18 अक्टूबर को यह खबर आई कि केंद्र सरकार को नागरिकता (संशोधन) एक्ट, 2019 के तहत नियम बनाने के लिए और समय दिया गया है। दिसंबर 2019 में इस एक्ट को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी और जनवरी 2020 में यह कानून प्रभावी हुआ था। इसी तरह नई श्रम संहिताओं को संसद द्वारा पारित किए लगभग दो वर्ष बीत गए हैं और अंतिम नियमों को अब भी प्रकाशित किया जाना बाकी है। इससे सवाल उठता है कि सरकार नियम बनाने के लिए कितना समय ले सकती है और इसे निर्देशित करने वाली प्रक्रिया क्या है। इस ब्लॉग में हम इस पर चर्चा कर रहे हैं।

संविधान के तहत विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति होती है और कार्यपालिका उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार होती है। अक्सर विधायिका सामान्य सिद्धांत और नीतियों के साथ किसी कानून को लागू करती है और कार्यपालिका को यह अधिकार सौंपती है कि वह कानून को लागू करने के कुछ विवरणों को निर्दिष्ट करे। उदाहरण के लिए नागरिकता संशोधन एक्ट यह प्रावधान करता है कि कौन नागरिकता के लिए पात्र होगा। किसी व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन या नैचुरलाइजेशन का सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा, जोकि उन शर्तों, सीमाओं और तरीकों के अधीन होगा, जिन्हें केंद्र सरकार नियमों के जरिए निर्दिष्ट कर सकती है। नियम बनाने में देर करने से, कानून को लागू करने में देरी होगी, चूंकि जरूरी विवरण उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण के लिए नई श्रम संहिताएं गिग अर्थव्यवस्था के वर्कर्स जैसे स्विगी और जोमैटो डिलिवरी पर्सन्स और ऊबर और ओला ड्राइवर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना प्रदान करती हैं। इन संहिताओं के ये लाभ अब भी मिलने बाकी हैं, चूंकि नियम अभी अधिसूचित नहीं किए गए हैं।  

अनुपालन के लिए समय सीमा और नियंत्रण एवं संतुलन

संसद के प्रत्येक सदन में सदस्यों की एक समिति होती है जोकि नियमों, रेगुलेशंस और सरकारी आदेशों की विस्तार से समीक्षा करती है। इस समिति को अधीनस्थ विधान संबंधी समिति कहते हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन समितियों के सुझावों ने अधीनस्थ विधानों को तैयार करने की प्रक्रिया और समय सीमाओं को विकसित किया है। यह संसदीय मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी संसदीय प्रक्रिया की नियम पुस्तिका में प्रदर्शित है। यह नियम पुस्तिका इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करती है। 

सामान्य तौर पर जिस तारीख को कोई कानून लागू होता है, उस तारीख से छह महीने के भीतर नियम, रेगुलेशंस और उप कानूनों को तैयार किया जाना चाहिए। उसके बाद संबंधित मंत्रालय को अधीनस्थ विधान संबंधी संसदीय समितियों से समय बढ़ाने की मांग करनी होती है। एक बार में अधिकतम तीन महीने का समय और मिल सकता है। उदाहरण के लिए, इससे पहले नागरिकता संशोधन एक्ट, 2019 के तहत नियम बनाने के लिए अतिरिक्त समय तब दिया गया था, जब कोविड-19 महामारी शुरू हो गई थी।

गतिविधि

समय सीमा

  • नियमों, रेगुलेशंस और उप कानूनों का प्रकाशन, जहां एक्ट के तहत सार्वजनिक परामर्श जरूरी है
  • सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिए न्यूनतम 30 दिन
  • परिणामस्वरूप, प्रकाशन के लिए,
  • तीन महीने, अगर सुझावों की संख्या कम है
  • छह महीने, अगर सुझावों की संख्या अधिक है
  • नियमों, रेगुलेशंस और उप कानूनों का प्रकाशन, जहां एक्ट के तहत सार्वजनिक परामर्श जरूरी नहीं है
  • संबंधित एक्ट के प्रभावी होने की तारीख से छह महीने
  • प्रकाशन के लिए समय सीमा को बढ़ाना
  • एक बार में अधिकतम तीन महीने

निगरानी सुनिश्चित करने के लिए हर मंत्रालय को त्रैमासिक आधार पर उन अधीनस्थ विधानों की रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जो बनाए नहीं गए और उन्हें कानून एवं न्याय मंत्रालय के साथ साझा करना होता है। ये रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं।

विलंब को दूर करने के लिए सुझाव

पिछले कुछ वर्षों के दौरान सदन के दोनों सदनों की अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों ने गौर किया है कि कई मंत्रालयों ने उपरिलिखित समय सीमाओं का कई बार पालन नहीं किया। इस संबंध में उन्होंने कई मुख्य सुझाव दिए: 

  • विलंब के कारणों पर वक्तव्य: 2011 में राज्यसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि संसद के सामने नियम/रेगुलेशंस पेश करते समय, मंत्रालय को विलंब, अगर हुआ है, के कारण बताने वाला वक्तव्य भी पेश करना चाहिए।
  • कैबिनेट सचिव द्वारा विलंब की जांच: 2016 में राज्यसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि कैबिनेट सचिव को संबंधित मंत्रालयों/विभागों के सचिवों को बुलाने और उनसे अधीनस्थ विधान बनाने में देरी के कारण पूछने की परंपरा को जारी रखना चाहिए। प्रत्येक मंत्रालय को कैबिनेट सचिवालय को त्रैमासिक स्टेटस रिपोर्ट भेजनी चाहिए।
  • दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार2011 में लोकसभा की समिति ने सुझाव दिया था कि 1986 के दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और समिति के सभी प्रमुख सुझावों को उनमें शामिल करना चाहिए। हालांकि ऐक्शन टेकेन रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कहा था कि मंत्रालयों को समय बढ़ाने वाले दिशानिर्देश पर्याप्त लगते हैं और 2012 में इन दिशानिर्देशों को फिर से दोहराया गया।

क्या एक्ट के तहत सभी नियमों को बनाने की जरूरत होती है?

आम तौर पर एक्ट में ये अभिव्यक्तियां इस्तेमाल की जाती हैं, “केंद्र सरकार, अधिसूचना के जरिए, इस एक्ट के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बना सकती है या “जैसा कि निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार यह महसूस हो सकता है कि कानून का उद्देश्य शासन आदेश देने की बजाय नियम बनाने के लिए सक्षम करना है। हालांकि एक्ट के कुछ प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि अपेक्षित विवरण नियमों के तहत निर्दिष्ट न किए जाएं। इसी के कारण संबंधित नियमों के प्रकाशन के बाद ही कानून को लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) एक्ट, 2022 पुलिस और कुछ अन्य लोगों को सक्षम बनाता है कि वे कुछ लोगों की पहचान से संबंधित सूचनाओ को जमा करें। यह प्रावधान करता है कि ऐसी सूचना को जमा करने के तरीके को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है। जब तक वह तरीका निर्दिष्ट नहीं किया जाएगा, सूचना जमा नहीं की जा सकती।

इसके बावजूद नियम बनाने की कुछ अन्य शक्तियों की प्रकृति एनेबलिंग यानी वैकल्पिक, और संबंधित मंत्रालय के विवेक पर आधारित हो सकती हैं। 2016 में राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समिति ने ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 के तहत बनाए जाने वाले नियमों और रेगुलेशंस की स्थिति की समीक्षा की थी। उसने कहा था कि ऊर्जा मंत्रालय ने कहा था कि एक्ट के तहत दो नियम और तीन रेगुलेशंस जरूरी नहीं थे। कानून एवं न्याय मंत्रालय का मत था कि जो जरूरी नहीं समझे गए, वे अप्रत्याशित परिस्थितियों के मद्देनजनर एनेबलिंग यानी वैकल्पिक प्रावधान थे। राज्यसभा की समिति (2016) का कहना था कि जब मंत्रालय को अधीनस्थ विधान बनाने की जरूरत महसूस न हो, तो मंत्री को संसद में अपना वक्तव्य देना चाहिए जिसमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के कारण दिए गए हों।

अधीनस्थ विधान से संबंधित मुख्य मुद्दे

विधायिका अधीनस्थ कानून बनाने की शक्तियों के जरिए कार्यपालिका को यह अधिकार देती है कि वह कानून के कार्यान्वयन के विवरणों को निर्दिष्ट करे। इसलिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है कि उनकी अच्छी तरह से जांच की जाए जिससे वे कानून में परिकल्पित सीमाओं के भीतर हों।

  • अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों की क्षमताअधीनस्थ विधान संबंधी संसदीय समितियों की जिम्मेदारी है कि वे विस्तार से नियमों की समीक्षा करें। इससे पहले इन समितियों ने -कॉमर्स, इंटरनेट आधारित सेवाओं के दायित्वों और विमुद्रीकरण से संबंधित कई मुख्य नियमों, रेगुलेशंस औऱ अधिसूचनाओं की समीक्षा की है। हालांकि, आम तौर पर वे सिर्फ कुछ ही अधीनस्थ विधानों की विस्तार से समीक्षा कर पाईं। अधिक विवरण के लिए पीआरएस के डिस्कशन पेपर को यहां पढ़ें।
  • मानकों की एकरूपतायूकेयूएसएऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में अधीनस्थ विधानों की संरचना को रेगुलेट करने वाला व्यापक कानून है। ये कानून सार्वजनिक परामर्श के तरीके, समय सीमा, ड्राफ्टिंग के मानकों और एक कॉमन रजिस्टर का प्रावधान करते हैं। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है। भारत में यह विवरण कि अधीनस्थ विधान के लिए किसी सार्वजनिक परामर्श की जरूरत है या नहीं, संबंधित कानूनों में निर्दिष्ट होता है। सामान्य खंड एक्ट, 1897 भी अधीनस्थ विधान बनाने से संबंधित पहलुओं का प्रावधान करता है। इसके अतिरिक्त पूर्व विधान परामर्श नीति, 2014 अधीनस्थ विधानों पर पूर्व विधायी परामर्श के लिए दिशानिर्देश प्रदान करती है।

यहां आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) नियम, 2022 पर हमारे विश्लेषण को पढ़ें। इसे सितंबर 2022 में अधिसूचित किया गया था। इसके अतिरिक्त पीआरएस के निम्नलिखित विश्लेषणों को भी पढ़ें:

14 मार्च, 2022 को राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के कामकाज पर चर्चा की। चर्चा के दौरान बजटीय आबंटन, योजनाओं के कार्यान्वयन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया गया। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित विकास योजनाओं और प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने, उनके कार्यान्वयन और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मंत्रालय के लिए 2022-23 के बजटीय आबंटनों का विश्लेषण करेंगे और उससे संबंधित विषयों पर विचार करेंगे।

इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पीएम-डिवाइन नामक नई योजना की घोषणा

2022-23 में मंत्रालय के आबंटन में 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5की वृद्धि हुई है। मंत्रालय को 2,800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसे पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना और पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। तालिका 1 में मंत्रालय के बजटीय आबंटन का क्षेत्रवार ब्रेकअप दिया गया है।   

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर विकास पहल (पीएम-डिवाइन) नाम की एक नई योजना की घोषणा की थी। इसे पूर्वोत्तर परिषद (पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी) द्वारा लागू किया जाएगा। पीएम-डिवाइन सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करेगी। यह योजना मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र या केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं का स्थान नहीं लेगी, या उन्हें समाहित नहीं करेगी। योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का शुरुआती आबंटन किया जाएगा। 

तालिका 1पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के आबंटन का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में) 

 

प्रमुख मद

2020-21

वास्तविक

2021-22

बअ

2021-22

संअ

2022-23

बअ

2021-22 संअ से 2022-23 बअ से परिवर्तन का %

पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना

446

675

674

1,419

111%

पूर्वोत्तर परिषद की योजनाएं

567

585

585

702

20%

पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना

416

696

674

496

-26%

पूर्वोत्तर एवं सिक्किम के लिए संसाधनों का केंद्रीय पूल

342

581

581

-

-

अन्य

270

322

344

241

-30%

कुल

1,854

2,658

2,658

2,800

5%

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नोट: बअ– बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; पूर्वोत्तर परिषद की योजनाओं में विशेष विकास परियोजनाएं शामिल हैं।
स्रोत: 2022-23 के केंद्रीय बजट दस्तावेजों की मांग संख्या 23पीआरएस। 

पूंजीगत परिव्यय के लिए मांग से कम आबंटन

गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि मंत्रालय ने जितनी मांग (794 करोड़ रुपए) की थी, उसके मुकाबले 2022-23 के बजट चरण में आबंटित राशि (660 करोड़ रुपए) 17% कम है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिसके जरिए स्कूल, अस्पतालों, सड़क एवं पुलों जैसी परिसंपत्तियों का सृजन होता है। कमिटी ने गौर किया कि इससे उन परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन पर गंभीर असर हो सकता है जिनके लिए पूंजीगत परिव्यय की जरूरत होती है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस विषय में वित्त मंत्रालय से बात करनी चाहिए और वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित चरण में अतिरिक्त सहायता की मांग करनी चाहिए।  

पिछले कुछ वर्षों में धनराशि की पूरा उपयोग नहीं किया गया

2011-12 (2016-17 को छोड़कर) के बाद से मंत्रालय बजटीय चरण में आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं कर पाया है (रेखाचित्र 1)। उदाहरण के लिए 2020-21 में पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के मामले में धनराशि का 52% उपयोग किया गया, जबकि पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (जलापूर्ति, बिजली, कनेक्टिविटी, सोशल इंफ्रास्ट्रक्टर से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स) के अंतर्गत केवल 34धनराशि का उपयोग किया गया। मंत्रालय ने धनराशि के उपयोग न हो पाने के कई कारण बताए इनमें परियोजनाओं के प्रस्ताव देर से प्राप्त होना और राज्य सरकारों की तरफ से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स प्राप्त न होना शामिल है।

रेखाचित्र 12011-12 के बाद मंत्रालय द्वारा धनराशि का पूरा उपयोग न करना

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 नोटसंशोधित अनुमान का उपयोग 2021-22 के वास्तविक व्यय के तौर पर किया गया है।
 स्रोतकेंद्रीय बजट दस्तावेज (2011-12 से 2022-23); पीआरएस।

परियोजनाओं की धीमी रफ्तार 

मंत्रालय सड़क एवं पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। कुछ योजनाओं की प्रगति अपर्याप्त रही है। स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत कई सड़क परियोजनाओं की भौतिक प्रगति या तो शून्य है, या सिंगल डिजिट परसेंट में है, इसके बावजूद कि परियोजना के लिए धनराशि जारी की जा चुकी है। इसी तरह करबी अंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (असम में स्वायत्त जिला परिषद) तथा सामाजिक एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़क, पुलों का निर्माण, और स्कूलों एवं जलापूर्ति परियोजनाओं का निर्माण) के अंतर्गत परियोजनाओं की अपर्याप्त प्रगति देखी गई है।

घटते वन आवरण पर ध्यान देने की जरूरत

स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को वन आवरण के संरक्षण के लिए काम करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने पूर्वोत्तर भारत में वन आवरण के घटने पर भी ध्यान दिया। भारतीय वनों की स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच जिन राज्यों के वन आवरण को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं(i) अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किलोमीटर वन आवरण का नुकसान), (ii) मणिपुर (249 वर्ग किलोमीटर), (iii) नागालैंड (235 वर्ग किलोमीटर), (iv) मिजोरम (186 वर्ग किलोमीटर), और (v) मेघालय (73 वर्ग किलोमीटर)। वन आवरण में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे झूम खेती, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएं, मानवजनित (पर्यावरणीय प्रदूषण) दबाव और विकासपरक गतिविधियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के विभिन्न उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और निर्धारित समय अवधि में उन्हें लागू किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए: (i) वन आवरण/घनत्व को बढ़ाने के लिए नियमित पौधरोपण करना चाहिए, और (ii) केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत वनों के संरक्षण के अंतिम लक्ष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण विषय उठाए

राज्यसभा में 14 मार्च, 2022 को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की गई। सदस्यों ने जिन विषयों को उठाया, उनमें से एक यह था कि मंत्रालय के पास अपना लाइन विभाग नहीं है। इस वजह से मंत्रालय को परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के प्रशासनिक बल पर निर्भर रहना पड़ता है। कई दूसरे सदस्यों ने यह भी कहा कि क्षेत्र रेलवे और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है जिससे इसका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। सदन में इसके जवाब में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग और दूरसंचार के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार करने के निरंतर प्रयास कर रही है।

पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के आबंटन

केंद्रीय मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर के लिए अपना 10% बजट आबंटित किया (धनराशि के आबंटन और उपयोग के लिए रेखाचित्र 2 को देखें)। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय वह नोडल मंत्रालय है जोकि विभिन्न मंत्रालयों के आबंटनों की निगरानी करता है। 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सभी मंत्रालयों ने 76,040 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों (68,440 करोड़ रुपए) के मुकाबले इसमें 11की वृद्धि है। 2019-20 और 2021-22 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए वास्तविक व्यय बजट अनुमान से क्रमशः 18% और 19% कम था। 

रेखाचित्र 2पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)

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स्रोत: रिपोर्ट संख्या 239पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अनुदान मांग (2022-23)गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।