कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- सार्वजनिक उपक्रम संबंधी कमिटी (चेयर: शांता कुमार) ने 2 अगस्त, 2017 को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिए उत्तरदायी है। रिपोर्ट में मार्च 2016 से जुलाई 2017 तक एनएचएआई के प्रदर्शन की पड़ताल की गई है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- प्रॉजेक्ट में विलंब: यह कहा गया कि 1995 से जून 2016 तक कुल 388 प्रॉजेक्ट्स में से सिर्फ 55 प्रॉजेक्ट समय पर या समय से पहले पूरे हुए। प्रॉजेक्ट्स के पूरा होने में विलंब के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: (i) भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण एवं वन मंजूरी हासिल करने में लगने वाला लंबा समय, (ii) आर्थिक मंदी के कारण कंसेशनेयर का खराब प्रदर्शन, और (iii) कानून और व्यवस्था की समस्याएं। कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रॉजेक्ट की बेहतर निगरानी और ठेकेदार, कंसेशनेयर एवं एनएचएआई के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने से काम समय पर पूरा हो सकता है।
- भूमि अधिग्रहण: कमिटी ने टिप्पणी की कि 1 जनवरी, 2015 से एनएचएआई के तहत अधिग्रहित भूमि का मुआवजा 2013 के एक्ट (भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार एक्ट, 2013) के तहत निर्धारित किया जा रहा है। इस एक्ट के तहत मुआवजा अधिक है, इसलिए भूमि अधिग्रहण पर सड़क परिवहन मंत्रालय का व्यय 2014-15 में 9,097 करोड़ रुपए से बढ़कर 2015-16 में 21,933 करोड़ रुपए हो गया। कमिटी ने यह भी गौर किया कि पुराने कानून के अंतर्गत कम मुआवजा पाने के हकदार किसान अधिक मुआवजे के लिए अदालतों में जा रहे थे। इससे भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में अधिक समय लगा।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में भागीदारों के बीच अधिक समन्वय स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण इकाइयों (जिला स्तर पर) को मजबूती दी जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि लंबी अवधि में राजमार्गों की इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी जरूरतें (यातायात की संख्या, भूमि की बढ़ती लागत और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में लगने वाला समय) क्या होंगी, इसे ध्यान में रखते हुए एनएचएआई को राजमार्ग विकास कार्यक्रम तैयार करना चाहिए।
- सार्वजनिक निजी भागीदारिता (पीपीपी) प्रॉजेक्ट: कमिटी ने टिप्पणी की कि पीपीपी प्रॉजेक्ट्स में विलंब के निम्नलिखित कारण हैं: (i) आर्थिक मंदी के कारण कंसेशनेयर का खराब प्रदर्शन, (ii) यातायात में कमी होने के कारण राजस्व में कमी और कंसेशनेयर का ऋण न चुका पाना, और (iii) सरकार की योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने की अपर्याप्त क्षमता। कमिटी ने टिप्पणी की कि सरकार ने पीपीपी मॉडल को शुरू किया लेकिन उसके बेहतर कार्यान्वयन के लिए नीतिगत परिवेश नहीं बनाया और न ही योजना तैयार की। उसने सुझाव दिया कि सरकार को किसी विशेष प्रॉजेक्ट की उपयुक्तता की जांच किए बिना पीपीपी मॉडल को शुरुआती डिलिवरी मैकेनिज्म के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- चूंकि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रॉजेक्ट्स की लागत अधिक होती है, इसलिए उच्च लागत के कारण सरकारी फंडिंग के अतिरिक्त दूसरे स्रोतों से भी संसाधन जुटाए जाने की जरूरत है। अतः कमिटी ने सुझाव दिया कि पीपीपी के अंतर्गत प्रॉजेक्ट्स को लागू करने का मॉडल निजी निवेशकों के लिए आकर्षक बना रहना चाहिए।
- फंड्स का अपर्याप्त उपयोग: कमिटी ने एनएचएआई के वित्तीय प्रदर्शन में अनेक समस्याओं के बारे में टिप्पणी की, जैसे (i) अपर्याप्त फंड्स, (ii) फंड्स की आबंटित और जारी की गई राशि में अंतर, और (iii) फंड्स का पर्याप्त उपयोग न होना। उदाहरण के लिए जो राशि वित्तीय वर्ष के अंत तक खर्च नहीं हुई, उसे अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ‘ओपनिंग बैलेंस’ के रूप में प्रदर्शित किया गया। यह ओपनिंग बैलेंस 2015-16 में 2,672 करोड़ रुपए और 2016-17 में 6,740 रुपए था। इससे प्रदर्शित होता है कि एनएचएआई उपलब्ध फंड्स का अधिकतम उपयोग करने में अक्षम रहा। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएचएआई को ऋण लेने की अपनी रणनीति तैयार करने के दौरान ओपनिंग बैलेंस पर भी विचार करना चाहिए।
- सड़क सुरक्षा: कमिटी ने टिप्पणी की कि सड़क दुर्घटनाओं में एक साल में 2.5% की वृद्धि हुई। 2014 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या 4,89,400 थी जो 2015 में बढ़कर 5,01,423 हो गई। कुल दुर्घटनाओं में 28% दुर्घटनाएं राजमार्गों पर हुईं। कमिटी ने टिप्पणी की कि सड़क निर्माण और रखरखाव के मानदंडों से सड़क सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है। कमिटी ने कहा कि हालांकि एनएचएआई सड़क निर्माण के मानदंडों का निरीक्षण करता है, लेकिन निर्माण के पूरा होने के बाद राजमार्गों के रखरखाव का निरीक्षण करने के लिए उसके पास कोई मैकेनिज्म नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएचएआई द्वारा निर्माण के बाद सड़कों के रखरखाव के लिए नीति विकसित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सरकार को सड़कों के डिजाइन और निर्माण में उपयुक्त सुरक्षा नियमों को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त फंड्स आबंटित करने चाहिए। यह राशि लगभग 20,000 करोड़ रुपए होगी।
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