स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: जयंत सिन्हा) ने 9 सितंबर, 2020 को ‘स्टार्टअप इकोसिस्टम का वित्त पोषण’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। स्टार्टअप इकोसिस्टम में स्टार्टअप एसिलेटर्स, वेंचर कैपिटलिस्ट्स, निजी निवेशक, इंटरप्रेन्योर्स, सरकार, निगम, मेंटर्स और मीडिया शामिल होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्टार्टअप्स में निवेश अवसरों को व्यापक बनाने के लिए टैक्सेशन और दूसरे रेगुलेशंस में बदलाव किए जाएं। मुख्य निष्कर्षो और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- यूनिकॉर्न्स में घरेलू निवेश: यूनिकॉर्न्स एक बिलियन डॉलर से अधिक की कीमत वाले स्टार्टअप होते हैं। कमिटी ने कहा कि यूनिकॉर्न्स के लिए विदेशी स्रोतों से पूंजी हासिल की जाती है, जैसे यूएस और चीन। घरेलू पूंजी को बढ़ावा देने के लिए कमिटी ने भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के फंड टू फंड्स का दायरा बढ़ाने का सुझाव दिया ताकि स्टार्टअप्स को अधिक धनराशि का वितरण किया जा सके। सिडबी का फंड टू फंड्स एक ऐसा फंड है जोकि वैकल्पिक निवेश फंड्स (एआईएफ) जैसे दूसरे फंड्स में निवेश करता है। एआईएफ स्टार्टअप्स और दूसरी कंपनियों में निवेश के लिए निजी फंड्स को पूल करता है।
- लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को समाप्त करना: कमिटी ने सुझाव दिया कि कलेक्टिव इनवेस्टमेंट वेहिकल्स (सीआईवी) के जरिए बनाए जाने वाले स्टार्टअप्स में निवेश पर दो वर्ष के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को माफ कर दिया जाना चाहिए। दो वर्ष के बाद सीआईवी पर सिक्योरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) लगाया जा सकता है (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के स्थान पर) ताकि सरकार के लिए राजस्व तटस्थता (रेवेन्यू न्यूट्रैलिटी) सुनिश्चित हो। एसटीटी सिक्योरिटीज़ की खरीद और बिक्री पर लगाया जाने वाला टैक्स है और वर्तमान में लिस्टेड सिक्योरिटीज़ पर लगाया जाता है। सीआईवी ऐसी एंटिटीज़ होती हैं (जैसे एंजल फंड्स और एआईएफज़) जिनके जरिए लोग निवेश के लिए अपने फंड्स को पूल करते हैं।
- एसेट मैनेजमेंट सेवाएं जीएसटी के अधीन नहीं: भारत में निगमित एआईएफज़ और भारत के बाहर बने गैर एआईएफज़ के जरिए स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश किया जा सकता है। एआईएफ और गैर एआईएफ, दोनों में फंड मैनेजर रखे जाते हैं जोकि एसेट मैनेजमेंट सेवाएं देते हैं। गैर एआईएफ को दी जाने वाली मैनेजमेंट सेवाओं को निर्यात माना जाता है और उनसे जीएसटी नहीं लिया जाता। जबकि एआईएफ से जीएसटी लिया जाता है। कमिटी ने कहा कि इससे निवेशक ऑफशोर फंड्स लेना पसंद करते हैं जिससे भारत में एसेट मैनेजमेंट उद्योग के विकास पर असर होता है। कमिटी ने विदेशी निवेशकों की मैनेजमेंट सेवाओं में समानता सुनिश्चित करने का सुझाव दिया। भले ही उन्हें ऑनशोर (एआईएफ) पूल किया गया हो या ऑफशोर (गैर एआईएफ), उन्हें निर्यात माना जाना चाहिए जिससे वे जीएसटी छूट का दावा कर सकें।
- घरेलू संस्थागत फंड्स को जुटाना: कमिटी ने कहा कि पेंशन फंड्स, प्रॉविडेंट फंड्स, बैंक और बीमा कंपनियों के पास उपलब्ध घरेलू पूंजी को वैकल्पिक एसेट क्लासेज़ (जैसे एआईएफ, निजी इक्विटी, वेंचर कैपिटल फंड्स) में निवेश के लिए चैनलाइज नहीं किया जाता। कमिटी ने सुझाव दिया कि (i) पेंशन फंड्स को अनलिस्टेड एआईएफ में निवेश के लिए अनुमति दी जानी चाहिए और एआईएफ कॉरपस के 100 करोड़ रुपए के न्यूनतम आकार की शर्त को हटा दिया जाना चाहिए, (ii) बड़े बैंकों को फंड ऑफ फंड्स को फ्लोट करने की अनुमति दी जानी चाहिए और कैटेगरी III एआईएफ में निवेश की अनुमति मिलनी चाहिए (एआईएफ जो जटिल ट्रेडिंग रणनीतियां अपनाते हैं, जैसे हेज फंड्स), और (iii) बीमा कंपनियों को इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा फ्लोट किए गए फंड टू फंड्स में और वीसी/पीई फंड में सीधे निवेश की अनुमति होनी चाहिए तथा इसके लिए हायर एक्सपोजर लिमिट दी जानी चाहिए। बीमा कंपनियों को एआईएफ में अपने निवेश फंड्स का 3% से 5% के बीच निवेश की अनुमति है।
- एआईएफ की लिस्टिंग: एआईएफ पूंजी के स्थायी स्रोत तक पहुंच बना सकें, इसके लिए सुझाव दिया गया है कि उन्हें पूंजी बाजार में लिस्टिंग की अनुमति दी जाए।
- एफवाईसीआई के लिए क्षेत्रों का विस्तार: कमिटी ने सुझाव दिया कि फॉरेन वेंटर कैपिटल इनवेस्टर्स (एफवाईसीआई) को उन सभी क्षेत्रों में निवेश की अनुमति दी जाए जिनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति है। वर्तमान में एफवाईसीआई को अनलिस्टेड भारतीय कंपनियों में इक्विटी रखने की अनुमति है जो सीमित क्षेत्रों जैसे बायोटेक्नोलॉजी, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर संबंधी आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में काम करती हैं।
- स्टार्टअप्स के लिए फाइनांसिंग स्रोतों का विस्तार: कमिटी ने कहा कि अगर किसी कंपनी के 50% से अधिक एसेट्स या राजस्व किसी स्टार्टअप से प्राप्त होते हैं तो उन कंपनियों को गैर बैंकिंग फाइनांस कंपनियों (एबीएफसी) के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कंपनियों को एनबीएफसीज़ के तौर पर वर्गीकृत किए बिना स्टार्टअप्स में निवेश की अनुमति दी जानी चाहिए।
- लॉन्ग टर्म कैपिटल के लिए इनसेंटिव: फाइनांस एक्ट, 2020 में कहा गया है कि इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में 31 मार्च, 2024 से पहले किए गए निवेश से प्राप्त आय को कम से कम तीन वर्षों के लिए कुल आय के कैलकुलेशन से हटा दिया जाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि यह प्रावधान सभी क्षेत्रों में लॉन्ग टर्म कैपिटल पर लागू किया जाए।
- मूल्य निर्धारण संबंधी दिशानिर्देशों का रैशनलाइजेशन: कमिटी ने कहा कि एआईएफज़ द्वारा निवेश की शर्तों से कुछ समस्याएं पैदा होती हैं। शेयर्स किस मूल्य पर जारी किए जाएंगे (मूल्य निर्धारण संबंधी दिशानिर्देश), इस पर कुछ रेगुलेशंस हैं। सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी), इनकम टैक्स एक्ट, कंपनी एक्ट और फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के अंतर्गत इन दिशानिर्देशों को निर्दिष्ट किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन दिशानिर्देशों को अधिक सुसंगत बनाया जाए ताकि इनकी संरचना सरल हो। सरकारी प्रशासन को मूल्य निर्धारण संबंधी दिशानिर्देश देने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया जा सकता है।
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