विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप ने हाल ही में पांच सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) के विनिवेश को मंजूरी दी है। इसमें चार पीएसयूज़: भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (नीप्को) और टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो पावर कॉम्प्लैक्स को संचालित और प्रबंधित करने वाला) में सरकार की पूरी शेयरहोल्डिंग और कंटेनर कॉरपोरेशन इन इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) में 30% शेयरहोल्डिंग शामिल हैं। वर्तमान में कॉनकोर में सरकार की शेयरहोल्डिंग 54.8% है। बिक्री के बाद यह हिस्सेदारी घटकर 25% से कम रह जाएगी।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने दूसरे कई पीएसयूज़ के निजीकरण पर लगे विधायी अवरोध हटाए हैं। इससे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या सरकार उनके निजीकरण की योजना बना रही है।
पीएसयूज़ के निजीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या आदेश था
2003 में सरकार ने एचपीसीएल और बीपीसीएल में शेयरहोल्डिंग को बेचने का ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इससे उन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है जिनके जरिए सरकार को कुछ खास एसेट्स का स्वामित्व हस्तांतरित किया गया था (जोकि बाद में पीएसयूज़ बने)। उदाहरण के लिए संसद के एक्ट के जरिए भारत में बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण और उनकी रिफाइनरी तथा मार्केटिंग कंपनियों के विलय के बाद बीपीसीएल की स्थापना हुई थी। न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि केंद्र सरकार संबंधित कानूनों में संशोधन किए बिना एचपीसीएल और बीपीसीएल का निजीकरण (यानी अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वामित्व को 51% से कम) नहीं कर सकती। इसलिए बीपीसीएल में प्रत्यक्ष रूप से और एचपीसीएल में अप्रत्यक्ष रूप से (दूसरे पीएसयू ओएनजीसी के जरिए) सरकार की अधिकांश हिस्सेदारी है।
जिन पांच कंपनियों के निजीकरण को मंजूरी दी गई है, उनमें बीपीसीएल और एससीआई (जिसमें दो राष्ट्रीयकृत कंपनियां जयंती शिपिंग कंपनी और मुगल लाइन लिमिटेड का विलय किया गया था) शामिल हैं। संबंधित राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को पिछले पांच वर्षों में निरस्त कर दिया गया है।
सरकार ने निजीकरण से विधायी अवरोध कैसे हटाए?
2014 और 2019 के बीच संसद ने छह रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स पारित किए जिनके जरिए लगभग 722 कानून रद्द हुए। इनमें केंद्र सरकार को कंपनियों के स्वामित्व का हस्तांतरण करने वाले कानून भी शामिल थे जिनके अंतर्गत बीपीसीएल, एचपीसीएल और ओआईएल की स्थापना हुई थी। इनमें उन कानूनों का निरस्तीकरण भी शामिल था जिनके जरिए सीआईएल में विलय होने वाली कंपनियों के स्वामित्व को केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया था। इसका अर्थ यह है कि अब सरकार इन सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर सकती है, चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा रखी गई शर्तों को पूरा कर दिया गया है। इन रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स ने दूसरे कई राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को भी निरस्त कर दिया जिनके अंतर्गत पीएसयूज़ की स्थापना की गई थी। निम्नलिखित तालिका में इनमें से कुछ कंपनियों की सूची दी गई है। उल्लेखनीय है कि भारतीय विधि आयोग (2014) ने इनमें से कई कानूनों (एसो एक्ट, बर्मा शेल एक्ट, बर्न कंपनी एक्ट सहित) को इस आधार पर निरस्त करने का सुझाव दिया था कि ये कानून राष्ट्रीयकृत कंपनी के संबंध में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। हालांकि यह सुझाव भी दिया गया था कि इन एक्ट्स को निरस्त करने से पहले सभी राष्ट्रीयकरण एक्ट्स का अध्ययन किया जाना चाहिए और अगर जरूरी हो तो रिपीलिंग एक्ट में सेविंग्स क्लॉज का प्रावधान किया जाना चाहिए।
क्या इन एक्ट्स को पारित करने से पहले संसद कोई जांच करती है?
इनमें से कई को रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 के जरिए निरस्त किया गया है। इनमें बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओआईएल, कोल इंडिया लिमिटेड, एससीआई, नेशनल टेक्सटाइल्स कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान कॉपर और बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड से संबंधित एक्ट्स शामिल हैं। इस बिल को पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी को रेफर नहीं किया गया और एक त्वरित बहस (लोकसभा में 50 मिनट और राज्यसभा में 20 मिनट) के बाद पारित कर दिया गया। इसी प्रकार 2017 में सेल, पावरग्रिड और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निजीकरण से संबंधित दो एक्ट्स पारित किए गए लेकिन उनकी समीक्षा भी स्टैंडिंग कमिटी द्वारा नहीं की गई।
अब क्या होगा?
एक्ट्स के निरस्तीकरण के बाद इन कंपनियों के निजीकरण के मार्ग की विधायी अड़चनें दूर हो गई हैं। इसका अर्थ यह है कि सरकार को उनकी शेयरहोल्डिंग को बेचने में संसद से पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसलिए अब सरकार यह निर्धारित करेगी कि इन संस्थाओं का निजीकरण करना है अथवा नहीं।
तालिका 1: 2014 से निरस्त किए गए कुछ राष्ट्रीयकरण एक्ट्स (सूची पूर्ण नहीं है)
कंपनी |
निरस्त होने वाले एक्ट |
रिपीलिंग एक्ट |
शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) |
जयंती शिपिंग कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
मुगल लाइन लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1984 |
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भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) |
बर्मा शेल (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) |
एस्सो (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1974 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कैल्टेक्स [कैल्टेक्स ऑयल रिफाइनरी (इंडिया) लिमिटेड के शेयरों और भारत में कैल्टेक्स (इंडिया) लिमिटेड के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1977 |
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कोसन गैस कंपनी (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1979 |
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कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) |
कोकिंग कोल माइन्स (आपात प्रावधान) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कोल माइन्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1973 |
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कोकिंग कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
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कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1973 |
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स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) |
बोलानी अयस्क लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) और विविध प्रावधान एक्ट, 1978 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
भारतीय आयरन और स्टील कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
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पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया |
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और द नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम्स का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1993 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1994 |
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ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) |
बर्मा ऑयल कंपनी [ऑयल इंडिया लिमिटेड के शेयरों और असम ऑयल कंपनी लिमिटेड तथा बर्मा ऑयल कंपनी (इंडिया ट्रेडिंग) लिमिटेड के भारत के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1981 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी) |
टी कंपनीज़ (रुग्ण चाय इकाइयों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2017 |
नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीसी) |
रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1983 |
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लक्ष्मीरतन और अथरटन वेस्ट कॉटन मिल्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1976 |
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हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड |
इंडियन कॉपर कॉरपोरेशन (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड |
बर्न कंपनी एंड इंडियन स्टैंडर्ड वैगन कंपनी (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
भारतीय रेलवे |
फतवा-इस्लामपुर लाइट रेलवे लाइन (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड, रेलवे मंत्रालय |
ब्रेथवेट एंड कंपनी (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ग्रेशन एंड क्रेवन ऑफ इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
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एंड्र्यू यूल एंड कंपनी लिमिटेड |
ब्रेंटफोर्ड इलेक्ट्रिक (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1987 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ट्रांसफॉर्मर्स एंड स्विचगियर लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1983 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
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एलकॉक एशडाउन (गुजरात) लिमिटेड, गुजरात सरकार का उपक्रम |
एल्कॉक एशडाउन कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1973 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (बीसीपीएल) |
बंगाल कैमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1980 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
फार्मास्युटिकल्स विभाग के अंतर्गत आने वाले संगठन |
स्मिथ, स्टेनस्ट्रीट एंड कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
बंगाल इम्युनिटी कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1984 |
Sources: Repealing and Amending Act, 2015; Repealing and Amending (Second) Act, 2015; Repealing and Amending Act, 2016; Repealing and Amending Act, 2017; Repealing and Amending (Second) Act, 2017; Repealing and Amending Act, 2019.
13 अप्रैल, 2020 तक भारत में कोविड-19 के 17,265 पुष्ट मामले हैं। 13 अप्रैल से 8,113 नए मामले दर्ज किए गए हैं। पुष्ट मामलों में 2,547 मरीजों का इलाज हो चुका है/उन्हें डिस्चार्ज किया जा चुका है और 543 की मृत्यु हुई है।
जैसे इस महामारी का प्रकोप बढ़ा है, केंद्र सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए अनेक नीतिगत फैसलों और महामारी से प्रभावित नागरिकों और व्यवसायों को मदद देने के उपायों की घोषणाएं की हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम केंद्र सरकार के 13 अप्रैल से 20 अप्रैल तक के कुछ मुख्य कदमों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं।
Source: Ministry of Health and Family Welfare, PRS.
लॉकडाउन
लॉकडाउन 3 मई, 2020 तक जारी
लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाया गया है और 20 अप्रैल, 2020 से कुछ राहत दी गई है। जिन गतिविधियों पर 20 अप्रैल, 2020 के बाद भी प्रतिबंध जारी रहेगा, वे इस प्रकार हैं: (i) स्वास्थ्यकर्मियों के लिए और सुरक्षा उद्देश्यों के अतिरिक्त सभी अंतरराष्ट्रीय और घरेलू यात्राएं, (ii) ट्रेनों, बसों और टैक्सियों में पैसेंजर यात्रा, (iii) औद्योगिक गतिविधियां और हॉस्पिटैलिटी सेवाएं (केवल अनुमत सेवाओं को छोड़कर), (iv) सभी शिक्षण संस्थान और (v) सभी धार्मिक जमावड़े। जिन गतिविधियों के लिए 20 अप्रैल, 2020 के बाद अनुमति है, वे इस प्रकार हैं: (i) सभी स्वास्थ्य सेवाएं जैसे अस्पताल, क्लिनिक और वेट्स, (ii) कृषि कार्य, फिशरीज़ और बागान, (iii) पब्लिक युटिलिटीज़ जैसे एलपीजी और पोस्टल सेवाओं का प्रावधान, (iv) वित्तीय संस्थान जैसे गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान, बैंक और एटीएम्स, (v) केवल अनिवार्य वस्तुओं के लिए ई-कॉमर्स और (vi) औद्योगिक गतिविधियां जैसे तेल और गैस रिफाइनरीज़ और मैन्यूफैक्चरिंग। जो लोग लॉकडाउन का पालन नहीं करेंगे, उन्हें एक साल की सजा या जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट लॉकडाउन के दिशानिर्देशों को नजरंदाज नहीं कर सकते। हां, वे और कड़े उपाय कर सकते हैं।
हॉटस्पॉट में आने वाले कुछ क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन्स के तौर पर सीमांकित किया गया
हॉटस्पॉट्स ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां कोविड-19 का बड़ा प्रकोप होता है या ऐसे क्लस्टर्स जहां कोविड-19 का फैलाव होता है। हॉटस्पॉट्स के भीतर कुछ क्षेत्रों को राज्य या जिला प्रशासनों द्वारा कंटेनमेंट जोन्स के तौर पर सीमांकित किया जाता है। कंटेनमेंट जोन्स में कड़ा परिधीय नियंत्रण होता है। मेडिकल इमरजेंसी जैसी अनिवार्य सेवाओं और कानून एवं व्यवस्था संबंधी गतिविधियों को छोड़कर कंटेनमेंट जोन्स में आना या जाना प्रतिबंधित होता है।
असहाय प्रवासी मजदूरों का मूवमेंट
गृह मामलों के मंत्रालय ने उन राज्यों में असहाय प्रवासी मजदूरों के मूवमेंट की अनुमति दी जहां 20 अप्रैल, 2020 को लॉकडाउन में राहत के बाद वे लोग अनुमत गतिविधियों में काम करने के लिए मौजूद हैं। इन गतिविधियों में औद्योगिक कार्य, मैन्यूफैक्चरिंग, निर्माण शामिल हैं। अगर उन मजदूरों में बीमारी के लक्षण नहीं हैं और वे काम करने के इच्छुक हैं तो राज्य सरकारें उनकी स्किल मैपिंग कर सकती हैं और उन्हें वर्कसाइट्स पर भेज सकती हैं। राज्यों के बीच प्रवासी मजदूरों की आवाजाही अब भी प्रतिबंधित है।
वित्तीय उपाय
कोविड-19 के कारण उत्पन्न आर्थिक स्थितियों के नियंत्रण हेतु आरबीआई ने अतिरिक्त उपायों की घोषणा की
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आर्थिक सलाहकार ने अनुमान लगाया है कि विश्वव्यापी आर्थिक लॉकडाउन के कारण 2020 और 2021 में विश्व जीडीपी को लगभग 9 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा। भारत में कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अनेक अतिरिक्त उपायों की घोषणा की। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) रिवर्स रेपो रेट को 4% से घटाकर 3.75% करना, (ii) 50,000 करोड़ रुपए की राशि के लिए टारगेटेड लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन, (iii) 50,000 करोड़ रुपए के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक और राष्ट्रीय हाउसिंग बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों का पुनर्पूंजीकरण ताकि वे अपने-अपने क्षेत्रों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकें।
बैंकों द्वारा लाभांश भुगतान
कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव के मद्देनजर आरबीआई ने घोषणा की कि बैंकों को 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में अपने लाभ पर लाभांश भुगतान करने की जरूरत नहीं। आरबीआई के अनुसार, इससे बैंक अपनी क्षमता को बरकरार रख पूंजी संरक्षण कर पाएंगे और अर्थव्यवस्था को सहयोग मिलेगा। उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। 30 सितंबर, 2020 को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए बैंकों के वित्तीय परिणामों के आधार पर इस प्रतिबंध का फिर से आकलन किया जाएगा।
राज्यों को अल्पाधि का ऋण
आरबीआई ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वेज़ और मीन्स एडवांसेज़ (डब्ल्यूएमए) सीमाओं में बढ़ोतरी की घोषणा की। डब्ल्यूएमए सीमाएं वे अस्थायी लोन्स होते हैं जो आरबीआई द्वारा राज्यों को दिए जाते हैं। 31 मार्च, 2020 तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए डब्ल्यूएमए सीमाओं को 60% तक बढ़ाया गया है। यह संशोधित सीमाएं 1 अप्रैल और 30 सितंबर, 2020 तक लागू रहेंगी।
यात्रा और निर्यात
यात्रा प्रतिबंध जारी रहेंगे
चूंकि लॉकडाउन 3 मई, 2020 तक बढ़ाया गया है, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध जारी रहेगा। सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानें 3 मई, 2020 तक नहीं चलेंगी। इसके अतिरिक्त नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने निर्दिष्ट किया है कि एयरलाइन्स को 4 मई, 2020 के बाद से टिकट बुकिंग शुरू नहीं करनी चाहिए क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी गतिविधियां शुरू की जाएंगी। सभी यात्री ट्रेनों को भी 3 मई, 2020 तक बंद रखा गया है। 3 मई, 2020 से पहले लॉकडाउन की अवधि के दौरान खरीदे गए फ्लाइट टिकट्स के लिए पूरा रीफंड दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त लॉकडाउन के दौरान कैंसिल की गई ट्रेनों के लिए बुक किए गए टिकट्स का पूरा रीफंड दिया जाएगा और अब तक कैसिल नहीं की गई ट्रेनों के टिकट्स की एडवांस बुकिंग के कैंसलेशन पर भी पूरा रीफंड दिया जाएगा।
पैरासीटामोल का निर्यात
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने निर्दिष्ट किया है कि 17 अप्रैल से पैरासीटामोल से बनने वाले फॉर्मूलेशन को निर्यात किया जा सकेगा। हालांकि पैरासीटामोल एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआईज़) के निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा। 3 मार्च, 2020 को पैरासीटामोल से बनने वाले फॉर्मूलेशन और पैरासीटामोल एपीआईज़, दोनों पर प्रतिबंध था।
कोविड-19 के प्रसार पर अधिक जानकारी और महामारी पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के लिए कृपया यहां देखें।