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पीडीएफ

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5)

वाइटल स्टैट्स
 

2019-20 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के पांचवे दौर का पहला चरण संचालित किया गया था और उसके परिणामों को दिसंबर 2020 में जारी किया गया। एनएफएचएस में जनसंख्या, परिवार नियोजन, बाल और मातृत्व स्वास्थ्य, पोषण, वयस्क स्वास्थ्य और घरेलू हिंसा इत्यादि से संबंधित मुख्य संकेतकों का आकलन किया जाता है। पांच वर्ष पहले 2015-16 में एनएफएचएस का चौथा दौर संचालित किया गया था। पांचवें दौर के पहले चरण में 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (17 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेश) के नतीजे प्रस्तुत किए गए हैं। 17 राज्यों में कुल 2,81,429 पारिवारिक इकाइयों, 3,07,422 महिलाओं और 43,945 पुरुषों का सर्वेक्षण किया गया है। इस नोट में हम निम्नलिखित के संबंध में 17 राज्यों के संकेतकों के नतीजे प्रस्तुत कर रहे हैं: (i) जनसंख्या, (ii) स्वास्थ्य एवं पोषण, (iii) इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच, और (iv) जेंडर।

जनसंख्या

इस खंड में हमने जनसंख्या से संबंधित विभिन्न संकेतकों पर ध्यान दिया है, जैसे (i) परिवार नियोजन के तरीके (महिला या पुरुष स्टरलाइजेशन और गर्भनिरोधकों के प्रयोग सहित), (ii) कुल प्रजनन दर (टीएफआर), और (iii) जन्म के समय लिंग अनुपात। एक महिला अपने जीवन काल में औसत जितने बच्चों को जन्म देती है, वह संख्या टीएफआर कहलाती है। सरकार जनसंख्या नियंत्रण हेतु टीएफआर के लिए लक्ष्य निर्धारित करती है। 2.1 की टीआरएफ को प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर माना जाता है जिस पर जनसंख्या की स्थिरता हासिल की जाती है (यानी जनसंख्या खुद प्रतिस्थापित होती है)। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 में 2010 तक प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन को हासिल करने की बात कही गई थी।  

परिवार नियोजन के तरीकों के इस्तेमाल में वृद्धि; अधिकतर राज्यों में प्रजनन दर 2.1 से भी कम 

  • सभी राज्यों (मिजोरम को छोड़कर) में परिवार नियोजन के तरीके अधिक इस्तेमाल होने लगे। इस सिलसिले में गोवा (42% प्वाइंट) और बिहार (42% प्वाइंट) में सबसे अधिक वृद्धि हुई। 

रेखाचित्र 1: परिवार नियोजन के तरीकों का प्रयोग (% में) 
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Note: AP = Andhra Pradesh, AS = Assam, BR = Bihar, GA = Goa, GJ = Gujarat, HP = Himachal Pradesh, KA = Karnataka, KL = Kerala, MH = Maharashtra, MG = Meghalaya, MZ = Mizoram, NL = Nagaland, SK = Sikkim, TS = Telangana, TR = Tripura, WB = West Bengal.

  • परिणामस्वरूप अधिकतर राज्यों की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में गिरावट हुई है। बिहार की टीएफआर 3.4 (एनएफएचएस-4) से गिरकर 3 हो गई। सर्वेक्षण में अन्य सभी मंझोले और बड़े राज्यों (यानी 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या) में टीएफआर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।

 

रेखाचित्र 2: राज्यों की कुल प्रजनन दर

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कुछ राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट

  • पिछले पांच वर्षों के दौरान 17 में से सात राज्यों में जन्म के समय बच्चों का लिंगानुपात 950 से कम है। जन्म के समय लिंगानुपात का अर्थ है, जन्म लेने वाले प्रति 1,000 बालकों में बालिकाओं की संख्या। तीन राज्यों में यह अनुपात 900 से कम है (गोवा: 838, हिमाचल प्रदेश: 875 और तेलंगाना: 894)।   
     
  • सात राज्यों में यह अनुपात गिर गया है। सबसे अधिक गिरावट गोवा (966 से 838), और केरल (1047 से 951) में हुई है। सिर्फ त्रिपुरा में लिंगानुपात 1,000 से अधिक है (यानी बालकों के मुकाबले अधिक बालिकाएं)। 

रेखाचित्र 3: पिछले पांच वर्षों में जन्म लेने के समय बच्चों का लिंगानुपात  
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स्वास्थ्य एवं पोषण

इस खंड में हमने विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी संकेतकों पर गौर किया है, जैसे: (i) राज्यों में संस्थागत जन्म का अनुपात, (ii) सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव पर आउट ऑफ पॉकेट खर्च का औसत, (iii) शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), और (iv) बच्चों और वयस्कों में पोषण के स्तर। प्रति 1,000 जीवित शिशुओं पर एक वर्ष से आयु के मृत शिशुओं की संख्या आईएमआर कहलाती है। संस्थागत प्रसव से शिशु मृत्यु दर को कम करने में मदद मिलती है।  

संस्थागत जन्म में वृद्धि; कुछ राज्यों में प्रसव पर आउट ऑफ पॉकेट व्यय बढ़ा

  • पिछले पांच वर्षों के दौरान 7 राज्यों में 90% से अधिक जन्म, संस्थागत जन्म थे। केरल में लगभग 100% जन्म संस्थागत जन्म थे। नागालैंड में केवल 46% जन्म संस्थागत जन्म थे।
     
  • 17 में से 8 राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव पर औसत आउट ऑफ पॉकेट व्यय में बढ़ोतरी हुई गई। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में प्रसव पर औसत व्यय में गिरावट आई है- यह गिरावट 5,236 रुपए प्रति प्रसव है (2015-16 की लागत का 66%), और संस्थागत जन्म का अनुपात 75% से बढ़कर 92% हो गया है।

रेखाचित्र 4: संस्थागत जन्म (% में) और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के समय आउट ऑफ पॉकेट व्यय image

राज्यों में शिशु मृत्यु दर में गिरावट; हालांकि बच्चों में कुपोषण बढ़ा

  • लगभग सभी राज्यों में आईएमआर में मामूली गिरावट हुई है। सबसे अधिक गिरावट असम में हुई है, जोकि 48 (प्रति 1,000 जीवित शिशु) से 32 मौतें हो गया है। बिहार में आईएमआर सबसे अधिक है (प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में 47 मौत)।

रेखाचित्र 5: राज्यों में शिशु मृत्यु दर 
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  • हालांकि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में पोषण की स्थिति बहुत खराब है। स्टंटिंग या दीर्घकालीन कुपोषण (यानी आयु के अनुपात में छोटा कद) 17 में से 11 राज्यों में बढ़ा है। 17 में से 13 राज्यों में गंभीर रूप से वेस्टेड बच्चों का अनुपात भी बढ़ा है। वेस्टिंग या अत्यधिक कुपोषण का अर्थ है, कद के अनुपात में कम वजन। स्टंटेड या वेस्टेड बच्चों के बीमार होने की अधिक आशंका होती है।
     
  • अंडरवेट (आयु के अनुपात में कम वजन) बच्चों का अनुपात 17 में से 11 राज्यों में बढ़ा है। बिहार और गुजरात में पांच वर्ष से कम आयु के 40% से अधिक बच्चे अंडरवेट हैं।

रेखाचित्र 6: पांच वर्ष से कम आयु के स्टंटेड (आयु के अनुपात में छोटा कद) बच्चों का अनुपात  

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रेखाचित्र 7: पांच वर्ष से कम आयु के गंभीर रूप से वेस्टेड (आयु के अनुपात में कम वजन) बच्चों का अनुपात
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सभी राज्यों में पुरुषों और महिलाओं में मोटापा बढ़ा है

  • लगभग सभी राज्यों (गुजरात और महाराष्ट्र को छोड़कर) में अधिक वजन या मोटापे के शिकार 15-49 वर्ष के महिला-पुरुषों के अनुपात में इजाफा हुआ है। अधिक वजन या मोटापे को व्यक्ति के बॉडी मास इंडेक्स के जरिए मापा जाता है।
     
  • आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल और हिमाचल प्रदेश में लगभग दो तिहाई पुरुष और महिलाएं (15-49 वर्ष) अधिक वजन वाले या मोटे हैं।

रेखाचित्र 8: 15-49 वर्ष के वयस्कों में मोटापा (% में) 

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इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच

इस खंड में हम पारिवारिक इकाइयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा से संबंधित संकेतकों पर चर्चा कर रहे हैं। इनमें बिजली की सुविधा, पेयजल के बेहतर स्रोत, बेहतर सैनिटेशन सुविधा (फ्लश सिस्टम, वेंटिलेटेड पिट या कंपोस्टिंग टॉयलेट सहित) और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त हम महिलाओं के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा से संबंधित संकेतकों पर भी चर्चा कर रहे हैं, जैसे मोबाइल फोन का इस्तेमाल, इंटरनेट का प्रयोग, बचत खाते का इस्तेमाल, और भूमि या आवास पर स्वामित्व।

बिजली, पेयजल के बेहतर स्रोत और सैनिटेशन सुविधा तक पहुंच बढ़ी

  • सभी राज्यों में बिजली और बेहतर पेयजल स्रोत वाली पारिवारिक इकाइयों का अनुपात बढ़ा है। इसके अलावा सभी राज्यों में बेहतर सैनिटेशन सुविधा वाली पारिवारिक इकाइयों में भी इजाफा हुआ है। केरल में 99% पारिवारिक इकाइयों के पास बेहतर सैनिटेशन सुविधा है, जबकि बिहार में यह दर 49% है।
     
  • इसी प्रकार सभी राज्यों में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करने वाली पारिवारिक इकाइयों का अनुपात भी बढ़ा है। तेलंगाना में एनएफएचएस-4 की तुलना में बेहतर सैनिटेशन सुविधा और स्वच्छ कुकिंग ईंधन की सुविधा में लगभग 25% प्वाइंट की वृद्धि देखी गई है।

रेखाचित्र 9: बेहतर सैनिटेशन सुविधा वाली पारिवारिक इकाइयों का अनुपात

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सभी राज्यों में अधिक महिलाएं मोबाइल फोन्स का इस्तेमाल कर रही हैं; हालांकि उनमें से बहुत के पास इंटनेट की सुविधा नहीं है

  • सभी राज्यों में ऐसी महिलाओं का अनुपात बढ़ा है जिसके पास मोबाइल फोन हैं। हालांकि आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात और पश्चिम बंगाल में करीब 50% महिलाओं के अपने पास फोन है और वे उनका इस्तेमाल करती हैं। 

रेखाचित्र 10: मोबाइल फोन वाली महिलाओं का अनुपात, जो उसे खुद इस्तेमाल करती हैं 
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  • सर्वेक्षण में उन पुरुषों और महिलाओं (15-49 वर्ष) के अनुपात का भी आकलन किया गया था जिन्होंने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। सभी राज्यों में इंटनेट का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों का अनुपात, महिलाओं से अधिक है और तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह अंतर 25% प्वाइंट से भी अधिक का है। आंध्र प्रदेश, बिहार और त्रिपुरा में 25% से भी कम महिलाओं ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया है।

रेखाचित्र 11: इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले पुरुष और महिला (% में)

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अधिक महिलाएं बैंक खातों का इस्तेमाल करती हैं; अनेक राज्यों में महिलाओं के आवास/भूमि स्वामित्व की दर में गिरावट हुई है 

  • सभी 17 राज्यों में ऐसी महिलाओं का अनुपात बढ़ा है जिनके पास बचत या बैंक खाता है। इस संबंध में बिहार और मणिपुर में सबसे अधिक वृद्धि हुई है (क्रमशः 51% प्वाइंट और 39% प्वाइंट)। सभी 17 राज्यों में करीब 80% महिलाओं के पास बचत या बैंक खाता है (गुजरात और नागालैंड को छोड़कर, जहां यह आंकड़ा क्रमशः 70% और 64% है)। 

रेखाचित्र 12: बचत खाते या बैंक खाते वाली महिलाओं का अनुपात

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  • हालांकि 17 में से 9 राज्यों में ऐसी महिलाओं के अनुपात में गिरावट हुई है जिनके पास आवास या भूस्वामित्व (साझा स्वामित्व सहित) है। त्रिपुरा, महाराष्ट्र और असम में इस संबंध में सबसे अधिक गिरावट हुई है। 

रेखाचित्र 13: आवास या भूमि के स्वामित्व वाली महिलाओं का अनुपात 
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लिंग संबंधी संकेतक

इस खंड में हम निम्नलिखित संकेतकों पर विचार कर रहे हैं: (i) 15-24 वर्ष की आयु वाली महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल, और (ii) पति की हिंसा की शिकार विवाहित महिलाएं। 

सभी राज्यों में मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के लिए स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल 

  • सर्वेक्षण में ऐसी महिलाओं (15-24 वर्ष) के अनुपात का आकलन किया गया जोकि अपने मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। इसमें सभी राज्यों में वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा वृद्धि बिहार और पश्चिम बंगाल (28% प्वाइंट) हुई है। हालांकि यह बिहार (59%), असम और गुजरात (66%) में अब भी काफी कम है।

रेखाचित्र 14: मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं का अनुपात

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लिंग आधारित हिंसा की दर अब भी उच्च, कुछ राज्यों में इसमें वृद्धि भी

  • पांच राज्यों में ऐसी विवाहित महिलाओं (18-49 वर्ष) का अनुपात बढ़ा है जिन्होंने कभी न कभी पति की हिंसा का सामना किया है। कर्नाटक में यह 21% से बढ़कर 44% हो गया है जोकि दोगुना है। कर्नाटक (44%), बिहार (40%), मणिपुर (40%) और तेलंगाना (37%) में एक तिहाई से अधिक महिलाएं पति की हिंसा की शिकार होती हैं। 

रेखाचित्र 15: पति की हिंसा की शिकार महिलाओं का अनुपात

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अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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