1 जून, 2020 को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों (एमएसएमईज़) की परिभाषा में संशोधन को मंजूरी दी।[1] इस ब्लॉग में हम एमएसएमईज़ की परिभाषा में कैबिनेट द्वारा मंजूर परिवर्तनों पर चर्चा कर रहे हैं और एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाले कुछ मानदंडों की समीक्षा कर रहे हैं।
वर्तमान में एमएसएमईज़ को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास एक्ट, 2006 के अंतर्गत परिभाषित किया जाता है।[2] यह एक्ट उन्हें निम्नलिखित के आधार पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों में वर्गीकृत करता है: (i) माल की मैन्यूफैक्चरिंग या उत्पादन में संलग्न उद्यमों द्वारा प्लांट और मशीनरी में निवेश, और (ii) सेवाएं प्रदान करने वाले उद्यमों द्वारा उपकरणों में निवेश। कैबिनेट की मंजूरी के बाद निवेश सीमा को बढ़ाया गया है और उद्यमों के वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमई के वर्गीकरण के अतिरिक्त मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा (तालिका 1)।
एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के पूर्व प्रयास
केंद्र सरकार ने दो बार पहले भी एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के प्रयास किए हैं। इससे पहले सरकार ने एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2015 को पेश किया था जिसमें एमएसएमईज़ की मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के लिए निवेश की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव था।[3] 2018 में इस बिल को वापस ले लिया गया और दूसरा बिल पेश किया गया। एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2018 नामक इस बिल में निम्नलिखित प्रस्तावित था: (i) एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए निवेश के बजाय वार्षिक टर्नओवर को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना, (ii) मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के बीच के अंतर को समाप्त करना, और (iii) केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए टर्नओवर की सीमा में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करना।[4] 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ 2018 का बिल लैप्स हो गया।
तालिका 1: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के मानदंड के बीच तुलना
2006 एक्ट |
2015 बिल |
2018 बिल |
कैबिनेट |
|||
मानदंड |
निवेश |
निवेश |
टर्नओवर |
निवेश और टर्नओवर |
||
प्रकार |
मैन्यूफैक्चरिंग |
सेवा |
मैन्यूफैक्चरिंग |
सेवा |
दोनों |
दोनों |
सूक्ष्म |
25 लाख रुपए तक |
10 लाख रुपए तक |
50 लाख रुपए तक |
20 लाख रुपए तक |
5 करोड़ रुपए तक |
निवेश: 1 करोड़ रुपए तक |
लघु |
25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए |
10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए |
50 लाख रुपए से 10 करोड़ रुपए |
20 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए |
5 करोड़ रुपए से 75 करोड़ रुपए |
निवेश: 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए |
मध्यम |
5 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए |
2 करोड़ रुपए से 5 करोड़ रुपए |
10 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए |
5 करोड़ रुपए से 15 करोड़ रुपए |
75 करोड़ रुपए से 250 करोड़ रुपए |
निवेश: 10 करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए |
Sources: MSME Development 2006 Act, MSME Development Amendment Bills 2015 and 2018, PIB update on cabinet approval; PRS.
विश्व स्तर पर एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड
हालांकि भारत में अब निवेश और वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, विश्व के अनेक देश व्यापक स्तर पर कर्मचारियों की संख्या को मानदंड के रूप में प्रयोग करते हैं। एमएसएमईज़ पर भारतीय रिजर्व बैंक की एक्सपर्ट कमिटी (2019) ने अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम के एक अध्ययन का हवाला दिया था जिसे 2014 में किया गया था। इस अध्ययन में 155 देशों के विभिन्न संस्थानों की 267 परिभाषाओं का विश्लेषण किया गया था।[5],[6] अध्ययन के अनुसार, अनेक देश एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए कई मानदंडों का एक साथ इस्तेमाल करते हैं। 92% परिभाषाओं में कर्मचारियों की संख्या को कई मानदंडों में से एक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। जिन अन्य मानदंडों को इस्तेमाल किया गया था, वे थे: (i) टर्नओवर (49%), और (ii) एसेट्स का मूल्य (36%)। 11% परिभाषाओं में वैकल्पिक मानदंडों का इस्तेमाल किया गया था, जैसे: (i) लोन की मात्रा, (ii) वर्षों का अनुभव, और (iii) प्रारंभिक निवेश।
रेखाचित्र 1: आईएफसी रिपोर्ट (2014) के अनुसार, विश्व में एमएसएमई के वर्गीकरण के विभिन्न मानदंड
Sources: MSME Country Indicators 2014; International Finance Corporation; Report of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises, Reserve Bank of India; PRS.
तालिका 2: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के लिए विभिन्न देशों के मानदंड
देश |
कर्मचारियों की संख्या |
पूंजीl/परिसंपत्तियां |
टर्नओवर/बिक्री |
बांग्लादेश |
ü |
ü |
|
ब्राजील |
ü |
|
|
चीन |
ü |
ü |
ü |
यूरोपीय संघ |
ü |
ü |
ü |
जापान |
ü |
ü |
|
मलयेशिया |
ü |
|
ü |
युनाइडेट किंगडम |
ü |
ü |
ü |
युनाइटेड स्टेट्स |
ü |
|
ü |
Sources: Report of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises (2019), Reserve Bank of India; PRS.
एमएसएमई की परिभाषा के मानदंडों का मूल्यांकन
निवेश: 2006 का एक्ट एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए प्लांट, मशीनरी और उपकरणों में निवेश का इस्तेमाल करता है। निवेश के मानदंड के साथ कुछ समस्याएं हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
टर्नओवर: 2018 का बिल निवेश के मानदंड को पूरी तरह से हटाकर, वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण का एकमात्र मानदंड बनाने का प्रयास करता था। स्टैंडिंग कमिटी ने बिल के इस प्रस्ताव को मंजूर किया था कि निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर के मानदंड का इस्तेमाल किया जाए।7 यह कहा गया था कि इससे निवेश के आधार पर वर्गीकरण की कुछ कमियों को दूर किया जा सकता है। हालांकि टर्नओवर आधारित मानदंड के लिए वैरिफिकेशन की भी जरूरत पड़ेगी, कमिटी ने कहा कि जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) डेटा इस काम के लिए विश्वसनीय स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, यह भी कहा गया था कि:7
एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने भी निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर को वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।5 यह कहा गया था कि टर्नओवर आधारित परिभाषा पारदर्शी, प्रगतिशील है और उसे जीएसटीएन के जरिए लागू करना आसान है। उसने सुझाव भी दिया था कि एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन की शक्ति कार्यकारिणी को दी जानी चाहिए क्योंकि इससे बदलते आर्थिक परिदृश्यों में बदलाव करने में मदद मिलेगी।
कर्मचारियों की संख्या: स्टैंडिंग कमिटी का कहना था कि भारत जैसे श्रम गहन देश में रोजगार सृजन पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है और एमएसएमई क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त मंच है।7 यह सुझाव भी दिया गया था कि केंद्र सरकार को एमएसएमई क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या का आकलन करना चाहिए और एमएसएमई को वर्गीकृत करते समय मानदंड के रूप में रोजगार पर विचार करना चाहिए। हालांकि एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने कहा था कि जबकि रोजगार आधारित परिभाषा कुछ देशों में पसंद की जाने वाली एक अतिरिक्त विशेषता है, इस परिभाषा को लागू करने में अनेक समस्याएं आएंगी।5 एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, निम्नलिखित कारणों से रोजगार को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना कठिन है: (i) मौसम और काम की अनौपचारिक प्रकृति जैसे कारण, (ii) निवेश के मानदंड की ही तरह इसके लिए फिजिकल वैरिफिकेशन की जरूरत होगी और इसके साथ अन्य खर्चे जुड़े हुए होते हैं।7
एमएसएमईज़ की संख्या
नेशनल सैंपल सर्वे (2015-16) के अनुसार, देश में लगभग 6.34 करोड़ एमएसएमईज़ हैं। सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र में 6.3 करोड़ उद्यम हैं जोकि कुल एमएसएमईज़ की अनुमानित संख्या का 99% से अधिक है। लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का हिस्सा कुल उद्यमों में क्रमशः 0.52% और 0.01% है। एमएसएमईज़ के वितरण को समझने का दूसरा डेटासेट उद्योग आधार है, जोकि यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) द्वारा एमएसएमई उद्यमों को यूनीक आइडेंटिटी के तौर पर दिया जाता है।[8] उद्योग आधार पंजीकरण उद्यमों की स्वघोषणा के आधार पर दिया जाता है। सितंबर 2015 और जून 2020 के दौरान 98.6 लाख उद्यमों का पंजीकरण यूआईडीएआई के साथ किया गया है। इस डेटाबेस के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों का हिस्सा क्रमशः 87.7%, 11.8% और 0.5% है।
तालिका 3: देश में एमएसएमईज़ की संख्या (लाखों में)
|
सूक्ष्म |
लघु |
मध्यम |
कुल |
% हिस्सा |
ग्रामीण |
324.09 |
0.78 |
0.01 |
324.88 |
51% |
शहरी |
306.43 |
2.53 |
0.04 |
309.00 |
49% |
कुल |
630.52 |
3.31 |
0.05 |
633.88 |
|
Sources: 73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS.
एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार
2015-16 में एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11.1 करोड़ लोग काम कर रहे थे। कृषि क्षेत्र के बाद इस क्षेत्र में सबसे अधिक लोग रोजगार प्राप्त हैं। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की सबसे बड़ी संख्या व्यापार गतिविधियों में लगी हुई है (35%), इसके बाद मैन्यूफैक्चरिंग में लगे व्यक्तियों (32%) की संख्या है।
तालिका 4: एमएसएमईज़ में रोजगार (लाख में) (2015-16)
|
सूक्ष्म |
लघु |
मध्यम |
कुल |
% हिस्सा |
ग्रामीण |
489.3 |
7.9 |
0.6 |
497.8 |
45% |
शहरी |
586.9 |
24.1 |
1.2 |
612.1 |
55% |
कुल |
1,076.2 |
32.0 |
1.8 |
1,109.9 |
|
Sources: 73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS.
एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन के प्रभाव
एमएसएमई की परिभाषा में परिवर्तन के कई नतीजे हो सकते हैं। जैसे लघु उद्यम के रूप में वर्गीकृत अनेक उद्यम, सूक्ष्म उद्यम के रूप में वर्गीकृत हो जाएंगे, और मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत उद्यम, लघु के रूप में। इसके अतिरिक्त अनेक उद्यम जो फिलहाल एमएसएमईज़ के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं, नई परिभाषा के कारण एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएंगे। इन उद्यमों को एमएसएमई से संबंधित योजनाओं का भी लाभ मिलेगा। एमएसएमई मंत्रालय निम्नलिखित के लिए विभिन्न योजनाएं चलाता है: (i) एमएसएमई के लिए ऋण, (ii) टेक्नोलॉजी अपग्रेड और आधुनिकीकरण के लिए सहयोग, (iii) उद्यमशीलता और दक्षता विकास, और (iv) क्लस्टर वार उपाय ताकि एमएसएमई इकाइयों में क्षमता निर्माण और सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। जैसे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम के अंतर्गत सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को अधिकतम 75% तक क्रेडिट गारंटी कवर दिया जाता है।[9] इसलिए नए सिरे से वर्गीकरण करने से एमएसएमई क्षेत्र के लिए बजटीय आबंटन में काफी बढ़ोतरी की जरूरत होगी।
कोविड-19 के परिणामस्वरूप एमएसएमई से संबंधित अन्य घोषणाएं
2017-18 में कुल मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में एमएसएमई क्षेत्र का हिस्सा लगभग 33.4% था।[10] इसी वर्ष देश के कुल निर्यात में एमएसएमई का हिस्सा लगभग 49% था। 2015 और 2017 के दौरान जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान करीब 30% था। कोविड-19 के परिणामस्वरूप देश भर में लॉकडाउन के कारण एमएसएमई सहित व्यापार जगत को काफी नुकसान हुआ। इस क्षेत्र को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने मई 2020 में अनेक उपायों की घोषणा की।[11] इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) 25 करोड़ रुपए तक के बकाये और 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले एमएसएमईज़ को कोलेट्रल मुक्त लोन, (ii) स्ट्रेस्ड एमएसएमईज़ को 20,000 करोड़ रुपए अधीनस्थ ऋण के रूप में, और (iii) एमएसएमईज़ में 50,000 करोड़ रुपए का कैपिटल इनफ्यूजन। इन उपायों को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूर कर दिया है।[12]
आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणाओं पर अधिक विवरण के लिए कृपया यहां देखें।
[1] “Cabinet approves Upward revision of MSME definition and modalities/ road map for implementing remaining two Packages for MSMEs (a)Rs 20000 crore package for Distressed MSMEs and (b) Rs 50,000 crore equity infusion through Fund of Funds”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, June 1, 2020.
[2] The Micro, Small and Medium Enterprises Development Act, 2006, https://samadhaan.msme.gov.in/WriteReadData/DocumentFile/MSMED2006act.pdf.
[3] The Micro, Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill, 2015, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/MSME_bill%2C_2015_0.pdf.
[4] The Micro, Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill, 2018, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/The%20Micro%2C%20Small%20and%20Medium%20Enterprises%20Development%20%28Amendment%29%20Bill%2C%202018%20Bill%20Text.pdf.
[5] Report of the Expert Committee on Micro, Small and Medium Enterprises, The Reserve Bank of India, July 2019, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PublicationReport/Pdfs/MSMES24062019465CF8CB30594AC29A7A010E8A2A034C.PDF.
[6] MSME Country Indicators 2014, International Finance Corporation, December 2014, https://www.smefinanceforum.org/sites/default/files/analysis%20note.pdf.
[7] 294th Report on Micro Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill 2018, Standing Committee on Industry, Rajya Sabha, December 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/17/111/294_2019_3_15.pdf.
[8] Enterprises with Udyog Aadhaar Number, National Portal for Registration of Micro, Small & Medium Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://udyogaadhaar.gov.in/UA/Reports/StateBasedReport_R3.aspx.
[9] Credit Guarantee Fund Scheme for Micro and Small Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, http://www.dcmsme.gov.in/schemes/sccrguarn.htm.
[10] Annual Report 2018-19, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://msme.gov.in/sites/default/files/Annualrprt.pdf.
[11] "Finance Minister announce measures for relief and credit support related to businesses, especially MSMEs to support Indian Economy’s fight against COVID-19", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 13, 2020.
[12] "Cabinet approves additional funding of up to Rupees three lakh crore through introduction of Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS)", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 20, 2020.
पिछले कुछ महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 101.8 रुपए प्रति लीटर और डीजल का 89.9 रुपए प्रति लीटर था। दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 105.5 रुपए प्रति लीटर था, और डीजल का 94.2 रुपए प्रति लीटर था। मुंबई में यह मूल्य और अधिक, क्रमशः 111.7 रुपए प्रति लीटर और 102.5 रुपए प्रति लीटर था।
दो शहरों में खुदरा मूल्यों में अंतर की वजह यह है कि एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूला जाता है। इस ब्लॉग में हम पेट्रोल और डीजल की मूल्य संरचना में कर घटकों पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही राज्यों में उनके उतार-चढ़ाव और हाल के वर्षों में इन उत्पादों पर टैक्सेशन में आए मुख्य बदलावों पर विचार कर रहे हैं। हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खुदरा मूल्य में क्या परिवर्तन हुए हैं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ उनकी तुलना की गई है।
टैक्स रीटेल कीमतों का करीब 50% होते हैं
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज़) भारत में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं। यह संशोधन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में होने वाले बदलावों के अनुसार किए जाते हैं। डीलर्स से ली जाने वाली कीमत में ओएमसीज़ द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल ढुलाई की कीमत शामिल होती है। 16 अक्टूबर, 2021 तक डीलर से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42% और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49% है (तालिका 1)।
दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (16 अक्टूबर, 2021 तक) के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल के खुदरा मूल्य में 54% हिस्सा केंद्र और राज्य टैक्स हैं। डीजल के मामले में यह 49% के करीब है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन पर टैक्स लगाती है, जबकि राज्यों उनकी बिक्री पर टैक्स लगाते हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। यह पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का क्रमश: 31% और 34% है।
तालिका 1: दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों का ब्रेकअप (16 अक्टूबर, 2021 तक)
घटक |
पेट्रोल |
डीजल |
||
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
|
डीलर से लिया जाने वाला मूल्य |
44.4 |
42% |
46.0 |
49% |
एक्साइज ड्यूटी (केंद्र द्वारा वसूली जाने वाली) |
32.9 |
31% |
31.8 |
34% |
डीलर का कमीशन (औसत) |
3.9 |
4% |
2.6 |
3% |
सेल्स टैक्स/वैट (राज्य द्वारा वसूला जाने वाला) |
24.3 |
23% |
13.8 |
15% |
खुदरा मूल्य |
105.5 |
100% |
94.2 |
100% |
नोट: दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट और डीजल पर 16.75% वैट वसूलती है।
स्रोत: भारतीय तेल निगम लिमिटेड; पीआरएस
एक्साइज ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक समान हैं। राज्य सेल्स टैक्स/मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाते हैं, जिनकी कर दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। जैसे ओड़िशा पेट्रोल पर 32% वैट वसूलता है जबकि उत्तर प्रदेश 26.8% वैट या 18.74 रुपए प्रति लीटर -इनमें से जो भी अधिक हो- वसूलता है। विभिन्न राज्यों के टैक्सों के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका देखें। निम्नलिखित रेखाचित्र में पेट्रोल और डीजल पर राज्यों की विभिन्न टैक्स दरों को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए राज्यों द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स की दरें तमिलनाडु में 13% से लेकर राजस्थान में 36% और कर्नाटक एवं तेलंगाना में 35% तक हैं। रेखाचित्र में दर्शाई गई टैक्स दरों के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, कुछ अतिरिक्त वसूलियां भी करती हैं, जैसे सेस।
रेखाचित्र 1: पेट्रोल और डीजल पर राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की दरें (1 अक्टूबर, 2021 तक)
नोट: महाराष्ट्र की दरें मुंबई-ठाणे क्षेत्र और राज्य के बाकी हिस्सों में लगाई गई दरों का औसत हैं। इस ग्राफ में सिर्फ प्रतिशत दर्शाए गए हैं।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
उल्लेखनीय है कि एक्साइज ड्यूटी से अलग, सेल्स टैक्स एक यथामूल्य कर है, यानी इसका कोई निश्चित मूल्य नहीं है, और उत्पाद की कीमत के प्रतिशत के रूप में शुल्क लिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जबकि मूल्य संरचना में एक्साइज ड्यूटी के घटक का मूल्य निश्चित है, पर सेल्स टैक्स की कीमत अन्य तीन घटकों पर निर्भर है, यानी डीलरों से वसूला गया मूल्य, डीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी।
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारत में खुदरा मूल्य
पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के लिए आयात पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1998-99 में शुद्ध आयात कुल खपत का 69% था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 95% हो गया। घरेलू खपत में आयात का बड़ा हिस्सा है, इसी वजह से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी तरह के बदलाव का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित दो रेखाचित्रों में पिछले नौ वर्षों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों की प्रवृत्तियों को प्रदर्शित किया गया है।
रेखाचित्र 2: कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (दिल्ली में)
नोट: वैश्विक कच्चे तेल की कीमत भारतीय बास्केट की है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें दिल्ली की हैं। रेखाचित्र औसत मासिक मूल्य दर्शाता है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
जून 2014 और अक्टूबर 2018 के बीच रीटेल बिक्री मूल्य कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप नहीं थे। जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट हई और फिर फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई। हालांकि इस पूरी अवधि के दौरान रीटेल बिक्री मूल्य स्थिर बने रहे। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय रीटेल कीमतों के अलग-अलग होने की वजह टैक्सों में होने वाले बदलाव थे। जैसे जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय कर क्रमशः 11 रुपए और 13 रुपए बढ़े। नतीजतन फरवरी 2016 और अक्टूबर 2018 के बीच पेट्रोल और डीजल पर करों में चार रुपए की गिरावट हुई। इसी तरह जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 69% की जबरदस्त गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल और डीजल पर क्रमशः 10 रुपए प्रति लीटर और 13 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी।
एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में बढ़ोतरी
मई 2020 में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप 2020-21 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन पिछले वर्ष (2019-20) में 2.38 लाख करोड़ से बढ़कर 3.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। परिणामस्वरूप इसके कलेक्शन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2019-20 में 4% से बढ़कर 2020-21 में 67% हो गई। हालांकि, उस अवधि के दौरान सेल्स टैक्स कलेक्शन (पेट्रोलियम उत्पादों से) कमोबेश स्थिर रहा (रेखाचित्र 3)।
रेखाचित्र 3: पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स/वैट (लाख करोड़ रुपए में)
नोट: इस रेखाचित्र में एक्साइज ड्यूटी में कच्चे तेल पर लगने वाला सेस शामिल है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी में राज्यों का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है
हालांकि केंद्र द्वारा केंद्रीय कर वसूले जाते हैं, उसे इन करों की वसूली से केवल 59% राजस्व मिलता है। शेष 41% राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित करना होता है, जैसा कि 15वें वित्त आयोग के सुझाव हैं। इन हस्तांतरित करों की प्रकृति अनटाइड होती है, यानी राज्य अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के दो बड़े घटक होते हैं: (i) टैक्स (यानी बेसिक एक्साइज ड्यूटी), और (ii) सेस और सरचार्ज। इनमें से केवल टैक्स से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सेस या सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता। वर्तमान में सरचार्ज के अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल पर वसूला जाने वाला सेस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस और सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेस होता है।
केंद्रीय बजट 2021-22 में पेट्रोल और डीजल पर कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस क्रमशः 2.5 रुपए प्रति लीटर और 4 रुपए प्रति लीटर घोषित किया गया था। हालांकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी और सरचार्ज को समान मात्रा में कम कर दिया गया था इसलिए इनकी दरें समान बनी रहीं। लेकिन इस प्रावधान से राज्यों के डिवाइजिबल टैक्स पूल से पेट्रोल का 1.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल से 3 रुपए प्रति लीटर का राजस्व, सेस और सरचार्ज राजस्व में पहुंच गया, जोकि पूरा का पूरा केंद्र का है। इसी तरह पिछले चार वर्षों के दौरान एक्साइज ड्यूटी में टैक्स का हिस्सा पेट्रोल पर 40% और डीजल पर 59% कम हुआ (देखें तालिका 2)। इस समय पेट्रोल (96%) और डीजल (94%) पर वसूली जाने वाली अधिकांश एक्साइज ड्यूटी सेस और सरचार्ज के रूप में है जिसके कारण यह पूरी तरह से केंद्र के हिस्से में जाती है (तालिका 2)।
तालिका 2: एक्साइज ड्यूटी का ब्रेकअप (रुपए प्रति लीटर)
एक्साइज ड्यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
||||||
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
|
टैक्स (राज्यों को हस्तांतरित) |
9.48 |
44% |
1.4 |
4% |
11.33 |
65% |
1.8 |
6% |
सेस और सरचार्ज (केंद्र) |
12 |
56% |
31.5 |
96% |
6 |
35% |
30 |
94% |
कुल |
21.48 |
100% |
32.9 |
100% |
17.33 |
100% |
31.8 |
100% |
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों के हस्तांतरण में पिछले चार वर्षों में गिरावट आई है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के बीच केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, इस अवधि के दौरान हस्तांतरित धनराशि 26,464 करोड़ रुपए से घटकर 19,578 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है।
अनुलग्नक
तालिका 3: भारत में राज्यों के टैक्स/वैट
राज्य/यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
सेल्स टैक्स/वैट |
||
अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह |
6% |
6% |
आंध्र प्रदेश |
31% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
22.25% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
अरुणाचल प्रदेश |
20% |
13% |
असम |
32.66% या 22.63 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट |
23.66% या 17.45 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट
|
बिहार |
26% या 16.65 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
19% या 12.33 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
चंडीगढ़ |
10 रुपए/केएल सेस+22.45% या 12.58 रुफए/लीटर जो भी अधिक हो |
10 रुपए/केएल सेस+14.02% या 7.63 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
छत्तीसगढ़ |
25% वैट+2 रुपए/लीटर वैट |
25% वैट+1 रुपए/लीटर वैट |
दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव |
20% वैट |
20% वैट |
दिल्ली |
30% वैट |
250 रुपए/केएल एयर एंबियंस चार्ज + 16.75% वैट |
गोवा |
27% गोवा + 0.5% ग्रीन सेस |
23% वैट+ 0.5% ग्रीन सेस |
गुजरात |
20.1% वैट+ 4% टाउन रेट पर सेस और वैट |
20.2% वैट+ 4 % टाउन रेट पर सेस और वैट |
हरियाणा |
25% वैट या 15.62 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
16.40% वैट या 10.08 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
हिमाचल प्रदेश |
25% या 15.50 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
14% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
जम्मू एवं कश्मीर |
24% एमएसटी+.5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1.50 रुपए/लीटर रोजगार सेस |
झारखंड |
बिक्री मूल्य पर 22% या 17.00 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
बिक्री मूल्य का 22% या 12.50 रुपए प्रति लीटर जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
कर्नाटक |
35% सेल्स टैक्स |
24% सेल्स टैक्स |
केरल |
30.08% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
22.76% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
लद्दाख |
24% एमएसटी+ 5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 2.5 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
लक्षद्वीप |
शून्य |
शून्य |
मध्य प्रदेश |
33 % वैट + 4.5 रुपए/लीटर वैट +1%सेस |
23% वैट+ 3 रुपए/लीटर वैट +1% सेस |
महाराष्ट्र- मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, अमरावती और औरंगाबाद |
26% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
24% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
महराष्ट्र (शेष राज्य) |
25% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
21% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
मणिपुर |
32% वैट |
18% वैट |
मेघालय |
20% या 15.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
12% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
मिजोरम |
25% वैट |
14.5% वैट |
नागालैंड |
25% वैट या 16.04 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो+ 5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
16.50% वैट या 10.51 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो +5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
ओड़िशा |
32% वैट |
28% वैट |
पुद्दूचेरी |
23% वैट |
17.75% वैट |
पंजाब |
2050 रुपए/केएल(सेस)+ 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+24.79% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
1050 रुपए/केएल(सेस) + 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+ 15.94% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
राजस्थान |
36% वैट+ 1500 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
26% वैट+ 1750 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
सिक्किम |
25.25% वैट+ 3000 रुपए/केएल सेस |
14.75% वैट + रुपए/केएल सेस |
तमिलनाडु |
13% + 11.52 रुपए प्रति लीटर |
11% + 9.62 रुपए प्रति लीटर |
तेलंगाना |
35.20% वैट |
27% वैट |
त्रिपुरा |
25% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
16.50% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
उत्तर प्रदेश |
26.80% या 18.74 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
उत्तराखंड |
25% या 19 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
पश्चिम बंगाल |
25% या 13.12 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |
17% या 7.70 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |