18 अक्टूबर को यह खबर आई कि केंद्र सरकार को नागरिकता (संशोधन) एक्ट, 2019 के तहत नियम बनाने के लिए और समय दिया गया है। दिसंबर 2019 में इस एक्ट को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी और जनवरी 2020 में यह कानून प्रभावी हुआ था। इसी तरह नई श्रम संहिताओं को संसद द्वारा पारित किए लगभग दो वर्ष बीत गए हैं और अंतिम नियमों को अब भी प्रकाशित किया जाना बाकी है। इससे सवाल उठता है कि सरकार नियम बनाने के लिए कितना समय ले सकती है और इसे निर्देशित करने वाली प्रक्रिया क्या है। इस ब्लॉग में हम इस पर चर्चा कर रहे हैं।

संविधान के तहत विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति होती है और कार्यपालिका उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार होती है। अक्सर विधायिका सामान्य सिद्धांत और नीतियों के साथ किसी कानून को लागू करती है और कार्यपालिका को यह अधिकार सौंपती है कि वह कानून को लागू करने के कुछ विवरणों को निर्दिष्ट करे। उदाहरण के लिए नागरिकता संशोधन एक्ट यह प्रावधान करता है कि कौन नागरिकता के लिए पात्र होगा। किसी व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन या नैचुरलाइजेशन का सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा, जोकि उन शर्तों, सीमाओं और तरीकों के अधीन होगा, जिन्हें केंद्र सरकार नियमों के जरिए निर्दिष्ट कर सकती है। नियम बनाने में देर करने से, कानून को लागू करने में देरी होगी, चूंकि जरूरी विवरण उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण के लिए नई श्रम संहिताएं गिग अर्थव्यवस्था के वर्कर्स जैसे स्विगी और जोमैटो डिलिवरी पर्सन्स और ऊबर और ओला ड्राइवर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना प्रदान करती हैं। इन संहिताओं के ये लाभ अब भी मिलने बाकी हैं, चूंकि नियम अभी अधिसूचित नहीं किए गए हैं।  

अनुपालन के लिए समय सीमा और नियंत्रण एवं संतुलन

संसद के प्रत्येक सदन में सदस्यों की एक समिति होती है जोकि नियमों, रेगुलेशंस और सरकारी आदेशों की विस्तार से समीक्षा करती है। इस समिति को अधीनस्थ विधान संबंधी समिति कहते हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन समितियों के सुझावों ने अधीनस्थ विधानों को तैयार करने की प्रक्रिया और समय सीमाओं को विकसित किया है। यह संसदीय मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी संसदीय प्रक्रिया की नियम पुस्तिका में प्रदर्शित है। यह नियम पुस्तिका इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करती है। 

सामान्य तौर पर जिस तारीख को कोई कानून लागू होता है, उस तारीख से छह महीने के भीतर नियम, रेगुलेशंस और उप कानूनों को तैयार किया जाना चाहिए। उसके बाद संबंधित मंत्रालय को अधीनस्थ विधान संबंधी संसदीय समितियों से समय बढ़ाने की मांग करनी होती है। एक बार में अधिकतम तीन महीने का समय और मिल सकता है। उदाहरण के लिए, इससे पहले नागरिकता संशोधन एक्ट, 2019 के तहत नियम बनाने के लिए अतिरिक्त समय तब दिया गया था, जब कोविड-19 महामारी शुरू हो गई थी।

गतिविधि

समय सीमा

  • नियमों, रेगुलेशंस और उप कानूनों का प्रकाशन, जहां एक्ट के तहत सार्वजनिक परामर्श जरूरी है
  • सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिए न्यूनतम 30 दिन
  • परिणामस्वरूप, प्रकाशन के लिए,
  • तीन महीने, अगर सुझावों की संख्या कम है
  • छह महीने, अगर सुझावों की संख्या अधिक है
  • नियमों, रेगुलेशंस और उप कानूनों का प्रकाशन, जहां एक्ट के तहत सार्वजनिक परामर्श जरूरी नहीं है
  • संबंधित एक्ट के प्रभावी होने की तारीख से छह महीने
  • प्रकाशन के लिए समय सीमा को बढ़ाना
  • एक बार में अधिकतम तीन महीने

निगरानी सुनिश्चित करने के लिए हर मंत्रालय को त्रैमासिक आधार पर उन अधीनस्थ विधानों की रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जो बनाए नहीं गए और उन्हें कानून एवं न्याय मंत्रालय के साथ साझा करना होता है। ये रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं।

विलंब को दूर करने के लिए सुझाव

पिछले कुछ वर्षों के दौरान सदन के दोनों सदनों की अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों ने गौर किया है कि कई मंत्रालयों ने उपरिलिखित समय सीमाओं का कई बार पालन नहीं किया। इस संबंध में उन्होंने कई मुख्य सुझाव दिए: 

  • विलंब के कारणों पर वक्तव्य: 2011 में राज्यसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि संसद के सामने नियम/रेगुलेशंस पेश करते समय, मंत्रालय को विलंब, अगर हुआ है, के कारण बताने वाला वक्तव्य भी पेश करना चाहिए।
  • कैबिनेट सचिव द्वारा विलंब की जांच: 2016 में राज्यसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि कैबिनेट सचिव को संबंधित मंत्रालयों/विभागों के सचिवों को बुलाने और उनसे अधीनस्थ विधान बनाने में देरी के कारण पूछने की परंपरा को जारी रखना चाहिए। प्रत्येक मंत्रालय को कैबिनेट सचिवालय को त्रैमासिक स्टेटस रिपोर्ट भेजनी चाहिए।
  • दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार2011 में लोकसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि 1986 के दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और समिति के सभी प्रमुख सुझावों को उनमें शामिल करना चाहिए। हालांकि ऐक्शन टेकेन रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कहा था कि मंत्रालयों को समय बढ़ाने वाले दिशानिर्देश पर्याप्त लगते हैं और 2012 में इन दिशानिर्देशों को फिर से दोहराया गया।

क्या एक्ट के तहत सभी नियमों को बनाने की जरूरत होती है?

आम तौर पर एक्ट में ये अभिव्यक्तियां इस्तेमाल की जाती हैं, “केंद्र सरकार, अधिसूचना के जरिए, इस एक्ट के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बना सकती है या “जैसा कि निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार यह महसूस हो सकता है कि कानून का उद्देश्य शासन आदेश देने की बजाय नियम बनाने के लिए सक्षम करना है। हालांकि एक्ट के कुछ प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि अपेक्षित विवरण नियमों के तहत निर्दिष्ट न किए जाएं। इसी के कारण संबंधित नियमों के प्रकाशन के बाद ही कानून को लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) एक्ट, 2022 पुलिस और कुछ अन्य लोगों को सक्षम बनाता है कि वे कुछ लोगों की पहचान से संबंधित सूचनाओ को जमा करें। यह प्रावधान करता है कि ऐसी सूचना को जमा करने के तरीके को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है। जब तक वह तरीका निर्दिष्ट नहीं किया जाएगा, सूचना जमा नहीं की जा सकती।

इसके बावजूद नियम बनाने की कुछ अन्य शक्तियों की प्रकृति एनेबलिंग यानी वैकल्पिक, और संबंधित मंत्रालय के विवेक पर आधारित हो सकती हैं। 2016 में राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समिति ने ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 के तहत बनाए जाने वाले नियमों और रेगुलेशंस की स्थिति की समीक्षा की थी। उसने कहा था कि ऊर्जा मंत्रालय ने कहा था कि एक्ट के तहत दो नियम और तीन रेगुलेशंस जरूरी नहीं थे। कानून एवं न्याय मंत्रालय का मत था कि जो जरूरी नहीं समझे गए, वे अप्रत्याशित परिस्थितियों के मद्देनजनर एनेबलिंग यानी वैकल्पिक प्रावधान थे। राज्यसभा की समिति (2016) का कहना था कि जब मंत्रालय को अधीनस्थ विधान बनाने की जरूरत महसूस न हो, तो मंत्री को संसद में अपना वक्तव्य देना चाहिए जिसमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के कारण दिए गए हों।

अधीनस्थ विधान से संबंधित मुख्य मुद्दे

विधायिका अधीनस्थ कानून बनाने की शक्तियों के जरिए कार्यपालिका को यह अधिकार देती है कि वह कानून के कार्यान्वयन के विवरणों को निर्दिष्ट करे। इसलिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है कि उनकी अच्छी तरह से जांच की जाए जिससे वे कानून में परिकल्पित सीमाओं के भीतर हों।

  • अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों की क्षमताअधीनस्थ विधान संबंधी संसदीय समितियों की जिम्मेदारी है कि वे विस्तार से नियमों की समीक्षा करें। इससे पहले इन समितियों ने -कॉमर्स, इंटरनेट आधारित सेवाओं के दायित्वों और विमुद्रीकरण से संबंधित कई मुख्य नियमों, रेगुलेशंस औऱ अधिसूचनाओं की समीक्षा की है। हालांकि, आम तौर पर वे सिर्फ कुछ ही अधीनस्थ विधानों की विस्तार से समीक्षा कर पाईं। अधिक विवरण के लिए पीआरएस के डिस्कशन पेपर को यहां पढ़ें।
  • मानकों की एकरूपतायूकेयूएसएऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में अधीनस्थ विधानों की संरचना को रेगुलेट करने वाला व्यापक कानून है। ये कानून सार्वजनिक परामर्श के तरीके, समय सीमा, ड्राफ्टिंग के मानकों और एक कॉमन रजिस्टर का प्रावधान करते हैं। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है। भारत में यह विवरण कि अधीनस्थ विधान के लिए किसी सार्वजनिक परामर्श की जरूरत है या नहीं, संबंधित कानूनों में निर्दिष्ट होता है। सामान्य खंड एक्ट, 1897 भी अधीनस्थ विधान बनाने से संबंधित पहलुओं का प्रावधान करता है। इसके अतिरिक्त पूर्व विधान परामर्श नीति, 2014 अधीनस्थ विधानों पर पूर्व विधायी परामर्श के लिए दिशानिर्देश प्रदान करती है।

यहां आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) नियम, 2022 पर हमारे विश्लेषण को पढ़ें। इसे सितंबर 2022 में अधिसूचित किया गया था। इसके अतिरिक्त पीआरएस के निम्नलिखित विश्लेषणों को भी पढ़ें:

पिछले हफ्ते पावर फाइनांस कॉरपोरेशन ने कहा कि 2022-23 में देश में राज्यों के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों को 68,832 करोड़ रुपए का वित्तीय घाटा हुआ। यह 2021-22 में हुए घाटे के चार गुना से अधिक है और उत्तराखंड जैसे राज्य के वार्षिक बजट के लगभग बराबर है। इस ब्लॉग में इस नुकसान के कुछ कारणों और उनके असर की समीक्षा की गई है।

वित्तीय घाटे पर एक नजर

कई वर्षों से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स), जोकि अधिकतर राज्यों के स्वामित्व वाली हैं, ने जबरदस्त वित्तीय घाटा दर्ज किया है। 2017-18 और 2022-23 के बीच यह घाटा तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया। लेकिन 2021-22 में डिस्कॉम के घाटे में काफी कमी आई, जब मुख्य रूप से राज्यों ने लंबित बकाया चुकाने के लिए सबसिडी के तौर पर 1.54 लाख रुपए जारी किए। राज्य सरकारें डिस्कॉम्स को सबसिडी देती हैं ताकि घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सके। लेकिन यह भुगतान देर से किया जाता है, जिससे नकदी के प्रवाह में रुकावट आती है और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा 2021-22 से डिस्कॉम्स की लागत में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स
; पीआरएस।

2022-23 तक घाटा फिर से बढ़कर 68,832 करोड़ रुपए हो गया। यह बढ़ोतरी, लागत में बढ़ोतरी के कारण हुई है। प्रति युनिट स्तर पर एक किलोवाट बिजली की सप्लाई की लागत 2021-22 में 7.6 रुपए से बढ़कर 2022-23 में 8.6 रुपए हो गई (तालिका 1 देखें)।

तालिका 1: राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों का वित्तीय विवरण

विवरण

2019-20

2020-21

2021-22

2022-23

बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस)

7.4

7.7

7.6

8.6

प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर)

6.8

7.1

7.3

7.8

प्रति युनिट घाटा (एसीएस-एआरआर)

0.6

0.6

0.3

0.7

कुल घाटा (करोड़ रुपए में)

-60,231

-76,899

-16,579

-68,832

नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स
; पीआरएस।

उत्पादन कंपनियों (जेनको) से बिजली की खरीद डिस्कॉम्स की कुल लागत का लगभग 70% है और कोयला बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत है। 2022-23 में निम्नलिखित घटनाएं हुईं: (i) बिजली की उपभोक्ता मांग पिछले वर्ष की तुलना में 10% बढ़ी, जबकि पिछले 10 वर्षों में साल-दर-साल 6% की वृद्धि हुई थी, (ii) बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला आयात करना पड़ा, और (iii) विश्व स्तर पर कोयले की कीमतें बढ़ गईं।

बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए बढ़ी हुई कीमतों पर कोयला आयात किया गया

2021-22 की तुलना में 2022-23 में बिजली की मांग 10% बढ़ गई। इससे पहले 2008-09 और 2018-19 के बीच  6% की वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के हिसाब से मांग बढ़ी थी। अर्थव्यवस्था के बढ़ने (7% की दर से) के साथ बिजली की मांग बढ़ी जिसमें घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं का हिस्सा सबसे ज्यादा था। बिजली की कुल बिक्री में इन उपभोक्ता श्रेणियों का हिस्सा 54% है और उनकी मांग में 7% की वृद्धि हुई है।

स्रोत: केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग; पीआरएस।

बिजली का बड़े पैमाने पर भंडारण नहीं किया जा सकता, जिसका मतलब यह है कि अनुमानित मांग के आधार पर उत्पादन किया जाना चाहिए। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण प्रत्येक वर्ष के लिए वार्षिक मांग का अनुमान लगाता है। अनुमान है कि 2022-23 में मांग 1,505 बिलियन युनिट्स होगी। हालांकि 2022-23 के पहले कुछ महीनों में वास्तविक मांग अनुमान से अधिक थी (रेखाचित्र 3 देखें)।

इस मांग को पूरा करने के लिए बिजली उत्पादन बढ़ाना पड़ा। 2021-22 में उच्च मांग के कारण कोयले का स्टॉक पहले ही जून 2021 में 29 मिलियन टन से घटकर सितंबर 2021 में आठ मिलियन टन हो गया था बिना रुकावट बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, बिजली मंत्रालय ने उत्पादन कंपनियों को कोयला आयात करने का निर्देश दिया। मंत्रालय ने कहा कि आयात के बिना बड़े स्तर पर व्यापक बिजली कटौती और ब्लैकआउट हो जाता।

 

स्रोत: लोड जेनरेशन बैलेंस रिपोर्ट 2022 और 2023, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण; पीआरएस।

2022-23 में कोयले का आयात लगभग 27 मिलियन टन बढ़ गया। हालांकि क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले कुल कोयले का यह केवल 5% था, लेकिन जिस कीमत पर इसका आयात किया गया था, उसके कारण इस क्षेत्र पर काफी असर हुआ। 2021-22 में भारत ने औसतन 8,300 रुपए प्रति टन की कीमत पर कोयला आयात किया। 2022-23 में यह बढ़कर 12,500 रुपए प्रति टन हो गया, जो 51% की वृद्धि है। कोयला मुख्य रूप से इंडोनेशिया से आयात किया जाता था, और रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत और चीन जैसे देशों की बढ़ती मांग के कारण कीमतों में इजाफा हो गया।

स्रोत: ऊर्जा मंत्रालय; सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।

कोयला आयात की स्थिति बनी रहेगी

जनवरी 2023 में ऊर्जा मंत्रालय ने सितंबर 2023 तक पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करने के लिए बिजली कंपनियों को आवश्यक कोयले का 6% आयात करने की सलाह दी। उसने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ और अस्थिर वर्षा के कारण जल विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 14% कम हो गई है। इससे 2023-24 में कोयला आधारित तापीय उत्पादन पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसके बाद अक्टूबर 2023 में मंत्रालय ने सभी उत्पादन कंपनियों को मार्च 2024 तक कम से कम 6% आयातित कोयले का उपयोग जारी रखने का निर्देश दिया।

स्रोत: कोयला मंत्रालय; पीआरएस।

बिजली क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दे और राज्य के वित्त पर इसका प्रभाव

कुछ संरचनात्मक मुद्दों के कारण डिस्कॉम को लगातार वित्तीय घाटा हो रहा है। उत्पादन कंपनियों (जेनकोस) के साथ पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स के कारण उनकी लागत आम तौर पर अधिक होती है। इन कॉन्ट्रैक्ट्स में बिजली खरीद की लागत अपरिवर्तनीय रहती है, जबकि उत्पादन क्षमता बेहतर होती जाती है। शुल्क को हर कुछ वर्षों में संशोधित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि उपभोक्ताओं को सप्लाई चेन के झटकों से बचाया जा सके। इसका नतीजा यह होता है कि लागत को कुछ वर्षों के लिए कैरी फॉरवर्ड किया जाता है। इसके अलावा डिस्कॉम कुछ उपभोक्ताओं जैसे कृषि और आवासीय उपभोक्ताओं को लागत से कम कीमत पर बिजली बेचते हैं। इसे मुख्य रूप से राज्य सरकारों के सबसिडी अनुदान के जरिए वसूल किया जाना चाहिए। हालांकि राज्य अक्सर सबसिडी भुगतान में देरी करते हैं जिससे नकदी प्रवाह में समस्याएं आती हैं और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा बेची गई बिजली से शुल्क की वसूली उतनी नहीं होती, जितनी होनी चाहिए।

उत्पादन क्षेत्र में दर्ज घाटे में भी वृद्धि हुई है। 2022-23 में राज्य के स्वामित्व वाली उत्पादन कंपनियों ने 7,175 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया, जबकि 2021-22 में यह घाटा 4,245 करोड़ रुपए था। इनमें से 87% यानी 6,278 करोड़ रुपए घाटा, सिर्फ राजस्थान का था। उल्लेखनीय है कि विलंबित भुगतान अधिभार नियम, 2022 के तहत वितरण कंपनियों को उत्पादन कंपनियों को अग्रिम भुगतान करना होता है।

राज्यों के वित्त को खतरा

लगातार वित्तीय घाटा, उच्च ऋण और राज्यों की गारंटियां, राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम बने हुए हैं। ये राज्य सरकारों के लिए आकस्मिक देनदारियां हैं, यानी, अगर कोई डिस्कॉम अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ है, तो राज्य को उसका वहन करना होगा।

डिस्कॉम को संकट से उबारने के लिए पहले भी ऐसी कई योजनाएं शुरू की गई हैं (तालिका 2 देखें)। 2022-23 तक, डिस्कॉम पर 6.61 लाख करोड़ रुपए का बकाया कर्ज है, जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 2.4% है। तमिलनाडु (जीएसडीपी का 6%), राजस्थान (जीएसडीपी का 6%), और उत्तर प्रदेश (जीएसडीपी का 3%) जैसे राज्यों में ऋण काफी अधिक है। पिछले वित्त आयोगों ने माना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति के जोखिम को कम करने के लिए डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना महत्वपूर्ण है    

तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों में वितरण क्षेत्र में बदलाव के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएं

वर्ष

योजना

विवरण

2002

बेलआउट पैकेज

राज्यों ने राज्य बिजली बोर्डों का 35,000 करोड़ रुपए का कर्ज वहन किया, राज्य बिजली बोर्डों द्वारा पीएसयू को देय ब्याज में 50% की छूट

2012

फाइनांशियल रीस्ट्रक्चरिंग पैकेज

राज्यों ने 56,908 करोड़ रुपए की बकाया अल्पकालिक देनदारियों का 50% हिस्सा वहन किया

2015

उज्ज्वल डिस्कॉम अश्योरेंस योजना (उदय)

राज्य डिस्कॉम के 2.3 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का 75% हिस्सा वहन किया, और भविष्य में किसी भी नुकसान के लिए अनुदान देने पर भी सहमति जताई

2020

लिक्विडिटी इंफ्यूजन स्कीम

उत्पादकों का बकाया चुकाने के लिए डिस्कॉम को पावर फाइनांस कॉरपोरेशन और आरईसी लिमिटेड से 1.35 लाख करोड़ रुपए का ऋण मिला, राज्य सरकारों ने गारंटी दी

2022

रीवैम्प्ड डिस्ट्रिब्यूशन सेक्टर स्कीम

केंद्र सरकार सप्लाई इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 97,631 करोड़ रुपए की परिणाम-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान करेगी

स्रोत: नीति आयोग, ऊर्जा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियां; पीआरएस।

राज्यों की वित्तीय स्थिति पर डिस्कॉम्स के वित्त के प्रभाव के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां देखें। बिजली वितरण क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दों पर अधिक जानकारी के लिए यहां देखें।

 

अनुलग्नक

तालिका 3: बिजली की बिक्री के आधार पर डिस्कॉम की लागत और राजस्व संरचना (रुपए प्रति किलोवाट में)

विवरण

2019-20

2020-21

2021-22

2022-23

बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस)

7.4

7.7

7.6

8.6

    जिसमें

       

    बिजली खरीद की लागत

5.8

5.9

5.8

6.6

प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर)

6.8

7.1

7.3

7.8

    जिसमें

       

    बिजली की बिक्री से राजस्व

5.0

4.9

5.1

5.5

    शुल्क सबसिडी

1.3

1.4

1.4

1.5

    रेगुलेटरी आय और उदय के तहत राजस्व अनुदान

0.3

0.1

0.0

0.2

प्रति युनिट घाटा

0.6

0.6

0.3

0.7

कुल वित्तीय घाटा

-60,231

-76,899

-16,579

-68,832

स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।

तालिका 4: राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों के लाभ/हानि (करोड़ रुपए में)

राज्य/यूटी

2017-18

2018-19

2019-20

2020-21

2021-22

2022-23

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह

-605

-645

-678

-757

-86

-76

आंध्र प्रदेश

-546

-16,831

1,103

-6,894

-2,595

1,211

अरुणाचल प्रदेश

-429

-420

NA

NA

NA

NA

असम

-259

311

1,141

-107

357

-800

बिहार

-1,872

-1,845

-2,913

-2,966

-2,546

-10

चंडीगढ़

321

131

59

79

-101

NA

छत्तीसगढ़

-739

-814

-571

-713

-807

-1,015

दादरा नगर हवेली और दमन-दीव

312

-149

-125

NA

NA

NA

दिल्ली

NA

NA

NA

98

57

-141

गोवा

26

-121

-276

78

117

69

गुजरात

426

184

314

429

371

147

हरियाणा

412

281

331

637

849

975

हिमाचल प्रदेश

-44

132

43

-153

-141

-1,340

झारखंड

-212

-730

-1,111

-2,556

-1,721

-3,545

कर्नाटक

-2,439

-4,889

-2,501

-5,382

4,719

-2,414

केरल

-784

-135

-270

-483

98

-1,022

लद्दाख

NA

NA

NA

NA

-11

-57

लक्षद्वीप

-98

-120

-115

-117

NA

NA

मध्य प्रदेश

-5,802

-9,713

-5,034

-9,884

-2,354

1,842

महाराष्ट्र

-3,927

2,549

-5,011

-7,129

-1,147

-19,846

मणिपुर

-8

-42

-15

-15

-22

-146

मेघालय

-287

-202

-443

-101

-157

-193

मिजोरम

87

-260

-291

-115

-59

-158

नगालैंड

-62

-94

-477

-17

24

33

पुद्दूचेरी

5

-39

-306

-23

84

-131

पंजाब

-2,760

363

-975

49

1,680

-1,375

राजस्थान

-11,314

-12,524

-12,277

-5,994

2,374

-2,024

सिक्किम

-29

-3

-179

-34

NA

71

तमिलनाडु

-12,541

-17,186

-16,528

-13,066

-9,130

-9,192

तेलंगाना

-6,697

-9,525

-6,966

-6,686

-831

-11,103

त्रिपुरा

28

38

-104

-4

-127

-193

उत्तर प्रदेश

-5,269

-5,902

-3,866

-10,660

-6,498

-15,512

उत्तराखंड

-229

-808

-323

-152

-21

-1,224

पश्चिम बंगाल

-871

-1,171

-1,867

-4,261

1,045

-1,663

राज्य क्षेत्र

-56,206

-80,179

-60,231

-76,899

-16,579

-68,832

दादरा नगर हवेली और दमन-दीव

NA

NA

NA 

242

148

104

दिल्ली

109

657

-975

1,876

521

-76

गुजरात

574

307

612

655

522

627

ओड़िशा

NA

NA

-842

-853

940

746

महाराष्ट्र

NA

590

1,696

-375

360

42

उत्तर प्रदेश

182

126

172

333

256

212

पश्चिम बंगाल

658

377

379

398

66

-12

निजी क्षेत्र

1,523

2,057

1,042

2,276

2,813

1,643

भारत

-54,683

-78,122

-59,189

-77,896

 -13,766

 -67,189

नोट: माइनस का चिह्न (-) हानि दर्शाता है; दादरा नगर हवेली और दमन-दीव डिस्कॉम का 1 अप्रैल, 2022 को निजीकरण किया गया था; नई दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से जोड़ा गया है। स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस