्गो लोड को संभालने की क्षमता कम है। कार्गों को संभालने की क्षमता बढ़ाने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित उपायों का सुझाव दिया: (i) बड़े जहाजों को संभालने के लिए ड्रेजिंग के जरिए भारतीय बंदरगाहों के न्यूनतम ड्राफ्ट (जहाज के सुरक्षित नैविगेशन के लिए पानी की जितनी न्यूनतम गहराई होनी चाहिए) को बढ़ाना, और (ii) मौजूदा बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने के लिए (खास तौर से ड्राई कार्गो के लिए) आधुनिक कार्गो हैंडलिंग तकनीकों को लागू करना।
     
  • बंदरगाहों से कनेक्टिविटी: कमिटी ने बंदरगाहों से रेल और सड़क कनेक्टिविटी कम होने पर गौर किया। बंदरगाहों की कनेक्टिविटी में सुधार करने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) निर्दिष्ट लागत और समयावधि में सभी रेल/सड़क प्रॉजेक्ट्स का पूरा होना सुनिश्चित करना, (ii) कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स के लिए धनराशि जारी करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करना ताकि प्रॉजेक्ट में देरी न हो, (iii) देश में सभी बड़े और छोटे बंदरगाहों के प्रदर्शन में लॉजिस्टिक संबंधी रुकावटों की पहचान करना, और (iv) गुड्स का मूवमेंट तेज हो, इसके लिए निजी बंदरगाहों को बड़े और छोटे बंदरगाहों से जोड़ना।
     
  • सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) प्रॉजेक्ट्स: कमिटी ने कहा कि भारतीय शिपिंग उद्योग में निजी निवेश का अभाव है। मुख्य मैरिटाइम देशों के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) विदेशी शिपिंग कंपनियों को आकर्षित करने के लिए टैक्स को रैशनलाइज करना, (ii) गैर मुख्य बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए निजी क्षेत्र को वित्त पोषण प्रदान करना, (ii) पीपीपी मोड के जरिए अंतर्देशीय जलमार्ग संचालन और जहाजों के वित्तपोषण में मदद देने के लिए एक विशेष मैरिटाइम फंड बनाना, और (iv) पीपीपी प्रॉजेक्ट्स के लिए सिंगल विंडो अनुमोदन प्रणाली बनाना।
     
  • जहाजों का मरम्मत उद्योग: कमिटी ने कहा कि 2018-19 में निजी शिपयार्ड्स में 341 जहाजों (706 में से) की मरम्मत की गई। कमिटी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण यार्ड बंद होने से जहाजों के मरम्मत उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मेक इन इंडिया अभियान के अंतर्गत जहाजनिर्माण (शिपबिल्डिंग) के पुर्जे बनाने वाले देसी निर्माताओं को सहयोग देना, (ii) जहाज मरम्मत उद्योग को मानद निर्यात दर्जा देना, और (iii) जहाज मरम्मत उद्योग में राजस्व और रोजगार के लिए कार्यक्रम तैयार करना।
     
  • तटीय शिपिंग को बढ़ावा देना: कमिटी ने कहा कि भारत में माल ढुलाई में जल मार्ग का योगदान बहुत कम है (6%)। माल ढुलाई में जल मार्ग की भूमिका को बढ़ाने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित के जरिए तटीय शिपिंग को बढ़ाने का सुझाव दिया: (i) डेडिकेटेड कोस्टल बर्थ्स, ईंधन आपूर्ति और स्टोरेज की सुविधाएं विकसित करना, और (ii) बंदरगाहों तक लास्ट मिनट कनेक्टिविटी को बढ़ाना। 
     
  • मैरिटाइम ट्रेनिंग: भारत में मैरिटाइम ट्रेनिंग की क्वालिटी और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) बंदरगाहों के उपकरणों को चलाने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की जरूरत का विश्लेषण करना, (ii) वार्षिक कार्यबल की जरूरत का आकलन करना और वांछित स्तर प्राप्त करने के लिए दृष्टिकोण तैयार करना, और (iii) आईआईटीज़/एनआईटीज़/आईआईएम्स के सहयोग से तटीय और अंतर्देशीय समुद्री प्रौद्योगिकी केंद्रों की स्थापना करना ताकि एप्लाइड रिसर्च और विकास के अवसर प्रदान किए जा सकें।


 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है। 

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