पिछले कुछ महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 101.8 रुपए प्रति लीटर और डीजल का 89.9 रुपए प्रति लीटर था। दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 105.5 रुपए प्रति लीटर था, और डीजल का 94.2 रुपए प्रति लीटर था। मुंबई में यह मूल्य और अधिक, क्रमशः 111.7 रुपए प्रति लीटर और 102.5 रुपए प्रति लीटर था।
दो शहरों में खुदरा मूल्यों में अंतर की वजह यह है कि एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूला जाता है। इस ब्लॉग में हम पेट्रोल और डीजल की मूल्य संरचना में कर घटकों पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही राज्यों में उनके उतार-चढ़ाव और हाल के वर्षों में इन उत्पादों पर टैक्सेशन में आए मुख्य बदलावों पर विचार कर रहे हैं। हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खुदरा मूल्य में क्या परिवर्तन हुए हैं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ उनकी तुलना की गई है।
टैक्स रीटेल कीमतों का करीब 50% होते हैं
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज़) भारत में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं। यह संशोधन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में होने वाले बदलावों के अनुसार किए जाते हैं। डीलर्स से ली जाने वाली कीमत में ओएमसीज़ द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल ढुलाई की कीमत शामिल होती है। 16 अक्टूबर, 2021 तक डीलर से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42% और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49% है (तालिका 1)।
दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (16 अक्टूबर, 2021 तक) के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल के खुदरा मूल्य में 54% हिस्सा केंद्र और राज्य टैक्स हैं। डीजल के मामले में यह 49% के करीब है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन पर टैक्स लगाती है, जबकि राज्यों उनकी बिक्री पर टैक्स लगाते हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। यह पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का क्रमश: 31% और 34% है।
तालिका 1: दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों का ब्रेकअप (16 अक्टूबर, 2021 तक)
घटक |
पेट्रोल |
डीजल |
||
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
|
डीलर से लिया जाने वाला मूल्य |
44.4 |
42% |
46.0 |
49% |
एक्साइज ड्यूटी (केंद्र द्वारा वसूली जाने वाली) |
32.9 |
31% |
31.8 |
34% |
डीलर का कमीशन (औसत) |
3.9 |
4% |
2.6 |
3% |
सेल्स टैक्स/वैट (राज्य द्वारा वसूला जाने वाला) |
24.3 |
23% |
13.8 |
15% |
खुदरा मूल्य |
105.5 |
100% |
94.2 |
100% |
नोट: दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट और डीजल पर 16.75% वैट वसूलती है।
स्रोत: भारतीय तेल निगम लिमिटेड; पीआरएस
एक्साइज ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक समान हैं। राज्य सेल्स टैक्स/मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाते हैं, जिनकी कर दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। जैसे ओड़िशा पेट्रोल पर 32% वैट वसूलता है जबकि उत्तर प्रदेश 26.8% वैट या 18.74 रुपए प्रति लीटर -इनमें से जो भी अधिक हो- वसूलता है। विभिन्न राज्यों के टैक्सों के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका देखें। निम्नलिखित रेखाचित्र में पेट्रोल और डीजल पर राज्यों की विभिन्न टैक्स दरों को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए राज्यों द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स की दरें तमिलनाडु में 13% से लेकर राजस्थान में 36% और कर्नाटक एवं तेलंगाना में 35% तक हैं। रेखाचित्र में दर्शाई गई टैक्स दरों के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, कुछ अतिरिक्त वसूलियां भी करती हैं, जैसे सेस।
रेखाचित्र 1: पेट्रोल और डीजल पर राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की दरें (1 अक्टूबर, 2021 तक)
नोट: महाराष्ट्र की दरें मुंबई-ठाणे क्षेत्र और राज्य के बाकी हिस्सों में लगाई गई दरों का औसत हैं। इस ग्राफ में सिर्फ प्रतिशत दर्शाए गए हैं।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
उल्लेखनीय है कि एक्साइज ड्यूटी से अलग, सेल्स टैक्स एक यथामूल्य कर है, यानी इसका कोई निश्चित मूल्य नहीं है, और उत्पाद की कीमत के प्रतिशत के रूप में शुल्क लिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जबकि मूल्य संरचना में एक्साइज ड्यूटी के घटक का मूल्य निश्चित है, पर सेल्स टैक्स की कीमत अन्य तीन घटकों पर निर्भर है, यानी डीलरों से वसूला गया मूल्य, डीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी।
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारत में खुदरा मूल्य
पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के लिए आयात पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1998-99 में शुद्ध आयात कुल खपत का 69% था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 95% हो गया। घरेलू खपत में आयात का बड़ा हिस्सा है, इसी वजह से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी तरह के बदलाव का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित दो रेखाचित्रों में पिछले नौ वर्षों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों की प्रवृत्तियों को प्रदर्शित किया गया है।
रेखाचित्र 2: कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (दिल्ली में)
नोट: वैश्विक कच्चे तेल की कीमत भारतीय बास्केट की है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें दिल्ली की हैं। रेखाचित्र औसत मासिक मूल्य दर्शाता है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
जून 2014 और अक्टूबर 2018 के बीच रीटेल बिक्री मूल्य कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप नहीं थे। जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट हई और फिर फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई। हालांकि इस पूरी अवधि के दौरान रीटेल बिक्री मूल्य स्थिर बने रहे। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय रीटेल कीमतों के अलग-अलग होने की वजह टैक्सों में होने वाले बदलाव थे। जैसे जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय कर क्रमशः 11 रुपए और 13 रुपए बढ़े। नतीजतन फरवरी 2016 और अक्टूबर 2018 के बीच पेट्रोल और डीजल पर करों में चार रुपए की गिरावट हुई। इसी तरह जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 69% की जबरदस्त गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल और डीजल पर क्रमशः 10 रुपए प्रति लीटर और 13 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी।
एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में बढ़ोतरी
मई 2020 में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप 2020-21 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन पिछले वर्ष (2019-20) में 2.38 लाख करोड़ से बढ़कर 3.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। परिणामस्वरूप इसके कलेक्शन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2019-20 में 4% से बढ़कर 2020-21 में 67% हो गई। हालांकि, उस अवधि के दौरान सेल्स टैक्स कलेक्शन (पेट्रोलियम उत्पादों से) कमोबेश स्थिर रहा (रेखाचित्र 3)।
रेखाचित्र 3: पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स/वैट (लाख करोड़ रुपए में)
नोट: इस रेखाचित्र में एक्साइज ड्यूटी में कच्चे तेल पर लगने वाला सेस शामिल है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी में राज्यों का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है
हालांकि केंद्र द्वारा केंद्रीय कर वसूले जाते हैं, उसे इन करों की वसूली से केवल 59% राजस्व मिलता है। शेष 41% राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित करना होता है, जैसा कि 15वें वित्त आयोग के सुझाव हैं। इन हस्तांतरित करों की प्रकृति अनटाइड होती है, यानी राज्य अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के दो बड़े घटक होते हैं: (i) टैक्स (यानी बेसिक एक्साइज ड्यूटी), और (ii) सेस और सरचार्ज। इनमें से केवल टैक्स से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सेस या सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता। वर्तमान में सरचार्ज के अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल पर वसूला जाने वाला सेस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस और सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेस होता है।
केंद्रीय बजट 2021-22 में पेट्रोल और डीजल पर कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस क्रमशः 2.5 रुपए प्रति लीटर और 4 रुपए प्रति लीटर घोषित किया गया था। हालांकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी और सरचार्ज को समान मात्रा में कम कर दिया गया था इसलिए इनकी दरें समान बनी रहीं। लेकिन इस प्रावधान से राज्यों के डिवाइजिबल टैक्स पूल से पेट्रोल का 1.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल से 3 रुपए प्रति लीटर का राजस्व, सेस और सरचार्ज राजस्व में पहुंच गया, जोकि पूरा का पूरा केंद्र का है। इसी तरह पिछले चार वर्षों के दौरान एक्साइज ड्यूटी में टैक्स का हिस्सा पेट्रोल पर 40% और डीजल पर 59% कम हुआ (देखें तालिका 2)। इस समय पेट्रोल (96%) और डीजल (94%) पर वसूली जाने वाली अधिकांश एक्साइज ड्यूटी सेस और सरचार्ज के रूप में है जिसके कारण यह पूरी तरह से केंद्र के हिस्से में जाती है (तालिका 2)।
तालिका 2: एक्साइज ड्यूटी का ब्रेकअप (रुपए प्रति लीटर)
एक्साइज ड्यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
||||||
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
|
टैक्स (राज्यों को हस्तांतरित) |
9.48 |
44% |
1.4 |
4% |
11.33 |
65% |
1.8 |
6% |
सेस और सरचार्ज (केंद्र) |
12 |
56% |
31.5 |
96% |
6 |
35% |
30 |
94% |
कुल |
21.48 |
100% |
32.9 |
100% |
17.33 |
100% |
31.8 |
100% |
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों के हस्तांतरण में पिछले चार वर्षों में गिरावट आई है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के बीच केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, इस अवधि के दौरान हस्तांतरित धनराशि 26,464 करोड़ रुपए से घटकर 19,578 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है।
अनुलग्नक
तालिका 3: भारत में राज्यों के टैक्स/वैट
राज्य/यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
सेल्स टैक्स/वैट |
||
अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह |
6% |
6% |
आंध्र प्रदेश |
31% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
22.25% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
अरुणाचल प्रदेश |
20% |
13% |
असम |
32.66% या 22.63 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट |
23.66% या 17.45 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट
|
बिहार |
26% या 16.65 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
19% या 12.33 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
चंडीगढ़ |
10 रुपए/केएल सेस+22.45% या 12.58 रुफए/लीटर जो भी अधिक हो |
10 रुपए/केएल सेस+14.02% या 7.63 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
छत्तीसगढ़ |
25% वैट+2 रुपए/लीटर वैट |
25% वैट+1 रुपए/लीटर वैट |
दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव |
20% वैट |
20% वैट |
दिल्ली |
30% वैट |
250 रुपए/केएल एयर एंबियंस चार्ज + 16.75% वैट |
गोवा |
27% गोवा + 0.5% ग्रीन सेस |
23% वैट+ 0.5% ग्रीन सेस |
गुजरात |
20.1% वैट+ 4% टाउन रेट पर सेस और वैट |
20.2% वैट+ 4 % टाउन रेट पर सेस और वैट |
हरियाणा |
25% वैट या 15.62 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
16.40% वैट या 10.08 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
हिमाचल प्रदेश |
25% या 15.50 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
14% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
जम्मू एवं कश्मीर |
24% एमएसटी+.5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1.50 रुपए/लीटर रोजगार सेस |
झारखंड |
बिक्री मूल्य पर 22% या 17.00 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
बिक्री मूल्य का 22% या 12.50 रुपए प्रति लीटर जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
कर्नाटक |
35% सेल्स टैक्स |
24% सेल्स टैक्स |
केरल |
30.08% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
22.76% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
लद्दाख |
24% एमएसटी+ 5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 2.5 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
लक्षद्वीप |
शून्य |
शून्य |
मध्य प्रदेश |
33 % वैट + 4.5 रुपए/लीटर वैट +1%सेस |
23% वैट+ 3 रुपए/लीटर वैट +1% सेस |
महाराष्ट्र- मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, अमरावती और औरंगाबाद |
26% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
24% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
महराष्ट्र (शेष राज्य) |
25% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
21% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
मणिपुर |
32% वैट |
18% वैट |
मेघालय |
20% या 15.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
12% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
मिजोरम |
25% वैट |
14.5% वैट |
नागालैंड |
25% वैट या 16.04 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो+ 5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
16.50% वैट या 10.51 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो +5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
ओड़िशा |
32% वैट |
28% वैट |
पुद्दूचेरी |
23% वैट |
17.75% वैट |
पंजाब |
2050 रुपए/केएल(सेस)+ 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+24.79% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
1050 रुपए/केएल(सेस) + 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+ 15.94% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
राजस्थान |
36% वैट+ 1500 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
26% वैट+ 1750 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
सिक्किम |
25.25% वैट+ 3000 रुपए/केएल सेस |
14.75% वैट + रुपए/केएल सेस |
तमिलनाडु |
13% + 11.52 रुपए प्रति लीटर |
11% + 9.62 रुपए प्रति लीटर |
तेलंगाना |
35.20% वैट |
27% वैट |
त्रिपुरा |
25% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
16.50% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
उत्तर प्रदेश |
26.80% या 18.74 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
उत्तराखंड |
25% या 19 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
पश्चिम बंगाल |
25% या 13.12 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |
17% या 7.70 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |
14 मार्च, 2022 को राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के कामकाज पर चर्चा की। चर्चा के दौरान बजटीय आबंटन, योजनाओं के कार्यान्वयन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया गया। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित विकास योजनाओं और प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने, उनके कार्यान्वयन और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मंत्रालय के लिए 2022-23 के बजटीय आबंटनों का विश्लेषण करेंगे और उससे संबंधित विषयों पर विचार करेंगे।
इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पीएम-डिवाइन नामक नई योजना की घोषणा
2022-23 में मंत्रालय के आबंटन में 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5% की वृद्धि हुई है। मंत्रालय को 2,800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसे पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना और पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। तालिका 1 में मंत्रालय के बजटीय आबंटन का क्षेत्रवार ब्रेकअप दिया गया है।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर विकास पहल (पीएम-डिवाइन) नाम की एक नई योजना की घोषणा की थी। इसे पूर्वोत्तर परिषद (पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी) द्वारा लागू किया जाएगा। पीएम-डिवाइन सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करेगी। यह योजना मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र या केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं का स्थान नहीं लेगी, या उन्हें समाहित नहीं करेगी। योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का शुरुआती आबंटन किया जाएगा।
तालिका 1: पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के आबंटन का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में)
प्रमुख मद |
2020-21 वास्तविक |
2021-22 बअ |
2021-22 संअ |
2022-23 बअ |
2021-22 संअ से 2022-23 बअ से परिवर्तन का % |
पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना |
446 |
675 |
674 |
1,419 |
111% |
पूर्वोत्तर परिषद की योजनाएं |
567 |
585 |
585 |
702 |
20% |
पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना |
416 |
696 |
674 |
496 |
-26% |
पूर्वोत्तर एवं सिक्किम के लिए संसाधनों का केंद्रीय पूल |
342 |
581 |
581 |
- |
- |
अन्य |
270 |
322 |
344 |
241 |
-30% |
कुल |
1,854 |
2,658 |
2,658 |
2,800 |
5% |
नोट: बअ– बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; पूर्वोत्तर परिषद की योजनाओं में विशेष विकास परियोजनाएं शामिल हैं।
स्रोत: 2022-23 के केंद्रीय बजट दस्तावेजों की मांग संख्या 23; पीआरएस।
पूंजीगत परिव्यय के लिए मांग से कम आबंटन
गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि मंत्रालय ने जितनी मांग (794 करोड़ रुपए) की थी, उसके मुकाबले 2022-23 के बजट चरण में आबंटित राशि (660 करोड़ रुपए) 17% कम है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिसके जरिए स्कूल, अस्पतालों, सड़क एवं पुलों जैसी परिसंपत्तियों का सृजन होता है। कमिटी ने गौर किया कि इससे उन परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन पर गंभीर असर हो सकता है जिनके लिए पूंजीगत परिव्यय की जरूरत होती है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस विषय में वित्त मंत्रालय से बात करनी चाहिए और वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित चरण में अतिरिक्त सहायता की मांग करनी चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों में धनराशि की पूरा उपयोग नहीं किया गया
2011-12 (2016-17 को छोड़कर) के बाद से मंत्रालय बजटीय चरण में आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं कर पाया है (रेखाचित्र 1)। उदाहरण के लिए 2020-21 में पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के मामले में धनराशि का 52% उपयोग किया गया, जबकि पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (जलापूर्ति, बिजली, कनेक्टिविटी, सोशल इंफ्रास्ट्रक्टर से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स) के अंतर्गत केवल 34% धनराशि का उपयोग किया गया। मंत्रालय ने धनराशि के उपयोग न हो पाने के कई कारण बताए। इनमें परियोजनाओं के प्रस्ताव देर से प्राप्त होना और राज्य सरकारों की तरफ से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स प्राप्त न होना शामिल है।
रेखाचित्र 1: 2011-12 के बाद मंत्रालय द्वारा धनराशि का पूरा उपयोग न करना
नोट: संशोधित अनुमान का उपयोग 2021-22 के वास्तविक व्यय के तौर पर किया गया है।
स्रोत: केंद्रीय बजट दस्तावेज (2011-12 से 2022-23); पीआरएस।
परियोजनाओं की धीमी रफ्तार
मंत्रालय सड़क एवं पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। कुछ योजनाओं की प्रगति अपर्याप्त रही है। स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत कई सड़क परियोजनाओं की भौतिक प्रगति या तो शून्य है, या सिंगल डिजिट परसेंट में है, इसके बावजूद कि परियोजना के लिए धनराशि जारी की जा चुकी है। इसी तरह करबी अंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (असम में स्वायत्त जिला परिषद) तथा सामाजिक एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़क, पुलों का निर्माण, और स्कूलों एवं जलापूर्ति परियोजनाओं का निर्माण) के अंतर्गत परियोजनाओं की अपर्याप्त प्रगति देखी गई है।
घटते वन आवरण पर ध्यान देने की जरूरत
स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को वन आवरण के संरक्षण के लिए काम करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने पूर्वोत्तर भारत में वन आवरण के घटने पर भी ध्यान दिया। भारतीय वनों की स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच जिन राज्यों के वन आवरण को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं: (i) अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किलोमीटर वन आवरण का नुकसान), (ii) मणिपुर (249 वर्ग किलोमीटर), (iii) नागालैंड (235 वर्ग किलोमीटर), (iv) मिजोरम (186 वर्ग किलोमीटर), और (v) मेघालय (73 वर्ग किलोमीटर)। वन आवरण में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे झूम खेती, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएं, मानवजनित (पर्यावरणीय प्रदूषण) दबाव और विकासपरक गतिविधियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के विभिन्न उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और निर्धारित समय अवधि में उन्हें लागू किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए: (i) वन आवरण/घनत्व को बढ़ाने के लिए नियमित पौधरोपण करना चाहिए, और (ii) केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत वनों के संरक्षण के अंतिम लक्ष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।
राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण विषय उठाए
राज्यसभा में 14 मार्च, 2022 को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की गई। सदस्यों ने जिन विषयों को उठाया, उनमें से एक यह था कि मंत्रालय के पास अपना लाइन विभाग नहीं है। इस वजह से मंत्रालय को परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के प्रशासनिक बल पर निर्भर रहना पड़ता है। कई दूसरे सदस्यों ने यह भी कहा कि क्षेत्र रेलवे और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है जिससे इसका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। सदन में इसके जवाब में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग और दूरसंचार के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार करने के निरंतर प्रयास कर रही है।
पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के आबंटन
केंद्रीय मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर के लिए अपना 10% बजट आबंटित किया (धनराशि के आबंटन और उपयोग के लिए रेखाचित्र 2 को देखें)। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय वह नोडल मंत्रालय है जोकि विभिन्न मंत्रालयों के आबंटनों की निगरानी करता है। 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सभी मंत्रालयों ने 76,040 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों (68,440 करोड़ रुपए) के मुकाबले इसमें 11% की वृद्धि है। 2019-20 और 2021-22 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए वास्तविक व्यय बजट अनुमान से क्रमशः 18% और 19% कम था।
रेखाचित्र 2: पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)
स्रोत: रिपोर्ट संख्या 239: पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अनुदान मांग (2022-23), गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।