स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- सूचना और प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन : अनुराग सिंह ठाकुर) ने 11 अप्रैल, 2017 को ‘सेवाओं की क्वालिटी और रिपोर्टेड कॉल ड्रॉप्स से संबंधित मुद्दों’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने निम्नलिखित में टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) और टेलीकॉम विभाग की भूमिका की जांच की: (i) यह सुनिश्चित करना कि कॉल ड्रॉप्स की संख्या कम हुई है, और (ii) टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स (टीएसपीज़) द्वारा दी जाने वाली टेलीकॉम सेवा की क्वालिटी बरकरार रखना।
- अपर्याप्त रेगुलेशंस: कमिटी ने टिप्पणी की कि टीएसपीज़ की अच्छी सेवाओं (क्वालिटी ऑफ सर्विसेज- क्यूओएस) को सुनिश्चित करने के लिए रेगुलेशंस में कई बार संशोधन किए गए। लेकिन इनसे कॉल ड्रॉप्स जैसी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका। इसके अतिरिक्त ट्राई के पास कॉल ड्रॉप्स से संबंधित कुछ रेगुलेशंस को लागू करने के लिए पर्याप्त अधिकार नहीं हैं। कमिटी ने यह टिप्पणी भी की कि टीएसपीज़ पर वित्तीय दंड लगाने से कॉल ड्रॉप्स की समस्या दूर नहीं हुई है।
- क्यूओएस का आकलन: कमिटी ने टिप्पणी की कि क्यूओएस का आकलन करने की मौजूदा प्रणाली से टीएसपीज़ के प्रदर्शन की वास्तविक तस्वीर देखने को नहीं मिलती। चूंकि यह प्रणाली बड़े सेवा क्षेत्रों में कॉल ड्रॉप्स की संख्या का औसत निकालती है, इसलिए जिन विशिष्ट क्षेत्रों में कॉल ड्रॉप्स के सबसे अधिक मामले होते हैं, उन्हें ढूंढा नहीं जा सकता। कमिटी ने सुझाव दिया कि क्यूओएस का अधिक ग्रैनुअल स्तर, जैसे जिले या शहर के स्तर पर आकलन किया जाना चाहिए।
- स्पैक्ट्रम की उपलब्धता: कमिटी ने टिप्पणी की कि पिछले कुछ वर्षों में टीएसपीज़ को बहुत बड़ी संख्या में स्पैक्ट्रम बेचे गए हैं। हालांकि अन्य देशों की तुलना में भारत में प्रति टेलीकॉम ऑपरेटर बहुत अधिक संख्या में स्पेक्ट्रम होल्डिंग नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वाणिज्यिक टेलीकॉम ऑपरेटरों को दिए गए कुल स्पेक्ट्रम अन्य देशों की तुलना में कम हैं। कमिटी ने टिप्पणी की कि अगर टेलीकॉम ऑपरेटरों द्वारा 700 मेगाहर्ट्स, 2011 मेगाहर्ट्स और 2500 मेगाहर्ट्स के बैंड्स में अनसोल्ड (बेचे नहीं गए) स्पेक्ट्रम अधिकार खरीदे जाएं, तो इन समस्याओं को हल किया जा सकता है।
- साझेदारों के बीच पार्टनरशिप: कमिटी ने टिप्पणी की कि किसी मोबाइल नेटवर्क में कॉल ड्रॉप्स के कई कारण हो सकते हैं जिनमें से कई टीएसपीज़ के नियंत्रण से बाहर के मामले होते हैं। कॉल ड्रॉप्स के कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उपयुक्त टावर लोकेशन उपलब्ध न होने के कारण कमजोर रेडियो कवरेज, (ii) स्थानीय प्रशासन द्वारा टावर को सील करना, (iii) अनाधिकृत यूजर्स के कारण रेडियो इंटरफेयरेंस, और (iv) अधिक टेलीकॉम यूजर्स वाले क्षेत्रों में स्पेक्ट्रम की सीमित उपलब्धता, इत्यादि। कमिटी ने सुझाव दिया कि टेलीकॉम विभाग को इन समस्याओं को हल करने के लिए ट्राई, टीएसपीज़ जैसे विभिन्न साझेदारों और आम नागरिकों के साथ समन्वय स्थापित करना चाहिए। इससे नीतियों को शीघ्र लागू किया जा सकेगा और साझेदारों के बीच हितों के टकराव को रोका जा सकेगा।
- ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश: कमिटी ने टिप्पणी की कि देश में टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार के लिए काफी निवेश किया गया है। फिर भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक निवेश करने की जरूरत है। चूंकि यह नहीं किया गया है इसीलिए कनेक्टिविटी से जुड़ी समस्याएं नजर आ रही हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि टेलीकॉम विभाग को टीएसपीज़ की सहायता करनी चाहिए ताकि ग्रामीण टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर में वे अधिक निवेश कर सकें।
- केंद्रीय मंत्रालयों के साथ समन्वय: कमिटी ने टिप्पणी की कि सरकारी इमारतों में मोबाइल टावर लगाने के प्रस्ताव को शहरी विकास मंत्रालय ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इसके लिए टीएसपीज़ को लाइसेंस फीस चुकानी होगी। हालांकि अधिकतर सरकारी विभाग टावर लगाने की अनुमति नहीं देते। कमिटी ने टिप्पणी की कि इस संबंध में अधिक सफलता हासिल नहीं हुई है। कमिटी ने सुझाव दिया कि टेलीकॉम विभाग को केंद्र सरकार के अन्य विभागों, जैसे रक्षा और डाक को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि वे टेलीकॉम ऑपरेटरों को अपनी इमारतों और क्षेत्रों में मोबाइल टावर लगाने की मंजूरी दें।
- मोबाइल टावरों से जुड़े भय को खत्म करने के लिए अभियान: कमिटी ने टिप्पणी की कि मोबाइल टावर का रेडिएशन लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, इस संबंध में लोगों के डर को दूर करने के लिए जो अभियान चलाए जा रहे हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि ट्राई और टीएसपीज़ को लोकप्रिय व्यक्तियों की मदद से विज्ञापन अभियान चलाने चाहिए ताकि लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जा सके कि रेडिएशन का असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता।
- उपभोक्ताओं में जागरूकता: कमिटी ने टिप्पणी की कि कॉल ड्रॉप्स कंज्यूमर प्रैक्टिस के कारण भी हो सकती हैं जैसे फोन में लो बैटरी होना, लो कवरेज क्षेत्र जैसे एलिवेटर, बेसमेंट, डीप इनडोर इत्यादि में जाना। कमिटी ने टिप्पणी की कि ट्राई को ऐसी प्रैक्टिस के संबंध में उपभोक्ताओं को जागरूक करने के उपाय भी करने चाहिए।
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