स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी.वी. रेड्डी) ने 15 जून, 2022 को “भारत में ई-कॉमर्स का संवर्धन और रेगुलेशन” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ई-कॉमर्स एंटिटीज़ के बीच प्रतिस्पर्धा का मुद्दा: ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस में प्रतिस्पर्धा विरोधी कार्य पद्धतियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्लेटफॉर्म न्यूट्रिलिटी की कमी, यानी पसंदीदा विक्रेताओं को वरीयता दी जाती है, (ii) डीप डिस्काउंटिंग, यानी पसंदीदा विक्रेताओं को प्लेटफॉर्म द्वारा चुनींदा रूप से वित्त पोषित किया जाता है, (iii) सर्च रैंकिंग में पारदर्शिता की कमी, और (iv) डेटा का दुरुपयोग। कमिटी ने ऐसी नीति बनाने का सुझाव दिया जो मार्केटप्लेस और ई-कॉमर्स के इनवेंटरी आधारित मॉडल्स की स्पष्ट व्याख्या करे। उसने सुझाव दिया कि मार्केटप्लेस-कॉमर्स एंटिटीज़ को निम्नलिखित करना चाहिए: (i) उसे ऐसी वस्तुएं नहीं बेचनी चाहिए जिन पर उनका स्वामित्व हो या जो उनके नियंत्रण में हो, (ii) प्लेटफॉर्म पर अपनी वस्तुएं बचने वाले विक्रेताओं के साथ कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं होना चाहिए, और (iii) प्लेटफॉर्म पर तीसरे पक्ष के विक्रेताओं को अपने ब्रांड की लाइसेंसिंग से रोका जाना चाहिए।
- कमिटी ने चुनींदा छूट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर खरीदारों और विक्रेताओं के मनमाने वर्गीकरण पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया। डेटा हैंडलिंग और सर्च रैकिंग्स की पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को प्लेटफॉर्म पर डेटा कलेक्शन, उसके इस्तेमाल और तीसरे पक्ष के साथ उसकी शेयरिंग को रेगुलेट करने के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। इसके अलावा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को रैंकिंग तय करने के मानदंड और प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने के लिए जरूरी नियमों और शर्तों को प्रकाशित करना चाहिए, जैसे प्लेटफॉर्म फीस, कमीशन और शुल्क। इन नियमों और शर्तों का एकतरफा संशोधन जो किसी भी स्टेकहोल्डर के लिए हानिकारक हो सकता है, को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
- एफडीआई नीति: ई-कॉमर्स पर एफडीआई नीति में एफडीआई-समर्थित ई-कॉमर्स एंटिटीज़ को केवल एक मार्केटप्लेस के रूप में काम करने की अनुमति है। कमिटी ने गौर किया कि यह नीति ई-मार्केटप्लेस में प्रतिस्पर्धा विरोधी कार्य पद्धतियों को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हुई है। कमिटी ने कहा कि विदेशी और घरेलू स्तर पर वित्त पोषित मार्केटप्लेस, दोनों में इन समस्याओं को दूर करने के लिए एक फ्रेमवर्क होना चाहिए। कमिटी ने राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति में ऐसे किसी फ्रेमवर्क को शामिल करने का सुझाव दिया।
- ई-कॉमर्स नियम: उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 में ड्राफ्ट संशोधन ई-कॉमर्स एंटिटीज़ पर कुछ बाध्यताएं लगाते हैं जैसे चीफ कंप्लायंस ऑफिसर औऱ नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन की नियुक्ति, तथा एंटिटी की वेबसाइट पर शिकायत निवारण व्यवस्था का प्रावधान करना। कमिटी ने कहा कि सभी एंटिटीज़, चाहे उसका आकार कोई भी हो, पर इन बाध्यताओं को लगाने का प्रतिकूल असर हो सकता है और क्षेत्र की वृद्धि की रफ्तार रोक सकता है। उसने सुझाव दिया कि प्रस्तावित व्यवस्था सिर्फ उन्हीं एंटिटीज़ पर लागू होनी चाहिए जो एक विशिष्ट सीमा से ऊपर की हों।
- प्रतिस्पर्धा एक्ट: प्रतिस्पर्धा एक्ट, 2002 उन कार्य पद्धतियों को रोकने का प्रयास करता है जिनका बाजार की प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर होता है। कमिटी ने गौर किया कि एक्ट के अंतर्गत, जो फैक्टर्स तय करते हैं कि कोई समझौता प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर करेगा या नहीं, बहुत आउटडेटेड हैं। इसी प्रकार कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि प्रभावशाली स्थिति के दुरुपयोग को तय करने के लिए एक्ट में जरूरी संशोधन किए जाएं। उसने इस बात पर जोर दिया कि रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में जरूरी संशोधन में विलंब करने से डिजिटल मार्केट में प्रतिस्पर्धा पर ऐसा असर हो सकता है जिसे पलटा न जा सके।
- कमिटी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कार्य पद्धतियों में इस बात को मान्यता दी जाती है कि एक विशेष आकार की डिजिटल कंपनियों को योजनाबद्ध रेगुलेशन की जरूरत होती है। उन्हें गेटकीपर एंटिटीज़ के तौर पर नामित किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि भारत को ऐसी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए जिन पर खरा उतरने के बाद एंटिटीज़ गेटकीपर के तौर पर नामित की जा सकें। उसने मात्रात्मक (क्वांटिटेटिव) मानदंड जोड़ने के लिए एक्ट में संशोधन करने का सुझाव दिया जैसे प्लेटफॉर्म पर एक्टिव उपभोक्ता और विक्रेता, और गेटकीपर की पहचान हेतु राजस्व की मात्रा। गेटकीपर की निर्धारित सीमा तक पहुंचने के बाद प्लेटफार्म्स को खुद ही रेगुलेटर को सूचित करने के लिए बाध्य होना चाहिए।
- कर छूट को बढ़ाना: वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अंतर्गत वस्तुओं के लिए 40 लाख रुपए और सेवाओं के लिए 20 लाख रुपए से कम के टर्नओवर वाले ऑफलाइन विक्रेताओं को जीएसटी पंजीकरण से छूट दी गई है। लेकिन ऑनलाइन विक्रेताओं को, भले ही उनका आकार जो भी हो, को अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होगा और कर चुकाना होगा। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) ऑफलाइन विक्रेताओं की तर्ज पर ऑनलाइन विक्रेताओं को जीएसटी पंजीकरण से छूट, (ii) 1.5 करोड़ से कम वार्षिक टर्नओवर वाले ऑनलाइन विक्रेताओं को फ्लैट टैक्स के रूप में टर्नओवर का 1% भुगतान करने की अनुमति देना, और (iii) ऑनलाइन विक्रेताओं को वर्चुअल प्लेस ऑफ बिजनेस को पंजीकृत करने की अनुमति देना।
- डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी): कमिटी ने कहा कि उद्योग एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के इनीशिएटिव ओएनडीसी का उद्देश्य डिजिटल व्यापार के सभी पहलुओं के लिए ओपन नेटवर्क को बढ़ावा देना है। हालांकि कमिटी ने सुझाव दिया कि डीपीआईआईटी को कुछ विषयों पर काम करना चाहिए जैसे छोटे व्यापार और ई-कॉमर्स जाइंट्स, दोनों को निष्पक्षता से एक समान अवसर मुहैय्या कराना और छोटे और स्थानीय व्यापार को तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।