स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- रसायन और उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: आनंदराव अडसुल) ने 10 अप्रैल, 2017 को ‘सिटी कंपोस्ट (शहरी कचरे से बनी खाद) को बढ़ावा देने की नीति का कार्यान्वयन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- कमिटी ने कहा कि 2014 तक शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष 620 लाख मीट्रिक टन (एलटीएम) कचरा उत्पन्न होता था जिसमें से 19% उपचारित किया जाता था। बचा हुआ कचरा या तो गड्ढ़ों में जमा होता है या कूड़े के ढेर में तब्दील हो जाता है जिससे पर्यावरण संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। विषैले कचरे और ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है। कमिटी ने कहा कि कचरे से खाद बनाने की इंस्टॉल्ड क्षमता 10 एलएमटी थी और प्रति वर्ष लगभग 1.6% (16,000 एमटी) खाद का उत्पादन किया जा रहा था। शहरी कचरे को प्रोसेस और प्रयोग करने हेतु 2016 में सिटी कंपोस्ट को बढ़ावा देने की नीति मंजूर की गई। इस नीति के तहत उर्वरक कंपनियों को सिटी कंपोस्ट की मार्केटिंग और प्रमोशन के लिए सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता 1,500 रुपए प्रति टन है।
- शहरी कंपोस्ट संयंत्रों की स्थिति: नीति के तहत उर्वरक विभाग ने अक्टूबर 2019 तक हर शहर में कम से कम एक कंपोस्ट संयंत्र लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कमिटी ने कहा कि देश में 4,000 शहर हैं जिनमें से 500 शहरों की जनसंख्या एक लाख से अधिक है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह टिप्पणी भी की कि देश में 93 कंपोस्ट संयंत्र चालू हालत में हैं, जबकि 283 निर्माणाधीन हैं या उनको फिर से चालू किया जाना है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कम से कम एक राज्य में पायलट प्रॉजेक्ट शुरू किया जाना चाहिए और उसे मॉडल राज्य के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि दूसरे राज्य भी उसका अनुसरण कर सकें। कमिटी ने सुझाव दिया कि उर्वरक विभाग को शहरी विकास मंत्रालय और राज्यों के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए कि नए कंपोस्ट संयंत्र राज्य में उसके आकार और जनसंख्या के आधार पर लगाए गए हैं।
- मार्केंटिंग नेटवर्क का अभाव: उर्वरक कंपनियां अपने डीलर नेटवर्क्स के जरिए शहरी कंपोस्ट की मार्केटिंग और प्रमोशन करती हैं। कमिटी ने टिप्पणी की कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में अप्रैल से अगस्त के दौरान अधिकतर उर्वरक कंपनियां अपना मार्केटिंग लक्ष्य पूरा नहीं कर पाईं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने टिप्पणी की कि उन 14 राज्यों में उर्वरक कंपनियों के मार्केटिंग नेटवर्क नहीं थे, जो उन कंपनियों के साथ टैग किए गए थे। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्यों के साथ उर्वरक कंपनियों की टैगिंग अर्थपूर्ण होनी चाहिए और कंपनियों को मार्केंटिंग नेटवर्क विकसित करने चाहिए।
- शहरी कंपोस्ट का मूल्य: कमिटी ने कहा कि इस नीति के तहत किसानों को कंपोस्ट पर प्रत्यक्ष प्रोत्साहन या सबसिडी नहीं दी जाती है। कमिटी ने गौर किया कि हालांकि यूरिया का मूल्य शहरी कंपोस्ट से 50-60 रुपए अधिक है, कंपोस्ट की जगह उसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त जहां यूरिया का मिट्टी पर तत्काल असर होता है, वहीं शहरी कंपोस्ट का असर दो से तीन वर्ष के बाद नजर आता है।
- जनवरी 2017 में उर्वरक विभाग ने दिशानिर्देश जारी किए जिसमें कंपोस्ट मैन्यूफैक्चरर्स को किसानों को कंपोस्ट सीधे बेचने की अनुमति दी गई। ऐसा इसलिए किया गया ताकि शहरी कंपोस्ट की कीमतें कम हों और अगर लंबे समय तक कंपोस्ट न बिके तो उसके भंडारण से जुड़ी समस्याओं को दूर किया जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को राज्य सरकारों को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि वे सिटी कंपोस्ट पर सबसिडी दें। कमिटी ने यह भी कहा कि शहरी कंपोस्ट के उत्पादन और बिक्री को केंद्रीय और राज्य करों से मुक्त रखा जाना चाहिए।
- राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमिटी: इस नीति के तहत अपेक्षा की जाती है कि अंतर विभागीय समन्वय के लिए राज्य स्तर पर स्टीयरिंग कमिटी बनाई जाए। नीति के तहत जहां उर्वरक विभाग वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, कृषि विभाग शहरी कंपोस्ट के संबंध में किसानों को शिक्षित करने के लिए और शहरी विकास मंत्रालय सभी राज्यों में अधिक से अधिक कंपोस्ट संयंत्र लगाने के लिए जिम्मेदार होगा। कमिटी ने टिप्पणी की कि जनवरी 2017 तक केवल सात राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में इन कमिटियों का गठन किया गया था। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमिटी का गठन सुनिश्चित करने के लिए राज्यों पर दबाव बनाना चाहिए।
- कचरे को छांटना: कमिटी ने टिप्पणी की कि घरों में कंचरे की छंटाई के संबंध में लोग जागरूक नहीं हैं। कमिटी ने विचार किया कि इस काम में अनौपचारिक क्षेत्र के वेस्ट कलेक्टर्स को शामिल किया जा सकता है और इससे उन्हें रोजगार मिल सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि कचरे को एकत्र करने और उसे छांटने के काम में बेरोजगार युवाओं की सेवाएं प्राप्त की जा सकें।
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