पिछले कुछ महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 101.8 रुपए प्रति लीटर और डीजल का 89.9 रुपए प्रति लीटर था। दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 105.5 रुपए प्रति लीटर था, और डीजल का 94.2 रुपए प्रति लीटर था। मुंबई में यह मूल्य और अधिक, क्रमशः 111.7 रुपए प्रति लीटर और 102.5 रुपए प्रति लीटर था।

दो शहरों में खुदरा मूल्यों में अंतर की वजह यह है कि एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूला जाता है। इस ब्लॉग में हम पेट्रोल और डीजल की मूल्य संरचना में कर घटकों पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही राज्यों में उनके उतार-चढ़ाव और हाल के वर्षों में इन उत्पादों पर टैक्सेशन में आए मुख्य बदलावों पर विचार कर रहे हैं। हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खुदरा मूल्य में क्या परिवर्तन हुए हैं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ उनकी तुलना की गई है।

टैक्स रीटेल कीमतों का करीब 50% होते हैं

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज़) भारत में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं। यह संशोधन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में होने वाले बदलावों के अनुसार किए जाते हैं। डीलर्स से ली जाने वाली कीमत में ओएमसीज़ द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल ढुलाई की कीमत शामिल होती है। 16 अक्टूबर, 2021 तक डीलर से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49है (तालिका 1)।

दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (16 अक्टूबर, 2021 तक) के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल के खुदरा मूल्य में 54हिस्सा केंद्र और राज्य टैक्स हैं। डीजल के मामले में यह 49के करीब है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन पर टैक्स लगाती है, जबकि राज्यों उनकी बिक्री पर टैक्स लगाते हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। यह पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का क्रमश: 31% और 34% है।

तालिका 1: दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों का ब्रेकअप (16 अक्टूबर, 2021 तक) 

घटक

पेट्रोल

डीजल

रुपए/लीटर

खुदरा मूल्य का % 

रुपए/लीटर

खुदरा मूल्य का % 

डीलर से लिया जाने वाला मूल्य

44.4

42%

46.0

49%

एक्साइज ड्यूटी (केंद्र द्वारा वसूली जाने वाली) 

32.9

31%

31.8

34%

डीलर का कमीशन (औसत) 

3.9

4%

2.6

3%

सेल्स टैक्स/वैट (राज्य द्वारा वसूला जाने वाला)

24.3

23%

13.8

15%

खुदरा मूल्य

105.5

100%

94.2

100%

 नोट: दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट और डीजल पर 16.75% वैट वसूलती है। 

स्रोत: भारतीय तेल निगम लिमिटेड; पीआरएस 

एक्साइज ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक समान हैं। राज्य सेल्स टैक्स/मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाते हैंजिनकी कर दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। जैसे ओड़िशा पेट्रोल पर 32वैट वसूलता है जबकि उत्तर प्रदेश 26.8% वैट या 18.74 रुपए प्रति लीटर -इनमें से जो भी अधिक हो- वसूलता है। विभिन्न राज्यों के टैक्सों के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका देखें। निम्नलिखित रेखाचित्र में पेट्रोल और डीजल पर राज्यों की विभिन्न टैक्स दरों को  दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए राज्यों द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स की दरें तमिलनाडु में 13% से लेकर राजस्थान में 36% और कर्नाटक एवं तेलंगाना में 35% तक हैं। रेखाचित्र में दर्शाई गई टैक्स दरों के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, कुछ अतिरिक्त वसूलियां भी करती हैं, जैसे सेस।

रेखाचित्र 1: पेट्रोल और डीजल पर राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की दरें (1 अक्टूबर, 2021 तक)

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नोट: महाराष्ट्र की दरें मुंबई-ठाणे क्षेत्र और राज्य के बाकी हिस्सों में लगाई गई दरों का औसत हैं। इस ग्राफ में सिर्फ प्रतिशत दर्शाए गए हैं।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।

 

उल्लेखनीय है कि एक्साइज ड्यूटी से अलग, सेल्स टैक्स एक यथामूल्य कर हैयानी इसका कोई निश्चित मूल्य नहीं हैऔर उत्पाद की कीमत के प्रतिशत के रूप में शुल्क लिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जबकि मूल्य संरचना में एक्साइज ड्यूटी के घटक का मूल्य निश्चित हैपर सेल्स टैक्स की कीमत अन्य तीन घटकों पर निर्भर हैयानी डीलरों से वसूला गया मूल्यडीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी।

कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारत में खुदरा मूल्य

पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के लिए आयात पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1998-99 में शुद्ध आयात कुल खपत का 69% था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 95% हो गया। घरेलू खपत में आयात का बड़ा हिस्सा है, इसी वजह से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी तरह के बदलाव का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित दो रेखाचित्रों में पिछले नौ वर्षों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों की प्रवृत्तियों को प्रदर्शित किया गया है।

रेखाचित्र 2: कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (दिल्ली में)

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नोट: वैश्विक कच्चे तेल की कीमत भारतीय बास्केट की है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें दिल्ली की हैं। रेखाचित्र औसत मासिक मूल्य दर्शाता है।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।

जून 2014 और अक्टूबर 2018 के बीच रीटेल बिक्री मूल्य कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप नहीं थे। जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट हई और फिर फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई। हालांकि इस पूरी अवधि के दौरान रीटेल बिक्री मूल्य स्थिर बने रहे। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय रीटेल कीमतों के अलग-अलग होने की वजह टैक्सों में होने वाले बदलाव थे। जैसे जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय कर क्रमशः 11 रुपए और 13 रुपए बढ़े। नतीजतन फरवरी 2016 और अक्टूबर 2018 के बीच पेट्रोल और डीजल पर करों में चार रुपए की गिरावट हुई। इसी तरह जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 69की जबरदस्त गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल और डीजल पर क्रमशः 10 रुपए प्रति लीटर और 13 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी 

एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में बढ़ोतरी 

मई 2020 में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप 2020-21 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन पिछले वर्ष (2019-20) में 2.38 लाख करोड़ से बढ़कर 3.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। परिणामस्वरूप इसके कलेक्शन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2019-20 में 4% से बढ़कर 2020-21 में 67% हो गई। हालांकिउस अवधि के दौरान सेल्स टैक्स कलेक्शन (पेट्रोलियम उत्पादों से) कमोबेश स्थिर रहा (रेखाचित्र 3)।

रेखाचित्र 3: पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स/वैट (लाख करोड़ रुपए में)

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 नोट: इस रेखाचित्र में एक्साइज ड्यूटी में कच्चे तेल पर लगने वाला सेस शामिल है।

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस। 

एक्साइज ड्यूटी में राज्यों का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है

हालांकि केंद्र द्वारा केंद्रीय कर वसूले जाते हैं, उसे इन करों की वसूली से केवल 59राजस्व मिलता है। शेष 41राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित करना होता है, जैसा कि 15वें वित्त आयोग के सुझाव हैं। इन हस्तांतरित करों की प्रकृति अनटाइड होती है, यानी राज्य अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के दो बड़े घटक होते हैं: (i) टैक्स (यानी बेसिक एक्साइज ड्यूटी), और (ii) सेस और सरचार्ज। इनमें से केवल टैक्स से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सेस या सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता। वर्तमान में सरचार्ज के अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल पर वसूला जाने वाला सेस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस और सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेस होता है।

केंद्रीय बजट 2021-22 में पेट्रोल और डीजल पर कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस क्रमशः 2.5 रुपए प्रति लीटर और 4 रुपए प्रति लीटर घोषित किया गया था। हालांकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी और सरचार्ज को समान मात्रा में कम कर दिया गया था इसलिए इनकी दरें समान बनी रहीं। लेकिन इस प्रावधान से राज्यों के डिवाइजिबल टैक्स पूल से पेट्रोल का 1.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल से 3 रुपए प्रति लीटर का राजस्व, सेस और सरचार्ज राजस्व में पहुंच गया, जोकि पूरा का पूरा केंद्र का है। इसी तरह पिछले चार वर्षों के दौरान एक्साइज ड्यूटी में टैक्स का हिस्सा पेट्रोल पर 40% और डीजल पर 59% कम हुआ (देखें तालिका 2)। इस समय पेट्रोल (96%) और डीजल (94%) पर वसूली जाने वाली अधिकांश एक्साइज ड्यूटी सेस और सरचार्ज के रूप में है जिसके कारण यह पूरी तरह से केंद्र के हिस्से में जाती है (तालिका 2)। 

तालिका 2: एक्साइज ड्यूटी का ब्रेकअप (रुपए प्रति लीटर)

एक्साइज ड्यूटी

पेट्रोल

डीजल

अप्रैल-17

कुल का % हिस्सा

फरवरी-21

% हिस्सा

अप्रैल-17

कुल का % हिस्सा

फरवरी-21

% हिस्सा

टैक्स (राज्यों को हस्तांतरित) 

9.48

44%

1.4

4%

11.33

65%

1.8

6%

सेस और सरचार्ज (केंद्र) 

12

56%

31.5

96%

6

35%

30

94%

कुल

21.48

100%

32.9

100%

17.33

100%

31.8

100%

स्रोतपेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालयपीआरएस।

एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों के हस्तांतरण में पिछले चार वर्षों में गिरावट आई है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के बीच केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, इस अवधि के दौरान हस्तांतरित धनराशि 26,464 करोड़ रुपए से घटकर 19,578 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है। 

अनुलग्नक

तालिका 3: भारत में राज्यों के टैक्स/वैट

राज्य/यूटी

पेट्रोल

डीजल

सेल्स टैक्स/वैट

अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह

6%

6%

आंध्र प्रदेश

31% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और

उस पर वैट 

22.25% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट

अरुणाचल प्रदेश

20%

13%

असम

32.66% या 22.63 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक होवैट घटाकर रुपए प्रति लीटर की छूट

23.66% या 17.45 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक होवैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट

 

बिहार

26% या 16.65 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) 

19% या 12.33 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) 

चंडीगढ़

10 रुपए/केएल सेस+22.45% या 12.58 रुफए/लीटर जो भी अधिक हो

10 रुपए/केएल सेस+14.02% या 7.63 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

छत्तीसगढ़

25% वैट+2 रुपए/लीटर वैट

25% वैट+1 रुपए/लीटर वैट

दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव

20% वैट

20% वैट

दिल्ली

30% वैट

250 रुपए/केएल एयर एंबियंस चार्ज 16.75% वैट

गोवा

27% गोवा 0.5% ग्रीन सेस

23% वैट+ 0.5% ग्रीन सेस

गुजरात

20.1% वैट+ 4% टाउन रेट पर सेस और वैट

20.2% वैट+ % टाउन रेट पर सेस और वैट

हरियाणा

25% वैट या 15.62 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर

16.40% वैट या 10.08 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर

हिमाचल प्रदेश

25% या 15.50 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो

14% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो

जम्मू एवं कश्मीर

24% एमएसटी+.5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती

16% एमएसटी+ 1.50 रुपए/लीटर रोजगार सेस 

झारखंड

बिक्री मूल्य पर 22% या 17.00 रुपए प्रति लीटरजो भी अधिक हो 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस

बिक्री मूल्य का 22% या 12.50 रुपए प्रति लीटर जो भी अधिक हो 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस

कर्नाटक

35% सेल्स टैक्स

24% सेल्स टैक्स

केरल

30.08% सेल्स टैक्स+ रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स 1% सेस 

22.76% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स 1% सेस 

लद्दाख

24% एमएसटी+ 5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 2.5 रुपए/लीटर की कटौती

16% एमएसटी+ 1 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती

लक्षद्वीप

शून्य

शून्य

मध्य प्रदेश

33 % वैट 4.5 रुपए/लीटर वैट +1%सेस

23% वैट+ 3 रुपए/लीटर वैट +1% सेस

महाराष्ट्र- मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, अमरावती और औरंगाबाद

26% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

24% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

महराष्ट्र (शेष राज्य) 

25% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

21% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर 

मणिपुर

32% वैट

18% वैट

मेघालय

20% या 15.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) 

12% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज)  

मिजोरम

25% वैट

14.5% वैट

नागालैंड

25% वैट या 16.04 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो+ 5% सरचार्ज 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में 

16.50% वैट या 10.51 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो +5% सरचार्ज 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में

ओड़िशा

32% वैट

28% वैट

पुद्दूचेरी

23% वैट

17.75% वैट

पंजाब

2050 रुपए/केएल(सेस)+ 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+24.79% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर

1050 रुपए/केएल(सेस) + 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+ 15.94% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर

राजस्थान

36% वैट+ 1500 रुपए/केएल सड़क विकास सेस

26% वैट+ 1750 रुपए/केएल सड़क विकास सेस

सिक्किम

25.25% वैट+ 3000 रुपए/केएल सेस 

14.75% वैट + रुपए/केएल सेस 

तमिलनाडु

13% + 11.52 रुपए प्रति लीटर

11% + 9.62 रुपए प्रति लीटर

तेलंगाना

35.20% वैट

27% वैट

त्रिपुरा

25% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस

16.50% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस

उत्तर प्रदेश

26.80% या 18.74 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

उत्तराखंड

25% या 19 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो

पश्चिम बंगाल

25% या 13.12 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस 1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर)

17% या 7.70 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस 1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर)

 

 30 नवंबर, 2022 को उत्तराखंड विधानसभा का दो दिवसीय सत्र समाप्त हो गया। पहले यह सत्र पांच दिनों के लिए निर्धारित था। इस पोस्ट में हम विधानसभा में विधायी कामकाज और राज्य विधानमंडलों की स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। 

दो दिनों में 13 बिल पेश और पारित

सेशन एजेंडा के अनुसार, दो दिनों में कुल 19 बिल पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध थे। इनमें से 13 पर दूसरे दिन चर्चा होनी थी और उन्हें पारित किया जाना था। इनमें उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता संरक्षण (संशोधन) बिल, 2022, पेट्रोलियम एवं ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय (संशोधन) बिल, 2022 और उत्तराखंड कूड़ा फेंकना और थूकना प्रतिषेध (संशोधन) बिल, 2022 शामिल हैं।

विधानसभा ने पांच मिनट के भीतर प्रत्येक बिल (दो को छोड़कर) पर चर्चा करने और उसे पारित करने का प्रस्ताव रखा था (देखें रेखाचित्र 1)। दो बिल्स पर चर्चा और उन्हें पारित करने के लिए 20 मिनट का समय दिया गया था। ये दो बिल हैं- हरिद्वार विश्वविद्यालय बिल, 2022 और सार्वजनिक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) बिल, 2022। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार विधानसभा ने इन दो दिनों में सभी 13 बिल्स को पारित किया (इनमें एप्रोप्रिएशन बिल्स शामिल नहीं हैं)। इससे यह सवाल उठता है कि इन बिल्स की कितनी जांच पड़ताल की गई और जब विधायक उन्हें चंद मिनटों में पारित करने की इच्छा रखते हैं तो इन बिल्स की कितनी समीक्षा हो पाएगी, और उनकी क्वालिटी क्या होगी।

रेखाचित्र 1: उत्तराखंड विधानसभा के नवंबर 2022 के सेशन एजेंडा के एक हिस्सा 

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कानून निर्माण के लिए चर्चा और जांच पड़ताल जरूरी

हमारे कानून निर्माण संस्थानों के पास ऐसे कई उपाय होते हैं जिससे यह सुनिश्चित हो कि किसी कानून के पारित होने से पहले, उसके विभिन्न पहलुओं की विस्तार से जांच पड़ताल की गई है जैसे संवैधानिकता, स्पष्टता और उसके प्रावधानों को लागू करने के लिए राज्य की वित्तीय और तकनीकी क्षमता। बिल को लाने वाला मंत्रालय/विभाग सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिए बिल के ड्राफ्ट को साझा कर सकता है (पूर्व विधायी जांच)। बिल पेश होने के साथ, सदस्य प्रस्तावित कानून की संवैधानिकता का मुद्दा उठा सकते हैं। एक बार पेश होने के बाद बिल्स को विधायी समितियों के पास भेजा जा सकता है ताकि उनकी विस्तृत समीक्षा की जा सके। इससे विधायक और सांसद प्रत्येक प्रावधान पर गहराई से विचार विमर्श कर सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि क्या किसी प्रावधान के संबंध में कोई संवैधानिक चुनौती है या कोई दूसरा मुद्दा। इस प्रक्रिया के दौरान विशेषज्ञों और प्रभावित होने वाले हितधारकों को प्रावधानों पर अपना योगदान देने, मुद्दों को उठाने और कानून को मजबूत करने में मदद देने का भी मौका मिलता है। 

हालांकि जब कुछ ही मिनटों में बिल को पेश और पारित किया जाता है तो उससे विधायकों को उसके प्रावधानों को समझने और उसके प्रभावों, विभिन्न मुद्दों और प्रभावित पक्षों के लिए कानून में सुधार करने के तरीकों पर विचार करने का समय कम ही मिलता है। इससे यह प्रश्न भी उठता है कि चर्चा के बिना हड़बड़ी में कानून पारित करने के पीछे विधायिका की मंशा क्या है। अक्सर सोचे-समझे बिना बनाए जाने वाले कानूनों को अदालतों में चुनौती भी दी जाती है। 

उदाहरण के लिए उत्तराखंड विधानसभा ने इस सत्र में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) बिल, 2022 को पारित किया (बिल पर चर्चा और उसे पारित करने के लिए पांच मिनट दिए गए थे)। यह बिल, 2018 के एक्ट में संशोधन करता है जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन किए जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है और यह प्रावधान किया गया है कि लालच देकर, या शादी के जरिए धर्म परिवर्तन गैरकानूनी होगा। बिल में यह प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन के लिए जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम) को अतिरिक्त नोटिस देना होगा और किसी व्यक्ति के एकदम पहले के धर्म में दोबारा धर्मांतरण करने को धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा। इनमें से कई प्रावधान उन दूसरे कानूनों के समान हैं जिन्हें राज्यों ने पारित किया और अदालतों ने उन्हें निरस्त कर दिया या उन्हें चुनौती दी गई। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता एक्ट, 2021 की जांच करते हुए कहा था कि धर्म परिवर्तन के लिए डीएम को नोटिस देने वाला प्रावधान निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, चूंकि इस अधिकार में चुप रहने का अधिकार शामिल है। इसके अलावा इसमें व्यक्ति का अपनी आस्था को चुनने का फैसला भी आता है। हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता एक्ट, 2006 में उन लोगों को सार्वजनिक नोटिस देने से छूट दी गई थी जो अपने मूल धर्म में दोबारा धर्म परिवर्तन करते हैं। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भेदभावकारी और समानता के अधिकार का उल्लंघन कहकर रद्द कर दिया था। अदालत ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर लोगों के अपने विश्वास को बदलने के अधिकार को नहीं छीना जा सकता। 

उत्तराखंड के विधायकों को यह सोचने का मौका नहीं मिला होगा कि धर्म परिवर्तन को रेगुलेट करने वाले कानूनों ने उन मुद्दों से कैसे निपटा है, जिन्हें अदालतों ने उठाया था। 

अधिकतर अन्य राज्य विधानसभाएं भी पर्याप्त जांच के बिना ही बिल पारित करती हैं

2021 में 44% राज्यों ने बिल को पेश होने के दिन या उसके अगले दिन पारित किया था। जनवरी 2018 औऱ सितंबर 2022 के बीच गुजारत विधानसभा ने 92 बिल्स पेश किए (एप्रोप्रिएशन बिल्स को छोड़कर)। इनमें से 91 को पेश होने वाले दिन ही पारित कर दिया गया। 2022 के मानसून सत्र में गोवा विधानसभा ने दो दिनों के भीतर ही 28 बिल पारित कर दिए। यह विभिन्न सरकारी विभागों के बजटीय आबंटनों पर चर्चा और वोटिंग के अतिरिक्त है। 

रेखाचित्र 2: 2021 में राज्य विधानसभाओं को किसी बिल को पारित करने में कितना समय लगा

नोट: यहां दिए गए चार्ट में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल नही हैं। एक बिल को एक दिन में पारित माना जाता है, अगर वह पेश होने वाले दिन या उसके अगले दिन पारित कर दिया जाता है। जिन राज्यों में दो सदन वाले विधानमंडल हैं, वहां बिल्स दोनों सदनों में पारित किए जाते हैं। ऊपर दिए गए चार्ट में पांच राज्यों, जहां विधान परिषदें हैं, में इस बात का ध्यान रखा गया है। इसमें बिहार शामिल नहीं है क्योंकि वहां विधान परिषद का डेटा उपलब्ध नहीं है।
स्रोत: विधानसभा की वेबसाइट्स, विभिन्न राज्यों के ई-गैजेट और सूचना का अधिकार संबंधी अनुरोध; पीआरएस।

कभी कभी, किसी बिल पर चर्चा में लगने वाला समय, आबंटित समय से कम होता है। सदन में व्यवधान इसका कारण हो सकता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा यह डेटा देती है कि बिल पर चर्चा में असल में कितना समय लगा। उदाहरण के लिए अगस्त 2022 के सत्र में उसने 10 बिल्स पर चर्चा करने और उन्हें पारित करने में औसत 12 मिनट खर्च किए। हालांकि उत्तराखंड विधानसभा ने नवंबर 2022 के सत्र में प्रत्येक बिल पर चर्चा के लिए सिर्फ पांच मिनट का समय आबंटित किया। यह दर्शाता है कि कुछ राज्य विधानसभाओं में अपने कामकाज में सुधार करने का इरादा नहीं है।  

जहां तक संसद का मामला है, जांच पड़ताल का कुछ काम विभाग संबंधी स्टैंडिंग कमिटी भी किया करती हैं, तब भी जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता। 14वीं लोकसभा में पेश होने वाले 60% बिल्स को विस्तृत समीक्षा के लिए कमिटिज़ के पास भेजा गया था और 15वीं लोकसभा में 71% बिल्स को। इन आंकड़ों में हाल ही में गिरावट आई है। 16वीं लोकसभा में 27% बिल्स को कमिटीज़ को भेजा गया था, जबकि 17वीं लोकसभा में अब तक 13% बिल्स को भेजा गया है। हालांकि राज्यों में बिल्स को विस्तृत समीक्षा के लिए भेजना अक्सर अपवाद होता है, कायदा नहीं। 2021 में 10% से भी कम बिल्स को कमिटीज़ के पास भेजा गया था। उत्तराखंड विधानसभा में पारित किसी भी बिल को किसी कमिटी के पास नहीं भेजा गया। जो राज्य अपवाद हैं, उनमें से एक केरल है जहां 14 विभागीय समितियां हैं और बिल्स को नियमित रूप से वहां जांच के लिए भेजा जाता है। हालांकि इन समितियों की अध्यक्षता संबंधित मंत्री करते हैं जिससे स्वतंत्र जांच की गुंजाइश कम होती है।