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पीडीएफ

रेल भूमि विकास प्राधिकरण का प्रदर्शन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • रेलवे से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राधा मोहन सिंह) ने 8 अगस्त, 2023 को 'रेल भूमि विकास प्राधिकरण का प्रदर्शन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 2006 में रेल भूमि विकास प्राधिकरण (आरएलडीए) की स्थापना की गई थी। यह प्राधिकरण रेलवे की खाली या कम उपयोग की जाने वाली भूमि को विकसित और उसका व्यावसायीकरण करता है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • राजस्व सृजन के लिए खाली भूमि का उपयोग: रेलवे के पास लगभग 62,068 हेक्टेयर खाली भूमि है। 60%-70% खाली भूमि में पटरियों के किनारे पतली पट्टियां होती हैं जिनका उपयोग विभिन्न परिचालन आवश्यकताओं के लिए किया जाता है। कमिटी ने गौर किया कि 1,216 हेक्टेयर खाली भूमि पुनर्विकास के लिए आरएलडीए को सौंप दी गई है। हालांकि आरएलडीए ने अब तक केवल 67 हेक्टेयर भूमि ही व्यावसायिक विकास के लिए दी है। कमिटी ने मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि व्यावसायिक विकास के लिए अधिक भूमि का उपयोग किया जाए। इससे रेलवे के गैर-टैरिफ राजस्व को बढ़ाने में मदद मिलेगी। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को त्वरित व्यावसायिक विकास हेतु अनुमतियों, मंजूरियों और परमिट को फास्ट-ट्रैक करने के लिए एक सुव्यवस्थित अनुमोदन प्रक्रिया स्थापित करनी चाहिए।

  • कमिटी ने कहा कि पटरियों के किनारे भूमि की पतली पट्टियों का उपयोग 'अधिक भोजन उगाओ' योजना के तहत किया जा सकता है। इस योजना के तहत रेलवे की खाली जमीन पर रेल कर्मचारियों को खेती के लिए लाइसेंस दिया जाता है।

  • रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास: आरएलडीए को 103 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास का काम सौंपा गया है। कमिटी ने कहा कि अब तक दो स्टेशनों का पुनर्विकास पूरा हो चुका है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को पुनर्विकास प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए। उसने पुनर्विकास के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण का भी सुझाव दिया जिसमें यात्रियों की संख्या, कनेक्टिविटी और रणनीतिक महत्व के आधार पर पुर्नविकास को प्राथमिकता दी जाए।

  • रेल भूमि पर अतिक्रमण: कमिटी ने गौर किया कि लगभग 782 हेक्टेयर रेल भूमि अतिक्रमण के अधीन है। उसने मंत्रालय को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) लगातार फील्ड सर्वे करें, (ii) एक कुशल निगरानी तंत्र स्थापित करें, और (iii) अतिक्रमण से निपटने के लिए फील्ड ऑफिसर्स को प्रशिक्षण प्रदान करें।

  • कमिटी ने गौर किया कि अतिक्रमण के कई मामले अदालतों में लंबित हैं। उसने मंत्रालय को ऐसे सभी लंबित मामलों की व्यापक कानूनी समीक्षा करने का सुझाव दिया। उसने अदालती आदेशों को बेहतर ढंग से लागू करने और अतिक्रमण हटाने के लिए मंत्रालय, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और स्थानीय अधिकारियों के बीच समन्वय में सुधार करने का भी सुझाव दिया।

  • राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के साथ समन्वय: आरएलडीए को विकास योजनाओं को मंजूरी देने से पहले स्थानीय निकायों से परामर्श करना जरूरी है। कमिटी ने गौर किया कि आरएलडीए को अक्सर राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने कुछ रेल भूमि योजनाओं पर आपत्ति दर्ज की है, इस तथ्य के बावजूद कि ये योजनाएं मौजूदा मानदंडों के अनुरूप हैं। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह नियमित बातचीत के जरिए त्वरित समाधान के लिए आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ समन्वय करे।

  • कॉन्ट्रैक्ट्स को रद्द करना: कमिटी ने कहा कि डेवलपर्स द्वारा लीज शुल्क के भुगतान में चूक के कारण 16 कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिए गए हैं। मंत्रालय ने कमिटी को जानकारी दी कि आरएलडीए नियमों में बदलाव किए जाने हैं ताकि डेवलपर्स को अधिक आसानी से ऋण मिल सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि कॉन्ट्रैक्ट्स में पारदर्शी विवाद समाधान प्रक्रिया के प्रावधान को जोड़ा जाए। इनमें मध्यस्थता, आर्बिट्रेशन या ऐसे अन्य वैकल्पिक विवाद समाधान तरीके शामिल होने चाहिए।

  • क्षमता निर्माण: कमिटी ने मंत्रालय को यह सुझाव दिया कि वह सभी स्तरों पर आरएलडीए कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए। इस कार्यक्रम में तकनीकी विशेषज्ञता का निर्माण, परियोजना प्रबंधन, बातचीत तथा कानूनी और रेगुलेटरी जानकारी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

  • भूमि रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण: भारतीय रेलवे ने भूमि रिकॉर्ड के रखरखाव के लिए अपने ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम में एक लैंड मॉड्यूल शामिल किया है। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह सभी भूमि रिकॉर्ड्स को डिजिटल फॉरमैट में स्टोर करने के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाए। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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