कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- संसद की एस्टिमेट्स कमिटी (चेयर: गिरीश भालचंद्र बापट) ने 19 मार्च, 2021 को ‘सरकारी व्यय के बेहतर प्रबंधन के लिए हालिया बजटीय सुधार’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने केंद्र सरकार के कुछ बजटीय सुधारों और केंद्र एवं राज्य सरकारों की वित्तीय स्थितियों पर उसके प्रभाव पर विचार किया। इन सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बजटीय चक्र को आगे बढ़ाना, और 1 फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करना, (ii) बजट में योजनागत व्यय और गैर योजना व्यय का विलय, और (iii) रेल बजट और केंद्रीय बजट का विलय। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राज्यवार आबंटन: कमिटी ने कहा कि यूनियन बजट एट अ ग्लांस नामक दस्तावेज में बजट की झलकियां होती हैं जिसमें मुख्य योजनाओं के लिए केंद्र सरकार के आबंटन भी शामिल होते हैं। हालांकि इस दस्तावेज में राज्य सरकारों को आबंटित धनराशि का उल्लेख नहीं होता। कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों को कितनी धनराशि आबंटित की है, लोगों की रुचि यह जानने में होती है। ऐसा न होने पर आम आदमी को बजटीय आबंटन के बारे में यह स्पष्टता नहीं होती कि कितनी राशि राज्य सरकार से मिलने वाली है, और कितनी केंद्र सरकार से। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को केंद्रीय बजट दस्तावेजों में राज्यवार आबंटनों का विवरण शामिल करना चाहिए ताकि राज्यों को हस्तांतरित धनराशि में पारदर्शिता लाई जा सके।
- केंद्रीय बजट दस्तावेजों की पठनीयता: कमिटी ने कहा कि केंद्रीय बजट दस्तावेज इतने बड़े होते हैं कि आम आदमी और जन प्रतिनिधियों के पास उन्हें पढ़ने और समझने का वक्त नहीं होता। कमिटी ने सुझाव दिया कि लोकसभा में बजट पेश होने के तुरंत बाद संसद सदस्यों के लिए एक ब्रीफिंग सेशन आयोजित किया जाना चाहिए और बजट दस्तावेजों की विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए।
- बैंक खातों में राज्यों की खर्च न होने वाली शेष राशि: कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को हस्तांतरित राशि राज्य ट्रेजरीज़ में तब तक शेष रहती हैं, जब तक कि उन्हें कार्यान्वयन एजेंसियों को हस्तांरित नहीं किया जाता। कमिटी ने कहा कि कुछ राज्य सरकारें योजनाओं/अनुदानों की शेष राशि, जो खर्च नहीं होती, को बैंकों में जमा कर देती हैं जिन पर उन्हें अच्छा-खासा ब्याज मिलता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को बैंकों में राज्य सरकार की ऐसी शेष राशि से अर्जित ब्याज को चिन्हित करना चाहिए और उनके द्वारा अर्जित धनराशि के उपयोग के लिए दिशानिर्देश तैयार करने चाहिए (अगर ऐसे दिशानिर्देश न हों)।
- बजट चक्र को आगे बढ़ाना: कमिटी ने कहा कि 2017-18 से शुरू होने वाले केंद्रीय बजट चक्र को आगे बढ़ाकर संसद ने वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले एप्रोप्रिएशन (विनियोग) बिल को मंजूरी दी। परिणामस्वरूप वर्ष की शुरुआत में ही मंत्रालयों को पूरा बजट उपलब्ध हो जाता है और राज्यों को केंद्रीय बजट के अनुसार, अपने बजट की योजना बनाने और उसे पेश करने का समय मिल जाता है। कमिटी ने कहा कि वर्ष 2017-18 के शुरुआती तीन महीनों में केंद्र सरकार के व्यय की रफ्तार पिछले वर्ष के मुकाबले तेज रही। हालांकि 2018-19 में व्यय की रफ्तार कम हुई। कमिटी ने सुझाव दिया कि आर्थिक मामलों का विभाग (डीईए) 2018-19 में व्यय के कम होने के कारणों की समीक्षा करे और इस संबंध में उचित उपाय करे।
- कम खर्च होना: कमिटी ने कहा कि डीईए को सभी मंत्रालयों के व्यय की हर छह महीने में समीक्षा करनी चाहिए। साथ ही अब तक के व्यय एवं शेष वर्ष में राज्य की व्यय क्षमता के आधार पर वर्ष की अधिकतम सीमा में संशोधन करना चाहिए। कमिटी ने कहा कि बजट चक्र को आगे बढ़ाने के बावजूद 2017-18 में 99, 2018-19 में 97 और 2019-20 में 100 विभागों में बचत हुई (यानी आबंटित राशि का पूरा व्यय या उपयोग न होना)। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस मोर्चे पर बजट चक्र को आगे बढ़ाने के उद्देश्यों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह प्रवृत्ति रुके और केंद्रीय बजट में सरकार को उपलब्ध धनराशि का इष्टतम और पूरा उपयोग हो सके।
- योजनाओं के कार्यान्वयन का निरीक्षण: कमिटी ने कहा कि मंत्रालय/विभाग का सचिव, चीफ एकाउंटिंग अथॉरिटी होने के नाते, प्रॉजेक्ट्स/योजनाओं के कार्यान्वयन का निरीक्षण करने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि कमिटी ने कहा कि डीईए का सचिव जोकि केंद्र सरकार की एकाउंटिंग का ओवरऑल कंट्रोलर होता है, भी समान रूप से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के प्रॉजेक्ट्स/योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार है। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीईए को एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जो प्रॉजेक्ट्स/योजनाओं के कार्यान्वयन के संबंध में मंत्रालयों/विभागों की प्रगति पर नजर रख सके। इससे बजट आबंटन करते समय आदतन डीफॉल्ट करने वालों, जिन्होंने प्रगति को अपडेट नहीं किया है, को चिन्हित किया जा सके।
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