स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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कोयला एवं स्टील संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राकेश सिंह) ने मार्च 2021 में ‘लीज पर दी गई लौह अयस्क खदानों का विकास और ऑप्टिमम कैपिसिटी यूटिलाइजेशन’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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सेल की लौह अयस्क खानों को मंजूरियों में देरी: कमिटी ने कहा कि भारतीय स्टील अथॉरिटी लिमिटेड (सेल) की कई लौह अयस्क खानें पर्यावरणीय एवं वन मंजूरियों का इंतजार कर रही हैं। ये मंजूरियां केंद्रीय मंत्रालय या संबंधित राज्य सरकारों के पास लंबित हैं। कमिटी ने कहा कि मंजूरियों में देरी का असर सेल के क्षमता विस्तार पर पड़ा है।
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खनन क्षेत्रों से सटी हुई अतिरिक्त जमीन: कमिटी ने गौर किया कि विस्तृत खोज के लिए खानों की गहराई को बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए किनारे की तरफ पिट एरिया को बढ़ाना और वेस्ट माइनिंग की मात्रा में बढ़ोतरी करना जरूरी है। इसलिए मौजूदा खनन क्षेत्रों के साथ सटी जगह की जरूरत होती है ताकि अतिरिक्त भंडारों के साथ निकलने वाले वेस्ट के लिए जगह बनाई जा सके। कमिटी ने गौर किया कि खनिजों की मौजूदगी के सबूत न होने पर राज्य सरकारें खनन क्षेत्रों से सटी जगहों को देने को तैयार नहीं हैं। राज्य सरकारें यह सोचती हैं कि इनकी नीलामी की जानी चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्टील मंत्रालय को मौजूदा खदानों के क्षेत्र के विस्तार के लिए खान मंत्रालय से समन्वय करना चाहिए।
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बेनेफिसिएशन: बेनेफिसिएशन वह प्रक्रिया होती है जिसमें गैंग मिनरल्स को हटाकर अयस्क के आर्थिक मूल्य को सुधारा जाता है। कमिटी ने कहा कि भारत में उच्च श्रेणी के लौह अयस्कों में लगातार गिरावट आ रही है। इसलिए यह जरूरी है कि निम्न श्रेणी के लौह अयस्कों को वाणिज्यिक श्रेणी में बेनेफिशिएट किया जाए ताकि स्टील बनाने के लिए कच्चे माल की मांग को पूरा किया जा सके। कमिटी ने कहा कि खराब इकोनॉमिक्स के कारण भारत में लौह अयस्क के 45%-55% के बीच आयरन कंटेंट वाले बेनेफिसिएशन प्लांट्स न के बराबर हैं। बेनेफिसिएशन की लागत बिजली की कीमत से सीधे जुड़ी हुई होती है। कमिटी ने गौर किया कि बेनेफिसिएशन के बाद एग्लोमरेशन से निम्नलिखित में मदद मिलती है: (i) सीमित उच्च श्रेणी के अयस्कों को संरक्षित करना, और (ii) खान/प्रोसेस रिजेक्ट्स का अधिकतम इस्तेमाल करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्टील मंत्रालय को बेनेफिसिएशन और एग्लोमरेशन उद्योगों को इनसेंटिव देने की नीति बनाने के लिए खान मंत्रालय के साथ समन्वय करना चाहिए।
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पेलेटाइजेशन: लौह अयस्क को गुटकों (पैलेट्स) में बदलने की प्रक्रिया को पेलेटाइजेशन कहा जाता है। कमिटी ने कहा कि पैलेट्स ब्लास्ट फर्नेस के लिए मुख्य कच्चा माल होते हैं और उसकी उत्पादकता को कई गुना बढ़ा सकते हैं। निम्न श्रेणी के अयस्क के बेनेफिसिएशन से मिलने वाले कॉन्सेनट्रेट को पैलेट्स बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उसने सुझाव दिया कि बेनेफिशिएटेड अयस्क के इस्तेमाल और उनके क्षमता उपयोग के लिए पैलेट प्लांट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
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खनन में पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को अपनाना: कमिटी ने गौर किया कि सभी श्रेणियों के खनिजों के खनन में पर्यावरण अनुकूल तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यहां तक कि खनन स्थल पर बेनेफिसिएशन या पैलेटाइजेशन के लिए जरूरी प्रावधान भी किए जाने चाहिए। बाकी के वेस्ट के दूसरे इस्तेमाल किए जा सकते हैं (जैसे निर्माण सामग्री के रूप में)। कमिटी ने सुझाव दिया कि जीरो वेस्ट मॉडल खनन प्रॉजेक्ट को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए स्टेकहोल्डर्स से विचार विमर्श किया जाना चाहिए।
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राष्ट्रीय स्टील नीति के अंतर्गत लक्ष्य: राष्ट्रीय स्टील नीति, 2017 के अंतर्गत भारत की क्रूड स्टील क्षमता 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन (एमटी) तक बढ़ाने का लक्ष्य है। कमिटी ने कहा कि इससे लौह अयस्क की आवश्यकता 2030-31 तक बढ़कर 437 मीट्रिक टन हो जाएगी। कमिटी ने गौर किया कि स्टील के उपभोग में बढ़ोतरी के लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत है और नीति के अंतर्गत लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक स्टील प्लांट्स की जरूरत है।
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