पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने परीक्षाओं में नकल को रोकने के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं, खासकर लोक सेवा आयोगों की भर्तियों से जुड़ी परीक्षाओं के लिए। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तराखंड में कई मौकों पर नकल और पेपर लीक होने की घटनाएं हुई हैं जिनमें 2016 में पंचायत विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा और 2021 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग परीक्षा शामिल हैं। जनवरी 2023 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पेपर भी लीक हो गए थे। राज्य में नकल की हाल की घटनाओं के चलते विरोध हुए और अशांति भड़की। इसके बाद 11 फरवरी, 2023 को राज्य ने सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने और दंड देने के लिए एक अध्यादेश जारी किया। मार्च 2023 में उत्तराखंड विधानसभा ने अध्यादेश की जगह बिल पारित किया। अध्यादेश के लागू होने के बाद कई खबरें आई हैं कि फॉरेस्ट गार्ड और सेक्रेटेरियट गार्ड जैसे पदों की सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल करने पर उम्मीदवारों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें परीक्षा देने से प्रतिबंधित किया गया। नकल के ऐसे ही मामले दूसरे राज्यों में भी सामने आए हैं। न्यूज रिपोर्टों के अनुसार, 2015 के बाद से गुजरात में ऐसी कोई भर्ती परीक्षा नहीं हुई है, जिसमें पेपर लीक नहीं हुआ हो। फरवरी 2023 में गुजरात विधानसभा ने भी सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल के लिए सजा निर्दिष्ट करने वाला एक कानून पारित किया। अन्य राज्यों जैसे राजस्थान (2022 में एक्ट पारित किया गया), उत्तर प्रदेश (1998 में एक्ट पारित किया गया) और आंध्र प्रदेश (1997 में एक्ट पारित किया गया) में भी इसी तरह के कानून हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ राज्यों के नकल विरोधी कानूनों के बीच तुलना कर रहे हैं (तालिका 1 देखें), और कुछ विचारणीय मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।
नकल विरोधी कानूनों के विशिष्ट प्रावधान
राज्यों के नकल विरोधी कानूनों में आमतौर पर ऐसे प्रावधान होते हैं जो सरकारी परीक्षाओं में परीक्षार्थियों और अन्य समूहों द्वारा अनुचित साधनों के उपयोग पर दंड निर्दिष्ट करते हैं। इन परीक्षाओं में राज्यों के लोक सेवा आयोगों और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्डों द्वारा संचालित परीक्षाएं शामिल हैं। मोटे तौर पर, अनुचित साधन के मायने हैं, जब उम्मीदवार अनाधिकृत मदद ले या लिखित सामग्री का अनाधिकृत इस्तेमाल करे। इन कानूनों में परीक्षाओं को संचालित करने के लिए जिम्मेदार लोगों को भी इस बात से प्रतिबंधित किया गया है कि वे अपनी भूमिका के कारण प्राप्त किसी भी जानकारी का खुलासा करें। गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान के हालिया कानूनों में अनुचित साधनों की परिभाषा में उम्मीदवारों का इम्पर्सनैशन (यानी किसी दूसरे की जगह परीक्षा देना) और एग्जाम पेपर को लीक करना भी शामिल है। उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक एड्स के उपयोग पर रोक लगाते हैं। इस तरह के अनुचित साधनों का उपयोग करने के लिए अधिकतम जेल की सजा उत्तर प्रदेश में तीन महीने से लेकर आंध्र प्रदेश में सात वर्ष तक है।
विचारणीय मुद्दे
गुजरात और उत्तराखंड में नकल विरोधी कानूनों में नकल के लिए अपेक्षाकृत कड़े प्रावधान हैं। उत्तराखंड के कानून में नकल करते हुए या अनुचित साधनों का इस्तेमाल करते हुए पकड़े जाने पर तीन वर्ष की जेल की सजा है (पहले अपराध के लिए)। चूंकि एक्ट विभिन्न प्रकार के अनुचित साधनों के बीच अंतर नहीं करता है, इसलिए संभव है कि परीक्षार्थी को होने वाली सजा उसके अपराध के अनुपात में न हो। अधिकतर अन्य राज्यों में, ऐसे अपराधों के लिए कारावास की अधिकतम अवधि तीन वर्ष है। आंध्र प्रदेश में न्यूनतम कारावास की अवधि तीन वर्ष है। हालांकि सभी राज्यों में दंड के संबंध में एक सीमा दी गई है, यानी नकल के तरीके और उस नकल के असर के आधार पर जज कारावास की अवधि (निर्दिष्ट सीमा के भीतर) तय कर सकता है। तालिका 1 में आठ राज्यों में कुछ अपराधों की सजा के बीच तुलना की गई है।
उत्तराखंड के कानून में एक प्रावधान है जिसके तहत चार्जशीट दायर होने पर परीक्षार्थी को दो से पांच वर्ष के लिए राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया जाता है, भले ही दोष सिद्ध न हुआ हो। इस प्रकार यह कानून आरोपी को सिर्फ मुकदमा चलने पर परीक्षा देने से रोकता है, जबकि यह संभावना हो सकती है कि वह व्यक्ति अंततः निर्दोष साबित हो। गुजरात और राजस्थान के कानून भी उम्मीदवारों को दो वर्षों के लिए निर्दिष्ट परीक्षाओं में बैठने से रोकते हैं, लेकिन सिर्फ तभी जब उनका दोष सिद्ध हो गया हो।
विभिन्न राज्यों में इन कानूनों का दायरा भी अलग-अलग है। उत्तराखंड और राजस्थान में नकल विरोधी कानून सिर्फ राज्य सरकार के विभागों (जैसे लोक सेवा) की भर्ती परीक्षाओं पर लागू होते हैं। अन्य छह राज्यों में ये कानून डिप्लोमा और डिग्री जैसी शैक्षणिक योग्यता देने वाले शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं पर भी लागू होते हैं। उदाहरण के लिए गुजरात माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं भी गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023 के दायरे में आती हैं। सवाल यह है कि क्या शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं में भी वैसी ही सजा होना उचित है, जैसी सरकारी नौकरियों में भर्ती परीक्षाओं के लिए दी जाती है, चूंकि दोनों स्थितियों में होने वाला असर अलग-अलग होता है।
स्रोत: राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2022; उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1998; छत्तीसगढ़ सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 2008; उड़ीसा परीक्षा संचालन एक्ट, 1988; आंध्र प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (कदाचार और अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1997; झारखंड परीक्षा संचालन एक्ट, 2001, उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम और रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2023, गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023; पीआरएस।
पिछले हफ्ते पावर फाइनांस कॉरपोरेशन ने कहा कि 2022-23 में देश में राज्यों के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों को 68,832 करोड़ रुपए का वित्तीय घाटा हुआ। यह 2021-22 में हुए घाटे के चार गुना से अधिक है और उत्तराखंड जैसे राज्य के वार्षिक बजट के लगभग बराबर है। इस ब्लॉग में इस नुकसान के कुछ कारणों और उनके असर की समीक्षा की गई है।
वित्तीय घाटे पर एक नजर
कई वर्षों से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स), जोकि अधिकतर राज्यों के स्वामित्व वाली हैं, ने जबरदस्त वित्तीय घाटा दर्ज किया है। 2017-18 और 2022-23 के बीच यह घाटा तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया। लेकिन 2021-22 में डिस्कॉम के घाटे में काफी कमी आई, जब मुख्य रूप से राज्यों ने लंबित बकाया चुकाने के लिए सबसिडी के तौर पर 1.54 लाख रुपए जारी किए। राज्य सरकारें डिस्कॉम्स को सबसिडी देती हैं ताकि घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सके। लेकिन यह भुगतान देर से किया जाता है, जिससे नकदी के प्रवाह में रुकावट आती है और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा 2021-22 से डिस्कॉम्स की लागत में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
2022-23 तक घाटा फिर से बढ़कर 68,832 करोड़ रुपए हो गया। यह बढ़ोतरी, लागत में बढ़ोतरी के कारण हुई है। प्रति युनिट स्तर पर एक किलोवाट बिजली की सप्लाई की लागत 2021-22 में 7.6 रुपए से बढ़कर 2022-23 में 8.6 रुपए हो गई (तालिका 1 देखें)।
तालिका 1: राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों का वित्तीय विवरण
विवरण |
2019-20 |
2020-21 |
2021-22 |
2022-23 |
बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस) |
7.4 |
7.7 |
7.6 |
8.6 |
प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर) |
6.8 |
7.1 |
7.3 |
7.8 |
प्रति युनिट घाटा (एसीएस-एआरआर) |
0.6 |
0.6 |
0.3 |
0.7 |
कुल घाटा (करोड़ रुपए में) |
-60,231 |
-76,899 |
-16,579 |
-68,832 |
नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
उत्पादन कंपनियों (जेनको) से बिजली की खरीद डिस्कॉम्स की कुल लागत का लगभग 70% है और कोयला बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत है। 2022-23 में निम्नलिखित घटनाएं हुईं: (i) बिजली की उपभोक्ता मांग पिछले वर्ष की तुलना में 10% बढ़ी, जबकि पिछले 10 वर्षों में साल-दर-साल 6% की वृद्धि हुई थी, (ii) बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला आयात करना पड़ा, और (iii) विश्व स्तर पर कोयले की कीमतें बढ़ गईं।
बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए बढ़ी हुई कीमतों पर कोयला आयात किया गया
2021-22 की तुलना में 2022-23 में बिजली की मांग 10% बढ़ गई। इससे पहले 2008-09 और 2018-19 के बीच 6% की वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के हिसाब से मांग बढ़ी थी। अर्थव्यवस्था के बढ़ने (7% की दर से) के साथ बिजली की मांग बढ़ी जिसमें घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं का हिस्सा सबसे ज्यादा था। बिजली की कुल बिक्री में इन उपभोक्ता श्रेणियों का हिस्सा 54% है और उनकी मांग में 7% की वृद्धि हुई है।
स्रोत: केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग; पीआरएस।
बिजली का बड़े पैमाने पर भंडारण नहीं किया जा सकता, जिसका मतलब यह है कि अनुमानित मांग के आधार पर उत्पादन किया जाना चाहिए। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण प्रत्येक वर्ष के लिए वार्षिक मांग का अनुमान लगाता है। अनुमान है कि 2022-23 में मांग 1,505 बिलियन युनिट्स होगी। हालांकि 2022-23 के पहले कुछ महीनों में वास्तविक मांग अनुमान से अधिक थी (रेखाचित्र 3 देखें)।
इस मांग को पूरा करने के लिए बिजली उत्पादन बढ़ाना पड़ा। 2021-22 में उच्च मांग के कारण कोयले का स्टॉक पहले ही जून 2021 में 29 मिलियन टन से घटकर सितंबर 2021 में आठ मिलियन टन हो गया था। बिना रुकावट बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, बिजली मंत्रालय ने उत्पादन कंपनियों को कोयला आयात करने का निर्देश दिया। मंत्रालय ने कहा कि आयात के बिना बड़े स्तर पर व्यापक बिजली कटौती और ब्लैकआउट हो जाता।
स्रोत: लोड जेनरेशन बैलेंस रिपोर्ट 2022 और 2023, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण; पीआरएस।
2022-23 में कोयले का आयात लगभग 27 मिलियन टन बढ़ गया। हालांकि क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले कुल कोयले का यह केवल 5% था, लेकिन जिस कीमत पर इसका आयात किया गया था, उसके कारण इस क्षेत्र पर काफी असर हुआ। 2021-22 में भारत ने औसतन 8,300 रुपए प्रति टन की कीमत पर कोयला आयात किया। 2022-23 में यह बढ़कर 12,500 रुपए प्रति टन हो गया, जो 51% की वृद्धि है। कोयला मुख्य रूप से इंडोनेशिया से आयात किया जाता था, और रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत और चीन जैसे देशों की बढ़ती मांग के कारण कीमतों में इजाफा हो गया।
स्रोत: ऊर्जा मंत्रालय; सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।
कोयला आयात की स्थिति बनी रहेगी
जनवरी 2023 में ऊर्जा मंत्रालय ने सितंबर 2023 तक पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करने के लिए बिजली कंपनियों को आवश्यक कोयले का 6% आयात करने की सलाह दी। उसने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ और अस्थिर वर्षा के कारण जल विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 14% कम हो गई है। इससे 2023-24 में कोयला आधारित तापीय उत्पादन पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसके बाद अक्टूबर 2023 में मंत्रालय ने सभी उत्पादन कंपनियों को मार्च 2024 तक कम से कम 6% आयातित कोयले का उपयोग जारी रखने का निर्देश दिया।
स्रोत: कोयला मंत्रालय; पीआरएस।
बिजली क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दे और राज्य के वित्त पर इसका प्रभाव
कुछ संरचनात्मक मुद्दों के कारण डिस्कॉम को लगातार वित्तीय घाटा हो रहा है। उत्पादन कंपनियों (जेनकोस) के साथ पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स के कारण उनकी लागत आम तौर पर अधिक होती है। इन कॉन्ट्रैक्ट्स में बिजली खरीद की लागत अपरिवर्तनीय रहती है, जबकि उत्पादन क्षमता बेहतर होती जाती है। शुल्क को हर कुछ वर्षों में संशोधित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि उपभोक्ताओं को सप्लाई चेन के झटकों से बचाया जा सके। इसका नतीजा यह होता है कि लागत को कुछ वर्षों के लिए कैरी फॉरवर्ड किया जाता है। इसके अलावा डिस्कॉम कुछ उपभोक्ताओं जैसे कृषि और आवासीय उपभोक्ताओं को लागत से कम कीमत पर बिजली बेचते हैं। इसे मुख्य रूप से राज्य सरकारों के सबसिडी अनुदान के जरिए वसूल किया जाना चाहिए। हालांकि राज्य अक्सर सबसिडी भुगतान में देरी करते हैं जिससे नकदी प्रवाह में समस्याएं आती हैं और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा बेची गई बिजली से शुल्क की वसूली उतनी नहीं होती, जितनी होनी चाहिए।
उत्पादन क्षेत्र में दर्ज घाटे में भी वृद्धि हुई है। 2022-23 में राज्य के स्वामित्व वाली उत्पादन कंपनियों ने 7,175 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया, जबकि 2021-22 में यह घाटा 4,245 करोड़ रुपए था। इनमें से 87% यानी 6,278 करोड़ रुपए घाटा, सिर्फ राजस्थान का था। उल्लेखनीय है कि विलंबित भुगतान अधिभार नियम, 2022 के तहत वितरण कंपनियों को उत्पादन कंपनियों को अग्रिम भुगतान करना होता है।
राज्यों के वित्त को खतरा
लगातार वित्तीय घाटा, उच्च ऋण और राज्यों की गारंटियां, राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम बने हुए हैं। ये राज्य सरकारों के लिए आकस्मिक देनदारियां हैं, यानी, अगर कोई डिस्कॉम अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ है, तो राज्य को उसका वहन करना होगा।
डिस्कॉम को संकट से उबारने के लिए पहले भी ऐसी कई योजनाएं शुरू की गई हैं (तालिका 2 देखें)। 2022-23 तक, डिस्कॉम पर 6.61 लाख करोड़ रुपए का बकाया कर्ज है, जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 2.4% है। तमिलनाडु (जीएसडीपी का 6%), राजस्थान (जीएसडीपी का 6%), और उत्तर प्रदेश (जीएसडीपी का 3%) जैसे राज्यों में ऋण काफी अधिक है। पिछले वित्त आयोगों ने माना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति के जोखिम को कम करने के लिए डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों में वितरण क्षेत्र में बदलाव के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएं
वर्ष |
योजना |
विवरण |
2002 |
बेलआउट पैकेज |
राज्यों ने राज्य बिजली बोर्डों का 35,000 करोड़ रुपए का कर्ज वहन किया, राज्य बिजली बोर्डों द्वारा पीएसयू को देय ब्याज में 50% की छूट |
2012 |
फाइनांशियल रीस्ट्रक्चरिंग पैकेज |
राज्यों ने 56,908 करोड़ रुपए की बकाया अल्पकालिक देनदारियों का 50% हिस्सा वहन किया |
2015 |
उज्ज्वल डिस्कॉम अश्योरेंस योजना (उदय) |
राज्य डिस्कॉम के 2.3 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का 75% हिस्सा वहन किया, और भविष्य में किसी भी नुकसान के लिए अनुदान देने पर भी सहमति जताई |
2020 |
लिक्विडिटी इंफ्यूजन स्कीम |
उत्पादकों का बकाया चुकाने के लिए डिस्कॉम को पावर फाइनांस कॉरपोरेशन और आरईसी लिमिटेड से 1.35 लाख करोड़ रुपए का ऋण मिला, राज्य सरकारों ने गारंटी दी |
2022 |
रीवैम्प्ड डिस्ट्रिब्यूशन सेक्टर स्कीम |
केंद्र सरकार सप्लाई इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 97,631 करोड़ रुपए की परिणाम-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान करेगी |
स्रोत: नीति आयोग, ऊर्जा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियां; पीआरएस।
राज्यों की वित्तीय स्थिति पर डिस्कॉम्स के वित्त के प्रभाव के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां देखें। बिजली वितरण क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दों पर अधिक जानकारी के लिए यहां देखें।
अनुलग्नक
तालिका 3: बिजली की बिक्री के आधार पर डिस्कॉम की लागत और राजस्व संरचना (रुपए प्रति किलोवाट में)
विवरण |
2019-20 |
2020-21 |
2021-22 |
2022-23 |
बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस) |
7.4 |
7.7 |
7.6 |
8.6 |
जिसमें |
||||
बिजली खरीद की लागत |
5.8 |
5.9 |
5.8 |
6.6 |
प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर) |
6.8 |
7.1 |
7.3 |
7.8 |
जिसमें |
||||
बिजली की बिक्री से राजस्व |
5.0 |
4.9 |
5.1 |
5.5 |
शुल्क सबसिडी |
1.3 |
1.4 |
1.4 |
1.5 |
रेगुलेटरी आय और उदय के तहत राजस्व अनुदान |
0.3 |
0.1 |
0.0 |
0.2 |
प्रति युनिट घाटा |
0.6 |
0.6 |
0.3 |
0.7 |
कुल वित्तीय घाटा |
-60,231 |
-76,899 |
-16,579 |
-68,832 |
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
तालिका 4: राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों के लाभ/हानि (करोड़ रुपए में)
राज्य/यूटी |
2017-18 |
2018-19 |
2019-20 |
2020-21 |
2021-22 |
2022-23 |
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह |
-605 |
-645 |
-678 |
-757 |
-86 |
-76 |
आंध्र प्रदेश |
-546 |
-16,831 |
1,103 |
-6,894 |
-2,595 |
1,211 |
अरुणाचल प्रदेश |
-429 |
-420 |
NA |
NA |
NA |
NA |
असम |
-259 |
311 |
1,141 |
-107 |
357 |
-800 |
बिहार |
-1,872 |
-1,845 |
-2,913 |
-2,966 |
-2,546 |
-10 |
चंडीगढ़ |
321 |
131 |
59 |
79 |
-101 |
NA |
छत्तीसगढ़ |
-739 |
-814 |
-571 |
-713 |
-807 |
-1,015 |
दादरा नगर हवेली और दमन-दीव |
312 |
-149 |
-125 |
NA |
NA |
NA |
दिल्ली |
NA |
NA |
NA |
98 |
57 |
-141 |
गोवा |
26 |
-121 |
-276 |
78 |
117 |
69 |
गुजरात |
426 |
184 |
314 |
429 |
371 |
147 |
हरियाणा |
412 |
281 |
331 |
637 |
849 |
975 |
हिमाचल प्रदेश |
-44 |
132 |
43 |
-153 |
-141 |
-1,340 |
झारखंड |
-212 |
-730 |
-1,111 |
-2,556 |
-1,721 |
-3,545 |
कर्नाटक |
-2,439 |
-4,889 |
-2,501 |
-5,382 |
4,719 |
-2,414 |
केरल |
-784 |
-135 |
-270 |
-483 |
98 |
-1,022 |
लद्दाख |
NA |
NA |
NA |
NA |
-11 |
-57 |
लक्षद्वीप |
-98 |
-120 |
-115 |
-117 |
NA |
NA |
मध्य प्रदेश |
-5,802 |
-9,713 |
-5,034 |
-9,884 |
-2,354 |
1,842 |
महाराष्ट्र |
-3,927 |
2,549 |
-5,011 |
-7,129 |
-1,147 |
-19,846 |
मणिपुर |
-8 |
-42 |
-15 |
-15 |
-22 |
-146 |
मेघालय |
-287 |
-202 |
-443 |
-101 |
-157 |
-193 |
मिजोरम |
87 |
-260 |
-291 |
-115 |
-59 |
-158 |
नगालैंड |
-62 |
-94 |
-477 |
-17 |
24 |
33 |
पुद्दूचेरी |
5 |
-39 |
-306 |
-23 |
84 |
-131 |
पंजाब |
-2,760 |
363 |
-975 |
49 |
1,680 |
-1,375 |
राजस्थान |
-11,314 |
-12,524 |
-12,277 |
-5,994 |
2,374 |
-2,024 |
सिक्किम |
-29 |
-3 |
-179 |
-34 |
NA |
71 |
तमिलनाडु |
-12,541 |
-17,186 |
-16,528 |
-13,066 |
-9,130 |
-9,192 |
तेलंगाना |
-6,697 |
-9,525 |
-6,966 |
-6,686 |
-831 |
-11,103 |
त्रिपुरा |
28 |
38 |
-104 |
-4 |
-127 |
-193 |
उत्तर प्रदेश |
-5,269 |
-5,902 |
-3,866 |
-10,660 |
-6,498 |
-15,512 |
उत्तराखंड |
-229 |
-808 |
-323 |
-152 |
-21 |
-1,224 |
पश्चिम बंगाल |
-871 |
-1,171 |
-1,867 |
-4,261 |
1,045 |
-1,663 |
राज्य क्षेत्र |
-56,206 |
-80,179 |
-60,231 |
-76,899 |
-16,579 |
-68,832 |
दादरा नगर हवेली और दमन-दीव |
NA |
NA |
NA |
242 |
148 |
104 |
दिल्ली |
109 |
657 |
-975 |
1,876 |
521 |
-76 |
गुजरात |
574 |
307 |
612 |
655 |
522 |
627 |
ओड़िशा |
NA |
NA |
-842 |
-853 |
940 |
746 |
महाराष्ट्र |
NA |
590 |
1,696 |
-375 |
360 |
42 |
उत्तर प्रदेश |
182 |
126 |
172 |
333 |
256 |
212 |
पश्चिम बंगाल |
658 |
377 |
379 |
398 |
66 |
-12 |
निजी क्षेत्र |
1,523 |
2,057 |
1,042 |
2,276 |
2,813 |
1,643 |
भारत |
-54,683 |
-78,122 |
-59,189 |
-77,896 |
-13,766 |
-67,189 |
नोट: माइनस का चिह्न (-) हानि दर्शाता है; दादरा नगर हवेली और दमन-दीव डिस्कॉम का 1 अप्रैल, 2022 को निजीकरण किया गया था; नई दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से जोड़ा गया है। स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस