विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पॉलिसी ब्रीफ
वैक्सीन
सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए वैक्सीनेशन एक महत्वपूर्ण उपाय है और दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों का एक अनिवार्य अंग है। इस ब्रीफ में वैक्सीन्स के पीछे के विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य में उनकी भूमिका, वैक्सीन को विकसित करने की प्रक्रिया और संबंधित मुद्दों को रेखांकित किया गया है।
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सारांश
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पृष्ठभूमि
बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीवों के कारण होने वाले संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए वैक्सीन महत्वपूर्ण होती हैं। कुछ बीमारियां बहुत अधिक संक्रामक होती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपात स्थितियां पैदा होती हैं, जैसे 2022 में महाराष्ट्र में खसरे का प्रकोप, 2020 में कोविड-19 महामारी, 2019 में बिहार में जापानी इंसेफेलाइटिस और 2018 में केरल में निपाह वायरस का प्रकोप।[1],[2],[3],[4] इसके नतीजे जीवन की क्षति, उपचार पर बहुत अधिक खर्च, तनावपूर्ण स्वास्थ्य प्रणालियों और नकारात्मक आर्थिक परिणामों के रूप में देखे जाते हैं।
वैक्सीन्स सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति की महत्वपूर्ण विशेषता हैं। वैक्सीन्स ने कई बीमारियों को समाप्त किया है, जैसे चेचक (दुनिया भर में) और पोलियो (कई देशों से)। लान्सेंट के अध्ययन के अनुसार, 2021 में विश्व स्तर पर कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीनेशन से मृत्यु दर में दो-तिहाई की कमी होने का अनुमान है।[5]
वैक्सीन और प्रतिरोधक प्रणाली
वायरस और बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीव मानव कोशिकाओं से भी कई गुना छोटे हो सकते हैं।[6] इसका यह अर्थ है कि ये पैथोजन (यानी बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव) मानव शरीर के भीतर प्रवेश कर सकते हैं और मानव कोशिका के भीतर या कोशिका के बाहर खुद को गुणा (रेप्लिकेट) कर सकते हैं। ये शरीर में हवा, पानी, कटी-फटी त्वचा और मच्छरों जैसे वेक्टर के जरिए रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं।[7] किसी स्वस्थ मानव शरीर में पैथोजन की मौजूदगी और होस्ट के भीतर उसके गुणा करने को संक्रमण कहा जाता है।[8] अगर संक्रमण को नियंत्रित नहीं किया जाता, तो शरीर को होने वाला नुकसान बीमारी के रूप में नजर आने लगता है। मानव शरीर में संक्रमणों से लड़ने के लिए एक विस्तृत तंत्र होता है जिसे रोग प्रतिरोधक प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम कहा जाता है। इस प्रतिरोधक प्रणाली के तीन मुख्य गुण होते हैं:[9],[10]
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खुद और बाहरी के बीच भेद करना: इसमें यह क्षमता होती है कि वह बैक्टीरिया और वायरस जैसे बाहरी सूक्ष्म जीवों को पहचान सकती है और उन्हें नष्ट कर सकती है, साथ ही वह अपनी कोशिकाओं को नुकसान नहीं होने देती।
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स्मरण शक्ति: जब प्रतिरोधक प्रणाली का सामना पहली बाहर पैथोजन से होता है और वह उसे समाप्त करती है तो वह उसे याद भी रखती है। बाद के संक्रमणों के लिए वह एक तेज और प्रभावी पहल करने के लिए खुद को तैयार करती है।
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विशिष्टता: प्रतिरोधक प्रणाली की प्रतिक्रिया पैथोजन विशिष्ट होती है, यानी भिन्न-भिन्न प्रकार के संक्रमणों से अलग-अलग तरह से लड़ा जाता है।
वैक्सीन इन गुणों का उपयोग करते हुए किसी संक्रमण को बीमारी में तब्दील होने से रोकती है।9 वैक्सीन पैथोजन को पूरा या उसके किसी हिस्से को किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डालती हैं।[11] इससे प्रतिरोधक प्रणाली प्रतिक्रिया की तैयारी करने, और भविष्य में संक्रमणों से प्रभावी तरीके से लड़ने हेतु स्मरण शक्ति का निर्माण करने को सक्रिय होती है।
बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन, सभी की रक्षा करता है, जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाई है, या जिन्होंने नहीं लगवाई है।[12] जब आबादी के एक बड़े हिस्से में वैक्सीनेशन या पूर्व संक्रमणों के जरिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो किसी संक्रमित व्यक्ति के निम्न प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति के संपर्क में आने की आशंका बहुत कम होती है। परिणाम के तौर पर पैथोजन को लोगों के बीच अति संवेदनशील होस्ट्स को तलाशने में मुश्किल होती है और संक्रमण की सीमा कम होती है। इसे हर्ड इम्यूनिटी कहा जाता है।12 इस तरह वैक्सीनेशन आबादी को कुछ संक्रामक रोगों से बचाने का प्रभावी उपाय बनता है।
रेखाचित्र 1: हर्ड इम्युनिटी
रोग प्रतिरोधक क्षमता का पता लगाना
किसी पैथोजन से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता कैसे काम करती है, उसे समझना वैक्सीन के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। पैथोजन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता दो प्रकार से प्रतिक्रिया देती है।[13],[14] ये एक साथ मिलकर किसी संक्रमण को बीमारी में तब्दील होने से रोकते हैं।[15],[16],[17]
प्रतिरोधक प्रणाली की सहज प्रतिक्रिया, किसी हमलावर पैथोजन के खिलाफ पहली पंक्ति की सुरक्षा है।14,16 यह प्रतिक्रिया तुरंत होती है लेकिन विशिष्ट नहीं होती, यानी यह प्रतिक्रिया पैथोजन के प्रकार के आधार पर भिन्न नहीं होती। सहज प्रतिक्रिया में बहुत सी कोशिकाएं कुछ विशिष्ट कार्य करती हैं। ये कोशिकाएं मानव शरीर में सभी ऊतकों और रक्त में रहती हैं।17 उनमें रिसेप्टर्स होते हैं जोकि पैथोजन या किसी संक्रमित कोशिका से संबंधित मॉलिक्यूलर पैटर्न की पहचान कर सकते हैं।10,16 ये पैटर्न असंक्रमित मानव कोशिकाओं से अलग होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बाहरी तत्वों की पहचान होती है।
ऐसी कोशिकाएं होती हैं जिन्हें नेचुरल किलर कोशिकाएं कहा जाता है। वे उपरिलिखित तरीके से संक्रमित कोशिकाओं को चिन्हित करती हैं और नियंत्रित तरीके से उन्हें खुद को नष्ट करने का निर्देश देती हैं।13 दो अन्य प्रकार की कोशिकाएं, जिन्हें मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल कहा जाता है, एक पैथोजन या मृत मानव कोशिका को पहचान सकती हैं और उन्हें निगल सकती हैं। इस प्रकार, ये कोशिकाएं पैथोजन्स को समाप्त करती हैं, जो अभी तक मानव कोशिका में प्रवेश नहीं कर पाए हैं, या जो नेचुरल किलर कोशिकाओं द्वारा खत्म किए गए हैं। मैक्रोफेज, साथ ही कोशिकाओं का एक अन्य समूह डेंड्राइटिक सेल, साइटोकिन्स (एक प्रकार का प्रोटीन जो प्रतिरोधक प्रणाली के विभिन्न भागों में दूत के रूप में कार्य करता है) और अन्य रसायनों का स्राव करती हैं ताकि जलन पैदा हो।17 जलन के परिणामस्वरूप इनमें से अधिक कोशिकाएं संक्रमण वाली जगह तक पहुंच जाती हैं, और प्रतिरोध की प्रतिक्रिया को तेज कर देती हैं।16,17
अगर पैथोजन बड़ी संख्या में हमला करते हैं तो सहज प्रतिरोधक प्रतिक्रिया अपर्याप्त हो सकती है।17 कई पैथोजन भी इस सहज प्रतिक्रिया से बच निकलने की क्षमता के साथ विकसित हुए हैं।10,16 ऐसे में दूसरी प्रकार की प्रतिक्रिया, अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण बन जाती है जोकि सहज प्रतिरोधक प्रतिक्रिया का पूरक है।15
अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया: यह प्रतिक्रिया तंत्र पैथोजन की पहचान करता है और उससे मुकाबला करने के लिए विशेष जवाबी हमले को विकसित करता है। व्हाइट ब्लड सेल्स के दो उप-प्रकार बी-सेल्स और टी-सेल्स अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।[18],[19] ये कोशिकाएं एंटीजन की पहचान कर सकती हैं जोकि पैथोजन की सतह पर पाए जाने वाले प्रोटीन या कॉम्पलैक्स शुगर मॉल्युक्यूल्स जैसे पदार्थ होते हैं। शरीर बड़ी संख्या में विविध रिसेप्टर्स के साथ बी-सेल्स और टी-सेल्स का उत्पादन करता है ताकि वे विभिन्न एंटीजन की पहचान कर सकें।13 विभिन्न प्रकार के रिसेप्टर्स की संख्या अरबों के क्रम में होना अनुमानित है।17 अगर एक एंटीजन को ताला माना जाए तो विभिन्न रिसेप्टर्स के साथ बी-सेल्स और टी-सेल्स उत्पादित करते हुए शरीर कई प्रकार की चाबियां उत्पादित कर रहा है, और उम्मीद कर रहा है कि शायद इनमें से कोई तो इस ताले को खोलेगा।
एंटीजन का संपर्क होने पर बी-सेल्स और टी-सेल्स, जिनके पास एंटीजन को पहचानने वाले रिसेप्टर्स हैं, खुद को तेजी से क्लोन करते हैं और उनकी संख्या बढ़ती जाती है ताकि वे प्रतिक्रिया को बढ़ा सकें।16,17 सहज प्रतिक्रिया की कुछ कोशिकाएं जैसे मैक्रोफेज और डेंड्राइटिक सेल्स एंटीजन को पहचानने के लिए टी-सेल्स की मदद करती हैं।11,17 बी-सेल्स प्लाज्मा सेल्स बन जाते और फैलते हैं जो कुछ समय तक जीवित रहते हैं और एंटीबॉडी का उत्पादन करते हैं।[20],[21] एंटीबॉडी एक प्रकार का प्रोटीन होती हैं जोकि खास तौर से एंटीजन से लिपट जाती हैं। ये मैक्रोफेज और दूसरी कई कोशिकाओं को पैथोजन नष्ट करने का संकेत होता है।17 टी-सेल्स संक्रमित कोशिकाओं को चिन्हित करते हैं, वे या तो इन कोशिकाओं की मदद करते हैं ताकि वे अपने भीतर पैथोजन्स को मार दें या उसी तरह से उन्हें समाप्त करते हैं जैसे सहज प्रतिक्रिया में किलर सेल्स करते हैं।13
कुछ बी-सेल्स लंबे समय तक रहने वाले प्लाज्मा सेल्स और मेमोरी सेल्स बन जाते हैं।[22] मेमोरी बी-सेल्स ज्यादा लंबे समय तक जीवित रहते हैं। एंटीजन एक्सपोजर पर उनकी 10-100 गुना लंबी एंटीबॉडी उत्पादन क्षमता होती है।16,17 टी-सेल्स भी मेमोरी सेल्स बनते हैं और उनका अपेक्षाकृत लंबा जीवन काल होता है। वे बाद के संक्रमणों पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।[23]
अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को विकसित होने में कई दिन लगते हैं, जिससे संक्रमण के बीमारी में विकसित होने की आशंका बढ़ती है।9 जैसे कि पहले भी कहा गया है, वैक्सीन पहले ही अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने के लिए कम तीव्रता वाले संक्रमण का अनुकरण करके, इसे रोकती हैं, और इस प्रकार प्रतिरोध के लिए स्मरण शक्ति का निर्माण होता है। वैक्सीन पैथोजन के साथ लड़ने के लिए अनुकूल प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को लक्ष्य बनाती हैं। प्रतिरोधक प्रतिक्रिया कई कारकों के साथ अलग-अलग हो सकती है, जैसे आयु, जेनेटिक्स और पर्यावरणीय कारक।19
वैक्सीन के प्रकार
वैक्सीन का उद्देश्य प्रतिरोधक प्रणाली को पैथोजन या उसके एक हिस्से के संपर्क में लाकर, उसे उत्तेजित करना होता है।[24] यह निम्नलिखित को देने के जरिए हासिल किया जा सकता है: (i) पूरा पैथोजन (कमजोर या मृत), (ii) पैथोजन के उपखंड, यानी उसकी सतह पर मिलने वाले प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट्स, या (iii) जेनेटिक मैटीरियल जैसे डीएनए या आरएनए, जिससे मानव कोशिकाओं को यह निर्देश दिया जा सके कि वे पैथोजन से जुड़े प्रोटीन को संश्लेषित (सिंथेसाइज) करें। पैथोजन से संबंधित प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट्स भी मानव शरीर में प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को उसी तरह उत्तेजित कर सकते हैं, जैसे पूर्ण पैथोजन के प्रवेश से होता है।[25],[26],[27],[28],[29],[30],[31]
तालिका 1: वैक्सीन के सामान्य प्रकार
प्रकार |
देने वाला पदार्थ |
उदाहरण |
लाइव एटेन्यूएटेड |
जीवित लेकिन कमजोर पैथोजन |
बीसीजी, रोटावायरस |
निष्क्रिय |
मृत पैथोजन |
पोलियो, कोवैक्सीन |
उप-खंड |
पैथोजन की सतह पर प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट्स |
एचपीवी, टिटनेस, नोवोवैक्स |
डीएनए |
डीएनए, लक्षित पैथोजन से जुड़े प्रोटीन को संश्लेषित करने की जानकारी के साथ |
जायडस कैडिला कोविड वैक्सीन |
एमआरएनए |
आरएनए लक्षित पैथोजन से जुड़े प्रोटीन को संश्लेषित करने के निर्देश के साथ |
फाइजर और मोडर्ना कोविड वैक्सीन |
वायरल वेक्टर्ड |
एक कमजोर, आम तौर पर नॉन रेप्लिकेटिंग वायरस जिसमें लक्षित पैथोजन का जेनेटिक मैटीरियल होता है |
एस्ट्रा जेनेका कोविड वैक्सीन, एरवेबो (इबोला वैक्सीन) |
स्रोत: वैक्सीन के प्रकार, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी; पीआरएस।
डीएनए, एमआरएनए और वायरल वेक्टर्ड वैक्सीन्स अपेक्षाकृत वैक्सीन विकास के नए दृष्टिकोण हैं, और उन्हें प्लेटफॉर्म आधारित तकनीकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।24 प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने के लिए इनमें मानव कोशिकाओं के भीतर जेनेटिक मैटीरियर को डिलिवर करने के लिए एक स्टैडर्डाइज्ड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाता है।[32] ये डिलिवरी प्लेटफॉर्म्स जो जेनेटिक जानकारी साथ ले जाते हैं, उन्हें आसानी से बदला जा सकता है। इससे पैथोजन के विकसित होने के साथ ही वैक्सीन भी जल्द ही विकसित और उसके अनुकूल बन जाती हैं।[33] ये तरीके प्रोटीन आधारित एंटीजन के लिए ही इस्तेमाल हो सकते हैं क्योंकि शरीर बाहरी निर्देश से सिर्फ प्रोटिन को ही संश्लेषित कर सकता है। वे बैक्टीरिया के खिलाफ काम नहीं करते, जोकि कार्बोहाइड्रेट आधारित होते हैं।[34]
ट्रायल
चूंकि वैक्सीन स्वस्थ लोगों को दी जाती है, तो वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता (एफिकेसी) और सुरक्षा प्रदर्शित होनी चाहिए। इन पहलुओं को चरणबद्ध ट्रायल्स में टेस्ट किया जाता है। प्रभावोत्पादकता का मायने है, वैक्सीन न लेने वाले व्यक्तियों की तुलना में, वैक्सीन लेने वाले व्यक्तियों में संक्रमण के मामलों का कम होना।[35] अगर वैक्सीन न लेने वाले 500 व्यक्तियों के समूह में संक्रमण के मामले 100 हैं और वैक्सीन लेने वाले 500 व्यक्तियों में संक्रमण के 40 मामले हैं, तो मामलों में कमी की दर 60% है, और यह प्रभावोत्पादकता यानी एफिकेसी है। किसी वैक्सीन को मंजूर करने के लिए विश्व भर की रेगुलेटरी अथॉरिटीज़ 50% से अधिक सिद्ध प्रभावोत्पादकता की मांग करती हैं।[36]
तालिका 2: वैक्सीन्स के क्लिनिकल ट्रायल्स[37]
चरण |
सैंपल का आकार |
उद्देश्य |
I |
5 से 50 |
सुरक्षा, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का आकलन, डोज शेड्यूल को सबसे अनुकूल तरीके से इस्तेमाल करना |
II |
25 से 1,000 |
सुरक्षा, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए अध्ययन का दायरा बढ़ाना, डोज़ शेड्यूल को सबसे अनुकूल तरीके से इस्तेमाल करना |
III |
100 से 10,000 |
बड़े पैमाने पर प्रभावोत्पादकता और सुरक्षा का आकलन करना |
IV |
100,000 से मिलियन्स |
अनुमोदन के बाद समय के साथ वैक्सीन के दुष्प्रभावों का आकलन |
स्रोत: वैक्सीन और टीकाकरण, सीडीसी; पीआरएस
बॉक्स 1: कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन कोविड-19 महामारी का कारण सार्स वायरस फैमिली का एक मेंबर सार्स-कोवि-2 था।1 महामारी से निजात पाने का एक तरीका व्यापक वैक्सीनेशन के जरिए हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना था। इसके चलते विश्व स्तर पर विस्तृत सरकारी कार्यक्रमों ने वैक्सीन के अनुसंधान और विकास का वित्त पोषण किया।[38] दिसंबर 2020 में डब्ल्यूएचओ ने महामारी के पहले वर्ष में पहले वैक्सीन को अनुमोदित किया।[39] इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन के माध्यम से कोविड-19 वैक्सीन को अपनाने में तेजी लाई गई। इमरेंजसी यूज ऑथराइजेशन रेगुलेटरी अनुमोदन की एक त्वरित प्रक्रिया है। 31 मई, 2023 तक भारत में कोविड-19 के 4.5 करोड़ मामले और 5.3 लाख मौतें दर्ज की गईं।[40] जनवरी 2021 से भारत में पूर्ण रूप से सरकारी वित्त पोषित व्यापक वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा रहा है।[41] तीन वर्षों में इस कार्यक्रम की अनुमानित लागत 36,405 करोड़ रुपए है।[42] लगभग 900 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाले कोविड सुरक्षा मिशन को नवंबर 2020 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य घरेलू स्तर पर कोविड-19 वैक्सीन के विकास में तेजी लाना था।[43] जनवरी 2023 तक इस कार्यक्रम से चार अनुमोदित कोविड-19 टीके मिले हैं।[44] |
मनुष्यों पर प्रारंभिक चरण के अध्ययन
वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के लिए जाने से पहले, उसकी प्रतिक्रिया पर अध्ययन के लिए पशुओं पर परीक्षण किए जाते हैं।37 हालांकि इन परीक्षणों की निश्चित सीमाएं होती हैं।[45] पशुओं में होस्ट-पैरासाइट का संपर्क, मनुष्य के समान नहीं हो सकता। क्लिनिकल ट्रायल लागत और समय गहन होते हैं। नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल अध्ययन (सीएचआईएम) से इन मुद्दों को हल करने के लिए मौजूदा तंत्र की सहायता की उम्मीद है।45
सीएचआईएम अध्ययनों में सबजेक्ट को जानबूझकर एक नियंत्रित परिवेश में पैथोजन के साथ संक्रमित किया जाता है।[46] ये अध्ययन वैक्सीन चुनने में मदद करते हैं, और वैक्सीन को विकसित करने की प्रक्रिया में भी तेजी आती है।45
इनसे किसी जनसंख्या के लिए खास वैक्सीन को विकसित करने में भी मदद मिलती है क्योंकि प्रभावोत्पादकता जेनेटिक जटिलताओं, पर्यावरणीय कारकों और पोषण की स्थिति के साथ बदलती है।46 जबकि ये अध्ययन उपयोगी हो सकते हैं, वे नैतिक चिंताओं को जन्म देते हैं क्योंकि इनमें प्रायोगिक चरण में स्वस्थ लोगों को संक्रमित किया जाता है।[47] वर्तमान में भारत में सीएचआईएम अध्ययनों के लिए कोई फ्रेमवर्क नहीं है।46
निगरानी
चूंकि पैथोजन लगातार विकसित हो सकते हैं और वैक्सीन से मिलने वाली प्रतिरोधक क्षमता से बच सकते हैं, इसलिए वेरिएंट्स और म्यूटेशंस पर नजर रखना महत्वपूर्ण हो जाता है। सुरक्षा के लिहाज से, यह भी महत्वपूर्ण है कि किसी प्रतिकूल मामले (वैक्सीनेशन के बाद मामूली या गंभीर बीमारी) की निरंतर निगरानी की जाए। इस कारण निगरानी की व्यवस्था सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का अनिवार्य स्तंभ बन जाता है।[48] नीति आयोग की 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की निगरानी व्यवस्था बहुत अच्छी तरह से एकीकृत नहीं है, और विभिन्न निगरानी एजेंसियां अलग-थलग होकर काम कर रही हैं।[49] परिणाम के तौर पर जमा किए गए डेटा अधूरे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की निगरानी प्रणाली में मानव संसाधनों की कमी है।49
दूसरी चुनौती है, ज़ूनोटिक बीमारियों, यानी पशुओं से मनुष्यों को होने वाली बीमारियों के मामलों का बढ़ना। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, मनुष्यों में उभरने वाले 75% संक्रमण प्रकृति से ज़ूनोटिक हैं।[50] इसलिए पशुओं में रोगों की निगरानी को मजबूत करने से ज़ूनोटिक रोगों का शीघ्र पता लगाने, उनकी रोकथाम और नियंत्रण के माध्यम से मानव जाति की रक्षा का अतिरिक्त लाभ होता है।[51] 2021 में केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार की निगरानी के लिए एक स्वास्थ्य मिशन शुरू किया था।[52]
भारत में वैक्सीनेशन की स्थिति
भारत में केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम बच्चों को 12 बीमारियों के खिलाफ मुफ्त वैक्सीन प्रदान करता है।[53],[54] इस कार्यक्रम के तहत सभी वैक्सीन लगवाने वाले बच्चों के प्रतिशत में पिछले कुछ वर्षों में काफी सुधार हुआ है (जिसे वैक्सीनेशन कवरेज कहा जाता है)। कवरेज 1992-93 में 35% से बढ़कर 2019-21 में 76% हो गया है, जो सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त करने से काफी कम है।[55] राज्यों में भी काफी भिन्नताएं हैं। सिक्किम को छोड़कर उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन खराब है, नगालैंड में 58% कवरेज है और अन्य में 60-70% के बीच कवरेज है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार सहित कुछ बड़े राज्यों का कवरेज लगभग 70% है, जबकि उच्चतम कवरेज वाले बड़े राज्य ओडिशा (91%), तमिलनाडु (89%), और पश्चिम बंगाल (88%) हैं।[56]
तालिका 3: भारत में वैक्सीन[57],[58],[59]
श्रेणी |
बीमारियां |
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत आने वाली वैक्सीन |
राष्ट्रीय स्तर पर: डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, गंभीर तपेदिक, हेपेटाइटिस बी, मेनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस डायरिया, न्यूमोकोकल न्यूमोनिया, उप-राष्ट्रीय स्तर पर: जापानी इंसेफेलाइटिस |
भारत में स्वीकृत टीके, लेकिन सरकारी कार्यक्रमों के अंतर्गत नहीं आते |
एचपीवी, हेपेटाइटिस ए, टाइफाइड, रेबीज, इन्फ्लुएंजा, हरपीज ज़ोस्टर, वैरिकाला ज़ोस्टर |
वैक्सीन डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित, लेकिन भारत में अनुमोदित नहीं |
डेंगू (भारत में चरण 3 परीक्षणों के तहत) |
भारत में प्रचलित बीमारियां जिनके लिए विश्व स्तर पर कोई टीका स्वीकृत नहीं |
वयस्कों में तपेदिक, एड्स, हेपेटाइटिस सी, भारत में प्रभावी मलेरिया का प्रकार |
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन; पीआरएस।
भारत में विकसित वैक्सीन
निजी कंपनियों के माध्यम से वैक्सीन निर्माण इकोसिस्टम में भारत की महत्वपूर्ण उपस्थिति है। 2021 में भारत का सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक वैश्विक बाजार में क्रमशः 20% और 7% हिस्सेदारी के साथ मात्रा के हिसाब से (कोविड-19 वैक्सीन्स को छोड़कर) वैक्सीन्स के शीर्ष 10 निर्माताओं में शामिल थे।[60] देश के भीतर इन निर्माण क्षमताओं के होने के कारण भारत को कोविड-19 की वैक्सीन्स मिलती रहीं। हालांकि वैश्विक बाजार में मूल्य के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है (2021 में <2%)।60
बॉक्स 2: वैक्सीन तकनीक में नए मोर्चे[61],[62] यूनिवर्सल वैक्सीन: इनका उद्देश्य पैथोजन्स के विभिन्न स्ट्रेन्स या प्रजातियों, जैसे फ्लू या कोरोनावायरस के जरिए साझा किए जाने वाले सामान्य तत्वों को लक्षित करना है, ताकि पैथोजन की फैमिली से व्यापक सुरक्षा प्रदान की जा सके। थेराप्यूटिक वैक्सीन: इनका उद्देश्य कैंसर या अलजाइमर्स जैसी बीमारियों का इलाज करना है, उनकी रोकथाम करना नहीं। पर्सनलाइज्ड वैक्सीन: इनका उद्देश्य व्यक्ति के जेनेटिक्स को प्रभावित करने वाली वैक्सीन को कस्टमाइज करना है ताकि प्रतिरोधक क्षमता में सुधार किया जा सके। |
यह नई और उच्च कीमत वाली वैक्सीन्स को विकसित करने में सीमित उपस्थिति और क्षमता का संकेत दे सकता है।
वैक्सीन का विकास लागत गहन है क्योंकि अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के लिए अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर और रेगुलेटरी शर्तों के कारण लंबी समय सीमा होती है।60,[63] इस बात की भी गारंटी नहीं हो सकती कि वैक्सीन उम्मीदवार बाजार तक पहुंच पाएगा या सरकार से खरीद की कोई गारंटी मिलेगी। इन अनिश्चितताओं के कारण निजी क्षेत्र का आरएंडडी में निवेश सीमित होता है। कोविड-19 के लिए अपेक्षाकृत अधिक संख्या में वैक्सीन्स का विकास, आरएंडडी के लिए सरकारी प्रोत्साहनों के साथ-साथ विश्व स्तर पर सुनिश्चित खरीद से प्रेरित था।35
ऐसी कई बीमारियां हो सकती हैं, जो पर्यावरणीय और अन्य कारणों से सिर्फ भारत में प्रभावी हों। दूसरे देश उनके लिए वैक्सीन में निवेश करने को प्रोत्साहित नहीं हो सकते। डब्ल्यूएचओ (2022) ने कहा है कि कम वाणिज्यिक मूल्य वाले मार्केट से संबंधित बीमारियों को लगातार नजरंदाज किया जाता है, उनमें अपेक्षा से कम निवेश होता है, और विकास पाइपलाइन में केवल कुछ ही उत्पाद होते हैं।60 इनमें उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग कही जाने वाली बीमारियां शामिल हैं।[64] इनमें से कुछ बीमारियां जैसे डेंगू और लसीका फाइलेरिया भारत में प्रचलित हैं। इसलिए भारत को वैक्सीन्स में अनुसंधान एवं विकास के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता हो सकती है।
कुछ बीमारियों की वैक्सीन्स को बड़े पैमाने पर लगाने के लिए सार्वजनिक वित्त पोषण की भी जरूरत हो सकती है। सीमित संसाधन और बड़ी संख्या में बीमारियों को देखते हुए आरएंडडी या व्यापक स्तर पर वैक्सीनेशन के वित्त पोषण जैसे फैसले लेते समय कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। इनमें संवेदनशीलता, संक्रमण के फैलने का स्तर, बीमारी का बोझ और भौगोलिक प्रसार शामिल हो सकते हैं। इससे बड़ी संख्या में वैक्सीनेशन के स्तर का फैसला लेने में मदद मिल सकती है।[65] जैसे पोलियो वैक्सीन पूरे भारत में दी जाती है, जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस केवल कुछ राज्यों में दिया जाता है।54 रेबीज की वैक्सीन सभी को नहीं, सिर्फ उन लोगों को दी जाती है, जिन्हें रेबीज के शिकार किसी जानवर ने काटा है।[66] उपचार और वैक्सीनेशन की लागत और किसी बीमारी की मॉरबिडिटी के बीच संतुलन सरकार को एक वैक्सीन को रोल आउट करने का निर्णय लेने में मदद करता है। चिकनपॉक्स की वैक्सीन है लेकिन आमतौर पर वैक्सीनेशन का सुझाव नहीं दिया जाता।[67] हेपेटाइटिस-ए और सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारियां के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यम से मुफ्त में नहीं दी जाती हैं।[68]
[1] “State records 2692 measles cases in 2022, highest in country”, The Indian Express, March 20, 2023, https://indianexpress.com/article/cities/mumbai/state-records-2692-measles-cases-in-2022-highest-in-country-8507104/.
[2] “COVID-19 Pandemic”, World Health Organisation, (as accessed on May 5, 2023), https://www.who.int/europe/emergencies/situations/covid-19.
[3] “Centre to form permanent expert group to tackle AES outbreak in Bihar”, Hindu Business Line, December 6, 2021, https://www.thehindubusinessline.com/news/national/centre-to-form-permanent-expert-group-to-tackle-aes-outbreak-in-bihar/article28066547.ece.
[4] “Nipah Virus Outbreak in Kerala”, World Health Organisation, (as accessed on May 5, 2023), https://www.who.int/southeastasia/outbreaks-and-emergencies/health-emergency-information-risk-assessment/surveillance-and-risk-assessment/nipah-virus-outbreak-in-kerala.
[5] “Global impact of the first year of COVID-19 vaccination: a mathematical modelling study”, The Lancet, June 23, 2022 https://www.thelancet.com/journals/laninf/article/PIIS1473-3099(22)00320-6/fulltext#articleInformation.
[6] “Microbe Size”, LibreTexts Biology, (as accessed on May 18, 2023), https://bio.libretexts.org/Bookshelves/Microbiology/Microbiology_(Boundless)/03%3A_Microscopy/3.01%3A_Looking_at_Microbes/3.1A%3A_Microbe_Size#:~:text=Even%20in%20comparison%20to%20animal,other%20microbes%20such%20as%20bacteria.
[7] “What You Need to Know About Infectious Disease”, National Library of Medicine, (as accessed on May 18, 2023), https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK209710/.
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