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पीडीएफ

भारतीय आर्थिक विकास का रोडमैप

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • वित्त से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री भर्तृहरि महताब) ने 19 अगस्त, 2025 को 'वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर भारतीय आर्थिक विकास का रोडमैप' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान है। कमिटी ने कहा कि निरंतर खुशहाली के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में कम से कम एक दशक तक हर वर्ष वास्तविक रूप से 8% की दर से बढ़ोतरी होनी चाहिए। इसके लिए जीडीपी के हिस्से के रूप में निवेश को 31% से बढ़ाकर लगभग 35% करना होगा। कमिटी ने आर्थिक विकास के 12 कारकों की पहचान की, जिनमें से कुछ का विवरण नीचे दिया गया है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मैन्यूफैक्चरिंग और व्यापार: कमिटी ने कहा कि भारत के पास विश्वव्यापी मैन्यूफैक्चरिंग केंद्र बनने का अवसर है। वर्तमान में विश्वव्यापी मैन्यूफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी 2.8% है। कमिटी ने निम्नलिखित प्रमुख सुझाव दिए: (i) मैन्यूफैक्चरिंग में प्रतिस्पर्धात्मकता और विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करना, (ii) अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना, (iii) द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर बातचीत, (iv) उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजनाओं के तहत हाई-टेक्नोलॉजी वाले क्षेत्रों के लिए सहयोग का विस्तार, और (v) निवेशक आधार में विविधता लाना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने के लिए रणनीतिक क्षेत्रों को बढ़ावा देना।

  • लघु और मध्यम दर्जे के उद्योग: कमिटी ने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र में परिसंपत्ति गुणवत्ता में सुधार के साथ ऋण प्रवाह में वृद्धि देखी गई है। कमिटी ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपायों का सुझाव दिया। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) डिजिटल ऋण मूल्यांकन मॉडल को बढ़ावा देना, (ii) वंचित क्षेत्रों में ऋण की पहुंच को बढ़ाना, (iii) बाज़ार संपर्क बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरणों का विस्तार, और (iv) सूचीबद्ध एमएसएमई के लिए प्रकटीकरण मानदंडों को सरल बनाना। रोज़गार सृजन के लिए श्रम-गहन एमएसएमई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

  • कृषि क्षेत्र: कमिटी ने आपूर्ति पक्ष की मुद्रास्फीति को लक्षित करने और किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना, (ii) आपूर्ति श्रृंखला की अवसंरचना को मजबूत करना, और (iii) कृषि-तकनीक में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

  • मूल्य स्थिरता: कमिटी ने कहा कि प्रभावी नीतियों और आपूर्ति की बेहतर स्थितियों के कारण निकट भविष्य में मुद्रास्फीति के मध्यम रहने की उम्मीद है। कमिटी ने यह भी कहा कि तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए भारत ने अपने पेट्रोलियम आयात बास्केट को विविध बनाया है। अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित प्रमुख सुझाव दिए: (i) कोल्ड स्टोरेज के बुनियादी ढांचे, विकेंद्रीकृत खरीद और डिजिटल बाजार संपर्क में निवेश करके आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना, (ii) केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित रेगुलेटरी सुधारों को लागू करना, और (iii) व्यावसायिक लागत कम करने के लिए जन विश्वास बिल 2.0 के तहत अनुपालन का सरलीकरण सुनिश्चित करना।

  • बैंकिंग क्षेत्र और ऋण उपलब्धता: कमिटी ने कहा कि भारत में बैंकिंग क्षेत्र निरंतर ऋण वृद्धि के लिए मज़बूत और पर्याप्त पूंजीकृत बना हुआ है। दिसंबर 2024 तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) 13 वर्षों के निम्नतम स्तर 2.5% पर थीं। कमिटी ने कहा कि जमा वृद्धि की तुलना में बैंक ऋण वृद्धि का अधिक होना, एक संरचनात्मक चुनौती है। इससे मध्यम अवधि में तरलता जोखिम और उच्च वित्तपोषण लागत हो सकती है। इन मुद्दों के समाधान के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) डिजिटल पहल के माध्यम से जमा जुटाने को प्रोत्साहित करना, (ii) जोखिम प्रबंधन ढांचे को मजबूत करना, और (iii) गैर-बैंकिंग वित्त निगमों और सहकारी बैंकों तक परिदृश्य-आधारित तनाव परीक्षण (स्ट्रेस टेस्टिंग) का विस्तार करना।

  • भौतिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर: कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2017-18 और 2025-26 के बीच पूंजीगत व्यय में वृद्धि की है। यह व्यय सड़क, रेलवे, समुद्री संपर्क और सार्वजनिक डिजिटल अवसंरचना जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। लॉजिस्टिक्स की उच्च लागत, पर्यावरणीय मंज़ूरी की लंबी प्रक्रिया और मल्टीमोडल कनेक्टिविटी से संबंधित चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। कमिटी ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़ी चुनौतियों की भी पहचान की। इनमें साइबर सुरक्षा के लिए खतरा, डिजिटल साक्षरता में कमी और तकनीक तक असमान पहुंच शामिल हैं। कमिटी ने राजकोषीय अनुशासन बरकरार रखते हुए पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देने का सुझाव दिया।

  • ऊर्जा संक्रमण: कमिटी ने कहा कि भारत में अक्षय ऊर्जा के दोहन पर आर्थिक रूप से व्यावहारिक स्टोरेज तकनीक की कमी, स्टोरेज की उच्च लागत और आवश्यक खनिजों तक सीमित पहुंच जैसे कारकों का असर होता है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) विविध अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश में तेज़ी लाना, (ii) खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करना, और (iii) इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।

 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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