विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप ने हाल ही में पांच सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) के विनिवेश को मंजूरी दी है। इसमें चार पीएसयूज़: भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (नीप्को) और टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो पावर कॉम्प्लैक्स को संचालित और प्रबंधित करने वाला) में सरकार की पूरी शेयरहोल्डिंग और कंटेनर कॉरपोरेशन इन इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) में 30% शेयरहोल्डिंग शामिल हैं। वर्तमान में कॉनकोर में सरकार की शेयरहोल्डिंग 54.8% है। बिक्री के बाद यह हिस्सेदारी घटकर 25% से कम रह जाएगी।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने दूसरे कई पीएसयूज़ के निजीकरण पर लगे विधायी अवरोध हटाए हैं। इससे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या सरकार उनके निजीकरण की योजना बना रही है।
पीएसयूज़ के निजीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या आदेश था
2003 में सरकार ने एचपीसीएल और बीपीसीएल में शेयरहोल्डिंग को बेचने का ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इससे उन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है जिनके जरिए सरकार को कुछ खास एसेट्स का स्वामित्व हस्तांतरित किया गया था (जोकि बाद में पीएसयूज़ बने)। उदाहरण के लिए संसद के एक्ट के जरिए भारत में बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण और उनकी रिफाइनरी तथा मार्केटिंग कंपनियों के विलय के बाद बीपीसीएल की स्थापना हुई थी। न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि केंद्र सरकार संबंधित कानूनों में संशोधन किए बिना एचपीसीएल और बीपीसीएल का निजीकरण (यानी अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वामित्व को 51% से कम) नहीं कर सकती। इसलिए बीपीसीएल में प्रत्यक्ष रूप से और एचपीसीएल में अप्रत्यक्ष रूप से (दूसरे पीएसयू ओएनजीसी के जरिए) सरकार की अधिकांश हिस्सेदारी है।
जिन पांच कंपनियों के निजीकरण को मंजूरी दी गई है, उनमें बीपीसीएल और एससीआई (जिसमें दो राष्ट्रीयकृत कंपनियां जयंती शिपिंग कंपनी और मुगल लाइन लिमिटेड का विलय किया गया था) शामिल हैं। संबंधित राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को पिछले पांच वर्षों में निरस्त कर दिया गया है।
सरकार ने निजीकरण से विधायी अवरोध कैसे हटाए?
2014 और 2019 के बीच संसद ने छह रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स पारित किए जिनके जरिए लगभग 722 कानून रद्द हुए। इनमें केंद्र सरकार को कंपनियों के स्वामित्व का हस्तांतरण करने वाले कानून भी शामिल थे जिनके अंतर्गत बीपीसीएल, एचपीसीएल और ओआईएल की स्थापना हुई थी। इनमें उन कानूनों का निरस्तीकरण भी शामिल था जिनके जरिए सीआईएल में विलय होने वाली कंपनियों के स्वामित्व को केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया था। इसका अर्थ यह है कि अब सरकार इन सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर सकती है, चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा रखी गई शर्तों को पूरा कर दिया गया है। इन रिपीलिंग और संशोधन एक्ट्स ने दूसरे कई राष्ट्रीयकरण एक्ट्स को भी निरस्त कर दिया जिनके अंतर्गत पीएसयूज़ की स्थापना की गई थी। निम्नलिखित तालिका में इनमें से कुछ कंपनियों की सूची दी गई है। उल्लेखनीय है कि भारतीय विधि आयोग (2014) ने इनमें से कई कानूनों (एसो एक्ट, बर्मा शेल एक्ट, बर्न कंपनी एक्ट सहित) को इस आधार पर निरस्त करने का सुझाव दिया था कि ये कानून राष्ट्रीयकृत कंपनी के संबंध में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। हालांकि यह सुझाव भी दिया गया था कि इन एक्ट्स को निरस्त करने से पहले सभी राष्ट्रीयकरण एक्ट्स का अध्ययन किया जाना चाहिए और अगर जरूरी हो तो रिपीलिंग एक्ट में सेविंग्स क्लॉज का प्रावधान किया जाना चाहिए।
क्या इन एक्ट्स को पारित करने से पहले संसद कोई जांच करती है?
इनमें से कई को रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 के जरिए निरस्त किया गया है। इनमें बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओआईएल, कोल इंडिया लिमिटेड, एससीआई, नेशनल टेक्सटाइल्स कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान कॉपर और बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड से संबंधित एक्ट्स शामिल हैं। इस बिल को पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी को रेफर नहीं किया गया और एक त्वरित बहस (लोकसभा में 50 मिनट और राज्यसभा में 20 मिनट) के बाद पारित कर दिया गया। इसी प्रकार 2017 में सेल, पावरग्रिड और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निजीकरण से संबंधित दो एक्ट्स पारित किए गए लेकिन उनकी समीक्षा भी स्टैंडिंग कमिटी द्वारा नहीं की गई।
अब क्या होगा?
एक्ट्स के निरस्तीकरण के बाद इन कंपनियों के निजीकरण के मार्ग की विधायी अड़चनें दूर हो गई हैं। इसका अर्थ यह है कि सरकार को उनकी शेयरहोल्डिंग को बेचने में संसद से पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसलिए अब सरकार यह निर्धारित करेगी कि इन संस्थाओं का निजीकरण करना है अथवा नहीं।
तालिका 1: 2014 से निरस्त किए गए कुछ राष्ट्रीयकरण एक्ट्स (सूची पूर्ण नहीं है)
कंपनी |
निरस्त होने वाले एक्ट |
रिपीलिंग एक्ट |
शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) |
जयंती शिपिंग कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
मुगल लाइन लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1984 |
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भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) |
बर्मा शेल (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) |
एस्सो (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1974 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कैल्टेक्स [कैल्टेक्स ऑयल रिफाइनरी (इंडिया) लिमिटेड के शेयरों और भारत में कैल्टेक्स (इंडिया) लिमिटेड के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1977 |
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कोसन गैस कंपनी (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1979 |
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कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) |
कोकिंग कोल माइन्स (आपात प्रावधान) एक्ट, 1971 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कोल माइन्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1973 |
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कोकिंग कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
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कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1973 |
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स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) |
बोलानी अयस्क लिमिटेड (शेयरों का अधिग्रहण) और विविध प्रावधान एक्ट, 1978 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
भारतीय आयरन और स्टील कंपनी (शेयरों का अधिग्रहण) एक्ट, 1976 |
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पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया |
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और द नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम्स का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1993 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (पावर ट्रांसमिशन सिस्टम का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1994 |
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ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) |
बर्मा ऑयल कंपनी [ऑयल इंडिया लिमिटेड के शेयरों और असम ऑयल कंपनी लिमिटेड तथा बर्मा ऑयल कंपनी (इंडिया ट्रेडिंग) लिमिटेड के भारत के उपक्रमों का अधिग्रहण] एक्ट, 1981 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी) |
टी कंपनीज़ (रुग्ण चाय इकाइयों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2017 |
नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीसी) |
रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
कपड़ा उपक्रम (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1983 |
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लक्ष्मीरतन और अथरटन वेस्ट कॉटन मिल्स (प्रबंधन को अधिकार में लेना) एक्ट, 1976 |
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हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड |
इंडियन कॉपर कॉरपोरेशन (उपक्रम का अधिग्रहण) एक्ट, 1972 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड |
बर्न कंपनी एंड इंडियन स्टैंडर्ड वैगन कंपनी (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
भारतीय रेलवे |
फतवा-इस्लामपुर लाइट रेलवे लाइन (राष्ट्रीयकरण) एक्ट, 1985 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2016 |
ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड, रेलवे मंत्रालय |
ब्रेथवेट एंड कंपनी (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1976 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ग्रेशन एंड क्रेवन ऑफ इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
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एंड्र्यू यूल एंड कंपनी लिमिटेड |
ब्रेंटफोर्ड इलेक्ट्रिक (इंडिया) लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1987 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
ट्रांसफॉर्मर्स एंड स्विचगियर लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1983 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
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एलकॉक एशडाउन (गुजरात) लिमिटेड, गुजरात सरकार का उपक्रम |
एल्कॉक एशडाउन कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण) एक्ट, 1973 |
रिपीलिंग और संशोधन एक्ट, 2019 |
बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (बीसीपीएल) |
बंगाल कैमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1980 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
फार्मास्युटिकल्स विभाग के अंतर्गत आने वाले संगठन |
स्मिथ, स्टेनस्ट्रीट एंड कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1977 |
रिपीलिंग और संशोधन (दूसरा) एक्ट, 2017 |
बंगाल इम्युनिटी कंपनी लिमिटेड (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1984 |
Sources: Repealing and Amending Act, 2015; Repealing and Amending (Second) Act, 2015; Repealing and Amending Act, 2016; Repealing and Amending Act, 2017; Repealing and Amending (Second) Act, 2017; Repealing and Amending Act, 2019.
कोविड-19 की महामारी के कारण सभी यात्री गाड़ियां 14 अप्रैल, 2020 तक रद्द हैं। हालांकि मालवाहक सेवाएं बहाल हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में अनिवार्य वस्तुएं पहुंचाने वाली गाड़ियां चल रही हैं। रेलवे ने ई-कॉमर्स कंपनियों और राज्य सरकारों सहित दूसरे ग्राहकों के लिए क्विक मास ट्रांसपोटेशन हेतु रेलवे पार्सल वैन्स भी उपलब्ध कराई है ताकि कुछ वस्तुओं का परिवहन किया जा सके। इनमें छोटे पार्सल साइज में मेडिकल सप्लाई, मेडिकल उपकरण, खाद्य पदार्थ इत्यादि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त रेलवे ने कोविड-19 के दौरान मदद हेतु कई दूसरे कदम भी उठाए हैं।
चूंकि यात्रा पर 23 मार्च से 14 अप्रैल, 2020 तक प्रतिबंध है (जोकि आगे भी बढ़ सकता है), इसने 2019-20 और 2020-21 में रेलवे की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है। इस पोस्ट में हम रेलवे की वित्तीय स्थिति पर चर्चा करेंगे और इस बात पर भी विचार विमर्श किया जाएगा कि यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे के राजस्व पर क्या संभावित असर हो सकता है।
रेलवे के आंतरिक राजस्व पर प्रतिबंध का प्रभाव
रेलवे को मुख्य रूप से यात्री यातायात और माल की ढुलाई से आंतरिक राजस्व प्राप्त होता है। 2018-19 में (हालिया वास्तविक) माल ढुलाई और यात्री यातायात से क्रमशः 67% और 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त हुआ था। शेष आंतरिक राजस्व विविध स्रोतों से प्राप्त हुआ था, जैसे पार्सल सेवा, कोचिंग रसीद और प्लेटफॉर्म टिकटों की बिक्री। 2020-21 में रेलवे को माल ढुलाई से 65% और यात्री यातायात से 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है।
यात्री यातायात: 2020-21 में रेलवे को यात्री यातायात से 61,000 करोड़ रुपए की आय होने की उम्मीद है, जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक हैं (56,000 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक यात्री यातायात से लगभग 48,801 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में यात्री राजस्व के संशोधित अनुमानों की तुलना में 7,199 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 13%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत यात्री राजस्व लगभग 4,432 करोड़ रुपए रहा है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में यात्री राजस्व 4,440 करोड़ रुपए था। 23 मार्च से यात्रा पर पूरी तरह से प्रतिबंध के कारण 2019-20 में रेलवे का यात्री राजस्व अपने लक्ष्य से कम हो जाएगा।
अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि देश भर में रेल यात्राएं हमेशा की तरह कब से शुरू होंगी। कुछ राज्यों ने लॉकडाउन को बढ़ाना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में यात्री राजस्व में गिरावट लॉकडाउन के इन तीन हफ्तों के बाद भी रह सकती है।
माल ढुलाई: 2020-21 में रेलवे को गुड्स ट्रैफिक से 1,47,000 करोड़ रुपए की कमाई की उम्मीद है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक है (1,34,733 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक माल ढुलाई से लगभग 1,08,658 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में माल ढुलाई के संशोधित अनुमानों की तुलना में 26,075 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 19%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत माल ढुलाई लगभग 10,029 करोड़ रुपए रही है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में माल ढुलाई 16,721 करोड़ रुपए था।
हालांकि यात्री यातायात पूरी तरह से प्रतिबंधित है, माल ढुलाई जारी है। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य वस्तुओं का परिवहन, कार्गो मूवमेंट के लिए रेलवे का परिचालन, राहत और निकासी तथा उससे संबंधित ऑपरेशनल संगठनों को अनुमति दी गई है। रेलवे की ढुलाई वाली अनेक वस्तुओं (कोयला, लौह अयस्क, स्टील, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, उर्वरक) को अनिवार्य वस्तुएं घोषित किया गया है। लॉकडाउन में रेलवे ने स्पेशल पार्सल रेलों को चलाना भी शुरू किया है (अनिवार्य वस्तुओं, ई-कॉमर्स गुड्स इत्यादि)। इन गतिविधियों से माल राजस्व प्राप्त होने में मदद मिलती रहेगी।
हालांकि कुछ ऐसी वस्तुएं जिनका परिवहन रेलवे करता है, जैसे सीमेंट, को अनिवार्य वस्तुओं में वर्गीकृत नहीं किया गया है। रेलवे के माल राजस्व में इन वस्तुओं के परिवहन का योगदान लगभग 8% है। रेलवे ने माल ढुलाई पर वसूले जाने वाले कई शुल्कों में राहत भी दी है। यह देखना अभी बाकी है कि क्या रेलवे माल राजस्व के अपने लक्ष्यों को पूरा कर पाता है।
रेखाचित्र 1: 2018-19 में माल ढुलाई का हिस्सा और राजस्व (% में)
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
माल ढुलाई यात्री यातायात को क्रॉस सब्सिडाइज़ करता है, इसकी स्थिति इस वर्ष और बुरी हो सकती है
रेलवे अपनी माल ढुलाई से प्राप्त लाभ का इस्तेमाल यात्री सेगमेंट के नुकसान की भरपाई करने और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए करता है। इस क्रॉस सब्सिडी से माल भाड़े में बढ़ोतरी हुई है। यात्रा पर प्रतिबंध और अगर लॉकडाउन (कुछ रूप में) जारी रहता है तो यात्री परिचालन को काफी नुकसान होगा। इससे माल ढुलाई पर क्रॉस सब्सिडी का दबाव और बढ़ सकता है। चूंकि रेलवे अपने माल भाड़े को और अधिक नहीं बढ़ा सकता, यह अस्पष्ट है कि यह क्रॉस सब्सिडी कैसे काम करेगी।
उदाहरण के लिए 2017-18 में यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं को 37,937 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, जबकि माल ढुलाई को 39,956 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। माल ढुलाई से प्राप्त लगभग 95% लाभ से यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं से होने नुकसान की भरपाई की गई। इस अवधि में कुल यात्री राजस्व 46,280 करोड़ रुपए था। इसका अर्थ यह था कि यात्री कारोबार में हुआ घाटा, रेलवे के राजस्व का 82% है। इसलिए 2017-18 में अपने यात्री कारोबार से रेलवे को अगर एक रुपए की आमदनी हुई तो उसने उस पर 1.82 रुपए खर्च किए।
रेलवे का व्यय
यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे अपनी सभी सेवाएं नहीं संचालित कर सकता, पर उसे अपने परिचालन व्यय का वहन करना होगा। कर्मचारियों का वेतन और पेंशन चुकानी होगी, जोकि कुल मिलाकर रेलवे का 66% राजस्व व्यय होता है। 2015 और 2020 के बीच (बजट अनुमान), वेतन पर रेलवे के व्यय में औसत 13% की दर से हर साल वृद्धि हुई है।
राजस्व व्यय का लगभग 18% ईंधन पर खर्च किया जाता है लेकिन तेल की कीमतों में गिरावट के कारण इसमें कुछ कमी देखी जा सकती है। रेलवे को रखरखाव, सुरक्षा और मूल्यह्रास पर खर्च करना ही होगा क्योंकि यह दीर्घावधि की लागत हैं जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त माल ढुलाई के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का नियमित रखरखाव भी जरूरी होगा।
राजस्व अधिशेष और परिचालन अनुपात और प्रभावित हो सकते हैं
रेलवे के अधिशेष को उसके कुल आंतरिक राजस्व और कुल राजस्व व्यय (कार्यचालन व्यय और पेंशन एवं मूल्य ह्रास कोष संबंधी विनियोग) के अंतर के आधार पर आंका जाता है। परिचालन अनुपात यातायात से अर्जित होने वाले राजस्व में कार्यचालन व्यय (रेलवे के रोजमर्रा के कामकाज में होने वाला व्यय) का अनुपात होता है। इसलिए उच्च अनुपात यह संकेत देता है कि रेलवे में अधिशेष अर्जित करने की क्षमता कम है जिनका उपयोग पूंजीगत निवेश के लिए किया जा सकता है, जैसे नई लाइनें बिछाना, नए कोच लगाना, इत्यादि। राजस्व अधिशेष में गिरावट से रेलवे की अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की क्षमता प्रभावित होती है।
पिछले एक दशक से रेलवे उच्च अधिशेष अर्जित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिणामस्वरूप परिचालन अनुपात एक दशक से भी अधिक समय से लगातार 90% से अधिक रहा है (रेखाचित्र 2)। 2018-19 में यह 92.8% के अनुमानित अनुपात की तुलना में 97.3% हो गया। कैग (2019) ने कहा कि 2018-19 के अग्रिम को प्राप्तियों में शामिल न किया जाता तो 2017-18 का परिचालन अनुपात 102.66% होता।
2020-21 में रेलवे द्वारा 6,500 करोड़ रुपए का अधिशेष अर्जित करने और परिचालन अनुपात के 96.2% पर बहाल रहने की उम्मीद है। लॉकडाउन के कारण राजस्व पर असर होगा तो इस अधिशेष में और गिरावट आ सकती है, और परिचालन अनुपात पर और बुरा असर हो सकता है।
रेखाचित्र 2: परिचालन अनुपात
Note: RE – Revised Estimates, BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
राजस्व के अन्य स्रोत
आंतरिक स्रोतों के अतिरिक्त रेलवे के वित्त पोषण के दो अन्य स्रोत होते हैं: (i) केंद्र सरकार से बजटीय समर्थन, और (ii) अतिरिक्त बजटीय संसाधन (जैसे प्राथमिक उधारियां, जिसमें संस्थागत वित्त पोषण, सार्वजनिक निजी सहभागिता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शामिल हैं)।
केंद्र सरकार से बजटीय सहयोग: केंद्र सरकार रेलवे को अपना नेटवर्क बढ़ाने और पूंजीगत व्यय में निवेश के लिए सहयोग देती है। 2020-21 में केंद्र सरकार से सकल बजटीय सहयोग 70,250 करोड़ रुपए प्रस्तावित है। यह 2019-20 के संशोधित अनुमानों से 3% अधिक है (68,105 करोड़ रुपए)। उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी के कारण सरकारी राजस्व भी प्रभावित हो रहा है, यह राशि भी वर्ष के दौरान कम हो सकती है।
उधारियां: रेलवे अधिकतर भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) के जरिए धनराशि उधार लेता है। आईआरएफसी बाजार से धनराशि लेता है (टैक्स योग्य तथा टैक्स मुक्त बॉन्ड इश्यूएंस, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से टर्म लोन्स), और फिर भारतीय रेलवे के रोलिंग स्टॉक एसेट्स और प्रॉजेक्ट एसेट्स को वित्त पोषित करने के लिए एक लीजिंग मॉडल का इस्तेमाल करता है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान उपलब्ध संसाधनों और व्यय के बीच के अंतर को कम करने के लिए उधारियां बढ़ाई गईं। जैसा कि पहले कहा गया है, रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को केंद्र सरकार के बजटीय सहयोग के जरिए पूरा किया जाता है। 2015-16 में इस प्रवृत्ति में बदलाव हुआ और रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को ईबीआर के जरिए पूरा किया गया। 2020-21 में ईबीआर के जरिए 83,292 करोड़ रुपए जुटाने का अनुमान है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों से कुछ अधिक हैं (83,247 करोड़ रुपए)।
उल्लेखनीय है कि इन दोनों स्रोतों को मुख्य रूप से रेलवे के पूंजीगत व्यय को वित्त पोषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। केंद्र सरकार के सहयोग के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल रणनीतिक लाइनों पर रेलवे को होने वाले परिचालनगत नुकसान और आईआरसीटीसी पर ई-टिकटिंग की परिचालन लागत की भरपाई के लिए किया जाता है (2020-21 के बजट अनुमानों के अनुसार 2,216 करोड़ रुपए)।
अगर इस वर्ष रेलवे की राजस्व प्राप्तियों में गिरावट होती है तो राजस्व व्यय को वित्त पोषित करने के लिए उसे केंद्र सरकार के अतिरिक्त सहयोग की जरूरत हो सकती है या वह उसे अपनी उधारियों के जरिए वित्त पोषित करेगा। हालांकि उधारियों पर अधिक निर्भरता से रेलवे की वित्तीय स्थिति और खराब हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान रेल आधारित माल ढुलाई और यात्री यातायात, दोनों की वृद्धि में गिरावट हुई है (देखें रेखाचित्र 3)। इससे माल ढुलाई और यात्री ट्रेनों के मुख्य कारोबार से रेलवे की आय प्रभावित हुई। राजस्व में गिरावट बढ़ने से भविष्य में रेलवे के अपने उधार चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी।
रेखाचित्र 3: माल ढुलाई और यात्री यातायात की मात्रा में वृद्धि (वर्ष दर वर्ष)
Note: RE – Revised Estimates; BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
रेलवे की सामाजिक सेवा
मालगाड़ियां चलाने के अतिरिक्त रेलवे ऐसे अनेक कार्य कर रहा है जोकि महामारी को नियंत्रित करने में मददगार हों। उदाहरण के लिए रेलवे की मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता का इस्तेमाल कोविड-19 से निपटने के लिए किया जा रहा है। रेलवे के उत्पादन केंद्रों में पीपीई गियर जैसी वस्तुएं बनाई जा रही हैं। रेलवे इस बात का पता भी कर रहा है कि साधारण बेड, मेडिकल ट्रॉली और वेंटिलेटर्स बनाने के लिए अपने मौजूदा मैन्यूफैक्चरिंग केंद्रों का इस्तेमाल कैसे किया जाए। जिन स्थानों पर आईआरसीटीसी बेस किचन मौजूद हैं, रेलवे ने वहां जरूरतमंद लोगों को थोक में पका हुआ खाना बांटना भी शुरू किया है। रेलवे ने कोविड मरीजों के लिए अपने अस्पताल भी खोल दिए हैं।
6 अप्रैल तक 2,500 रेलवे कोचों को आईसोलेशन कोचों में तब्दील किया गया था। देश में 133 स्थानों पर औसतन एक दिन में 375 कोचों को तब्दील किया गया है।
इस बात पर विचार करते हुए कि रेलवे सरकार के अंतर्गत एक कमर्शियल विभाग के रूप में कार्य करता है, सवाल यह उठता है कि क्या उसे ऐसी सामाजिक बाध्यताओं का पालन करना चाहिए। नीति आयोग (2016) ने कहा कि रेलवे के सामाजिक और कमर्शियल उद्देश्यों में स्पष्टता की कमी है। तर्क दिया जा सकता है कि महामारी के दौरान ऐसी सेवाओं को सार्वजनिक हित माना जाना चाहिए। फिर भी सवाल यह है कि ऐसी सेवाएं प्रदान करने का वित्तीय दबाव किसे वहन करना चाहिए? वह भारतीय रेलवे होना चाहिए या केंद्र अथवा राज्य सरकार को स्पष्ट सब्सिडी के रूप में यह राशि प्रदान करनी चाहिए?
देश और विभिन्न राज्यों में कोविड के दैनिक मामलों के संख्या संबंधी विवरण के लिए कृपया यहां देखें। केंद्र और राज्य द्वारा जारी कोविड संबंधी मुख्य अधिसूचनाओं के लिए कृपया यहां देखें। रेलवे के कामकाज और वित्तीय स्थिति पर विस्तृत विवरण कृपया यहां देखें और इस वर्ष के रेल बजट को समझने के लिए कृपया यहां देखें।