पिछले कुछ महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 101.8 रुपए प्रति लीटर और डीजल का 89.9 रुपए प्रति लीटर था। दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 105.5 रुपए प्रति लीटर था, और डीजल का 94.2 रुपए प्रति लीटर था। मुंबई में यह मूल्य और अधिक, क्रमशः 111.7 रुपए प्रति लीटर और 102.5 रुपए प्रति लीटर था।

दो शहरों में खुदरा मूल्यों में अंतर की वजह यह है कि एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूला जाता है। इस ब्लॉग में हम पेट्रोल और डीजल की मूल्य संरचना में कर घटकों पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही राज्यों में उनके उतार-चढ़ाव और हाल के वर्षों में इन उत्पादों पर टैक्सेशन में आए मुख्य बदलावों पर विचार कर रहे हैं। हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खुदरा मूल्य में क्या परिवर्तन हुए हैं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ उनकी तुलना की गई है।

टैक्स रीटेल कीमतों का करीब 50% होते हैं

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज़) भारत में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं। यह संशोधन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में होने वाले बदलावों के अनुसार किए जाते हैं। डीलर्स से ली जाने वाली कीमत में ओएमसीज़ द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल ढुलाई की कीमत शामिल होती है। 16 अक्टूबर, 2021 तक डीलर से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49है (तालिका 1)।

दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (16 अक्टूबर, 2021 तक) के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल के खुदरा मूल्य में 54हिस्सा केंद्र और राज्य टैक्स हैं। डीजल के मामले में यह 49के करीब है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन पर टैक्स लगाती है, जबकि राज्यों उनकी बिक्री पर टैक्स लगाते हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। यह पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का क्रमश: 31% और 34% है।

तालिका 1: दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों का ब्रेकअप (16 अक्टूबर, 2021 तक) 

घटक

पेट्रोल

डीजल

रुपए/लीटर

खुदरा मूल्य का % 

रुपए/लीटर

खुदरा मूल्य का % 

डीलर से लिया जाने वाला मूल्य

44.4

42%

46.0

49%

एक्साइज ड्यूटी (केंद्र द्वारा वसूली जाने वाली) 

32.9

31%

31.8

34%

डीलर का कमीशन (औसत) 

3.9

4%

2.6

3%

सेल्स टैक्स/वैट (राज्य द्वारा वसूला जाने वाला)

24.3

23%

13.8

15%

खुदरा मूल्य

105.5

100%

94.2

100%

 नोट: दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट और डीजल पर 16.75% वैट वसूलती है। 

स्रोत: भारतीय तेल निगम लिमिटेड; पीआरएस 

एक्साइज ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक समान हैं। राज्य सेल्स टैक्स/मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाते हैंजिनकी कर दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। जैसे ओड़िशा पेट्रोल पर 32वैट वसूलता है जबकि उत्तर प्रदेश 26.8% वैट या 18.74 रुपए प्रति लीटर -इनमें से जो भी अधिक हो- वसूलता है। विभिन्न राज्यों के टैक्सों के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका देखें। निम्नलिखित रेखाचित्र में पेट्रोल और डीजल पर राज्यों की विभिन्न टैक्स दरों को  दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए राज्यों द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स की दरें तमिलनाडु में 13% से लेकर राजस्थान में 36% और कर्नाटक एवं तेलंगाना में 35% तक हैं। रेखाचित्र में दर्शाई गई टैक्स दरों के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, कुछ अतिरिक्त वसूलियां भी करती हैं, जैसे सेस।

रेखाचित्र 1: पेट्रोल और डीजल पर राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की दरें (1 अक्टूबर, 2021 तक)

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नोट: महाराष्ट्र की दरें मुंबई-ठाणे क्षेत्र और राज्य के बाकी हिस्सों में लगाई गई दरों का औसत हैं। इस ग्राफ में सिर्फ प्रतिशत दर्शाए गए हैं।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।

 

उल्लेखनीय है कि एक्साइज ड्यूटी से अलग, सेल्स टैक्स एक यथामूल्य कर हैयानी इसका कोई निश्चित मूल्य नहीं हैऔर उत्पाद की कीमत के प्रतिशत के रूप में शुल्क लिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जबकि मूल्य संरचना में एक्साइज ड्यूटी के घटक का मूल्य निश्चित हैपर सेल्स टैक्स की कीमत अन्य तीन घटकों पर निर्भर हैयानी डीलरों से वसूला गया मूल्यडीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी।

कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारत में खुदरा मूल्य

पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के लिए आयात पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1998-99 में शुद्ध आयात कुल खपत का 69% था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 95% हो गया। घरेलू खपत में आयात का बड़ा हिस्सा है, इसी वजह से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी तरह के बदलाव का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित दो रेखाचित्रों में पिछले नौ वर्षों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों की प्रवृत्तियों को प्रदर्शित किया गया है।

रेखाचित्र 2: कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (दिल्ली में)

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नोट: वैश्विक कच्चे तेल की कीमत भारतीय बास्केट की है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें दिल्ली की हैं। रेखाचित्र औसत मासिक मूल्य दर्शाता है।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।

जून 2014 और अक्टूबर 2018 के बीच रीटेल बिक्री मूल्य कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप नहीं थे। जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट हई और फिर फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई। हालांकि इस पूरी अवधि के दौरान रीटेल बिक्री मूल्य स्थिर बने रहे। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय रीटेल कीमतों के अलग-अलग होने की वजह टैक्सों में होने वाले बदलाव थे। जैसे जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय कर क्रमशः 11 रुपए और 13 रुपए बढ़े। नतीजतन फरवरी 2016 और अक्टूबर 2018 के बीच पेट्रोल और डीजल पर करों में चार रुपए की गिरावट हुई। इसी तरह जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 69की जबरदस्त गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल और डीजल पर क्रमशः 10 रुपए प्रति लीटर और 13 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी 

एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में बढ़ोतरी 

मई 2020 में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप 2020-21 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन पिछले वर्ष (2019-20) में 2.38 लाख करोड़ से बढ़कर 3.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। परिणामस्वरूप इसके कलेक्शन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2019-20 में 4% से बढ़कर 2020-21 में 67% हो गई। हालांकिउस अवधि के दौरान सेल्स टैक्स कलेक्शन (पेट्रोलियम उत्पादों से) कमोबेश स्थिर रहा (रेखाचित्र 3)।

रेखाचित्र 3: पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स/वैट (लाख करोड़ रुपए में)

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 नोट: इस रेखाचित्र में एक्साइज ड्यूटी में कच्चे तेल पर लगने वाला सेस शामिल है।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस। 

एक्साइज ड्यूटी में राज्यों का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है

हालांकि केंद्र द्वारा केंद्रीय कर वसूले जाते हैं, उसे इन करों की वसूली से केवल 59राजस्व मिलता है। शेष 41राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित करना होता है, जैसा कि 15वें वित्त आयोग के सुझाव हैं। इन हस्तांतरित करों की प्रकृति अनटाइड होती है, यानी राज्य अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के दो बड़े घटक होते हैं: (i) टैक्स (यानी बेसिक एक्साइज ड्यूटी), और (ii) सेस और सरचार्ज। इनमें से केवल टैक्स से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सेस या सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता। वर्तमान में सरचार्ज के अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल पर वसूला जाने वाला सेस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस और सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेस होता है।

केंद्रीय बजट 2021-22 में पेट्रोल और डीजल पर कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस क्रमशः 2.5 रुपए प्रति लीटर और 4 रुपए प्रति लीटर घोषित किया गया था। हालांकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी और सरचार्ज को समान मात्रा में कम कर दिया गया था इसलिए इनकी दरें समान बनी रहीं। लेकिन इस प्रावधान से राज्यों के डिवाइजिबल टैक्स पूल से पेट्रोल का 1.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल से 3 रुपए प्रति लीटर का राजस्व, सेस और सरचार्ज राजस्व में पहुंच गया, जोकि पूरा का पूरा केंद्र का है। इसी तरह पिछले चार वर्षों के दौरान एक्साइज ड्यूटी में टैक्स का हिस्सा पेट्रोल पर 40% और डीजल पर 59% कम हुआ (देखें तालिका 2)। इस समय पेट्रोल (96%) और डीजल (94%) पर वसूली जाने वाली अधिकांश एक्साइज ड्यूटी सेस और सरचार्ज के रूप में है जिसके कारण यह पूरी तरह से केंद्र के हिस्से में जाती है (तालिका 2)। 

तालिका 2: एक्साइज ड्यूटी का ब्रेकअप (रुपए प्रति लीटर)

एक्साइज ड्यूटी

पेट्रोल

डीजल

अप्रैल-17

कुल का % हिस्सा

फरवरी-21

% हिस्सा

अप्रैल-17

कुल का % हिस्सा

फरवरी-21

% हिस्सा

टैक्स (राज्यों को हस्तांतरित) 

9.48

44%

1.4

4%

11.33

65%

1.8

6%

सेस और सरचार्ज (केंद्र) 

12

56%

31.5

96%

6

35%

30

94%

कुल

21.48

100%

32.9

100%

17.33

100%

31.8

100%

स्रोतपेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालयपीआरएस।

एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों के हस्तांतरण में पिछले चार वर्षों में गिरावट आई है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के बीच केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, इस अवधि के दौरान हस्तांतरित धनराशि 26,464 करोड़ रुपए से घटकर 19,578 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है। 

अनुलग्नक

तालिका 3: भारत में राज्यों के टैक्स/वैट

राज्य/यूटी

पेट्रोल

डीजल

सेल्स टैक्स/वैट

अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह

6%

6%

आंध्र प्रदेश

31% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और

उस पर वैट 

22.25% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट

अरुणाचल प्रदेश

20%

13%

असम

32.66% या 22.63 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक होवैट घटाकर रुपए प्रति लीटर की छूट

23.66% या 17.45 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक होवैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट

 

बिहार

26% या 16.65 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) 

19% या 12.33 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) 

चंडीगढ़

10 रुपए/केएल सेस+22.45% या 12.58 रुफए/लीटर जो भी अधिक हो

10 रुपए/केएल सेस+14.02% या 7.63 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

छत्तीसगढ़

25% वैट+2 रुपए/लीटर वैट

25% वैट+1 रुपए/लीटर वैट

दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव

20% वैट

20% वैट

दिल्ली

30% वैट

250 रुपए/केएल एयर एंबियंस चार्ज 16.75% वैट

गोवा

27% गोवा 0.5% ग्रीन सेस

23% वैट+ 0.5% ग्रीन सेस

गुजरात

20.1% वैट+ 4% टाउन रेट पर सेस और वैट

20.2% वैट+ % टाउन रेट पर सेस और वैट

हरियाणा

25% वैट या 15.62 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर

16.40% वैट या 10.08 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर

हिमाचल प्रदेश

25% या 15.50 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो

14% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो

जम्मू एवं कश्मीर

24% एमएसटी+.5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती

16% एमएसटी+ 1.50 रुपए/लीटर रोजगार सेस 

झारखंड

बिक्री मूल्य पर 22% या 17.00 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक हो 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस

बिक्री मूल्य का 22% या 12.50 रुपए प्रति लीटर जो भी अधिक हो 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस

कर्नाटक

35% सेल्स टैक्स

24% सेल्स टैक्स

केरल

30.08% सेल्स टैक्स+ रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स 1% सेस 

22.76% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स 1% सेस 

लद्दाख

24% एमएसटी+ 5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 2.5 रुपए/लीटर की कटौती

16% एमएसटी+ 1 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती

लक्षद्वीप

शून्य

शून्य

मध्य प्रदेश

33 % वैट 4.5 रुपए/लीटर वैट +1%सेस

23% वैट+ 3 रुपए/लीटर वैट +1% सेस

महाराष्ट्र- मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, अमरावती और औरंगाबाद

26% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

24% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

महराष्ट्र (शेष राज्य) 

25% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

21% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

मणिपुर

32% वैट

18% वैट

मेघालय

20% या 15.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) 

12% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज)  

मिजोरम

25% वैट

14.5% वैट

नागालैंड

25% वैट या 16.04 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो+ 5% सरचार्ज 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में 

16.50% वैट या 10.51 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो +5% सरचार्ज 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में

ओड़िशा

32% वैट

28% वैट

पुद्दूचेरी

23% वैट

17.75% वैट

पंजाब

2050 रुपए/केएल(सेस)+ 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+24.79% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर

1050 रुपए/केएल(सेस) + 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+ 15.94% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर

राजस्थान

36% वैट+ 1500 रुपए/केएल सड़क विकास सेस

26% वैट+ 1750 रुपए/केएल सड़क विकास सेस

सिक्किम

25.25% वैट+ 3000 रुपए/केएल सेस 

14.75% वैट + रुपए/केएल सेस 

तमिलनाडु

13% + 11.52 रुपए प्रति लीटर

11% + 9.62 रुपए प्रति लीटर

तेलंगाना

35.20% वैट

27% वैट

त्रिपुरा

25% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस

16.50% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस

उत्तर प्रदेश

26.80% या 18.74 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

उत्तराखंड

25% या 19 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

पश्चिम बंगाल

25% या 13.12 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस 1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर)

17% या 7.70 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस 1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर)

 

17वीं लोकसभा के पहले अविश्वास प्रस्ताव पर आज चर्चा शुरू हुई। अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव विश्वास मत होते हैं जिनका उपयोग सत्तासीन सरकार के लिए लोकसभा के समर्थन का परीक्षण या प्रदर्शन करने के लिए किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि सरकार सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। इसका मतलब यह है कि सरकार को हमेशा लोकसभा के अधिकांश सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इस समर्थन की जांच के लिए विश्वास मतों यानी ट्रस्ट वोट्स का उपयोग किया जाता है। अगर अधिकांश सदस्य अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करते हैं या विश्वास प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं तो सरकार इस्तीफा दे देती है।

अब तक 28 अविश्वास प्रस्तावों (आज जिस पर चर्चा हो रही है, उसके सहित) और 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे प्रस्तावों की संख्या कम हो गई है। 1960 के दशक के मध्य और 1970 के दशक के मध्य में अविश्वास प्रस्ताव अधिक देखे गए जबकि 1990 के दशक में विश्वास प्रस्ताव अधिक देखे गए।

रेखाचित्र 1संसद में विश्वास मत

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नोट: *अवधि 5 वर्ष से कम; **6 वर्ष का कार्यकाल।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय
; पीआरएस।

आज जिस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है, वह 26 जुलाई 2023 को पेश किया गया था। अविश्वास प्रस्ताव कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन से पेश किया जाता है। प्रस्ताव पर चर्चा के लिए समय आवंटित करने का अधिकार अध्यक्ष के पास है। प्रक्रिया के नियमों में कहा गया है कि प्रस्ताव पेश होने के 10 दिनों के भीतर चर्चा की जानी चाहिए। इस वर्ष अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के 13 कैलेंडर दिनों बाद चर्चा हुई। 26 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद से 12 बिल पेश किए गए हैं और 18 बिल लोकसभा ने पारित किए हैं। इससे पहले चार मौकों पर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, प्रस्ताव पेश होने के सात दिन बाद शुरू हुई थी। इन मौकों पर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने से पहले कई बिल्स और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हुई।

रेखाचित्र 2: लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में खड़े हुए सदस्य 

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स्रोत: संसद टीवी, लोकसभा, 26 जुलाई, 2023; पीआरएस।

रेखाचित्र 3: अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से लेकर चर्चा तक के दिनों की संख्या

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नोट: दिनों की संख्या का तात्पर्य कैलेंडर दिनों से है।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय
; पीआरएस।

अविश्वास प्रस्ताव (आज जिस प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है, उसे छोड़कर) पर औसत तीन दिनों में 13 घंटे चर्चा हुई है। चार मौकों पर चर्चा 20 घंटे से अधिक समय तक चली है, सबसे हाल में 2003 में। आज के अविश्वास प्रस्ताव पर कार्य मंत्रणा समिति ने 12 घंटे की चर्चा का समय आवंटित किया था।

चर्चा के बाद प्रस्ताव को मतदान के लिए रखा जाता है। 27 में से 26 अविश्वास प्रस्तावों (आज जिस पर चर्चा हो रही है, उसे छोड़कर) पर मतदान हो चुका है और उन्हें खारिज कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अविश्वास मत के बाद किसी भी सरकार को कभी इस्तीफा नहीं देना पड़ा है। एक अवसर पर, 1979 में मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा अनिर्णायक रही। प्रस्ताव पर मतदान होने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सभी अविश्वास प्रस्तावों में से 50% (28 में से 14) पर 1965 और 1975 के बीच चर्चा की गई। इनमें से 12 इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकारों के खिलाफ थे।

रेखाचित्र 4: अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की अवधि 

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नोट: इस रेखाचित्र में 26 जुलाई, 2023 को लाया गया अविश्वास प्रस्ताव शामिल नहीं है।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय
; पीआरएस।

इसकी तुलना में विश्वास प्रस्तावों का इतिहास अधिक विविध है। चरण सिंह की सरकार में विश्वास प्रदर्शित करने के लिए 1979 में लाए गए पहले प्रस्ताव पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई। चर्चा होने से पहले ही प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया। तब से लोकसभा में 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हुई हैजिनमें से नौ 1990 के दशक में हुए थे। इस अवधि के दौरान कई गठबंधन सरकारें बनीं और प्रधानमंत्रियों ने विश्वास प्रस्तावों के माध्यम से अपना बहुमत साबित करने की कोशिश की। इन प्रस्तावों पर दो दिनों में औसतन 12 घंटे तक चर्चा हुई है।

रेखाचित्र 5: विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की अवधि

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स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय; पीआरएस।

लोकसभा में जिन 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हुई, उनमें से सात स्वीकार कर लिए गए। तीन मामलों मेंसरकारों को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे यह साबित नहीं कर सकीं कि उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त था। 1996 में एक मौके पर प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया। इस विश्वास प्रस्ताव पर 11 घंटे की चर्चा के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन के पटल पर इस्तीफा देने के अपने इरादे की घोषणा की। उन्होंने अपने कार्यकाल के 16 दिन बाद इस्तीफा दे दिया।

1999 में वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने और उन्हें एक और विश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। इस बार इस पर मतदान कराया गया। प्रस्ताव एक वोट के अंतर से गिर गया। लोकसभा के इतिहास में विश्वास मत पर यह सबसे करीबी नतीजा है। अगला निकटतम परिणाम तब था, जब 1993 में पी वी नरसिंह राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया था। ज्यादातर मामलों मेंपरिणाम बड़े अंतर से सरकार के पक्ष में रहे हैं।