स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : डॉ. पी. वेणुगोपाल) ने 19 जुलाई, 2018 को ‘राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण’ (एसबीएम-जी) पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। 2 अक्टूबर, 2014 को इस अभियान की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य सार्वभौमिक सैनिटेशन कवरेज हासिल करने के साथ-साथ साफ-सफाई में सुधार करना और भारत को 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच से मुक्त करना है। कमिटी की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं :
- सैनिटेशन कवरेज और व्यवहार में बदलाव: कमिटी ने कहा कि सैनिटेशन कवरेज के आंकड़े जमीनी स्तर पर मिशन की वास्तविक प्रगति को प्रदर्शित नहीं कर सकते। उसने कहा कि जिन गांवों के हर घर (100% घरों) में शौचालय हैं, उन्हें भी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उनमें रहने वाले लोग उन शौचालयों का इस्तेमाल करना शुरू न कर दें। यह सुझाव दिया गया कि सरकार को ग्रामीण भारत में लोगों के व्यवहार को बदलने के लिए पर्याप्त कदम उठाने चाहिए और लोगों के मन-मस्तिष्क में साफ-सफाई की भावना उत्पन्न करनी चाहिए। इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
- शौचालयों की क्वालिटी: कमिटी ने कहा कि उसे जानकारी है कि एसबीएम-जी के अंतर्गत शौचालयों के निर्माण के लिए निम्न स्तर का कच्चा माल इस्तेमाल किया गया है। उसने इस मुद्दे पर चिंता जाहिर की और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय से आग्रह किया कि वे शौचालयों के निर्माण के लिए अच्छी क्वालिटी के कच्चे माल का इस्तेमाल सुनिश्चित करे।
- पानी की उपलब्धता : पर्याप्त पानी के अभाव में शौचालयों का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में 100% सैनिटेशन कवरेज हासिल करने की दिशा में बाधक होगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि सभी गांवों को ओडीएफ का दर्जा मिले, इसके लिए शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ पानी की उपलब्धता के प्रावधान को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- आंकड़ों की शुद्धता: ग्रामीण भारत के 77% घरों में शौचालयों की सुविधा उपलब्ध है और लगभग 93% उन्हें नियमित रूप से इस्तेमाल करते हैं। कमिटी ने कहा कि पहले ओडीएफ घोषित गांवों का फॉल बैक (उनका दोबारा खुले में शौच करना) रेट बहुत अधिक था, जिसके निम्नलिखित कारण थे: (i) ओडीएफ दर्जा हासिल करने के बारे में गलत जानकारी को फाइल करना, या (ii) शौचालयों का स्थायी न होना। इससे ओडीएफ गांवों में लोग दोबारा खुले में शौच के बावजूद रिकॉर्ड्स में ओडीएफ बने रहते। कमिटी ने सुझाव दिया कि संस्थागत प्रणाली के जरिए या दोबारा सर्वेक्षण करके ओडीएफ घोषित गांवों की जानकारी को लगातार सही तरीके से इकट्ठा किया जाना चाहिए।
- खर्च न होने वाली राशि: 2017-18 और 2018-19 (मई 2018 तक) में एसबीएम-जी के अंतर्गत क्रमशः 4,197 करोड़ रुपए और 9,890 करोड़ रुपए की राशि खर्च नहीं हुई थी। आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों में इस मद की बहुत सारी राशि खर्च ही नहीं की गई। इनके अनेक कारण हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जमीनी स्तर पर अपर्याप्त क्षमता निर्माण, और (ii) रिवॉल्विंग फंड्स की मौजूदगी तथा ऋण के अन्य स्रोतों का लाभ उठाना, इत्यादि। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस योजना को लागू करने में आने वाली बाधाओं को दूर करके और कड़ी निगरानी के जरिए इस राशि का इस्तेमाल किया जा सकता है। जिन मामलों में राज्य की प्रवर्तन एजेंसियां आबंटित राशि का उपयोग नहीं करतीं, सरकार शेष राशि के इस्तेमाल के लिए राज्य विशिष्ट कार्रवाई योजनाएं बना सकती है।
- केंद्र के हिस्से को जारी करना: कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र के हिस्से को एसबीएम-जी के दिशानिर्देशों के अनुसार निम्नलिखित स्थितियों में पूरी तरह से जारी किया जाना चाहिए : (i) केंद्र सरकार को राज्यों से प्राप्त होने वाले यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स (यूसीज़) की प्रामाणिकता सुनिश्चित होने पर, और (ii) निश्चित समय अवधि में राज्यों द्वारा खर्च न की गई राशि का इस्तेमाल करने पर।
- ठोस और तरल कचरा प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम): एसएलडब्ल्यूएम ने ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत रूप से अनूठी चुनौतियां पेश की हैं, जिसका कारण खुले में शौच और ठोस एवं तरल कचरे की अंधाधुंध डंपिंग है। कचरे को अलग-अलग न करने और जनसंख्या फैलाव के कारण भी आर्थिक रूप से व्यवहारिक बाजार आधारित समाधानों का इस्तेमाल करने में कठिनाइयां पैदा होती हैं।
- गांव स्वच्छ बनें, इसके लिए मिशन के अंतर्गत इनफॉरमेशन, एजुकेशन एंड कम्यूनिकेशन (आईईसी) पहल के जरिए एसएलडब्ल्यूएम के बारे में जागरूकता पैदा करना जरूरी है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को ऐसी नई और प्रभावी रणनीतियां तैयार करनी चाहिए जिनसे एसबीएम-जी के अंतर्गत एसएलडब्ल्यूएम के लिए बेहतर परिणाम हासिल हों।
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