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पीडीएफ

भारत की हिंद महासागर रणनीति का मूल्यांकन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • विदेश मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. शशि थरूर) ने 11 अगस्त, 2025 को 'भारत की हिंद महासागर रणनीति का मूल्यांकन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागरीय क्षेत्र है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • एक एकीकृत हिंद महासागर रणनीति का निर्माण: हिंद महासागर क्षेत्र के लिए भारत की रणनीतियों में सागर (सभी के लिए सुरक्षा और विकास) SAGAR (Security and Growth for All) और महासागर (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) MAHASAGAR (Mutual and Holistic Advancement for Security and Growth Across Regions) शामिल हैं। सागर आतंकवाद, समुद्री डकैती और अन्य अवैध गतिविधियों जैसे खतरों का मुकाबला करने पर केंद्रित है। महासागर क्षेत्र से परे सुरक्षा और विकास लक्ष्यों पर भी ध्यान केंद्रित करके सागर के दायरे का विस्तार करता है। कमिटी ने कहा कि इन दोनों फ्रेमवर्क्स के उद्देश्य एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। कमिटी ने इन फ्रेमवर्क्स की व्यापक समीक्षा करने का सुझाव दिया।

  • तटीय देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करना: कमिटी ने कहा कि भारत ने कोमोरोस, सोमालिया और यमन को छोड़कर इस क्षेत्र के सभी 35 तटीय देशों (हिंद महासागर से सटे तटीय देशों) के साथ राजनयिक संबंध मजबूत किए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रत्येक तटीय देश के साथ भारत की भागीदारी के लिए एक व्यापक रणनीतिक सहभागिता योजना तैयार की जाए। ये योजनाएं लचीली होनी चाहिए और प्रत्येक देश की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, मालदीव और सेशेल्स जैसे द्वीपीय देशों के साथ समुद्री सुरक्षा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उसने भारत की नीतियों को हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्रों के अनुकूल करने हेतु एक रणनीति विकसित करने का भी सुझाव दिया।

  • द्विपक्षीय और बहुपक्षीय कूटनीति: भारत इस क्षेत्र के विभिन्न बहुपक्षीय समूहों में सक्रिय रूप से भाग लेता है। इनमें हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए), हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई), बिम्सटेक और क्वाड शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि भारत का दृष्टिकोण खंडित रहा है और उसने अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए इन मंचों का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मंत्रालयों के भीतर और उनके बीच समन्वय बढ़ाना, (ii) वित्तीय और तकनीकी प्रतिबद्धताएं, और (iii) परिणामों का समय-समय पर मूल्यांकन। कमिटी ने आईपीओआई में सदस्यता का विस्तार करने और आईओआरए के कामकाज को बेहतर बनाने का भी सुझाव दिया।

  • सुरक्षा को खतरा: कमिटी ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव, समुद्री डकैती और मादक पदार्थों की तस्करी सहित सुरक्षा संबंधी कई खतरों का उल्लेख किया। कमिटी ने कहा कि इन मुद्दों से निपटने के लिए वर्तमान प्रयास अपर्याप्त हैं। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) उन्नत तकनीकों को एकीकृत करके समुद्री पर्यावरण के बारे में जागरूकता बढ़ाना, (ii) नौसेना की क्षमताओं को उन्नत करना, (iii) खुफिया जानकारी साझा करना और संयुक्त गश्त करना, और (iv) भारत के तटीय निगरानी ढांचे को मजबूत करना।

  • पर्यावरणीय सहयोग: कमिटी ने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। इससे ब्ल्यू इकोनॉमी को बढ़ावा देने के अवसर मिलते हैं जिसमें सतत मत्स्य पालन, समुद्री जैव विविधता संरक्षण, अक्षय ऊर्जा और पर्यावरण-पर्यटन शामिल हैं। कमिटी ने भारत की समुद्री रणनीति में स्थिरता को एकीकृत करने के महत्व पर प्रकाश डाला। उसने हिंद महासागर रणनीति को वैश्विक पर्यावरणीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ने का सुझाव दिया। उसने ग्रीन महासागर (Green MAHASAGAR) की शुरुआत करने का भी सुझाव दिया ताकि अन्य तटीय देशों के साथ मिलकर समुद्री जैव विविधता के संरक्षण, समुद्री प्रदूषण को कम करने और जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को अपनाने जैसे कार्य किए जा सकें।

  • एक अंतर-मंत्रालयी कार्यबल का गठन: कमिटी ने कहा कि वर्तमान में हिंद महासागर के लिए भारत की रणनीति के विभिन्न आयामों को सुव्यवस्थित करने हेतु कोई समर्पित अंतर-मंत्रालयी तंत्र नहीं है। उसने समन्वय संबंधी कमियों को दूर करने और संसाधनों के प्रभावी आवंटन एवं उपयोग के लिए प्रमुख मंत्रालयों को शामिल करते हुए एक कार्यबल बनाने का सुझाव दिया। कमिटी ने विदेश मंत्रालय के भीतर एक केंद्रीकृत समन्वय तंत्र बनाने का भी सुझाव दिया।

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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