स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- रेलवे संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: संदीप बंदोपाध्याय) ने 3 जनवरी, 2019 को ‘भारतीय रेलवे में पुलों का रखरखाव: एक समीक्षा’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारतीय रेलवे में पुलों का वर्गीकरण: कमिटी ने कहा कि भारतीय रेलवे के नेटवर्क में 1,47,523 पुल आते हैं। इन पुलों को तीन व्यापक श्रेणियों में बांटा गया है जोकि उनके जलमार्गों की चौड़ाई पर आधारित हैं: (i) 300 मीटर लंबे जलमार्ग (लीनियर वॉटरवे) वाले पुल महत्वपूर्ण पुल (इम्पॉर्टेंट ब्रिजेज़) कहलाते हैं, (ii) 18 मीटर लंबे जलमार्ग वाले पुल मुख्य पुल (मेजर ब्रिजेज़) कहलाते हैं और (iii) दूसरे सभी पुल छोटे पुल (माइनर ब्रिजेज़) कहलाते हैं। इस वर्गीकरण के आधार पर भारतीय रेलवे के 92% पुल माइनर ब्रिजेज़ हैं। कमिटी ने कहा कि यह वर्गीकरण बहुत व्यापक है जिसके कारण कुछ ही पुल इस वर्गीकरण में शामिल हो पाते हैं और अनेक पुल इसके दायरे से बाहर हो जाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेलवे मंत्रालय को फिर से पुलों का वर्गीकरण करना चाहिए ताकि उनके बीच समानता कायम की जा सके। मंत्रालय को वर्गीकरण के लिए कुछ दूसरे मानदंडों पर भी विचार करना चाहिए (सिर्फ जलमार्ग की चौड़ाई को आधार नहीं बनाया जाना चाहिए)।
- कमिटी ने कहा कि रेल नेटवर्क पर 37,689 पुल 100 साल या उससे भी अधिक पुराने हैं। हालांकि रेलवे उन्हें अलग से वर्गीकृत नहीं करता। इसके बजाय निरीक्षण और रखरखाव के मामले में उन्हें भी नए या आधुनिक पुलों के बराबर रखा जाता है। इन पुराने पुलों को कम भार के लिए चुना जाता है, साथ ही बदलते समय के हिसाब से उत्पन्न होने वाली स्थितियों को देखते हुए उनका चुनाव किया जाता है। जब रेलवे में तेजी गति वाली और भारी ट्रेनें चलाई जा रही हों, तब इन पुराने पुलों की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है और हादसे हो सकते हैं। कमिटी ने मंत्रालय के इस तर्क पर असहमति जताई कि पुल कितना पुराना है, उसका सीधा असर उसकी सुरक्षा पर नहीं पड़ता और किसी पुल को वर्गीकृत करते समय सिर्फ उसकी भौतिक स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें से अनेक पुल विरासत का हिस्सा हैं और इनका अधिक इस्तेमाल करने या दुरुपयोग करने से उनका पारंपरिक महत्व कम हो सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इन पुराने पुलों के निरीक्षण और रखरखाव के लिए प्रोटोकॉल तैयार करना चाहिए ताकि वाणिज्यिक महत्व को बरकरार रखते हुए सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जाए।
- पुलों का निरीक्षण: कमिटी ने कहा कि मंत्रालय निरीक्षण अधिकारी की विजुअल अवधारणा और मूल्यांकन पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इससे निरीक्षक की बुद्धिमत्ता और उसके द्वारा निर्धारित नियमों के पालन पर गैरजरूरी दबाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत आधार पर फैसले लेने की आशंका हमेशा बनी रहती है। यह सुझाव दिया गया कि रेलवे को पुल निरीक्षण के लिए निश्चित दिशानिर्देश बनाने चाहिए जिनमें गति सीमा से जुड़े दिशानिर्देश भी शामिल हों ताकि निरीक्षण अधिकारी को अपनी तरफ से सोचने-विचारने की जरूरत ही न हो। इन दिशानिर्देशों को व्यापक, स्पष्ट होना चाहिए और इनमें पुल निरीक्षण से जुड़े सभी पहलु या संभावित परिदृश्य शामिल होने चाहिए।
- कमिटी ने यह भी कहा कि पानी के नीचे से पुलों का निरीक्षण (चूंकि कई पुलों का आंशिक हिस्सा स्थायी रूप से पानी के नीचे रहता है) पांच साल में एक बार किया जाता है। इतने लंबे समय में रेल यातायात में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पानी के नीचे से पुलों के निरीक्षण की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए।
- पुलों के निरीक्षण में आधुनिक तकनीक का प्रयोग: कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को पुलों के निरीक्षण में आधुनिक तकनीक के प्रयोग की संभावनाएं तलाशनी चाहिए। इससे नुकसान को जल्दी चिन्हित किया जा सकेगा और रखरखाव की लागत भी कम होगी। कमिटी ने कहा कि वर्तमान में ट्रैक्स में गड़बड़ियां ढूंढने के लिए सेटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया जाता है। उसने सुझाव दिया कि पुलों के लिए भी ऐसी ही तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- रिक्तियां: कमिटी ने कहा कि भारतीय रेलवे में पुलों के निरीक्षण और रखरखाव के लिए कर्मचारियों की एक अलग श्रेणी है। हालांकि इन कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या 7,669 है लेकिन उनकी वास्तविक संख्या 4,517 है। यह लगभग 40% रिक्तियों की तरफ इशारा करता है। कर्मचारियों की कमी निरीक्षण को प्रभावित करती है, खास तौर से उत्तर पूर्व फ्रंटियर रेलवे को बहुत गंभीर रूप से। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को जल्द से जल्द इन रिक्तियों को भरने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जब तक इन रिक्तियों को भरा न जाए, तब तक मंत्रालय को कुछ अस्थायी उपाय करने चाहिए जैसे इन पदों को डेपुटेशन के जरिए भरा जाए ताकि इस कमी को दूर किया जा सके।
- प्राकृतिक आपदाएं: कमिटी ने कहा कि रेलवे की दूसरी संरचनाओं के मुकाबले पुलों पर भूकंप, आगजनी, चक्रवात और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अधिक विनाशकारी असर होता है। इसके अतिरिक्त देश के कुछ सुदूर इलाकों में रेलवे के पुल यातायात और परिवहन का अकेला साधन होते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को प्राकृतिक आपदाओं की आशंका को देखते हुए तत्काल पुनर्वास और चोट इत्यादि से बचाव, जान-माल के नुकसान और पुलों में टूट के संबंध में पहले से तैयारी करनी चाहिए।
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