हाल ही में लोकसभा में आर्म्स (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया गया और इस शीतकालीन सत्र में बिल को पारित किया जाना अधिसूचित है। बिल आर्म्स एक्ट, 1959 में संशोधन करता है जोकि भारत में हथियारों के रेगुलेशन से संबंधित है। आर्म्स की परिभाषा में बंदूकें, तलवार, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें शामिल हैं। बिल के उद्देश्य और कारणों के कथन में कहा गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने गैर कानूनी हथियारों को रखने और आपराधिक गतिविधियों के बीच बढ़ते संबंध का संकेत दिया है। कोई व्यक्ति कितनी लाइसेंसशुदा बंदूकें रख सकता है, बिल उस संख्या को कम करता है, साथ ही एक्ट के अंतर्गत कुछ अपराधों की सजा बढ़ाता है। बिल में अपराधों की नई श्रेणियों को भी प्रस्तावित किया गया है। इस पोस्ट में हम बिल के मुख्य प्रावधानों को स्पष्ट कर रहे हैं।
एक व्यक्ति को कितनी बंदूकों रखने की अनुमति है?
आर्म्स एक्ट, 1959 के अंतर्गत एक व्यक्ति को तीन लाइसेंसशुदा बंदूकें रखने की अनुमति है। बिल इसे कम करके एक बंदूक करता है। इसमें उत्तराधिकार या विरासत के आधार पर मिलने वाला लाइसेंस भी शामिल है। बिल एक साल की समय सीमा प्रदान करता है जिस दौरान अतिरिक्त बंदूकों को निकटवर्ती पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज या निर्दिष्ट लाइसेंसशुदा बंदूक डीलर के पास जमा करना होगा। बिल बंदूकों के लाइसेंस की वैधता की अवधि को बढ़ाकर तीन से पांच वर्ष करता है।
उल्लेखनीय है कि 2017 में आर्म्स एक्ट, 1959 के अंतर्गत भारत में 63,219 बंदूकें जब्त की गईं। इनमें से सिर्फ 3,525 (5.5%) लाइसेंसशुदा बंदूकें थीं। इसके अतिरिक्त 2017 में एक्ट के अंतर्गत बंदूकों से संबंधित 36,292 मामले पंजीकृत किए गए जिनमें से 419 (1.1%) मामले लाइसेंसशुदा बंदूकों के थे। [1] यह प्रवृत्ति निर्दिष्ट अपराधों के स्तर पर भी कायम थी, जहां सिर्फ 8.5% अपराधों में लाइसेंसशुदा बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था। [2]
मौजूदा अपराधों में क्या बदलाव किए गए हैं?
वर्तमान में एक्ट लाइसेंस के बिना बंदूकों की मैन्यूफैक्चरिंग, बिक्री, इस्तेमाल, ट्रांसफर, परिवर्तन, टेस्टिंग या प्रूफिंग पर प्रतिबंध लगाता है। इसके अतिरिक्त बिल गैर लाइसेंसशुदा बंदूकों को हासिल करने या खरीदने तथा लाइसेंस के बिना एक श्रेणी की बंदूकों को दूसरी श्रेणी में बदलने पर प्रतिबंध लगाता है। इसमें बंदूकों के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए किए गए संशोधन भी शामिल हैं।
बिल अनेक मौजूदा अपराधों से संबंधित सजा में संशोधन भी प्रस्तावित करता है। उदाहरण के लिए एक्ट में निम्नलिखित के संबंध में सजा निर्दिष्ट है: (i) गैर लाइसेंसशुदा हथियार की मैन्यूफैक्चरिंग, खरीद, बिक्री, ट्रांसफर, परिवर्तन सहित अन्य क्रियाकलाप, (ii) लाइसेंस के बिना बंदूकों को छोटा करना या उनमें परिवर्तन, और (iii) प्रतिबंधित बंदूकों का आयात या निर्यात। इन अपराधों के लिए तीन से सात वर्ष की सजा है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ता है। बिल इसके लिए सात वर्ष से लेकर अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान करता है जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
एक्ट लाइसेंस के बिना प्रतिबंधित बंदूकों (जैसे ऑटोमैटिक और सेमी-ऑटोमैटिक असॉल्ट राइफल्स) से डील करने पर सात से लेकर आजीवन कारावास तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान करता है। बिल ने न्यूनतम सजा को सात वर्ष से 10 वर्ष कर दिया है। इसके अतिरिक्त जिन मामलों में प्रतिबंधित हथियारों के इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उस स्थिति में अपराधी को मृत्यु दंड का प्रावधान था। बिल में इस सजा को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास किया गया है, जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
क्या नए अपराधों को प्रस्तावित किया गया है?
बिल कुठ नए अपराधों को जोड़ता है। जैसे पुलिस या सशस्त्र बलों से जबरन हथियार लेना बिल के अंतर्गत अपराध है। ऐसा करने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा, साथ ही जुर्माने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त लापरवाही से बंदूकों के इस्तेमाल पर सजा निर्धारित करता है, जैसे शादियों या धार्मिक आयोजनों में गोलीबारी करना, जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ती है। ऐसे मामले पर दो साल तक की सजा होगी, या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा, या दोनों सजाएं भुगतनी पड़ेंगी।
बिल ‘अवैध तस्करी’ की परिभाषा भी जोड़ता है। इसमें भारत में या उससे बाहर उन बंदूकों या एम्यूनिशन का व्यापार, उन्हें हासिल करना तथा उनकी बिक्री करना शामिल है जो एक्ट में चिन्हित नहीं हैं या एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। बिल अवैध तस्करी के लिए 10 वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान करता है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
क्या बिल संगठित अपराध के मुद्दे को उठाता है?
बिल ‘संगठित अपराध’ की परिभाषा भी प्रस्तावित करता है। ‘संगठित अपराध’ का अर्थ है, सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा आर्थिक या दूसरे लाभ लेने के लिए गैर कानूनी तरीकों को अपनाकर, जैसे हिंसा का प्रयोग करके या जबरदस्ती, गैर कानूनी कार्य करना। संगठित आपराधिक सिंडिकेट का अर्थ है, संगठित अपराध करने वाले दो या उससे अधिक लोग। बिल संगठित आपराधिक सिंडिकेट के सदस्यों के लिए कड़ी सजा का प्रस्ताव रखता है। उदाहरण के लिए गैर लाइसेंसशुदा बंदूक रखने पर किसी व्यक्ति को न्यूनतम सात साल की कैद हो सकती है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। हालांकि सिंडिकेट के सदस्य द्वारा गैर लाइसेंसशुदा बंदूक रखने पर 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह सजा उन गैर सदस्यों पर भी लागू होगी जिन्होंने सिंडिकेट की तरफ से एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
[1] Crime in India 2017, National Crime Records Bureau, October 21, 2019, http://ncrb.gov.in/StatPublications/CII/CII2017/pdfs/CII2017-Full.pdf.
[2] Crime in India 2016, National Crime Records Bureau, October 10, 2017, http://ncrb.gov.in/StatPublications/CII/CII2016/pdfs/NEWPDFs/Crime%20in%20India%20-%202016%20Complete%20PDF%20291117.pdf.
मार्च 2020 से भारत में कोविड-19 के मामलों में निरंतर वृद्धि हुई है। 18 मई, 2020 को इस संक्रामक रोग के 96,169 पुष्ट मामले थे जिनमें से 3,029 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन किया जोकि पहले 14 अप्रैल तक लागू था, फिर इसे बढ़ाकर 31 मई कर दिया गया है। लॉकडाउन के दौरान बीमारी की रोकथाम हो और कृषि उत्पादों की सप्लाई पर असर न हो, इसके लिए कई राज्यों ने अपने कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमिटी (एपीएमसी) कानूनों में संशोधन किए। इस ब्लॉग में हम बता रहे हैं कि भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है, केंद्र सरकार ने कोविड-19 संकट के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए क्या कदम उठाए और विभिन्न राज्यों ने एपीएमसी कानूनों में क्या हालिया संशोधन किए हैं।
भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है?
कृषि संविधान की राज्य सूची में आने वाला विषय है। अधिकतर राज्यों में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन एपीएमसी द्वारा किया जाता है जिसकी स्थापना राज्य सरकारें अपने एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत करती हैं। एपीएमसी कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करती हैं, उत्पादों की बिक्री को रेगुलेट करती हैं और राज्य से मार्केट फीस जमा करती हैं, साथ ही कृषि मार्केटिंग में प्रतिस्पर्धा को रेगुलेट करती हैं। 2017 में केंद्र सरकार ने नए कानून को लागू करने और कृषि क्षेत्र में बाजार संबंधी व्यापक सुधार करने के लिए मॉडल कृषि उत्पाद और पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 2017 जारी किया। 2017 के मॉडल एक्ट का उद्देश्य मुक्त प्रतिस्पर्धा की अनुमति देना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना, बिखरे हुए बाजारों को एकीकृत करना, उत्पादों के प्रवाह को सरल बनना और मल्टीपल मार्केटिंग चैनल्स के कामकाज को प्रोत्साहित करना है। नवंबर 2019 में 15वें वित्त आयोग (चेयर: एन. के. सिंह) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस मॉडल एक्ट के सभी प्रावधानों को लागू करने वाले राज्य कुछ वित्तीय प्रोत्साहनों के पात्र होंगे।
कोविड-19 के मद्देनजर केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
2 अप्रैल को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक- राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म के नए फीचर्स को लॉन्च किया। इसका उद्देश्य कृषि मार्केटिंग को मजबूती देना है, और यह भी कि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए थोक मंडियों में शारीरिक रूप से न आना पड़े। ई-नाम प्लेटफॉर्म संपर्करहित सुदूर नीलामी और मोबाइल आधारित एनी टाइम भुगतान की सुविधा प्रदान करता है जिसके लिए व्यापारियों को मंडी या बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे कोविड-19 की रोकथाम के लिए एपीएमसी मार्केट्स में सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
4 अप्रैल, 2020 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों को एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत रेगुलेशंस में राहत देने के संबंध में एडवाइजरी जारी की। एडवाइजरी में कहा गया कि कृषि उत्पादों की प्रत्यक्ष मार्केटिंग को सरल बनाया जाए। थोक व्यापारी, बड़े रीटेल्स और प्रोसेसर्स किसानों, किसान उत्पादक संघों और सहकारी संघों से उत्पादों की सीधी खरीद कर सकते हैं।
15 मई, 2020 को केंद्रीय वित्त मंत्री ने कोविड-19 और लॉकडाउन के असर को कम करने के लिए देश में कृषि क्षेत्र के लिए कई सुधारों की घोषणा की। कुछ मुख्य सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एक ऐसा केंद्रीय कानून बनाना जोकि किसानों को आकर्षक कीमतों पर अपने कृषि उत्पाद बेचने, बिना किसी बाधा के अंतरराज्यीय व्यापार करने और कृषि उत्पादों के ई-व्यापार के लिए फ्रेमवर्क बनाने के पर्याप्त विकल्प दे,
(ii) अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 में संशोधन ताकि अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों को बेहतर कीमतें मिल सकें, और (iii) कॉन्ट्रैक्ट पर खेती के लिए सरल कानूनी संरचना बनाना, ताकि किसान प्रोसेसर्स, बड़े रीटेलर्स और निर्यातकों के साथ सीधे संपर्क कर सकें।
किन राज्यों ने कृषि मार्केटिंग के कानूनों में बदलाव किए हैं?
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है और मध्य प्रदेश, गुजरात, और कर्नाटक ने अपने एपीएमसी कानूनों के रेगुलेटरी पहलुओं में छूट देने के लिए अध्यादेश जारी किए हैं। इन अध्यादेशों का सारांश प्रस्तुत किया जा रहा है:
मध्य प्रदेश
1 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। यह अध्यादेश मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी एक्ट, 1972 में संशोधन करता है। 1972 का एक्ट कृषि मार्केट की स्थापना और अधिसूचित कृषि उत्पादों की मार्केटिंग को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:
गुजरात
6 मई, 2020 को गुजरात सरकार ने गुजरात कृषि उत्पाद बाजार (संशोधन) अध्यादेश, 2020 किया। यह अध्यादेश गुजरात कृषि उत्पाद बाजार एक्ट, 1963 में संशोधन करता है। संशोधित एक्ट गुजरात कृषि उत्पाद एवं पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 1963 कहा गया। अध्यादेश क अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:
कर्नाटक
16 मई को कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। अध्यादेश कर्नाटक कृषि उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) एक्ट, 1966 में संशोधन करता है। 1966 का एक्ट राज्य में कृषि उत्पादों की खरीद और बिक्री तथा बाजारों की स्थापना को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:
उत्तर प्रदेश