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पीडीएफ

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की उभरती भूमिका

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • वित्त से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री भर्तृहरि महताब) ने 11 अगस्त, 2025 को 'अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से डिजिटल परिदृश्य में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की उभरती भूमिका' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) का गठन एक ऐसे रेगुलेटर के रूप में किया गया था जो बाज़ार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और उसे बहाल रखने, और प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली कार्य पद्धतियों को रोकने का काम करेगा। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्न शामिल हैं:

  • डिजिटल प्रतिस्पर्धा का रेगुलेशन: कमिटी ने कहा कि डिजिटल क्षेत्र को रिएक्टिव (एक्स-पोस्ट) से प्रो-एक्टिव (एक्स एंटे) रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में बदलने की जरूरत है। डिजिटल बाज़ारों में सेल्फ-प्रिफरेंसिंग और प्रिडेटरी प्राइजिंग जैसी कार्य पद्धतियों से पैदा होने वाली जटिलताओं को दूर करने के लिए ऐसा बदलाव जरूरी है। सेल्फ-प्रिफरेंसिंग के मायने हैं, प्लेटफ़ॉर्म द्वारा अपने उत्पादों या सेवाओं को प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों या सेवाओं पर प्राथमिकता देना। प्रिडेटरी प्राइजिंग का मायने यह है कि प्रतिस्पर्धियों को बाहर करने के लिए कीमतें बहुत कम निर्धारित की जाएं। इस समय प्रतिस्पर्धा एक्ट, 2002 एक एक्स-पोस्ट फ्रेमवर्क का पालन करता है। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने 2023 में डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून (सीडीसीएल) पर एक समिति का गठन किया था। सीडीसीएल ने एक्स-एंटे रेगुलेशन के लिए एक डिजिटल प्रतिस्पर्धा बिल का प्रस्ताव रखा था, जिसमें विशेष रूप से प्रमुख डिजिटल इंटरमीडियरीज़ को टारगेट किया गया था। कमिटी ने ड्राफ्ट बिल को और बेहतर बनाने का सुझाव दिया ताकि सभी हितधारकों की चिंताओं को दूर किया जा सके।

  • ड्राफ्ट बिल डिजिटल सेवाएं प्रदान करने वाले कुछ उद्यमों को सिस्टमैटिकली सिग्निफिकेंट डिजिटल इंटरप्राइज़ (एसएसडीई) के रूप में नामित करता है। यह स्थिति वित्तीय कारोबार और यूजर्स की संख्या (भारत में एक करोड़ एंड यूजर्स या 10,000 बिजनेस यूजर्स) पर आधारित है। मात्रात्मक मानदंड को पूरा न करने वाली संस्थाओं को भी 'सिग्निफिकेंट प्रेजेंस' के निर्दिष्ट मानदंडों के आधार पर एसएसडीई के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। बिल एसएसडीई को प्रतिस्पर्धा-विरोधी कार्य करने से प्रतिबंधित करता है, जैसे सेल्फ-प्रिफरेंसिंग, थर्ड पार्टी ऐप्स पर रोक लगाना, या यूजर्स को जरूरत न होने पर कई सेवाओं का उपयोग करने (बंडलिंग या टाईइंग) के लिए बाध्य करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि एसएसडीई का दर्जा देने की शर्तों या सीमा में संशोधन किया जाए ताकि तेजी से उभरती ऐसी घरेलू कंपनियां इसमें शामिल न हो जाएं जिन्हें कैप्चर नहीं करना था। उसने एक ऐसे तंत्र को पेश करने का भी सुझाव दिया, जिसके जरिए असाधारण मामलों में किसी फर्म के एसएसडीई दर्जे को वापस लिया जा सके ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो और नियामक निश्चितता कायम हो।

  • राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नीति (एनसीपी): कमिटी ने कहा कि 2011 में तैयार की गई राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नीति (एनसीपी) अभी तक लागू नहीं की गई है। कमिटी ने एकीकृत प्रतिस्पर्धा संस्कृति को बढ़ावा देने और विभिन्न कानूनों एवं नीतियों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नीति (एनसीपी) को लागू करने का सुझाव दिया। कमिटी ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नीति (एनसीपी) को सीसीआई की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। कमिटी ने समन्वय के लिए सीसीआई और क्षेत्रीय रेगुलेटर्स के बीच समझौतों को औपचारिक रूप देने और सूचना साझा करने एवं संयुक्त कार्रवाई के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करने का भी सुझाव दिया।

  • संस्थागत क्षमता और वित्तपोषण: वर्तमान में, सीसीआई के स्वीकृत पदों में से 42% (195) रिक्त हैं। 2024 में सीसीआई ने डिजिटल बाज़ार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक डिजिटल बाज़ार प्रभाग का गठन किया था। सीसीआई को कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय से अनुदान प्राप्त होता है। कमिटी ने कहा कि मंत्रालय द्वारा आवंटित धनराशि सीसीआई के व्यय को पूरा करने के लिए अपर्याप्त थी, और इस कमी को सीसीआई के आंतरिक संसाधनों (रेगुलेटरी फाइलिंग से प्राप्त शुल्क और ब्याज से आय) से पूरा किया गया। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) कैडर पुनर्गठन प्रस्ताव में तेजी लाना और सीसीआई में कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या बढ़ाना, विशेष रूप से डिजिटल बाज़ार प्रभाग में; (ii) प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से उभरती प्रौद्योगिकियों में कर्मचारियों की तकनीकी विशेषज्ञता को मजबूत करना; और (iii) सीसीआई के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन सुनिश्चित करना।

  • सीसीआई द्वारा जुर्माना लगाना: 30 अप्रैल, 2025 तक कुल 20,350 करोड़ रुपए के जुर्माने में से, 18,512 करोड़ रुपए अपीलीय न्यायालयों द्वारा स्थगित या खारिज कर दिए गए हैं। शेष वसूली योग्य राशि में से सीसीआई ने 99% राशि वसूल कर ली है। कमिटी ने मुकदमेबाजी में देरी को कम करने और सीसीआई के आदेशों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के उपाय तलाशने का सुझाव दिया।

  • एमएसएमई: कमिटी ने कहा कि डिजिटल क्षेत्र में रणनीतिक लेनदेन को शामिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा (संशोधन) एक्ट 2023 के तहत 2,000 करोड़ रुपए की सौदा मूल्य सीमा निर्धारित की गई थी। कमिटी ने इस सीमा का पुनर्मूल्यांकन करने का सुझाव दिया क्योंकि इससे बड़ी कंपनियों को रेगुलेटरी जांच के बिना एमएसएमई का अधिग्रहण करने की अनुमति मिल सकती है। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि एमएसएमईज़ बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें, इसके लिए डेटा तक एमएसएमईज़ की पहुंच बेहतर होनी चाहिए।

  • गैर-मूल्य कारक: कमिटी ने कहा कि सेवा की गुणवत्ता, प्राइवेसी और बाज़ारों में प्रवेश संबंधी बाधाओं जैसे गैर-मूल्य कारक भी डिजिटल बाज़ारों को नुकसान पहुंचाते हैं। उसने सुझाव दिया कि सीसीआई को अपने मूल्यांकन में ऐसे गैर-मूल्य मानदंडों को भी शामिल करना चाहिए और प्रवर्तन में उपभोक्ता के हितों को शामिल करना चाहिए।

 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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