स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
-
रेलवे संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राधा मोहन सिंह) ने मार्च 2021 में ‘रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण सहित यात्री सुविधाएं’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
-
यात्री सुविधाओं के लिए स्टेशनों का वर्गीकरण: रेलवे अपने स्टेशनों को अलग-अलग वर्गों में बांटता है ताकि यात्री सुविधाओं के प्रावधानों को प्राथमिकता दी जा सके। इस वर्गीकरण को हर पांच वर्षों में संशोधित किया जाता है। 2017-18 में रेलवे ने स्टेशनों को निम्नलिखित के आधार पर वर्गीकृत किया था: (i) स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्रियों को संभालना, और (ii) यात्रियों से प्राप्त वार्षिक आय। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेलवे को स्टेशनों के सापेक्ष महत्व पर फैसला लेने के लिए निम्नलिखित मानदंडों पर भी विचार करना चाहिए: (i) ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व, (ii) भौगोलिक स्थान, और (iii) औद्योगिक हब्स, बंदरगाहों, कृषि उत्पादन केंद्रों, शैक्षणिक एवं व्यावसायिक संस्थानों से निकटता। उसने कहा कि 2013 की एक कमिटी ने भी यह सुझाव दिया था लेकिन रेलवे ने इस पर अमल नहीं किया।
-
यात्री सुविधाओं के लिए फंड्स का उपयोग न होना: कमिटी ने गौर किया कि यात्री सुविधाओं के लिए निर्धारित धनराशि को: (i) 2014-15 में 16.3% (ii) 2015-16 में 38.2%, (iii) 2018-19 में 4.3% और (iv) 2019-20 में 44.4% उपयोग नहीं किया जा सका। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेलवे को एक वास्तविक बजट तैयार करना चाहिए ताकि वित्तीय और भौतिक लक्ष्यों को इष्टतम तरीके से हासिल किया जा सके। कमिटी ने यह भी गौर किया कि रेलवे ने एमपीलैड फंड्स, और भारतीय तेल निगम लिमिटेड की सोशल कॉरपोरेट रिस्पांसिबिलिटी के अंतर्गत मिली धनराशि का उपयोग भी नहीं किया। रेलवे स्टेशनों पर सुविधाएं शुरू करने के लिए यह धनराशि दी गई थी। एमपीलैड केंद्र सरकार की एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत संसद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यक्रमों के संबंध में सुझाव दे सकते हैं।
-
एसेट्स के रखरखाव के लिए निगरानी की व्यवस्था: कमिटी ने गौर किया कि यात्री सुविधाओं के लिए तैयार एसेट्स के रखरखाव को सुनिश्चित करने वाला व्यापक निगरानी तंत्र नदारद है। इससे इन एसेट्स का ब्रेकडाउन होता रहता है और यात्रियों को असुविधाएं होती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस संबंध में सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए।
-
स्टेशनों का पुनर्विकास: कमिटी ने कहा कि वर्ल्ड क्लास स्टेशनों के रूप में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास को सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) मोड में प्रस्तावित किया गया है। 2017 में इसके पहले चरण में 23 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास के लिए बोलियां आमंत्रित की गई थीं। हालांकि सिर्फ दो रेलवे स्टेशनों के लिए बोलियां प्राप्त हुईं। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेलवे को इस संबंध में सुधारात्मक उपाय करने चाहिए। कमिटी ने कहा कि पीपीपी मोड के अंतर्गत अभी तक किसी रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास नहीं किया गया है। उसने यह भी गौर किया कि रेलवे ने वर्ल्ड क्लास स्टेशनों के रूप में स्टेशनों के पुनर्विकास के लिए किसी समय सीमा का संकेत भी नहीं दिया है। 2009 में आदर्श (मॉडल) स्टेशन योजना के अंतर्गत 1,253 स्टेशनों को आदर्श स्टेशनों के रूप में पुनर्विकसित किया गया। कमिटी ने गौर किया कि काफी समय बीत जाने के बावजूद 53 स्टेशनों का पुनर्विकास होना बाकी है।
-
रेलवे सुरक्षा बल: कमिटी ने कहा कि रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के पास यात्री एरिया में अपराधों को दर्ज और उनकी जांच करने की शक्ति नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि आरपीएफ एक्ट, 1989 में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि आरपीएफ को शक्तियां दी जा सकें।
-
स्टेशनों और कोच की सफाई: मशीनीकृत स्वच्छता प्रणाली के अंतर्गत रेलवे अपनी ज्यादातर साफ-सफाई को प्रोफेशनल एजेंसियों को आउटसोर्स कर रहा है। कमिटी ने गौर किया कि 8,738 स्टेशनों में से सिर्फ 940 स्टेशनों पर ही आउटसोर्सिंग हुई है। रेलवे ने रेल यात्रा के दौरान कोच के शौचालयों, दरवाजों और यात्री कंपार्टमेंट्स की सफाई के लिए ऑनबोर्ड हाउसकीपिंग सेवा शुरू की है। इसमें 13,169 यात्री ट्रेनों में से अब तक सिर्फ 1,100 को कवर किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इनके अंतर्गत अधिक स्टेशनों और ट्रेनों को कवर किया जाना चाहिए।
-
ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीनों की सीमित उपलब्धता: कमिटी ने गौर किया कि अब तक देश भर में 4,077 ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीनों (एटीवीएमज़) को लगाया गया है। उसने कहा कि यह संख्या काफी कम है, और अधिक स्टेशनों पर एटीवीएमज़ होने चाहिए। उसने यह भी कहा कि मौजूदा 82% एटीवीएमज़ ही चालू स्थिति में हैं।
-
चाइल्ड हेल्प डेस्क: रेलवे ने 126 रेलवे स्टेशनों पर राउंट-द-क्लॉक चाइल्ड हेल्प डेस्क बनाए हैं। कमिटी ने कहा कि देश में स्टेशनों की कुल संख्या (8,738) को देखते हुए यह बहुत कम है। उसने सुझाव दिया कि बच्चों की तस्करी की आशंका वाले क्षेत्रों में अधिकतर स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्प डेस्क होने चाहिए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।