जुलाई में राष्ट्रपति के रूप में श्री रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि इस हफ्ते भारतीय निर्वाचन आयोग चुनावों की तारीख को अधिसूचित कर देगा। इसके मद्देनजर हम बता रहे हैं कि भारत अपने अगले राष्ट्रपति का चुनाव कैसे करेगा।
देश के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति संसद का अहम हिस्सा होता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संसद के दोनों सदनों का सत्र बुलाता है। लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कोई भी बिल तब तक कानून नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति की अनुमति न हो। इसके अतिरिक्त जब संसद सत्र में नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास अध्यादेश के जरिए तत्काल प्रभाव से किसी कानून पर दस्तखत करने की शक्ति होती है।
राष्ट्रपति कौन चुनता है?
राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका संविधान के अनुच्छेद 55 में दिया गया है। दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित संसद और विधानसभाओं के सदस्यों (सांसद और विधायक) का एक इलेक्टोरल कॉलेज होता है जो राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है। कम से कम 50 इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव देते हैं (प्रस्तावक) और 50 दूसरे इलेक्टर उसे अपना अनुमोदन देते हैं (अनुमोदक)। इसके बाद वह व्यक्ति राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। विधान परिषदों के सदस्य और राज्यसभा के 12 मनोनीत सदस्य मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।
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 प्रस्तावकों और अनुमोदकों का इतिहास एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव दें, यह प्रथा पहले पांच राष्ट्रपति चुनावों के बाद शुरू हुई। तब यह बहुत आम बात थी कि बहुत से उम्मीदवार चुनाव में खड़े हो जाते थे, जबकि उनके चुने जाने की संभावना बहुत कम होती थी। 1967 के राष्ट्रपति चुनावों में 17 उम्मीदवार खड़े हुए लेकिन उनमें से नौ को एक भी वोट नहीं मिला। ऐसा 1969 के चुनावों में भी हुआ, जब 15 उम्मीदवारों में से पांच को एक भी वोट नहीं मिला। इस प्रथा को निरुत्साहित करने के लिए 1974 से यह नियम बनाया गया कि उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा होने के लिए कम से कम 10 प्रस्तावकों और 10 अनुमोदकों की जरूरत होगी। इसके अलावा 2,500 रुपए के अनिवार्य सिक्योरिटी डिपॉजिट को भी शुरू किया गया। ये परिवर्तन राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय चुनाव एक्ट, 1952 में संशोधनों के जरिए लाए गए। 1997 में एक्ट में फिर संशोधन किया गया। इन संशोधनों में सिक्योरिटी डिपॉजिट को बढ़ाकर 15,000 रुपए और प्रस्तावकों तथा अनुमोदकों, प्रत्येक की संख्या 50 कर दी गई है।  | 
मतों की गणना कैसे होती है?
राष्ट्रपति चुनाव में मतों की गणना के लिए विशेष वोटिंग का इस्तेमाल किया जाता है। सांसदों और विधायकों को अलग-अलग वोटिंग वेटेज दिया जाता है। प्रत्येक विधायक की वोट वैल्यू उसके राज्य की जनसंख्या और विधायकों की संख्या के आधार पर निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक की वैल्यू 208 होगी और सिक्किम की विधायक की 7 (देखें तालिका 1)। चूंकि संवैधानिक संशोधन 2002 में पारित किया गया था इसलिए राज्य की जनसंख्या की गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है। देश भर में विधायकों के सभी वोटों के योग को निर्वाचित सांसदों की संख्या से विभाजित करने पर एक सांसद के वोट की वैल्यू मिलती है।
2022 में गणित क्या होगा?
2017 के राष्ट्रपति चुनावों में 31 राज्यों तथा दिल्ली और पुद्दूचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के इलेक्टर्स ने हिस्सा लिया था। लेकिन 2019 में जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन एक्ट के साथ राज्यों की संख्या घटकर 30 रह गई है। एक्ट के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा भंग कर दी गई और जम्मू एवं कश्मीर यूटी के लिए एक नई विधायिका का गठन होना अभी बाकी है। राष्ट्रपति चुनावों के इलेक्टोरल कॉलेज में पहले विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया जाता था। 1992 में संविधान में संशोधन किया गया ताकि दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें खास तौर से शामिल किया जा सके। उल्लेखनीय है कि जम्मू एवं कश्मीर के विधायक भविष्य में राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा ले सकें, इसके लिए संसद में एक ऐसा ही संवैधानिक संशोधन पारित करना होगा।
इस अनुमान के आधार पर कि जम्मू एवं कश्मीर 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में शामिल नहीं है, इन चुनावों में विधायकों के वोटों की कुल संख्या को समायोजित किया जाएगा। कुल 4,120 विधायकों की संख्या से जम्मू एवं कश्मीर के 87 विधायकों को हटा दिया दिया जाना चाहिए। जम्मू और कश्मीर के वोट शेयर 6,264 को भी कुल वोट शेयर 549,495 से कम किया जाना चाहिए। इन परिवर्तनों को समायोजित करने के बाद, 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में 4,033 विधायक भाग लेंगे और सभी विधायकों का संयुक्त वोट शेयर 5,43,231 होगा।
तालिका 1: 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में विभिन्न राज्यों के निर्वाचित विधायकों के वोटों की वैल्यू
| 
 राज्य का नाम  | 
 विधानसभा सीटों की संख्या  | 
 जनसंख्या (1971 जनगणना)  | 
 प्रत्येक विधायक के वोट की वैल्यू  | 
 राज्य के वोटों की कुल वैल्यू (ग x घ)  | 
| 
 क  | 
 ख  | 
 ग  | 
 घ  | 
 ङ  | 
| 
 आंध्र प्रदेश  | 
 175  | 
 2,78,00,586  | 
 159  | 
 27,825  | 
| 
 अरुणाचल प्रदेश  | 
 60  | 
 4,67,511  | 
 8  | 
 480  | 
| 
 असम  | 
 126  | 
 1,46,25,152  | 
 116  | 
 14,616  | 
| 
 बिहार  | 
 243  | 
 4,21,26,236  | 
 173  | 
 42,039  | 
| 
 छत्तीसगढ़  | 
 90  | 
 1,16,37,494  | 
 129  | 
 11,610  | 
| 
 गोवा  | 
 40  | 
 7,95,120  | 
 20  | 
 800  | 
| 
 गुजरात  | 
 182  | 
 2,66,97,475  | 
 147  | 
 26,754  | 
| 
 हरियाणा  | 
 90  | 
 1,00,36,808  | 
 112  | 
 10,080  | 
| 
 हिमाचल प्रदेश  | 
 68  | 
 34,60,434  | 
 51  | 
 3,468  | 
| 
 जम्मू और कश्मीर  | 
 87  | 
 63,00,000  | 
 72  | 
 6,264  | 
| 
 झारखंड  | 
 81  | 
 1,42,27,133  | 
 176  | 
 14,256  | 
| 
 कर्नाटक  | 
 224  | 
 2,92,99,014  | 
 131  | 
 29,344  | 
| 
 केरल  | 
 140  | 
 2,13,47,375  | 
 152  | 
 21,280  | 
| 
 मध्य प्रदेश  | 
 230  | 
 3,00,16,625  | 
 131  | 
 30,130  | 
| 
 महाराष्ट्र  | 
 288  | 
 5,04,12,235  | 
 175  | 
 50,400  | 
| 
 मणिपुर  | 
 60  | 
 10,72,753  | 
 18  | 
 1,080  | 
| 
 मेघालय  | 
 60  | 
 10,11,699  | 
 17  | 
 1,020  | 
| 
 मिजोरम  | 
 40  | 
 3,32,390  | 
 8  | 
 320  | 
| 
 नगालैंड  | 
 60  | 
 5,16,449  | 
 9  | 
 540  | 
| 
 ओड़िशा  | 
 147  | 
 2,19,44,615  | 
 149  | 
 21,903  | 
| 
 पंजाब  | 
 117  | 
 1,35,51,060  | 
 116  | 
 13,572  | 
| 
 राजस्थान  | 
 200  | 
 2,57,65,806  | 
 129  | 
 25,800  | 
| 
 सिक्किम  | 
 32  | 
 2,09,843  | 
 7  | 
 224  | 
| 
 तमिलनाडु  | 
 234  | 
 4,11,99,168  | 
 176  | 
 41,184  | 
| 
 तेलंगाना  | 
 119  | 
 1,57,02,122  | 
 132  | 
 15,708  | 
| 
 त्रिपुरा  | 
 60  | 
 15,56,342  | 
 26  | 
 1,560  | 
| 
 उत्तराखंड  | 
 70  | 
 44,91,239  | 
 64  | 
 4,480  | 
| 
 उत्तर प्रदेश  | 
 403  | 
 8,38,49,905  | 
 208  | 
 83,824  | 
| 
 पश्चिम बंगाल  | 
 294  | 
 4,43,12,011  | 
 151  | 
 44,394  | 
| 
 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली  | 
 70  | 
 40,65,698  | 
 58  | 
 4,060  | 
| 
 पुद्दूचेरी  | 
 30  | 
 4,71,707  | 
 16  | 
 480  | 
| 
 कुल  | 
 4,120  | 
 54,93,02,005  | 
 5,49,495  | 
स्रोत: भारतीय निर्वाचन आयोग (2017); पीआरएस।
एक सांसद के वोट की वैल्यू 2017 में 708 से घटकर 2022 में 700 हो जाएगी।
सांसद के वोट की वैल्यू =   विधायकों के सभी वोट्स की कुल वैल्यू =  543231 = 700 
                          निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या         776
उल्लेखनीय है कि सांसदों के वोट की वैल्यू को सबसे करीबी होल नंबर में राउंड ऑफ कर दिया जाता है (यानी उसे पूर्णांक बना दिया जाता है)। इससे सभी सांसदों के वोटों की कंबाइंड वैल्यू 543,200 (700 x 776) हो जाती है।
जीतने के लिए कितने वोट्स की जरूरत होती है?
राष्ट्रपति पद का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली के जरिए किया जाता है। इस प्रणाली में इलेक्टर्स वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं। कोई उम्मीदवार तब विजेता होता है जब उसे वैध वोटों की कुल वैल्यू का आधे से अधिक हासिल हो। इसे कोटा कहा जाता है।
कल्पना कीजिए कि हर इलेक्टर वोट देता है और हर वोट वैध होता है:
कोटा = सांसदों के वोट्स की कुल वैल्यू + विधायकों के वोट्स की कुल वैल्यू + 1 
                                 2
= 543200 + 543231 +1     =   1086431 +1     =    543,216 
          2                       2
दलबदल विरोधी कानून जोकि सांसदों को दलगत विचारधारा से इतर जाने से रोकता है, वह राष्ट्रपति चुनावों पर लागू नहीं होता। इसका मतलब यह है कि सांसद और विधायक अपन बैलेट गुप्त रख सकते हैं।
वोटों की गिनती राउंट्स में होती है। पहले राउंड में गिने जाने वाले हर बैलेट पर पहला प्रिफरेंस लिखा जाता है। अगर किसी उम्मीदवार को इस चरण में कोटा मिलता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को कोटा नहीं मिलता तो दूसरे राउंड की गिनती शुरू हो जाती है। जिस उम्मीदवार को पहले राउंड में सबसे कम वोट मिले थे, इस राउंड में उसके वोट ट्रांसफर हो जाते हैं। यानी ये वोट अब उस उम्मीदवार को चले जाते हैं जिसे हर बैलेट में दूसरा प्रिफरेंस मिला था। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक सिर्फ एक उम्मीदवार रह जाता है। यह जरूरी नहीं है कि कोई इलेक्टर सभी उम्मीदवारों के लिए अपने प्रिफरेंस बताए। अगर बैलेट में कोई दूसरा प्रिफरेंस नहीं बताया गया है तो बैलेट को दूसरे राउंड में एग्जॉस्टेड बैलेट माना जाएगा और आगे गिनती में वह शामिल नहीं होगा।
पांचवे राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें श्री वी.वी. गिरी को चुना गया था, वह अकेला अवसर था जब किसी उम्मीदवार ने पहले राउंड में कोटा हासिल नहीं किया था। फिर दूसरे फ्रिफरेंस वोट्स का मूल्यांकन किया गया था और श्री गिरी को 8,36,337 में से 4,20,077 मिले थे और वह राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए थे।
| 
 भारत के अकेले राष्ट्रपति जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल की भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी (1977-1982) अकेले राष्ट्रपति थे जिन्हें निर्विरोध चुना गया था। 1977 के चुनावों में 37 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन भरे थे, लेकिन छानबीन करने पर 36 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज कर दिए और श्री रेड्डी एकमात्र उम्मीदवार बचे थे।  | 
पिछले हफ्ते पावर फाइनांस कॉरपोरेशन ने कहा कि 2022-23 में देश में राज्यों के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों को 68,832 करोड़ रुपए का वित्तीय घाटा हुआ। यह 2021-22 में हुए घाटे के चार गुना से अधिक है और उत्तराखंड जैसे राज्य के वार्षिक बजट के लगभग बराबर है। इस ब्लॉग में इस नुकसान के कुछ कारणों और उनके असर की समीक्षा की गई है।
वित्तीय घाटे पर एक नजर
कई वर्षों से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स), जोकि अधिकतर राज्यों के स्वामित्व वाली हैं, ने जबरदस्त वित्तीय घाटा दर्ज किया है। 2017-18 और 2022-23 के बीच यह घाटा तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया। लेकिन 2021-22 में डिस्कॉम के घाटे में काफी कमी आई, जब मुख्य रूप से राज्यों ने लंबित बकाया चुकाने के लिए सबसिडी के तौर पर 1.54 लाख रुपए जारी किए। राज्य सरकारें डिस्कॉम्स को सबसिडी देती हैं ताकि घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सके। लेकिन यह भुगतान देर से किया जाता है, जिससे नकदी के प्रवाह में रुकावट आती है और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा 2021-22 से डिस्कॉम्स की लागत में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
2022-23 तक घाटा फिर से बढ़कर 68,832 करोड़ रुपए हो गया। यह बढ़ोतरी, लागत में बढ़ोतरी के कारण हुई है। प्रति युनिट स्तर पर एक किलोवाट बिजली की सप्लाई की लागत 2021-22 में 7.6 रुपए से बढ़कर 2022-23 में 8.6 रुपए हो गई (तालिका 1 देखें)।
तालिका 1: राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों का वित्तीय विवरण
| 
 विवरण  | 
 2019-20  | 
 2020-21  | 
 2021-22  | 
 2022-23  | 
| 
 बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस)  | 
 7.4  | 
 7.7  | 
 7.6  | 
 8.6  | 
| 
 प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर)  | 
 6.8  | 
 7.1  | 
 7.3  | 
 7.8  | 
| 
 प्रति युनिट घाटा (एसीएस-एआरआर)  | 
 0.6  | 
 0.6  | 
 0.3  | 
 0.7  | 
| 
 कुल घाटा (करोड़ रुपए में)  | 
 -60,231  | 
 -76,899  | 
 -16,579  | 
 -68,832  | 
नोट: 2020-21 के बाद के आंकड़ों में ओड़िशा, दादरा नगर हवेली और दमन-दीव शामिल नहीं हैं क्योंकि 2020-21 में वहां बिजली वितरण के काम का निजीकरण कर दिया गया था। लद्दाख का आंकड़ा 2021-22 से उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से शामिल किया गया है।
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
उत्पादन कंपनियों (जेनको) से बिजली की खरीद डिस्कॉम्स की कुल लागत का लगभग 70% है और कोयला बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत है। 2022-23 में निम्नलिखित घटनाएं हुईं: (i) बिजली की उपभोक्ता मांग पिछले वर्ष की तुलना में 10% बढ़ी, जबकि पिछले 10 वर्षों में साल-दर-साल 6% की वृद्धि हुई थी, (ii) बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला आयात करना पड़ा, और (iii) विश्व स्तर पर कोयले की कीमतें बढ़ गईं।
बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए बढ़ी हुई कीमतों पर कोयला आयात किया गया
2021-22 की तुलना में 2022-23 में बिजली की मांग 10% बढ़ गई। इससे पहले 2008-09 और 2018-19 के बीच 6% की वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के हिसाब से मांग बढ़ी थी। अर्थव्यवस्था के बढ़ने (7% की दर से) के साथ बिजली की मांग बढ़ी जिसमें घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं का हिस्सा सबसे ज्यादा था। बिजली की कुल बिक्री में इन उपभोक्ता श्रेणियों का हिस्सा 54% है और उनकी मांग में 7% की वृद्धि हुई है।
स्रोत: केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग; पीआरएस।
बिजली का बड़े पैमाने पर भंडारण नहीं किया जा सकता, जिसका मतलब यह है कि अनुमानित मांग के आधार पर उत्पादन किया जाना चाहिए। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण प्रत्येक वर्ष के लिए वार्षिक मांग का अनुमान लगाता है। अनुमान है कि 2022-23 में मांग 1,505 बिलियन युनिट्स होगी। हालांकि 2022-23 के पहले कुछ महीनों में वास्तविक मांग अनुमान से अधिक थी (रेखाचित्र 3 देखें)।
इस मांग को पूरा करने के लिए बिजली उत्पादन बढ़ाना पड़ा। 2021-22 में उच्च मांग के कारण कोयले का स्टॉक पहले ही जून 2021 में 29 मिलियन टन से घटकर सितंबर 2021 में आठ मिलियन टन हो गया था। बिना रुकावट बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, बिजली मंत्रालय ने उत्पादन कंपनियों को कोयला आयात करने का निर्देश दिया। मंत्रालय ने कहा कि आयात के बिना बड़े स्तर पर व्यापक बिजली कटौती और ब्लैकआउट हो जाता।
 
स्रोत: लोड जेनरेशन बैलेंस रिपोर्ट 2022 और 2023, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण; पीआरएस।
2022-23 में कोयले का आयात लगभग 27 मिलियन टन बढ़ गया। हालांकि क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले कुल कोयले का यह केवल 5% था, लेकिन जिस कीमत पर इसका आयात किया गया था, उसके कारण इस क्षेत्र पर काफी असर हुआ। 2021-22 में भारत ने औसतन 8,300 रुपए प्रति टन की कीमत पर कोयला आयात किया। 2022-23 में यह बढ़कर 12,500 रुपए प्रति टन हो गया, जो 51% की वृद्धि है। कोयला मुख्य रूप से इंडोनेशिया से आयात किया जाता था, और रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत और चीन जैसे देशों की बढ़ती मांग के कारण कीमतों में इजाफा हो गया।
स्रोत: ऊर्जा मंत्रालय; सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।
कोयला आयात की स्थिति बनी रहेगी
जनवरी 2023 में ऊर्जा मंत्रालय ने सितंबर 2023 तक पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करने के लिए बिजली कंपनियों को आवश्यक कोयले का 6% आयात करने की सलाह दी। उसने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ और अस्थिर वर्षा के कारण जल विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 14% कम हो गई है। इससे 2023-24 में कोयला आधारित तापीय उत्पादन पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसके बाद अक्टूबर 2023 में मंत्रालय ने सभी उत्पादन कंपनियों को मार्च 2024 तक कम से कम 6% आयातित कोयले का उपयोग जारी रखने का निर्देश दिया।
स्रोत: कोयला मंत्रालय; पीआरएस।
बिजली क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दे और राज्य के वित्त पर इसका प्रभाव
कुछ संरचनात्मक मुद्दों के कारण डिस्कॉम को लगातार वित्तीय घाटा हो रहा है। उत्पादन कंपनियों (जेनकोस) के साथ पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स के कारण उनकी लागत आम तौर पर अधिक होती है। इन कॉन्ट्रैक्ट्स में बिजली खरीद की लागत अपरिवर्तनीय रहती है, जबकि उत्पादन क्षमता बेहतर होती जाती है। शुल्क को हर कुछ वर्षों में संशोधित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि उपभोक्ताओं को सप्लाई चेन के झटकों से बचाया जा सके। इसका नतीजा यह होता है कि लागत को कुछ वर्षों के लिए कैरी फॉरवर्ड किया जाता है। इसके अलावा डिस्कॉम कुछ उपभोक्ताओं जैसे कृषि और आवासीय उपभोक्ताओं को लागत से कम कीमत पर बिजली बेचते हैं। इसे मुख्य रूप से राज्य सरकारों के सबसिडी अनुदान के जरिए वसूल किया जाना चाहिए। हालांकि राज्य अक्सर सबसिडी भुगतान में देरी करते हैं जिससे नकदी प्रवाह में समस्याएं आती हैं और ऋण इकट्ठा होता जाता है। इसके अलावा बेची गई बिजली से शुल्क की वसूली उतनी नहीं होती, जितनी होनी चाहिए।
उत्पादन क्षेत्र में दर्ज घाटे में भी वृद्धि हुई है। 2022-23 में राज्य के स्वामित्व वाली उत्पादन कंपनियों ने 7,175 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया, जबकि 2021-22 में यह घाटा 4,245 करोड़ रुपए था। इनमें से 87% यानी 6,278 करोड़ रुपए घाटा, सिर्फ राजस्थान का था। उल्लेखनीय है कि विलंबित भुगतान अधिभार नियम, 2022 के तहत वितरण कंपनियों को उत्पादन कंपनियों को अग्रिम भुगतान करना होता है।
राज्यों के वित्त को खतरा
लगातार वित्तीय घाटा, उच्च ऋण और राज्यों की गारंटियां, राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम बने हुए हैं। ये राज्य सरकारों के लिए आकस्मिक देनदारियां हैं, यानी, अगर कोई डिस्कॉम अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ है, तो राज्य को उसका वहन करना होगा।
डिस्कॉम को संकट से उबारने के लिए पहले भी ऐसी कई योजनाएं शुरू की गई हैं (तालिका 2 देखें)। 2022-23 तक, डिस्कॉम पर 6.61 लाख करोड़ रुपए का बकाया कर्ज है, जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 2.4% है। तमिलनाडु (जीएसडीपी का 6%), राजस्थान (जीएसडीपी का 6%), और उत्तर प्रदेश (जीएसडीपी का 3%) जैसे राज्यों में ऋण काफी अधिक है। पिछले वित्त आयोगों ने माना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति के जोखिम को कम करने के लिए डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों में वितरण क्षेत्र में बदलाव के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएं
| 
 वर्ष  | 
 योजना  | 
 विवरण  | 
| 
 2002  | 
 बेलआउट पैकेज  | 
 राज्यों ने राज्य बिजली बोर्डों का 35,000 करोड़ रुपए का कर्ज वहन किया, राज्य बिजली बोर्डों द्वारा पीएसयू को देय ब्याज में 50% की छूट  | 
| 
 2012  | 
 फाइनांशियल रीस्ट्रक्चरिंग पैकेज  | 
 राज्यों ने 56,908 करोड़ रुपए की बकाया अल्पकालिक देनदारियों का 50% हिस्सा वहन किया  | 
| 
 2015  | 
 उज्ज्वल डिस्कॉम अश्योरेंस योजना (उदय)  | 
 राज्य डिस्कॉम के 2.3 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का 75% हिस्सा वहन किया, और भविष्य में किसी भी नुकसान के लिए अनुदान देने पर भी सहमति जताई  | 
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 2020  | 
 लिक्विडिटी इंफ्यूजन स्कीम  | 
 उत्पादकों का बकाया चुकाने के लिए डिस्कॉम को पावर फाइनांस कॉरपोरेशन और आरईसी लिमिटेड से 1.35 लाख करोड़ रुपए का ऋण मिला, राज्य सरकारों ने गारंटी दी  | 
| 
 2022  | 
 रीवैम्प्ड डिस्ट्रिब्यूशन सेक्टर स्कीम  | 
 केंद्र सरकार सप्लाई इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 97,631 करोड़ रुपए की परिणाम-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान करेगी  | 
स्रोत: नीति आयोग, ऊर्जा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियां; पीआरएस।
राज्यों की वित्तीय स्थिति पर डिस्कॉम्स के वित्त के प्रभाव के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां देखें। बिजली वितरण क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दों पर अधिक जानकारी के लिए यहां देखें।
अनुलग्नक
तालिका 3: बिजली की बिक्री के आधार पर डिस्कॉम की लागत और राजस्व संरचना (रुपए प्रति किलोवाट में)
| 
 विवरण  | 
 2019-20  | 
 2020-21  | 
 2021-22  | 
 2022-23  | 
| 
 बिजली आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस)  | 
 7.4  | 
 7.7  | 
 7.6  | 
 8.6  | 
| 
 जिसमें  | 
||||
| 
 बिजली खरीद की लागत  | 
 5.8  | 
 5.9  | 
 5.8  | 
 6.6  | 
| 
 प्राप्त औसत राजस्व (एआरआर)  | 
 6.8  | 
 7.1  | 
 7.3  | 
 7.8  | 
| 
 जिसमें  | 
||||
| 
 बिजली की बिक्री से राजस्व  | 
 5.0  | 
 4.9  | 
 5.1  | 
 5.5  | 
| 
 शुल्क सबसिडी  | 
 1.3  | 
 1.4  | 
 1.4  | 
 1.5  | 
| 
 रेगुलेटरी आय और उदय के तहत राजस्व अनुदान  | 
 0.3  | 
 0.1  | 
 0.0  | 
 0.2  | 
| 
 प्रति युनिट घाटा  | 
 0.6  | 
 0.6  | 
 0.3  | 
 0.7  | 
| 
 कुल वित्तीय घाटा  | 
 -60,231  | 
 -76,899  | 
 -16,579  | 
 -68,832  | 
स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
तालिका 4: राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों के लाभ/हानि (करोड़ रुपए में)
| 
 राज्य/यूटी  | 
 2017-18  | 
 2018-19  | 
 2019-20  | 
 2020-21  | 
 2021-22  | 
 2022-23  | 
| 
 अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह  | 
 -605  | 
 -645  | 
 -678  | 
 -757  | 
 -86  | 
 -76  | 
| 
 आंध्र प्रदेश  | 
 -546  | 
 -16,831  | 
 1,103  | 
 -6,894  | 
 -2,595  | 
 1,211  | 
| 
 अरुणाचल प्रदेश  | 
 -429  | 
 -420  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
| 
 असम  | 
 -259  | 
 311  | 
 1,141  | 
 -107  | 
 357  | 
 -800  | 
| 
 बिहार  | 
 -1,872  | 
 -1,845  | 
 -2,913  | 
 -2,966  | 
 -2,546  | 
 -10  | 
| 
 चंडीगढ़  | 
 321  | 
 131  | 
 59  | 
 79  | 
 -101  | 
 NA  | 
| 
 छत्तीसगढ़  | 
 -739  | 
 -814  | 
 -571  | 
 -713  | 
 -807  | 
 -1,015  | 
| 
 दादरा नगर हवेली और दमन-दीव  | 
 312  | 
 -149  | 
 -125  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
| 
 दिल्ली  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
 98  | 
 57  | 
 -141  | 
| 
 गोवा  | 
 26  | 
 -121  | 
 -276  | 
 78  | 
 117  | 
 69  | 
| 
 गुजरात  | 
 426  | 
 184  | 
 314  | 
 429  | 
 371  | 
 147  | 
| 
 हरियाणा  | 
 412  | 
 281  | 
 331  | 
 637  | 
 849  | 
 975  | 
| 
 हिमाचल प्रदेश  | 
 -44  | 
 132  | 
 43  | 
 -153  | 
 -141  | 
 -1,340  | 
| 
 झारखंड  | 
 -212  | 
 -730  | 
 -1,111  | 
 -2,556  | 
 -1,721  | 
 -3,545  | 
| 
 कर्नाटक  | 
 -2,439  | 
 -4,889  | 
 -2,501  | 
 -5,382  | 
 4,719  | 
 -2,414  | 
| 
 केरल  | 
 -784  | 
 -135  | 
 -270  | 
 -483  | 
 98  | 
 -1,022  | 
| 
 लद्दाख  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
 -11  | 
 -57  | 
| 
 लक्षद्वीप  | 
 -98  | 
 -120  | 
 -115  | 
 -117  | 
 NA  | 
 NA  | 
| 
 मध्य प्रदेश  | 
 -5,802  | 
 -9,713  | 
 -5,034  | 
 -9,884  | 
 -2,354  | 
 1,842  | 
| 
 महाराष्ट्र  | 
 -3,927  | 
 2,549  | 
 -5,011  | 
 -7,129  | 
 -1,147  | 
 -19,846  | 
| 
 मणिपुर  | 
 -8  | 
 -42  | 
 -15  | 
 -15  | 
 -22  | 
 -146  | 
| 
 मेघालय  | 
 -287  | 
 -202  | 
 -443  | 
 -101  | 
 -157  | 
 -193  | 
| 
 मिजोरम  | 
 87  | 
 -260  | 
 -291  | 
 -115  | 
 -59  | 
 -158  | 
| 
 नगालैंड  | 
 -62  | 
 -94  | 
 -477  | 
 -17  | 
 24  | 
 33  | 
| 
 पुद्दूचेरी  | 
 5  | 
 -39  | 
 -306  | 
 -23  | 
 84  | 
 -131  | 
| 
 पंजाब  | 
 -2,760  | 
 363  | 
 -975  | 
 49  | 
 1,680  | 
 -1,375  | 
| 
 राजस्थान  | 
 -11,314  | 
 -12,524  | 
 -12,277  | 
 -5,994  | 
 2,374  | 
 -2,024  | 
| 
 सिक्किम  | 
 -29  | 
 -3  | 
 -179  | 
 -34  | 
 NA  | 
 71  | 
| 
 तमिलनाडु  | 
 -12,541  | 
 -17,186  | 
 -16,528  | 
 -13,066  | 
 -9,130  | 
 -9,192  | 
| 
 तेलंगाना  | 
 -6,697  | 
 -9,525  | 
 -6,966  | 
 -6,686  | 
 -831  | 
 -11,103  | 
| 
 त्रिपुरा  | 
 28  | 
 38  | 
 -104  | 
 -4  | 
 -127  | 
 -193  | 
| 
 उत्तर प्रदेश  | 
 -5,269  | 
 -5,902  | 
 -3,866  | 
 -10,660  | 
 -6,498  | 
 -15,512  | 
| 
 उत्तराखंड  | 
 -229  | 
 -808  | 
 -323  | 
 -152  | 
 -21  | 
 -1,224  | 
| 
 पश्चिम बंगाल  | 
 -871  | 
 -1,171  | 
 -1,867  | 
 -4,261  | 
 1,045  | 
 -1,663  | 
| 
 राज्य क्षेत्र  | 
 -56,206  | 
 -80,179  | 
 -60,231  | 
 -76,899  | 
 -16,579  | 
 -68,832  | 
| 
 दादरा नगर हवेली और दमन-दीव  | 
 NA  | 
 NA  | 
 NA  | 
 242  | 
 148  | 
 104  | 
| 
 दिल्ली  | 
 109  | 
 657  | 
 -975  | 
 1,876  | 
 521  | 
 -76  | 
| 
 गुजरात  | 
 574  | 
 307  | 
 612  | 
 655  | 
 522  | 
 627  | 
| 
 ओड़िशा  | 
 NA  | 
 NA  | 
 -842  | 
 -853  | 
 940  | 
 746  | 
| 
 महाराष्ट्र  | 
 NA  | 
 590  | 
 1,696  | 
 -375  | 
 360  | 
 42  | 
| 
 उत्तर प्रदेश  | 
 182  | 
 126  | 
 172  | 
 333  | 
 256  | 
 212  | 
| 
 पश्चिम बंगाल  | 
 658  | 
 377  | 
 379  | 
 398  | 
 66  | 
 -12  | 
| 
 निजी क्षेत्र  | 
 1,523  | 
 2,057  | 
 1,042  | 
 2,276  | 
 2,813  | 
 1,643  | 
| 
 भारत  | 
 -54,683  | 
 -78,122  | 
 -59,189  | 
 -77,896  | 
 -13,766  | 
 -67,189  | 
नोट: माइनस का चिह्न (-) हानि दर्शाता है; दादरा नगर हवेली और दमन-दीव डिस्कॉम का 1 अप्रैल, 2022 को निजीकरण किया गया था; नई दिल्ली नगर पालिका परिषद वितरण इकाई को 2020-21 से जोड़ा गया है। स्रोत: पावर फाइनांस कॉरपोरेशन की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस