स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. सत्यनारायण जटिया) ने 8 फरवरी, 2017 को ‘भारत में उच्च शिक्षा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियां और समस्याएं’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में हैदराबाद, चंडीगढ़, पटियाला, तिरुअनंतपुरम, उदयपुर, चेन्नई, विशाखापट्टनम, भोपाल और इंदौर में उच्च शिक्षा संस्थानों पर अध्ययन करने के बाद भारत में उच्च शिक्षा से जुड़ी चुनौतियों की पड़ताल की गई है। कमिटी ने उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण प्रदान करने के संबंध में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से भी विमर्श किया।
- कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्न हैं:
- संसाधनों की कमी: उच्च शिक्षा में अधिकतर भर्तियां राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों द्वारा की जाती हैं। लेकिन तुलनात्मक रूप से इन राज्य विश्वविद्यालयों को कम अनुदान मिलते हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बजट का 65% हिस्सा केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके कॉलेजों को मिलता है, जबकि राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों को शेष 35% ही प्राप्त होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य विश्वविद्यालयों में दूसरे माध्यमों से फंड्स के मोबिलाइजेशन का प्रयास किया जाना चाहिए जैसे शिक्षा क्षेत्र, पूर्व विद्यार्थियों द्वारा चंदा, योगदान, इत्यादि।
- शिक्षकों की रिक्तियां: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार, विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों और असिस्टेंट प्रोफेसरों के क्रमशः 16,699, 4,731 और 9,585 स्वीकृत पद हैं। इनमें प्रोफेसरों के 5,925 (35%), एसोसिएट प्रोफेसरों के 2,183 (46%) और असिस्टेंट प्रोफेसरों के 2,459 पद (26%) रिक्त हैं।
- कमिटी ने इन रिक्तियों के दो कारण बताए: (i) युवा विद्यार्थियों को शिक्षण का पेशा आकर्षक नहीं लगता, या (ii) भर्ती प्रक्रिया बहुत लंबी है और इसमें प्रक्रियागत औपचारिकताएं बहुत अधिक हैं। भर्ती प्रक्रिया पद के रिक्त होने से पहले ही शुरू कर दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षण के पेशे को अधिक लाभप्रद बनाने के लिए फैकेल्टी को कंसल्टेंसी प्रॉजेक्ट्स चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और स्टार्ट-अप्स के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान करना चाहिए।
- शिक्षकों की जिम्मेदारी और प्रदर्शन: वर्तमान में, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रोफेसरों की जिम्मेदारी और प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है। इसकी बजाय विदेशी विश्वविद्यालयों में कॉलेज फैकेल्टी के प्रदर्शन का मूल्यांकन उनके सहकर्मियों और विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है। इस संबंध में विद्यार्थियों और सहकर्मियों द्वारा दिए गए फीडबैक के आधार पर प्रोफेसरों के प्रदर्शन के ऑडिट की एक प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त समय-समय पर दूसरे इनपुट्स जैसे रिसर्च पेपर, शिक्षकों के पब्लिकेशंस को भी प्रदर्शन ऑडिट में जोड़ा जाना चाहिए।
- रोजगारपरक कौशल का अभाव: तकनीकी शिक्षा के विद्यार्थियों में रोजगारपरक कौशल का अभाव देखा जा सकता है। कमिटी ने विभिन्न क्षेत्रों में कौशल अंतराल की पहचान करने और उनमें रोजगारपरकता के लिए पाठ्यक्रमों को प्रस्तावित करने का सुझाव दिया है। इस संबंध में कुछ रणनीतियां इस प्रकार हो सकती हैं: (i) इंडस्ट्री इंस्टीट्यूट स्टूडेंट ट्रेनिंग सपोर्ट, (ii) इंडस्ट्रियल चैलेंज ओपेन फोरम, (iii) लॉन्ग टर्म स्टूडेंट इंडस्ट्री प्लेसमेंट स्कीम, और (iv) इंडस्ट्रियल फिनिशिंग स्कूल्स।
- संस्थानों का एक्रेडेशन: कमिटी ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों को एक्रेडेशन देना उच्च शिक्षा के रेगुलेटरी अरेंजमेंट्स का महत्वपूर्ण अंग होना चाहिए। इसके अतिरिक्त गुणवत्ता आश्वासन एजेंसियों को तकनीकी शिक्षा के बुनियादी न्यूनतम मानकों की गारंटी देनी चाहिए ताकि शिक्षा के क्षेत्र में उच्च कोटि की श्रमशक्ति की मांग को पूरा किया जा सके। नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडेशन को उच्च तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने और गुणवत्ता आश्वासन प्रदान करने के लिए कैटेलिस्ट के तौर पर काम करना चाहिए।
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, प्रतिष्ठित उद्योग संगठनों, मीडिया घरानों और पेशेवर निकायों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे भारतीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों को रेटिंग दें। एक सुदृढ़ रेटिंग प्रणाली से विश्वविद्यालयों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उनके प्रदर्शन में सुधार होगा।
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