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  • कोविड-19 महामारी पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया (20-27 अप्रैल, 2020)
नीति

कोविड-19 महामारी पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया (20-27 अप्रैल, 2020)

आन्या भरत राम - अप्रैल 27, 2020

27 अप्रैल, 2020 तक भारत में कोविड-19 के 27,892 पुष्ट मामले हैं। 20 अप्रैल तक 10,627 नए मामले दर्ज किए गए हैं। पुष्ट मामलों में 6,185 मरीजों का इलाज हो चुका है/उन्हें डिस्चार्ज किया जा चुका है और 872 की मृत्यु हुई है। जैसे इस महामारी का प्रकोप बढ़ा है, केंद्र सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए अनेक नीतिगत फैसलों और महामारी से प्रभावित नागरिकों और व्यवसायों को मदद देने के उपायों की घोषणाएं की हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम केंद्र सरकार के 20 अप्रैल से 27 अप्रैल तक के कुछ मुख्य कदमों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं।

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Source: Ministry of Health and Family Welfare; PRS.

लॉकडाउन

विशिष्ट क्षेत्रों में स्थित दुकानों के लिए लॉकडाउन से राहत

गृह मामलों के मंत्रालय ने निम्नलिखित को खोलने के लिए आदेश दिया है: (i) ग्रामीण क्षेत्रों में सभी दुकानें, शॉपिंग मॉल्स की दुकानों को छोड़कर, और (ii) सभी स्टैंडएलोन दुकानें, आस-पड़ोस की दुकानें, और शहरी क्षेत्रों में आवासीय कॉम्प्लैक्सों की दुकानें। बाजारों में स्थित दुकानों, मार्केट कॉम्प्लैक्स या शहरी क्षेत्रों में शॉपिंग मॉल्स में कामकाज की अनुमति नहीं है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शॉप्स और इस्टैबलिशमेंट्स एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत दुकानों को ही खोले जाने की अनुमति है। इसके अतिरिक्त जिन ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन्स घोषित किया गया है, वहां की दुकानें नहीं खोली जाएंगी। आदेश में यह भी कहा गया है कि शराब की बिक्री पर प्रतिबंध जारी रहेगा।

केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल्स का कामकाज बंद रहेगा 

केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का कामकाज 3 मई, 2020 तक बंद रहेगा। जब कामकाज शुरू होगा तो अवकाश के दिनों को भी वर्किंग डे माना जा सकता है। अधिकतर केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कोविड-19 हॉटस्पॉट्स में स्थित हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है।

वित्तीय उपाय

आरबीआई ने म्युचुअल फंड्स के लिए 50,000 करोड़ रुपए की विशेष लिक्विडिटी सुविधा की घोषणा की

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 50,000 करोड़ रुपए मूल्य के म्युचुअल फंड्स के लिए विशेष लिक्विडिटी सुविधा (एसएलएफ-एमएफ) खोलने का फैसला किया है। इससे म्युचुअल फंड्स पर लिक्विडिटी का दबाव खत्म होगा। एसएलएफ-एमएफ के अंतर्गत आरबीआई निर्धारित रेपो रेट पर 90 दिनों की अवधि में रेपो ऑपरेशन करेगी। एसएलएफ-एमएफ तत्काल इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा और बैंक इन फंड्स को हासिल करने के लिए अपनी बोलियां सौंप सकते हैं। यह योजना 27 अप्रैल से 11 मई, 2020 के लिए उपलब्ध है या तब तक के लिए जब तक आबंटित राशि का इस्तेमाल नहीं हो जाता (इनमें से जो पहले हो)। आरबीआई योजना की समयावधि और राशि की समीक्षा करेगी, जोकि बाजार की स्थितियों पर निर्भर करता है। बैंक विशेष रूप से म्युचुअल फंड्स की लिक्विडिटी संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इस राशि का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह निम्नलिखित के जरिए किया जा सकता है: (i) लोन देना, और (ii) इनवेस्टमेंट ग्रेड कॉरपोरेट बॉन्ड्स, कमर्शियल पेपर्स, डिबेंचर्स और म्युचुअल फंड्स के सर्टिफिकेट्स ऑफ डिपॉजिट्स के आउटराइट परचेस और/या उनके लिए कोलेट्रेल लेना। 

आरबीआई ने अल्पावधि के फसल ऋण के लिए इन्टरेस्ट सबवेंशन और प्रॉम्प्ट रीपमेंट इनसेंटिव योजनाओं के लाभ का दायरा बढ़ाया

भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को तीन लाख रुपए तक के अल्पावधि फसल ऋण के लिए इन्टरेस्ट सबवेंशन और प्रॉम्प्ट रीपमेंट इनसेंटिव योजनाओं के लाभों को क्रमशः 2% और 3% बढ़ाने की सलाह दी। जिन किसानों के एकाउंट्स ड्यू हैं या 1 मार्च, 2020 से 1 मई, 2020 के बीच ड्यू होने वाले हैं, इस योजना के लिए पात्र होंगे। 

स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का संरक्षण

महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी 

महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को 22 अप्रैल, 2020 को जारी किया गया। अध्यादेश महामारी रोग एक्ट, 1897 में संशोधन करता है। एक्ट में खतरनाक महामारियों की रोकथाम से संबंधित प्रावधान हैं। अध्यादेश इस एक्ट में संशोधन करता है जिससे महामारियों से जूझने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को संरक्षण प्रदान किया जा सके, तथा ऐसी बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों में विस्तार करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • परिभाषाएं: अध्यादेश स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करता है जिन पर अपने कर्तव्यों का पालन करने के दौरान महामारियों के संपर्क में आने का जोखिम है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पब्लिक और क्लिनिकल स्वास्थ्यसेवा प्रदाता जैसे डॉक्टर और नर्स, (ii) ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसे एक्ट के अंतर्गत बीमारी के प्रकोप की रोकथाम के लिए सशक्त किया गया है, और (iii) अन्य कोई व्यक्ति जिसे राज्य सरकार ने ऐसा करने के लिए नामित किया है।
     
  • ‘हिंसक कार्य’ में ऐसे कोई भी कार्य शामिल हैं जो स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ किए गए हैं: (i) जीवन या काम की स्थितियों को प्रभावित करने वाला उत्पीड़न, (ii) जीवन को नुकसान, चोट, क्षति या खतरा पहुंचाना, (iii) कर्तव्यों का पालन करने में बाधा उत्पन्न करना, और (iv) स्वास्थ्य सेवा कर्मी की संपत्ति या दस्तावेजों को नुकसान या क्षति पहुंचाना। संपत्ति में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट, (ii) क्वारंटाइन केंद्र, (iii) मोबाइल मेडिकल यूनिट, और (iv) ऐसी अन्य संपत्ति जिससे स्वास्थ्य सेवा कर्मी का महामारी से संबंधित कोई प्रत्यक्ष हित जुड़ा हो।
     
  • स्वास्थ्य सेवा कर्मी की सुरक्षा और संपत्ति को क्षति: अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि कोई भी व्यक्ति निम्नलिखित नहीं कर सकता: (i) स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करना या ऐसा करने के लिए किसी को उकसाना, या (ii) महामारी के दौरान किसी संपत्ति को नुकसान या क्षति पहुंचाना, या ऐसा करने के लिए किसी को उकसाना। इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर तीन महीने से लेकर पांच वर्ष तक की कैद या 50,000 रुपए से लेकर दो लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। अदालत की अनुमति से पीड़ित अपराधी को क्षमा कर सकता है। अगर स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ हिंसक कार्रवाई गंभीर क्षति पहुंचाती है, तो अपराध करने वाले व्यक्ति को छह महीने से लेकर सात वर्ष तक की कैद हो सकती है और एक लाख रुपए से लेकर पांच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। ये अपराध संज्ञेय और गैर जमानती हैं।

अध्यादेश पर अधिक विवरण के लिए कृपया यहां देखें।

वित्तीय सहायता

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के अंतर्गत उपाय 

वित्त मंत्रालय के अनुसार, 26 मार्च से 22 अप्रैल, 2020 के बीच लगभग 33 करोड़ गरीब लोगों को लॉकडाउन के दौरान प्रत्यक्ष रूप से 31,235 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी गई है। बैंक अंतरणों के लाभार्थियों में विधवाएं, प्रधानमंत्री जन धन योजना के अंतर्गत महिला खाताधारक, वरिष्ठ नागरिक और किसान शामिल हैं। प्रत्यक्ष बैंक अंतरणों के अतिरिक्त अन्य प्रकार से भी सहायता मुहैय्या कराई गई है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 40 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न दिए गए हैं। 
     
  • लाभार्थियों को 2.7 करोड़ मुफ्त गैस सिलिंडर दिए गए है। 
     
  • राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित भवन निर्माण एवं निर्माण कोषों से 2.2 करोड़ भवन निर्माण एवं निर्माण श्रमिकों को 3,497 करोड़ रुपए संवितरित किए गए हैं। 

कोविड-19 के प्रसार पर अधिक जानकारी और महामारी पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के लिए कृपया यहां देखें।

Policy

क्या निजीकरण की योजना बनाई जा रही है?

M R Madhavan , Prachee Mishra - अक्टूबर 30, 2019

विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप ने हाल ही में पांच सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) के विनिवेश को मंजूरी दी है। इसमें चार पीएसयूज़: भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (नीप्को) और टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो पावर कॉम्प्लैक्स को संचालित और प्रबंधित करने वाला) में सरकार की पूरी शेयरहोल्डिंग और कंटेनर कॉरपोरेशन इन इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) में 30% शेयरहोल्डिंग शामिल हैं। वर्तमान में कॉनकोर में सरकार की शेयरहोल्डिंग 54.8% है। बिक्री के बाद यह हिस्सेदारी घटकर 25% से कम रह जाएगी।  

पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने दूसरे कई पीएसयूज़ के निजीकरण पर लगे विधायी अवरोध हटाए हैं। इससे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या सरकार उनके निजीकरण की योजना बना रही है। 

पीएसयूज़ के निजीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या आदेश था

2003 में सरकार ने एचपीसीएल और बीपीसीएल में शेयरहोल्डिंग को बेचने का ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इससे उन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है जिनके जरिए सरकार को कुछ खास एसेट्स का स्वामित्व हस्तांतरित किया गया था (जोकि बाद में पीएसयूज़ बने)। उदाहरण के लिए संसद के एक्ट के जरिए भारत में बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण और उनकी रिफाइनरी तथा मार्केटिंग कंपनियों के विलय के बाद बीपीसीएल की स्थापना हुई थी। न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि केंद्र सरकार संबंधित कानूनों में संशोधन किए बिना एचपीसीएल और बीपीसीएल का निजीकरण (यानी अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वामित्व को 51% से कम) नहीं कर सकती। इसलिए बीपीसीएल में प्रत्यक्ष रूप से और एचपीसीएल में अप्रत्यक्ष रूप से (दूसरे पीएसयू ओएनजीसी के जरिए) सरकार की अधिकांश हिस्सेदारी है। 

जिन पांच कंपनियों के निजीकरण को मंजूरी दी गई है, उनमें बीपीसीएल और एससीआई (जिसमें दो राष्ट्रीयकृत कंपनियां जयंती शिपिंग कंपनी और मुगल लाइन लिमिटेड का विलय किया गया था) शामिल हैं। संबंधित राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को पिछले पांच वर्षों में निरस्त कर दिया गया है।

सरकार ने निजीकरण से विधायी अवरोध कैसे हटाए?

2014 और 2019 के बीच संसद ने छह रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स पारित किए जिनके जरिए लगभग 722 कानून रद्द हुए। इनमें केंद्र सरकार को कंपनियों के स्वामित्व का हस्तांतरण करने वाले कानून भी शामिल थे जिनके अंतर्गत बीपीसीएल, एचपीसीएल और ओआईएल की स्थापना हुई थी। इनमें उन कानूनों का निरस्तीकरण भी शामिल था जिनके जरिए सीआईएल में विलय होने वाली कंपनियों के स्वामित्व को केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया था। इसका अर्थ यह है कि अब सरकार इन सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर सकती है, चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा रखी गई शर्तों को पूरा कर दिया गया है। इन रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स ने दूसरे कई राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को भी निरस्त कर दिया जिनके अंतर्गत पीएसयूज़ की स्थापना की गई थी। निम्नलिखित तालिका में इनमें से कुछ कंपनियों की सूची दी गई है। उल्लेखनीय है कि भारतीय विधि आयोग (2014) ने इनमें से कई कानूनों (एसो एक्ट, बर्मा शेल एक्ट, बर्न कंपनी एक्ट सहित) को इस आधार पर निरस्त करने का सुझाव दिया था कि ये कानून राष्ट्रीयकृत कंपनी के संबंध में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। हालांकि यह सुझाव भी दिया गया था कि इन एक्ट्स को निरस्त करने से पहले सभी राष्ट्रीयकरण एक्ट्स का अध्ययन किया जाना चाहिए और अगर जरूरी हो तो रिपीलिंग एक्ट में सेविंग्स क्लॉज का प्रावधान किया जाना चाहिए।

क्या इन एक्ट्स को पारित करने से पहले संसद कोई जांच करती है?

इनमें से कई को रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 के जरिए निरस्त किया गया है। इनमें बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओआईएल, कोल इंडिया लिमिटेड, एससीआई, नेशनल टेक्सटाइल्स कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान कॉपर और बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड से संबंधित एक्ट्स शामिल हैं। इस बिल को पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी को रेफर नहीं किया गया और एक त्वरित बहस (लोकसभा में 50 मिनट और राज्यसभा में 20 मिनट) के बाद पारित कर दिया गया। इसी प्रकार 2017 में सेल, पावरग्रिड और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निजीकरण से संबंधित दो एक्ट्स पारित किए गए लेकिन उनकी समीक्षा भी स्टैंडिंग कमिटी द्वारा नहीं की गई।

अब क्या होगा?

एक्ट्स के निरस्तीकरण के बाद इन कंपनियों के निजीकरण के मार्ग की विधायी अड़चनें दूर हो गई हैं। इसका अर्थ यह है कि सरकार को उनकी शेयरहोल्डिंग को बेचने में संसद से पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसलिए अब सरकार यह निर्धारित करेगी कि इन संस्थाओं का निजीकरण करना है अथवा नहीं।

तालिका 1: 2014 से निरस्त किए गए कुछ राष्ट्रीयकरण एक्ट्स (सूची पूर्ण नहीं है)

कंपनी

निरस्त होने वाले एक्ट

रिपीलिंग एक्ट

शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई)

जयंती शिपिंग कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1971

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

मुगल लाइन लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1984

भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल)

बर्मा शेल (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल)

एस्सो (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1974

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

कैल्टेक्स [कैल्टेक्स ऑयल रिफाइनरी (इंडिया) लिमिटेड के शेयरों और भारत में कैल्टेक्स (इंडिया) लिमिटेड के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1977

कोसन गैस कंपनी (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1979

कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल)

कोकिंग कोल माइन्स (आपात प्रावधान) एक्ट, 1971

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

कोल माइन्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1973

कोकिंग कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1972

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1973

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल)

बोलानी अयस्क लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) और विविध प्रावधान एक्ट, 1978

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

भारतीय आयरन और स्टील कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976

पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और द नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम्स का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1993

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1994

ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल)

बर्मा ऑयल कंपनी [ऑयल इंडिया लिमिटेड के शेयरों और असम ऑयल कंपनी लिमिटेड तथा बर्मा ऑयल कंपनी (इंडिया ट्रेडिंग) लिमिटेड के भारत के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1981

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी)

टी कंपनीज़ (रुग्ण चाय इकाइयों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1985

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2017

नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीसी)

रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1972

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1983

लक्ष्मीरतन और अथरटन वेस्ट कॉटन मिल्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1976

हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड

इंडियन कॉपर कॉरपोरेशन (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1972

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड

बर्न कंपनी एंड इंडियन स्टैंडर्ड वैगन कंपनी (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1976

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

भारतीय रेलवे

फतवा-इस्लामपुर लाइट रेलवे लाइन (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1985

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016

ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड, रेलवे मंत्रालय

ब्रेथवेट एंड कंपनी (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1976

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

ग्रेशन एंड क्रेवन ऑफ इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977

एंड्र्यू यूल एंड कंपनी लिमिटेड

ब्रेंटफोर्ड इलेक्ट्रिक (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1987

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

ट्रांसफॉर्मर्स एंड स्विचगियर लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1983

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019

एलकॉक एशडाउन (गुजरात) लिमिटेड, गुजरात सरकार का उपक्रम

एल्कॉक एशडाउन कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1973

रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019

बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (बीसीपीएल)

बंगाल कैमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1980

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

फार्मास्युटिकल्स विभाग के अंतर्गत आने वाले संगठन

स्मिथ, स्टेनस्ट्रीट एंड कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977

रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017

बंगाल इम्युनिटी कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1984

Sources: Repealing and Amending Act, 2015; Repealing and Amending (Second) Act, 2015; Repealing and Amending Act, 2016; Repealing and Amending Act, 2017; Repealing and Amending (Second) Act, 2017; Repealing and Amending Act, 2019.

 
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