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  • आर्म्स एक्ट, 1959 में संशोधन
संविधान

आर्म्स एक्ट, 1959 में संशोधन

रोशनी सिन्हा - दिसंबर 5, 2019

हाल ही में लोकसभा में  आर्म्स (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया गया और इस शीतकालीन सत्र में बिल को पारित किया जाना अधिसूचित है। बिल आर्म्स एक्ट, 1959 में संशोधन करता है जोकि भारत में हथियारों के रेगुलेशन से संबंधित है। आर्म्स की परिभाषा में बंदूकें, तलवार, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें शामिल हैं। बिल के उद्देश्य और कारणों के कथन में कहा गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने गैर कानूनी हथियारों को रखने और आपराधिक गतिविधियों के बीच बढ़ते संबंध का संकेत दिया है। कोई व्यक्ति कितनी लाइसेंसशुदा बंदूकें रख सकता है, बिल उस संख्या को कम करता है, साथ ही एक्ट के अंतर्गत कुछ अपराधों की सजा बढ़ाता है। बिल में अपराधों की नई श्रेणियों को भी प्रस्तावित किया गया है। इस पोस्ट में हम बिल के मुख्य प्रावधानों को स्पष्ट कर रहे हैं। 

एक व्यक्ति को कितनी बंदूकों रखने की अनुमति है?

आर्म्स एक्ट, 1959 के अंतर्गत एक व्यक्ति को तीन लाइसेंसशुदा बंदूकें रखने की अनुमति है। बिल इसे कम करके एक बंदूक करता है। इसमें उत्तराधिकार या विरासत के आधार पर मिलने वाला लाइसेंस भी शामिल है। बिल एक साल की समय सीमा प्रदान करता है जिस दौरान अतिरिक्त बंदूकों को निकटवर्ती पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज या निर्दिष्ट लाइसेंसशुदा बंदूक डीलर के पास जमा करना होगा। बिल बंदूकों के लाइसेंस की वैधता की अवधि को बढ़ाकर तीन से पांच वर्ष करता है। 

उल्लेखनीय है कि 2017 में आर्म्स एक्ट, 1959 के अंतर्गत भारत में 63,219 बंदूकें जब्त की गईं। इनमें से सिर्फ 3,525 (5.5%) लाइसेंसशुदा बंदूकें थीं। इसके अतिरिक्त 2017 में एक्ट के अंतर्गत बंदूकों से संबंधित 36,292 मामले पंजीकृत किए गए जिनमें से 419 (1.1%) मामले लाइसेंसशुदा बंदूकों के थे। [1] यह प्रवृत्ति निर्दिष्ट अपराधों के स्तर पर भी कायम थी, जहां सिर्फ 8.5% अपराधों में लाइसेंसशुदा बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था। [2]

मौजूदा अपराधों में क्या बदलाव किए गए हैं?

वर्तमान में एक्ट लाइसेंस के बिना बंदूकों की मैन्यूफैक्चरिंग, बिक्री, इस्तेमाल, ट्रांसफर, परिवर्तन, टेस्टिंग या प्रूफिंग पर प्रतिबंध लगाता है। इसके अतिरिक्त बिल गैर लाइसेंसशुदा बंदूकों को हासिल करने या खरीदने तथा लाइसेंस के बिना एक श्रेणी की बंदूकों को दूसरी श्रेणी में बदलने पर प्रतिबंध लगाता है। इसमें बंदूकों के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए किए गए संशोधन भी शामिल हैं। 

बिल अनेक मौजूदा अपराधों से संबंधित सजा में संशोधन भी प्रस्तावित करता है। उदाहरण के लिए एक्ट में निम्नलिखित के संबंध में सजा निर्दिष्ट है: (i) गैर लाइसेंसशुदा हथियार की मैन्यूफैक्चरिंग, खरीद, बिक्री, ट्रांसफर, परिवर्तन सहित अन्य क्रियाकलाप, (ii) लाइसेंस के बिना बंदूकों को छोटा करना या उनमें परिवर्तन, और (iii) प्रतिबंधित बंदूकों का आयात या निर्यात। इन अपराधों के लिए तीन से सात वर्ष की सजा है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ता है। बिल इसके लिए सात वर्ष से लेकर अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान करता है जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।

एक्ट लाइसेंस के बिना प्रतिबंधित बंदूकों (जैसे ऑटोमैटिक और सेमी-ऑटोमैटिक असॉल्ट राइफल्स) से डील करने पर सात से लेकर आजीवन कारावास तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान करता है। बिल ने न्यूनतम सजा को सात वर्ष से 10 वर्ष कर दिया है। इसके अतिरिक्त जिन मामलों में प्रतिबंधित हथियारों के इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उस स्थिति में अपराधी को मृत्यु दंड का प्रावधान था। बिल में इस सजा को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास किया गया है, जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।

क्या नए अपराधों को प्रस्तावित किया गया है?

बिल कुठ नए अपराधों को जोड़ता है। जैसे पुलिस या सशस्त्र बलों से जबरन हथियार लेना बिल के अंतर्गत अपराध है। ऐसा करने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा, साथ ही जुर्माने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त लापरवाही से बंदूकों के इस्तेमाल पर सजा निर्धारित करता है, जैसे शादियों या धार्मिक आयोजनों में गोलीबारी करना, जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ती है। ऐसे मामले पर दो साल तक की सजा होगी, या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा, या दोनों सजाएं भुगतनी पड़ेंगी। 

बिल ‘अवैध तस्करी’ की परिभाषा भी जोड़ता है। इसमें भारत में या उससे बाहर उन बंदूकों या एम्यूनिशन का व्यापार, उन्हें हासिल करना तथा उनकी बिक्री करना शामिल है जो एक्ट में चिन्हित नहीं हैं या एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। बिल अवैध तस्करी के लिए 10 वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान करता है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा।

क्या बिल संगठित अपराध के मुद्दे को उठाता है?

बिल ‘संगठित अपराध’ की परिभाषा भी प्रस्तावित करता है। ‘संगठित अपराध’ का अर्थ है, सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा आर्थिक या दूसरे लाभ लेने के लिए गैर कानूनी तरीकों को अपनाकर, जैसे हिंसा का प्रयोग करके या जबरदस्ती, गैर कानूनी कार्य करना। संगठित आपराधिक सिंडिकेट का अर्थ है, संगठित अपराध करने वाले दो या उससे अधिक लोग। बिल संगठित आपराधिक सिंडिकेट के सदस्यों के लिए कड़ी सजा का प्रस्ताव रखता है। उदाहरण के लिए गैर लाइसेंसशुदा बंदूक रखने पर किसी व्यक्ति को न्यूनतम सात साल की कैद हो सकती है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। हालांकि सिंडिकेट के सदस्य द्वारा गैर लाइसेंसशुदा बंदूक रखने पर 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह सजा उन गैर सदस्यों पर भी लागू होगी जिन्होंने सिंडिकेट की तरफ से एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

 

[1] Crime in India 2017, National Crime Records Bureau, October 21, 2019,  http://ncrb.gov.in/StatPublications/CII/CII2017/pdfs/CII2017-Full.pdf.

[2] Crime in India 2016, National Crime Records Bureau, October 10, 2017,  http://ncrb.gov.in/StatPublications/CII/CII2016/pdfs/NEWPDFs/Crime%20in%20India%20-%202016%20Complete%20PDF%20291117.pdf. 

 
Constitution

सरकार के राजस्व पर लॉकडाउन का प्रभाव

Suyash Tiwari - अप्रैल 19, 2020

भारत में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 25 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। लॉकडाउन ने सभी आर्थिक गतिविधियों को रद्द करना जरूरी बनाया। इसमें सिर्फ ऐसी गतिविधियां शामिल नहीं थीं, जिन्हें समय-समय पर ‘अनिवार्य’ के रूप में वर्गीकृत किया गया और जिन्हें घर से संचालित किया जा सकता है। परिणाम के तौर पर सभी आर्थिक गतिविधियां जिनमें व्यक्तियों का यात्रा करना या घर के बाहर जाकर काम करना, जैसे गैर अनिवार्य वस्तुओं की मैन्यूफैक्चरिंग और निर्माण तब से बंद हैं। हालांकि इससे बहुत से लोगों और व्यापारों को आय का नुकसान हुआ है, 40 दिन के लॉकडाउन से केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व पर गंभीर असर होने वाला है। मुख्य रूप से कर राजस्व पर जोकि सभी ऐसी आर्थिक गतिविधियों से प्राप्त किया जाता है। 

इस नोट में 2020-21 में केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व पर लॉकडाउन के संभावित प्रभावों पर चर्चा की जा रही है। इस चरण में महामारी और लॉकडाउन के असर का अनुमान लगाना कठिन है। हमें यह जानकारी नहीं है कि मौजूदा लॉकडाउन के 3 मई को समाप्त होने के बाद क्या आंशिक प्रतिबंध जारी रहेंगे या वर्ष के दौरान आगे भी ऐसी कार्रवाइयों की संभावना है। इसलिए इस नोट को विभिन्न परिदृश्यों के अंतर्गत प्रभाव की गणना करने के लिए पहले अनुमान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक पाठक जो मानता है कि जीडीपी की वृद्धि पर आईएमएफ के अनुमान से अलग असर होगा, जिसे नीचे इस्तेमाल किया गया है, वह अनुमान लगाने के लिए संख्याओं को एक्स्ट्रापोलेट कर सकता है।

केंद्र सरकार और अधिकतर राज्य सरकारों ने लॉकडाउन से पहले फरवरी-मार्च 2020 के दौरान वित्तीय वर्ष 2020-21 का बजट पारित किया था। केंद्र सरकार ने 2020-21 में देश की नॉमिनल जीडीपी में 10% की वृद्धि का अनुमान लगाया था और आधे से अधिक राज्यों ने नॉमिनल जीएसडीपी में 8%-13% के बीच वृद्धि का अनुमान लगाया था। अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन के अप्रत्याशित प्रभाव के कारण, 2020-21 में जीडीपी की वृद्धि दर इन अनुमानों से कम हो सकती है। परिणामस्वरूप लॉकडाउन की अवधि के दौरान केंद्र और राज्य सरकारें द्वारा अर्जित किया जाने वाला कर राजस्व बजट अनुमानों से कम रहने वाला है। 

केंद्र का राजस्व

तालिका 1 में 2020-21 के दौरान विभिन्न स्रोतों से केंद्र सरकार द्वारा अपेक्षित राजस्व के आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। 73% राजस्व (16.36 लाख करोड़ रुपए) करों से प्राप्त होने का अनुमान है। लॉकडाउन के कारण वर्ष के अंत में वसूला गया वास्तविक कर राजस्व बहुत कम हो सकता है, जोकि इस बात पर निर्भर करता है कि 2020-21 में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि कितनी प्रभावित होती है। राजस्व के असर का अनुमान लगाने के लिए हम यह मानकर चलते हैं कि 2020-21 में कर-जीडीपी अनुपात (यानी आर्थिक गतिविधि की प्रत्येक इकाई से प्राप्त होने वाले कर का अनुमान) बजट अनुमान के समान बरकरार रहता है। यह लॉकडाउन के कारण राजस्व के नुकसान का एक कंज़रवेटिव अनुमान हो सकता है क्योंकि कृषि, सरकारी सेवाओं और अनिवार्य सेवाओं जैसी कई अनुमत गतिविधियों में शून्य या निम्न-से-औसत कर प्राप्त होते हैं।

इस अवधारणा के आधार पर नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर में 1% प्वाइंट की गिरावट से 2020-21 में केंद्र के शुद्ध कर राजस्व में लगभग 15,000 करोड़ रुपए की गिरावट होगी जोकि उसके कुल राजस्व का 0.7% है। आईएमएफ ने 2020-21 के लिए 1.9% की जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है, मुद्रास्फीति के 4% के लक्ष्य को देखते हुए नॉमिनल जीडीपी वृद्धि लगभग 6% हो सकती है। इस स्थिति में जब नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 2020-21 में 10% से 4% प्वाइंट गिरकर 6% हो, तो शुद्ध कर राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए हो सकता है (कुल राजस्व का 2.7%)। उपरिलिखित के अनुसार, लॉकडाउन में अनुमत गतिविधियों के कारण कर-जीडीपी अनुपात बजट अनुमान से कम रहने का अनुमान है। इससे कर राजस्व पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव होगा।

इसके अतिरिक्त कर-जीडीपी के संबंध में भी अनुमान लगाया गया है। चूंकि जीडीपी के हिसाब से जीएसटी भी बढ़ता है, प्रत्यक्ष कर व्यक्तियों की आय वृद्धि और कंपनियों के लाभ में वृद्धि पर निर्भर करेगा। अगर जीडीपी की वृद्धि निम्न स्तरीय होगी तो नॉमिनल जीडीपी की सुस्ती की तुलना में इन दोनों मदों पर अधिक प्रभाव पड़ सकता है जिससे कर-जीडीपी अनुपात में गिरावट होगी। इसके अतिरिक्त आयात के मूल्य पर कस्टम ड्यूटी निर्भर करती है, जिसमें वृद्धि निम्न स्तरीय हो सकती है। इसमें कुछ हद तक पेट्रोलियम उत्पादों पर स्टेट एक्साइज की दर में वृद्धि के कारण कमी आएगी।

2019-20 के संशोधित अनुमानों को आधार बनाकर और 2020-21 के बजट अनुमानों को वास्तविक मानकर, (जब यह अनुमान किया गया था) गणनाएं की गई हैं। लेकिन ये आंकड़े कम भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम अप्रैल 2019 से फरवरी 2020 तक की शुद्ध कर राजस्व वृद्धि दर (कंट्रोलर जनरल ऑफ एकाउंट्स द्वारा जारी) को एक्स्ट्रापोलेट करते हैं तो यह कमी 1,62,000 करोड़ रुपए या संशोधित अनुमान का 11% होती है। इस प्रकार 2020-21 में कर संग्रह में काफी अधिक कमी हो सकती है। 

तालिका 1:  2020-21 में केंद्र सरकार का राजस्व (करोड़ रुपए में) 

स्रोत

राजस्व

कुल राजस्व में हिस्सा

शुद्ध कर राजस्व

16,35,909

73%

गैर कर राजस्व

3,85,017

17%

लाभांश और लाभ

1,55,395

6.9%

पूंजीगत प्राप्तियां

2,24,967

10%

विनिवेश

2,10,000

9.4%

कुल राजस्व

22,45,893

-

Note:  Capital receipts and total revenue do not include borrowings.

Sources:  Union Budget Documents; PRS.

करों के अतिरिक्त केंद्र की प्राप्तियों में गैर-कर राजस्व और पूंजी प्राप्तियां शामिल होती हैं। गैर-कर राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) और आरबीआई के लाभांश और मुनाफे से प्राप्त होता है (1.55 करोड़ करोड़ रुपए)। अगर लाभप्रदता प्रभावित होती है, तो इन आंकड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। पूंजी प्राप्तियों का प्रमुख हिस्सा पीएसई के विनिवेश (2.1 लाख करोड़ रुपए) से प्राप्त होता है। पिछले महीने के मुकाबले इक्विटी बाजारों में तेजी से गिरावट आई है। यदि इक्विटी बाजार अस्थिर रहते हैं, तो विनिवेश की प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप विनिवेश प्राप्तियां प्रभावित हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि विनिवेश प्राप्तियों का लक्ष्य 2,10,000 करोड़ रुपए था, जो 2019-20 में प्राप्त 50,299 करोड़ रुपए से काफी अधिक था।

राज्यों को हस्तांतरण

केंद्र की तरह, राज्य भी अपने अधिकांश राजस्व के लिए करों पर निर्भर होते हैं। उनके 2020-21 के बजट के अनुसार, उनके राजस्व का लगभग 70% हिस्सा करों से प्राप्त होने का अनुमान है (अपने स्वयं के करों से 45% और केंद्रीय करों के उनके हिस्से से 25%)। लॉकडाउन के कारण केंद्र के करों में कमी का असर भी राज्यों के हिस्से को प्रभावित करेगा (जिसे हस्तांतरण कहा जाता है)। तालिका 2 में केंद्र के कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को दिखाया गया है और लॉकडाउन के कारण वे निम्न स्तरीय आर्थिक वृद्धि से कैसे प्रभावित हो सकते हैं।

तालिका 2: लॉकडाउन के कारण 2020-21 में हस्तांतरण पर निम्न स्तरीय आर्थिक वृद्धि का प्रभाव (करोड़ रुपए में) 

  

राज्य/यूटी

हस्तांतरण में हिस्सेदारी (%)

हस्तांतरण

राष्ट्रीय नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर में 1% प्वाइंट गिरावट का हस्तांतरण पर असर

राज्य की राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में राजस्व प्रभाव

आंध्र प्रदेश

4.11

32,238*

293

NA

अरुणाचल प्रदेश

1.76

13,802

125

0.61%

असम

3.13

26,776

243

0.26%

बिहार

10.06

91,181

829

0.45%

छत्तीसगढ़

3.42

26,803

244

0.29%

दिल्ली

-

-

-

-

गोवा

0.39

3,027

28

0.21%

गुजरात

3.4

26,646

242

0.15%

हरियाणा

1.08

8,485

77

0.09%

हिमाचल प्रदेश

0.8

6,266

57

0.15%

जम्मू एवं कश्मीर

-

15,200

138

0.16%

झारखंड

3.31

25,980

236

0.31%

कर्नाटक

3.65

28,591

260

0.14%

केरल

1.94

20,935

190

0.17%

मध्य प्रदेश

7.89

61,841* 

562

NA

महाराष्ट्र

6.14

48,109

437

0.13%

मणिपुर

0.72

5,630

51

0.28%

मेघालय

0.77

5,999*

55

NA

मिजोरम

0.51

3,968

36

0.37%

नागालैंड

0.57

4,493

41

0.28%

ओड़िशा

4.63

36,300

330

0.27%

पंजाब

1.79

14,021

127

0.14%

राजस्थान

5.98

46,886

426

0.25%

सिक्किम

0.39

3,043

28

0.35%

तमिलनाडु

4.19

32,849

299

0.14%

तेलंगाना

2.13

16,727

152

0.11%

त्रिपुरा

0.71

5,560

51

0.30%

उत्तर प्रदेश

17.93

1,52,863

1,389

0.33%

उत्तराखंड

1.1

8,657

79

0.19%

पश्चिम बंगाल

7.52

65,835

598

0.33%

कुल 

100

8,38,710

7,624

0.22% 

Note:  *Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so their devolution data has been computed as the total devolution to states provided in the union budget multiplied by their share.  The devolution data for all other states has been taken from the state budget documents, which may not match with the union budget data in case of a few states.  Revenue receipts data not available for Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya.  The total for revenue receipt share has been computed excluding these three states.

Sources:  Union and State Budget Documents; 15th Finance Commission Report for 2020-21; PRS.

राज्य जीएसटी

राज्य के स्वयं करों से प्राप्त होने वाले 45% राजस्व में से, 35% राजस्व तीन करों- राज्य जीएसटी (19%), सेल्स टैक्स/वैट (10%), और स्टेट एक्साइज (6%) से प्राप्त होने का अनुमान है। राज्य जीएसटी राज्य के भीतर अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की खपत पर लगाया जाता है। हालांकि राज्य जीएसटी राज्यों के अपने कर राजस्व का सबसे बड़ा घटक है, राज्यों को अपने आप कर दरों को बदलने की स्वायत्तता नहीं है क्योंकि दरें जीएसटी परिषद द्वारा तय की जाती हैं। इस प्रकार लॉकडाउन के दौरान जीएसटी राजस्व कम होने के कारण, यदि कोई राज्य शेष वर्ष के लिए जीएसटी दरों में वृद्धि करना चाहता है, तो वह अपने आप ऐसा नहीं कर सकता है।

तालिका 3 में नॉमिनल जीएसडीपी (राज्य की जीडीपी) की वृद्धि दरों में 1% प्वाइंट के संभावित असर और 2020-21 मे राज्य जीएसटी राजस्व पर इसके प्रभाव दिखाया गया है। ये अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि लॉकडाउन के दौरान कर-जीएसडीपी अनुपात 2020-21 के बजट अनुमानों के समान रहेगा। हालांकि, जैसा कि पहले चर्चा की गई है, जीएसटी जैसे करों के लिए कर-जीडीपी अनुपात में गिरावट की आशंका है। इस विश्लेषण में राज्यों के जीएसटी राजस्व पर न्यूनतम प्रभाव का अनुमान लगाया गया है और पूरे प्रभाव को इसमें शामिल नहीं किया गया है। 

तालिका 3: 2020-21 में राज्य जीएसटी राजस्व पर निम्न जीएसडीपी वृद्धि का असर (करोड़ रुपए में) 

 राज्य/यूटी

राज्य जीएसटी राजस्व

नॉमिनल जीएसडीपी वृद्धि दर में 1% प्वाइंट गिरावट का राज्य जीएसटी राजस्व पर असर

राज्य की राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में राजस्व प्रभाव

आंध्र प्रदेश

NA 

NA

NA

अरुणाचल प्रदेश

324

3

0.01%

असम

13,935

128

0.14%

बिहार

20,800

187

0.10%

छत्तीसगढ़

10,701

97

0.12%

दिल्ली

23,800

215

0.39%

गोवा

2,772

26

0.19%

गुजरात

33,050

292

0.18%

हरियाणा

22,350

198

0.22%

हिमाचल प्रदेश

3,855

35

0.09%

जम्मू एवं कश्मीर

6,065

55

0.06%

झारखंड

9,450

85

0.11%

कर्नाटक

47,319

445

0.25%

केरल

32,388

289

0.25%

मध्य प्रदेश

 NA

NA

NA

महाराष्ट्र

1,07,146

957

0.28%

मणिपुर

914

8

0.05%

मेघालय 

NA

NA

NA

मिजोरम

504

4

0.04%

नागालैंड

541

5

0.04%

ओड़िशा

15,469

139

0.11%

पंजाब

15,859

141

0.16%

राजस्थान

28,250

255

0.15%

सिक्किम

650

5

0.07%

तमिलनाडु

46,196

410

0.19%

तेलंगाना

27,600

242

0.17%

त्रिपुरा

1,311

12

0.07%

उत्तर प्रदेश

55,673

525

0.12%

उत्तराखंड

5,386

49

0.12%

पश्चिम बंगाल

33,153

298

0.17%

कुल 

5,65,461

5,104

0.17% 

Note:  Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so data not available.  2020-21 GSDP data for Delhi was not available, so the GSDP growth rate in 2020-21 has been assumed to be the same as the growth rate in 2019-20 (10.5%).

Sources:  State Budget Documents; PRS.

सेल्स टैक्स/वैट और स्टेट एक्साइज

ये दोनों टैक्स राज्यों के लिए राजस्व का मुख्य स्रोत होते हैं जिनका 2020-21 में राज्यों के लिए 16% योगदान अनुमानित है। जीएसटी के लागू होने के बाद राज्य सिर्फ पेट्रोलियम उत्पादों (पेट्रोल, डीजल, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल) तथा मानव उपभोग के लिए शराब पर सेल्स टैक्स वसूल सकते हैं। हालांकि लॉकडाउन ने उपभोग को बुरी तरह प्रभावित किया है, इसलिए इन वस्तुओं की बिक्री भी प्रभावित हुई है क्योंकि अधिकतर परिवहन पर प्रतिबंध है और शराब बेचने वाले कारोबार बंद हैं। परिणामस्वरूप अन्य करों की तुलना में इन करों से प्राप्त होने वाले राजस्व पर अधिक असर होने की आशंका है।  

इसके अतिरिक्त शराब राज्य एक्साइज का विषय है। तालिका 4 में राज्य एक्साइज से प्राप्त राजस्व पर लॉकडाउन के औसत मासिक असर को प्रदर्शित किया गया है। यानी इसमें लॉकडाउन के प्रत्येक महीने में राजस्व के नुकसान का आकलन किया गया है, इस अनुमान के साथ कि इन अवधियों में मानव उपभोग के लिए शराब का उत्पादन नहीं हुआ।

तालिका 4: 2020-21 में राज्य एक्साइज से प्राप्त राजस्व पर लॉकडाउन का औसत मासिक प्रभाव (करोड़ रुपए में) 

राज्य/यूटी

राज्य एक्साइज राजस्व

राज्य एक्साइज राजस्व पर औसत मासिक प्रभाव

राज्य की राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में मासिक राजस्व प्रभाव

आंध्र प्रदेश

NA 

NA

NA

अरुणाचल प्रदेश

157

13

0.06%

असम

1,750

146

0.16%

बिहार

0

0

0.00%

छत्तीसगढ़

5,200

433

0.52%

दिल्ली

6,300

525

0.95%

गोवा

548

46

0.34%

गुजरात

144

12

0.01%

हरियाणा

7,500

625

0.69%

हिमाचल प्रदेश

1,788

149

0.39%

जम्मू एवं कश्मीर

1,450

121

0.14%

झारखंड

2,301

192

0.25%

कर्नाटक

22,700

1,892

1.05%

केरल

2,801

233

0.20%

मध्य प्रदेश

 NA

NA

NA

महाराष्ट्र

19,225

1,602

0.46%

मणिपुर

15

1

0.01%

मेघालय 

NA

NA

NA

मिजोरम

1

0

0.00%

नागालैंड

6

0

0.00%

ओड़िशा

5,250

438

0.35%

पंजाब

6,250

521

0.59%

राजस्थान

12,500

1,042

0.60%

सिक्किम

248

21

0.26%

तमिलनाडु

8,134

678

0.31%

तेलंगाना

16,000

1,333

0.93%

त्रिपुरा

266

22

0.13%

उत्तर प्रदेश

37,500

3,125

0.74%

उत्तराखंड

3,400

283

0.67%

पश्चिम बंगाल

12,732

1,061

0.59%

कुल 

1,74,164

14,514

0.48%

Note:  Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so data not available.

Sources:  State Budget Documents; PRS.

शराब और पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री पर सेल्स टैक्स/वैट एकत्र किया जाता है। इन वस्तुओं की बिक्री में कमी पर हमारे पास कोई डेटा नहीं है- न्यूज रिपोर्ट्स में कुछ राज्यों में शराब की बिक्री का संकेत मिलता है और अनिवार्य सेवाओं के प्रदाता पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे होंगे। सेल्स टैक्स/वैट राजस्व पर असर का अनुमान लगाने के लिए हम तीन परिदृश्यों का अनुमान लगा रहे हैं: (i) लॉकडाउन के किसी भी महीने में कर संग्रह में 40% की कमी, (ii) कर संग्रह में 60% की कमी, और (iii) कर संग्रह में 80% की कमी। तालिका 5 में इन तीन स्थितियों में सेल्स टैक्स/वैट राजस्व पर लॉकडाउन का औसत मासिक असर प्रदर्शित है। 

तालिका 5: 2020-21 में सेल्स टैक्स/वैट पर लॉकडाउन का प्रभाव (करोड़ रुपए में) 

राज्य/यूटी

लॉकडाउन के महीने में सेल्स टैक्स/वैट के राजस्व पर प्रभाव 

राज्य की राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में 

40% की कमी

60% की कमी

80% की कमी

40% की कमी

60% की कमी

80% की कमी

आंध्र प्रदेश

NA

NA

NA

NA

NA

NA

अरुणाचल प्रदेश

9

14

18

0.04%

0.07%

0.09%

असम

178

267

356

0.19%

0.29%

0.39%

बिहार

194

292

389

0.11%

0.16%

0.21%

छत्तीसगढ़

138

207

276

0.16%

0.25%

0.33%

दिल्ली

207

310

413

0.37%

0.56%

0.75%

गोवा

41

62

83

0.31%

0.47%

0.62%

गुजरात

774

1,162

1,549

0.48%

0.72%

0.95%

हरियाणा

357

535

713

0.40%

0.59%

0.79%

हिमाचल प्रदेश

56

84

112

0.15%

0.22%

0.29%

जम्मू एवं कश्मीर

50

75

100

0.06%

0.09%

0.11%

झारखंड

195

293

391

0.26%

0.39%

0.52%

कर्नाटक

593

889

1,186

0.33%

0.49%

0.66%

केरल

775

1,163

1,551

0.68%

1.01%

1.35%

मध्य प्रदेश

NA

NA

NA

NA

NA

NA

महाराष्ट्र

1,333

2,000

2,667

0.38%

0.58%

0.77%

मणिपुर

9

14

18

0.05%

0.08%

0.10%

मेघालय 

NA

NA

NA

NA

NA

NA

मिजोरम

3

4

5

0.03%

0.04%

0.06%

नागालैंड

9

13

18

0.06%

0.09%

0.12%

ओड़िशा

292

438

583

0.23%

0.35%

0.47%

पंजाब

186

279

372

0.21%

0.32%

0.42%

राजस्थान

700

1,050

1,400

0.40%

0.61%

0.81%

सिक्किम

7

11

15

0.09%

0.14%

0.18%

तमिलनाडु

1,868

2,802

3,736

0.85%

1.28%

1.70%

तेलंगाना

880

1,320

1,760

0.61%

0.92%

1.23%

त्रिपुरा

15

22

30

0.09%

0.13%

0.17%

उत्तर प्रदेश

943

1,414

1,886

0.22%

0.33%

0.45%

उत्तराखंड

66

98

131

0.15%

0.23%

0.31%

पश्चिम बंगाल

251

377

503

0.14%

0.21%

0.28%

कुल 

10,130

15,195

20,260

0.34%

0.51%

0.67%

Note:  Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so data not available.

Sources:  State Budget Documents; PRS.

जीएसटी मुआवजे से कितनी मदद मिल सकती है?

केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को जीएसटी मुआवजे से जीएसटी राजस्व में कमी की भरपाई हो सकती है। जीएसटी (राज्यों का मुआवजा) एक्ट, 2017 के अंतर्गत केंद्र सरकार 2022 तक राज्यों को जीएसटी के कारण होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई करेगी। इसके लिए एक्ट राज्य जीएसटी राजस्व में 14% वार्षिक वृद्धि दर की गारंटी देता है जो कि वर्ष 2020-21 में वृद्धि की संभावना से बहुत अधिक है। इसके परिणामस्वरूप केंद्र सरकार को 14% की बजाय राज्यों को अपने राज्य जीएसटी राजस्व में वृद्धि की गिरावट के बराबर मुआवजा देना होगा। 

हालांकि इसकी संभावना कम है कि 2020-21 में राज्यों को मुआवजा प्रदान करने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध हो। राज्यों को जीएसटी मुआवजा फंड से मुआवजा दिया जाता है जिसमें इस उद्देश्य के लिए जमा होने वाले सेस की राशि शामिल होती है। यह सेस कोयले, तंबाकू और उससे संबंधित उत्पादों, पान मसाला, ऑटोमोबाइल्स और एरेटेड ड्रिक्स पर वसूला जाता है। इस सेस में कमी देखी जा सकती है क्योंकि इनमें से अनेक वस्तुओं की बिक्री पर इस वर्ष असर हो सकता है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष की तुलना में 2019-20 में ऑटोमोबाइल की घरेलू बिक्री में 18% की गिरावट देखी गई थी जबकि कोयला उत्पादन स्थिर रहा था।

बजट 2020-21 में केंद्र सरकार ने राज्यों को 1,35,368 करोड़ रुपए के मुआवजे का अनुमान लगाया था जोकि राज्यों द्वारा अपने बजट में अनुमानित कुल मुआवजे के काफी निकट है। हालांकि लॉकडाउन के कारण इन अनुदानों को वित्त पोषित करने वाले सेस में गिरावट का अनुमान है, जबकि कम जीएसटी एकत्र होने के कारण राज्यों की मुआवजे की आवश्यकता बढ़ने का अनुमान है। जबकि इस बात का जोखिम है कि कोई वृद्धिशील जरूरत पूरी नहीं हो पाएगी, अगर बजट 2020-21 के अनुसार, राज्यों की मौजूदा राशि को पूरा करने के लिए पर्याप्त सेस जमा नहीं होता तो राज्य के राजस्व पर बहुत असर हो सकता है (तालिका 6)। राज्य, औसतन, 2020-21 में अपने 4.4% राजस्व के लिए जीएसटी मुआवजा अनुदान पर निर्भर हैं। हालांकि, गुजरात, पंजाब, और दिल्ली जैसे राज्यों को उम्मीद है कि 2020-21 में उनके राजस्व का लगभग 14-15% जीएसटी मुआवजा अनुदान के रूप में आएगा।

तालिका 6: 2020-21 में राज्यों द्वारा अनुमानित जीएसटी मुआवजा अनुदान

राज्य/यूटी

जीएसटी मुआवजा

राज्य की राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में जीएसटी मुआवजा

आंध्र प्रदेश

NA 

NA

अरुणाचल प्रदेश

0

0.0%

असम

1,000

1.1%

बिहार

3,500

1.9%

छत्तीसगढ़

2,938

3.5%

दिल्ली

7,800

14.1%

गोवा

1,358

10.2%

गुजरात

22,510

13.9%

हरियाणा

7,000

7.8%

हिमाचल प्रदेश

3,338

8.7%

जम्मू एवं कश्मीर

3,177

3.6%

झारखंड

1,568

2.1%

कर्नाटक

16,116

9.0%

केरल

0

0.0%

मध्य प्रदेश

 NA

NA

महाराष्ट्र

10,000

2.9%

मणिपुर

0

0.0%

मेघालय 

NA

NA

मिजोरम

0

0.0%

नागालैंड

0

0.0%

ओड़िशा

6,200

5.0%

पंजाब

12,975

14.7%

राजस्थान

4,800

2.8%

सिक्किम

0

0.0%

तमिलनाडु

10,300

4.7%

तेलंगाना

0

0.0%

त्रिपुरा

208

1.2%

उत्तर प्रदेश

7,608

1.8%

उत्तराखंड

3,571

8.4%

पश्चिम बंगाल

4,928

2.7%

कुल

1,30,894

4.4%

Note:  Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so data not available.

Sources:  State Budget Documents; PRS.

पिछले वर्ष आर्थिक मंदी के कारण यही स्थिति उत्पन्न हुई थी। राज्यों के मुआवजे की जरूरत पूरी हो, इसके लिए पर्याप्त सेस जमा नहीं हुआ था। परिणामस्वरूप राज्यों को नवंबर 2019 में जीएसटी मुआवजा मिला था।  उल्लेखनीय है कि जीएसटी (राज्यों को मुआवजा) एक्ट, 2017 में यह प्रावधान है कि जीएसटी परिषद मुआवजा फंड के लिए दूसरी वित्त पोषण व्यवस्थाओं का सुझाव दे सकती है। उदाहरण के लिए ऐसा तब किया जा सकता है, जब कोष में राज्यों को मुआवजा देने के लिए धनराशि की कमी हो।

राज्य की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव

राजस्व पर गंभीर तनाव होने पर राज्यों को या तो अपने बजटीय व्यय में कटौती करनी होगी या बजट लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपनी उधारियों में वृद्धि करनी होगी। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण राज्यों को स्वास्थ्य क्षेत्र तथा राहत देने पर अप्रत्याशित व्यय करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप कई राज्यों ने अपने नियोजित व्यय में कटौती करने की योजना बनानी शुरू कर दी है या वे नियोजित व्यय को तत्काल जरूरतों पर खर्च करने की योजना पर काम कर रहे हैं। राजस्व व्यय पर अपेक्षाकृत कम लचीलेपन के साथ, कई राज्यों के पूंजीगत व्यय में बड़ी कटौती हो सकती है। उदाहरण के लिए राजस्व व्यय में ब्याज, वेतन और पेंशन भुगतान के प्रति प्रतिबद्ध व्यय शामिल होता है। औसतन प्रतिबद्ध व्यय का हिस्सा राज्य के व्यय में 50% तक होता है। हालांकि कुछ राज्यों ने वेतन भुगतान में कटौती करनी शुरू कर दी है। चूंकि निजी उपभोग और निवेश के मंद रहने की उम्मीद है, सरकारी व्यय में कटौती से जीडीपी में गिरावट आ सकती है। 

दूसरा विकल्प यह है कि राज्य अपनी उधारियों में वृद्धि करें। हालांकि राज्यों की उधारियां एफआरबीएम कानूनों द्वारा उनकी 3% जीएसडीपी पर निर्धारित हैं (उनके द्वारा कुछ शर्तों को पूरा करने पर अतिरिक्त 0.5% के साथ)। राज्यों को उधार लेने के लिए केंद्र सरकार की सहमति की भी आवश्यकता है। हालांकि अधिकांश राज्यों ने 2020-21 में अपने राजकोषीय घाटे को पहले ही ऊपरी सीमा के आस-पास नियत कर लिया है (तालिका 7)। हालांकि लॉकडाउन के कारण जीएसडीपी पर असर होने की उम्मीद है, सभी राज्यों के लिए जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा बजटीय लक्ष्यों से अधिक हो सकता है, भले ही वे अतिरिक्त उधार न लें।  

तालिका 7: 2020-21 के लिए राजकोषीय घाटा अनुमान जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में 

राज्य/यूटी

2019-20 (संशोधित)

2020-21 (बजटीय)

आंध्र प्रदेश

NA 

NA

अरुणाचल प्रदेश

3.1%

2.4%

असम

5.7%

2.3%

बिहार

9.5%

3.0%

छत्तीसगढ़

6.4%

3.2%

दिल्ली

-0.1%

0.5%

गोवा

4.7%

5.0%

गुजरात

1.6%

1.8%

हरियाणा

2.8%

2.7%

हिमाचल प्रदेश

6.4%

4.0%

जम्मू एवं कश्मीर

NA 

5.0%

झारखंड

2.3%

2.1%

कर्नाटक

2.3%

2.6%

केरल

3.0%

3.0%

मध्य प्रदेश

NA 

NA

महाराष्ट्र

2.7%

1.7%

मणिपुर

8.9%

4.1%

मेघालय 

 NA

 NA

मिजोरम

8.3%

1.7%

नागालैंड

9.0%

4.8%

ओड़िशा

3.4%

3.0%

पंजाब

3.0%

2.9%

राजस्थान

3.2%

3.0%

सिक्किम

4.3%

3.0%

तमिलनाडु

3.0%

2.8%

तेलंगाना

2.3%

3.0%

त्रिपुरा

6.2%

3.5%

उत्तर प्रदेश

3.0%

3.0%

उत्तराखंड

2.5%

2.6%

पश्चिम बंगाल

2.6%

2.2%

केंद्र

3.8%

3.5%

Note:  Andhra Pradesh, Madhya Pradesh, and Meghalaya passed a vote on account, so data not available.

Sources:  Union and State Budget Documents; PRS.

 
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