कोविड-19 के 4,203 पुष्ट मामलों के साथ, महाराष्ट्र में पूरे देश की तुलना में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं (20 अप्रैल, 2020 तक)। इनमें से 507 का इलाज किया जा चुका है और 223 लोगों की मृत्यु हो गई है। इस ब्लॉग में हम इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि कोविड-19 से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने अब तक क्या मुख्य कदम उठाए हैं।
लॉकडाउन से पहले के उपाय
12 मार्च को राज्य में कोविड-19 के 11 मामले दर्ज किए गए। परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने कुछ कदम उठाए, जैसे: (i) मरीजों की स्क्रीनिंग और टेस्टिंग के लिए तैयारी, और (ii) रोग के अत्यधिक संक्रामक होने के कारण सामूहिक जमावड़ों की सीमा तय करना। लॉकडाउन से पूर्व के कदमों की जानकारी नीचे दी जा रही है।
स्वास्थ्य संबंधी उपाय
14 मार्च को सरकार ने राज्य में कोविड-19 के प्रसार के निवारण और रोकथाम के लिए महाराष्ट्र कोविड-19 रेगुलेशंस को अधिसूचित किया। इन रेगुलेशंस में निम्नलिखित से संबंधित नियम हैं (i) अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों की स्क्रीनिंग, (ii) प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले लोगों के लिए होम क्वारंटाइन, और (iii) कंटेनमेंट जोन्स में कार्य प्रक्रियाओं का पालन करना, इत्यादि।
मूवमेंट पर प्रतिबंध
15 मार्च को राज्य में कोविड-19 के 31 मामले थे। सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने आदेश दिया कि सिनेमा हॉल, स्विमिंग पूल, जिम, थियेटर और म्यूजियम्स को 31 मार्च तक बंद रखा जाएगा।
16 मार्च को सभी शिक्षण संस्थानों और हॉस्टल्स को भी 31 मार्च तक के लिए बंद कर दिया गया। शिक्षकों को घर से काम करने को कहा गया। परीक्षाएं भी 31 मार्च तक के लिए रोक दी गईं।
प्रशासनिक उपाय
13 मार्च को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने हेतु उच्च स्तरीय कमिटी का गठन किया। कमिटी की जिम्मेदारियों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) राज्य में कोविड-19 की स्थिति की दैनिक समीक्षा, और (ii) विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों को लागू करना।
17 मार्च को राज्य में कोविड-19 के कारण पहली मृत्यु हुई। 19 मार्च को सरकार ने सरकारी कार्यालयों में बैठकों पर प्रतिबंध लगाया और इन बैठकों के लिए सुरक्षा संबंधी दिशानिर्देश जारी किए।
20 मार्च को मुंबई, पुणे और नागपुर में कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति को 25% किया गया। इसके बाद 23 मार्च को सरकार ने राज्य में सरकारी कार्यालयों में उपस्थितियों को और कम करके 5% कर दिया।
लॉकडाउन के बाद के उपाय
कोविड-19 के प्रकोप की रोकथाम के लिए राज्य सरकार ने 23 मार्च को राज्यव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया। 31 मार्च तक लागू इस ल़ॉकडाउन में निम्नलिखित शामिल था: (i) राज्य की सीमाओं को बंद करना, (ii) सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को रद्द करना, और (iii) किसी सार्वजनिक स्थल पर पांच से अधिक लोगों के जमा होने पर प्रतिबंध।
अनिवार्य वस्तुओं और सेवाओं की सप्लाई में लगी कंपनियों को इस लॉकडाउन से छूट दी गई। इसके बाद केंद्र सरकार ने 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को लागू किया जोकि अब 3 मई तक बढ़ा दिया गया है। केंद्र सरकार की इस घोषणा से पहले राज्य सरकार ने 30 अप्रैल तक लॉकडाउन को बढ़ा दिया था।
15 अप्रैल को गृह मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकारों को दिशानिर्देश जारी किए थे कि उन्हें 3 मई तक क्या-क्या उपाय करने हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुसार, 20 अप्रैल से कम प्रभावित क्षेत्रों में चुनींदा गतिविधियों की अनुमति होगी ताकि लोगों की परेशानियों को दूर किया जा सके। इन गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) कृषि और संबंधित गतिविधियां, (ii) मनरेगा का काम, (iii) निर्माण कार्य, (iv) औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स, (v) स्वास्थ्य सेवाएं, (vi) वित्तीय क्षेत्र की कुछ गतिविधियां, जोकि कुछ शर्तों के अधीन होगा।
कल्याणकारी उपाय
लॉकडाउन के कारण लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए राज्य ने कुछ कल्याणकारी उपाय भी किए हैं। ये इस प्रकार हैं:
प्रशासनिक उपाय
मुंबई शहर से संबंधित आदेश
कोविड-19 के प्रसार पर अधिक जानकारी और महामारी पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के लिए कृपया यहां देखें।
विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप ने हाल ही में पांच सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) के विनिवेश को मंजूरी दी है। इसमें चार पीएसयूज़: भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (नीप्को) और टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो पावर कॉम्प्लैक्स को संचालित और प्रबंधित करने वाला) में सरकार की पूरी शेयरहोल्डिंग और कंटेनर कॉरपोरेशन इन इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) में 30% शेयरहोल्डिंग शामिल हैं। वर्तमान में कॉनकोर में सरकार की शेयरहोल्डिंग 54.8% है। बिक्री के बाद यह हिस्सेदारी घटकर 25% से कम रह जाएगी।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने दूसरे कई पीएसयूज़ के निजीकरण पर लगे विधायी अवरोध हटाए हैं। इससे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या सरकार उनके निजीकरण की योजना बना रही है।
पीएसयूज़ के निजीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या आदेश था
2003 में सरकार ने एचपीसीएल और बीपीसीएल में शेयरहोल्डिंग को बेचने का ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इससे उन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है जिनके जरिए सरकार को कुछ खास एसेट्स का स्वामित्व हस्तांतरित किया गया था (जोकि बाद में पीएसयूज़ बने)। उदाहरण के लिए संसद के एक्ट के जरिए भारत में बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण और उनकी रिफाइनरी तथा मार्केटिंग कंपनियों के विलय के बाद बीपीसीएल की स्थापना हुई थी। न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि केंद्र सरकार संबंधित कानूनों में संशोधन किए बिना एचपीसीएल और बीपीसीएल का निजीकरण (यानी अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वामित्व को 51% से कम) नहीं कर सकती। इसलिए बीपीसीएल में प्रत्यक्ष रूप से और एचपीसीएल में अप्रत्यक्ष रूप से (दूसरे पीएसयू ओएनजीसी के जरिए) सरकार की अधिकांश हिस्सेदारी है।
जिन पांच कंपनियों के निजीकरण को मंजूरी दी गई है, उनमें बीपीसीएल और एससीआई (जिसमें दो राष्ट्रीयकृत कंपनियां जयंती शिपिंग कंपनी और मुगल लाइन लिमिटेड का विलय किया गया था) शामिल हैं। संबंधित राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को पिछले पांच वर्षों में निरस्त कर दिया गया है।
सरकार ने निजीकरण से विधायी अवरोध कैसे हटाए?
2014 और 2019 के बीच संसद ने छह रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स पारित किए जिनके जरिए लगभग 722 कानून रद्द हुए। इनमें केंद्र सरकार को कंपनियों के स्वामित्व का हस्तांतरण करने वाले कानून भी शामिल थे जिनके अंतर्गत बीपीसीएल, एचपीसीएल और ओआईएल की स्थापना हुई थी। इनमें उन कानूनों का निरस्तीकरण भी शामिल था जिनके जरिए सीआईएल में विलय होने वाली कंपनियों के स्वामित्व को केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया था। इसका अर्थ यह है कि अब सरकार इन सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर सकती है, चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा रखी गई शर्तों को पूरा कर दिया गया है। इन रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स ने दूसरे कई राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को भी निरस्त कर दिया जिनके अंतर्गत पीएसयूज़ की स्थापना की गई थी। निम्नलिखित तालिका में इनमें से कुछ कंपनियों की सूची दी गई है। उल्लेखनीय है कि भारतीय विधि आयोग (2014) ने इनमें से कई कानूनों (एसो एक्ट, बर्मा शेल एक्ट, बर्न कंपनी एक्ट सहित) को इस आधार पर निरस्त करने का सुझाव दिया था कि ये कानून राष्ट्रीयकृत कंपनी के संबंध में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। हालांकि यह सुझाव भी दिया गया था कि इन एक्ट्स को निरस्त करने से पहले सभी राष्ट्रीयकरण एक्ट्स का अध्ययन किया जाना चाहिए और अगर जरूरी हो तो रिपीलिंग एक्ट में सेविंग्स क्लॉज का प्रावधान किया जाना चाहिए।
क्या इन एक्ट्स को पारित करने से पहले संसद कोई जांच करती है?
इनमें से कई को रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 के जरिए निरस्त किया गया है। इनमें बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओआईएल, कोल इंडिया लिमिटेड, एससीआई, नेशनल टेक्सटाइल्स कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान कॉपर और बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड से संबंधित एक्ट्स शामिल हैं। इस बिल को पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी को रेफर नहीं किया गया और एक त्वरित बहस (लोकसभा में 50 मिनट और राज्यसभा में 20 मिनट) के बाद पारित कर दिया गया। इसी प्रकार 2017 में सेल, पावरग्रिड और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निजीकरण से संबंधित दो एक्ट्स पारित किए गए लेकिन उनकी समीक्षा भी स्टैंडिंग कमिटी द्वारा नहीं की गई।
अब क्या होगा?
एक्ट्स के निरस्तीकरण के बाद इन कंपनियों के निजीकरण के मार्ग की विधायी अड़चनें दूर हो गई हैं। इसका अर्थ यह है कि सरकार को उनकी शेयरहोल्डिंग को बेचने में संसद से पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसलिए अब सरकार यह निर्धारित करेगी कि इन संस्थाओं का निजीकरण करना है अथवा नहीं।
तालिका 1: 2014 से निरस्त किए गए कुछ राष्ट्रीयकरण एक्ट्स (सूची पूर्ण नहीं है)
कंपनी |
निरस्त होने वाले एक्ट |
रिपीलिंग एक्ट |
शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) |
जयंती शिपिंग कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
मुगल लाइन लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1984 |
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भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) |
बर्मा शेल (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) |
एस्सो (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1974 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कैल्टेक्स [कैल्टेक्स ऑयल रिफाइनरी (इंडिया) लिमिटेड के शेयरों और भारत में कैल्टेक्स (इंडिया) लिमिटेड के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1977 |
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कोसन गैस कंपनी (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1979 |
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कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) |
कोकिंग कोल माइन्स (आपात प्रावधान) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कोल माइन्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1973 |
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कोकिंग कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
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कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1973 |
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स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) |
बोलानी अयस्क लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) और विविध प्रावधान एक्ट, 1978 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
भारतीय आयरन और स्टील कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
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पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया |
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और द नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम्स का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1993 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1994 |
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ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) |
बर्मा ऑयल कंपनी [ऑयल इंडिया लिमिटेड के शेयरों और असम ऑयल कंपनी लिमिटेड तथा बर्मा ऑयल कंपनी (इंडिया ट्रेडिंग) लिमिटेड के भारत के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1981 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी) |
टी कंपनीज़ (रुग्ण चाय इकाइयों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2017 |
नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीसी) |
रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1983 |
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लक्ष्मीरतन और अथरटन वेस्ट कॉटन मिल्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1976 |
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हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड |
इंडियन कॉपर कॉरपोरेशन (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड |
बर्न कंपनी एंड इंडियन स्टैंडर्ड वैगन कंपनी (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
भारतीय रेलवे |
फतवा-इस्लामपुर लाइट रेलवे लाइन (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड, रेलवे मंत्रालय |
ब्रेथवेट एंड कंपनी (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ग्रेशन एंड क्रेवन ऑफ इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
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एंड्र्यू यूल एंड कंपनी लिमिटेड |
ब्रेंटफोर्ड इलेक्ट्रिक (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1987 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ट्रांसफॉर्मर्स एंड स्विचगियर लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1983 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
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एलकॉक एशडाउन (गुजरात) लिमिटेड, गुजरात सरकार का उपक्रम |
एल्कॉक एशडाउन कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1973 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (बीसीपीएल) |
बंगाल कैमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1980 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
फार्मास्युटिकल्स विभाग के अंतर्गत आने वाले संगठन |
स्मिथ, स्टेनस्ट्रीट एंड कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
बंगाल इम्युनिटी कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1984 |
Sources: Repealing and Amending Act, 2015; Repealing and Amending (Second) Act, 2015; Repealing and Amending Act, 2016; Repealing and Amending Act, 2017; Repealing and Amending (Second) Act, 2017; Repealing and Amending Act, 2019.