जुलाई में राष्ट्रपति के रूप में श्री रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि इस हफ्ते भारतीय निर्वाचन आयोग चुनावों की तारीख को अधिसूचित कर देगा। इसके मद्देनजर हम बता रहे हैं कि भारत अपने अगले राष्ट्रपति का चुनाव कैसे करेगा। 

देश के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति संसद का अहम हिस्सा होता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संसद के दोनों सदनों का सत्र बुलाता है। लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कोई भी बिल तब तक कानून नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति की अनुमति न हो। इसके अतिरिक्त जब संसद सत्र में नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास अध्यादेश के जरिए तत्काल प्रभाव से किसी कानून पर दस्तखत करने की शक्ति होती है।    

राष्ट्रपति कौन चुनता है?

राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका संविधान के अनुच्छेद 55 में दिया गया है। दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित संसद और विधानसभाओं के सदस्यों (सांसद और विधायक) का एक इलेक्टोरल कॉलेज होता है जो राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है। कम से कम 50 इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव देते हैं (प्रस्तावक) और 50 दूसरे इलेक्टर उसे अपना अनुमोदन देते हैं (अनुमोदक)। इसके बाद वह व्यक्ति राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। विधान परिषदों के सदस्य और राज्यसभा के 12 मनोनीत सदस्य मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।

प्रस्तावकों और अनुमोदकों का इतिहास

एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव दें, यह प्रथा पहले पांच राष्ट्रपति चुनावों के बाद शुरू हुई। तब यह बहुत आम बात थी कि बहुत से उम्मीदवार चुनाव में खड़े हो जाते थे, जबकि उनके चुने जाने की संभावना बहुत कम होती थी। 1967 के राष्ट्रपति चुनावों में 17 उम्मीदवार खड़े हुए लेकिन उनमें से नौ को एक भी वोट नहीं मिला। ऐसा 1969 के चुनावों में भी हुआ, जब 15 उम्मीदवारों में से पांच को एक भी वोट नहीं मिला। 

इस प्रथा को निरुत्साहित करने के लिए 1974 से यह नियम बनाया गया कि उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा होने के लिए कम से कम 10 प्रस्तावकों और 10 अनुमोदकों की जरूरत होगी। इसके अलावा 2,500 रुपए के अनिवार्य सिक्योरिटी डिपॉजिट को भी शुरू किया गया। ये परिवर्तन राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय चुनाव एक्ट, 1952 में संशोधनों के जरिए लाए गए।   

1997 में एक्ट में फिर संशोधन किया गया। इन संशोधनों में सिक्योरिटी डिपॉजिट को बढ़ाकर 15,000 रुपए और प्रस्तावकों तथा अनुमोदकों, प्रत्येक की संख्या 50 कर दी गई है।

मतों की गणना कैसे होती है?

राष्ट्रपति चुनाव में मतों की गणना के लिए विशेष वोटिंग का इस्तेमाल किया जाता है। सांसदों और विधायकों को अलग-अलग वोटिंग वेटेज दिया जाता है। प्रत्येक विधायक की वोट वैल्यू उसके राज्य की जनसंख्या और विधायकों की संख्या के आधार पर निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक की वैल्यू 208 होगी और सिक्किम की विधायक की 7 (देखें तालिका 1)। चूंकि संवैधानिक संशोधन 2002 में पारित किया गया था इसलिए राज्य की जनसंख्या की गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है। देश भर में विधायकों के सभी वोटों के योग को निर्वाचित सांसदों की संख्या से विभाजित करने पर एक सांसद के वोट की वैल्यू मिलती है। 

2022 में गणित क्या होगा?

2017 के राष्ट्रपति चुनावों में 31 राज्यों तथा दिल्ली और पुद्दूचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के इलेक्टर्स ने हिस्सा लिया था। लेकिन 2019 में जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन एक्ट के साथ राज्यों की संख्या घटकर 30 रह गई है। एक्ट के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा भंग कर दी गई और जम्मू एवं कश्मीर यूटी के लिए एक नई विधायिका का गठन होना अभी बाकी है। राष्ट्रपति चुनावों के इलेक्टोरल कॉलेज में पहले विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया जाता था। 1992 में संविधान में संशोधन किया गया ताकि दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें खास तौर से शामिल किया जा सके। उल्लेखनीय है कि जम्मू एवं कश्मीर के विधायक भविष्य में राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा ले सकें, इसके लिए संसद में एक ऐसा ही संवैधानिक संशोधन पारित करना होगा। 

इस अनुमान के आधार पर कि जम्मू एवं कश्मीर 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में शामिल नहीं है, इन चुनावों में विधायकों के वोटों की कुल संख्या को समायोजित किया जाएगा। कुल 4,120 विधायकों की संख्या से जम्मू एवं कश्मीर के 87 विधायकों को हटा दिया दिया जाना चाहिए। जम्मू और कश्मीर के वोट शेयर 6,264 को भी कुल वोट शेयर 549,495 से कम किया जाना चाहिए। इन परिवर्तनों को समायोजित करने के बाद, 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में 4,033 विधायक भाग लेंगे और सभी विधायकों का संयुक्त वोट शेयर 5,43,231 होगा। 

तालिका 1: 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में विभिन्न राज्यों के निर्वाचित विधायकों के वोटों की वैल्यू 

राज्य का नाम

विधानसभा सीटों की संख्या 

जनसंख्या (1971 जनगणना)

प्रत्येक विधायक के वोट की वैल्यू

राज्य के वोटों की कुल वैल्यू (ग x घ)

आंध्र प्रदेश

175

2,78,00,586

159

27,825

अरुणाचल प्रदेश

60

4,67,511

8

480

असम

126

1,46,25,152

116

14,616

बिहार

243

4,21,26,236

173

42,039

छत्तीसगढ़

90

1,16,37,494

129

11,610

गोवा

40

7,95,120

20

800

गुजरात

182

2,66,97,475

147

26,754

हरियाणा

90

1,00,36,808

112

10,080

हिमाचल प्रदेश

68

34,60,434

51

3,468

जम्मू और कश्मीर

87

63,00,000

72

6,264

झारखंड

81

1,42,27,133

176

14,256

कर्नाटक

224

2,92,99,014

131

29,344

केरल

140

2,13,47,375

152

21,280

मध्य प्रदेश

230

3,00,16,625

131

30,130

महाराष्ट्र

288

5,04,12,235

175

50,400

मणिपुर

60

10,72,753

18

1,080

मेघालय

60

10,11,699

17

1,020

मिजोरम

40

3,32,390

8

320

नगालैंड

60

5,16,449

9

540

ओड़िशा

147

2,19,44,615

149

21,903

पंजाब

117

1,35,51,060

116

13,572

राजस्थान

200

2,57,65,806

129

25,800

सिक्किम

32

2,09,843

7

224

तमिलनाडु

234

4,11,99,168

176

41,184

तेलंगाना

119

1,57,02,122

132

15,708

त्रिपुरा

60

15,56,342

26

1,560

उत्तराखंड

70

44,91,239

64

4,480

उत्तर प्रदेश

403

8,38,49,905

208

83,824

पश्चिम बंगाल

294

4,43,12,011

151

44,394

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली

70

40,65,698

58

4,060

पुद्दूचेरी

30

4,71,707

16

480

कुल

4,120

54,93,02,005

 

5,49,495

स्रोत: भारतीय निर्वाचन आयोग (2017); पीआरएस।

एक सांसद के वोट की वैल्यू 2017 में 708 से घटकर 2022 में 700 हो जाएगी।

सांसद के वोट की वैल्यू =   विधायकों के सभी वोट्स की कुल वैल्यू =  543231 = 700 
                          निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या         776

उल्लेखनीय है कि सांसदों के वोट की वैल्यू को सबसे करीबी होल नंबर में राउंड ऑफ कर दिया जाता है (यानी उसे पूर्णांक बना दिया जाता है)। इससे सभी सांसदों के वोटों की कंबाइंड वैल्यू 543,200 (700 776) हो जाती है।

जीतने के लिए कितने वोट्स की जरूरत होती है?

राष्ट्रपति पद का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली के जरिए किया जाता है। इस प्रणाली में इलेक्टर्स वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं। कोई उम्मीदवार तब विजेता होता है जब उसे वैध वोटों की कुल वैल्यू का आधे से अधिक हासिल हो। इसे कोटा कहा जाता है।    

कल्पना कीजिए कि हर इलेक्टर वोट देता है और हर वोट वैध होता है:

कोटा = सांसदों के वोट्स की कुल वैल्यू + विधायकों के वोट्स की कुल वैल्यू + 1 
                                 2

= 543200 + 543231 +1     =   1086431 +1     =    543,216 
          2                       2

दलबदल विरोधी कानून जोकि सांसदों को दलगत विचारधारा से इतर जाने से रोकता है, वह राष्ट्रपति चुनावों पर लागू नहीं होता। इसका मतलब यह है कि सांसद और विधायक अपन बैलेट गुप्त रख सकते हैं। 

वोटों की गिनती राउंट्स में होती है। पहले राउंड में गिने जाने वाले हर बैलेट पर पहला प्रिफरेंस लिखा जाता है। अगर किसी उम्मीदवार को इस चरण में कोटा मिलता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को कोटा नहीं मिलता तो दूसरे राउंड की गिनती शुरू हो जाती है। जिस उम्मीदवार को पहले राउंड में सबसे कम वोट मिले थे, इस राउंड में उसके वोट ट्रांसफर हो जाते हैं। यानी ये वोट अब उस उम्मीदवार को चले जाते हैं जिसे हर बैलेट में दूसरा प्रिफरेंस मिला था। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक सिर्फ एक उम्मीदवार रह जाता है। यह जरूरी नहीं है कि कोई इलेक्टर सभी उम्मीदवारों के लिए अपने प्रिफरेंस बताए। अगर बैलेट में कोई दूसरा प्रिफरेंस नहीं बताया गया है तो बैलेट को दूसरे राउंड में एग्जॉस्टेड बैलेट माना जाएगा और आगे गिनती में वह शामिल नहीं होगा। 

पांचवे राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें श्री वी.वी. गिरी को चुना गया था, वह अकेला अवसर था जब किसी उम्मीदवार ने पहले राउंड में कोटा हासिल नहीं किया था। फिर दूसरे फ्रिफरेंस वोट्स का मूल्यांकन किया गया था और श्री गिरी को 8,36,337 में से 4,20,077 मिले थे और वह राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए थे। 

भारत के अकेले राष्ट्रपति जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल की 

भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी (1977-1982) अकेले राष्ट्रपति थे जिन्हें निर्विरोध चुना गया था। 1977 के चुनावों में 37 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन भरे थे, लेकिन छानबीन करने पर 36 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज कर दिए और श्री रेड्डी एकमात्र उम्मीदवार बचे थे।

14 मार्च, 2022 को राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के कामकाज पर चर्चा की। चर्चा के दौरान बजटीय आबंटन, योजनाओं के कार्यान्वयन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया गया। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित विकास योजनाओं और प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने, उनके कार्यान्वयन और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मंत्रालय के लिए 2022-23 के बजटीय आबंटनों का विश्लेषण करेंगे और उससे संबंधित विषयों पर विचार करेंगे।

इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पीएम-डिवाइन नामक नई योजना की घोषणा

2022-23 में मंत्रालय के आबंटन में 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5की वृद्धि हुई है। मंत्रालय को 2,800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसे पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना और पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। तालिका 1 में मंत्रालय के बजटीय आबंटन का क्षेत्रवार ब्रेकअप दिया गया है।   

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर विकास पहल (पीएम-डिवाइन) नाम की एक नई योजना की घोषणा की थी। इसे पूर्वोत्तर परिषद (पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी) द्वारा लागू किया जाएगा। पीएम-डिवाइन सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करेगी। यह योजना मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र या केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं का स्थान नहीं लेगी, या उन्हें समाहित नहीं करेगी। योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का शुरुआती आबंटन किया जाएगा। 

तालिका 1पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के आबंटन का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में) 

 

प्रमुख मद

2020-21

वास्तविक

2021-22

बअ

2021-22

संअ

2022-23

बअ

2021-22 संअ से 2022-23 बअ से परिवर्तन का %

पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना

446

675

674

1,419

111%

पूर्वोत्तर परिषद की योजनाएं

567

585

585

702

20%

पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना

416

696

674

496

-26%

पूर्वोत्तर एवं सिक्किम के लिए संसाधनों का केंद्रीय पूल

342

581

581

-

-

अन्य

270

322

344

241

-30%

कुल

1,854

2,658

2,658

2,800

5%

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नोट: बअ– बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; पूर्वोत्तर परिषद की योजनाओं में विशेष विकास परियोजनाएं शामिल हैं।
स्रोत: 2022-23 के केंद्रीय बजट दस्तावेजों की मांग संख्या 23पीआरएस। 

पूंजीगत परिव्यय के लिए मांग से कम आबंटन

गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि मंत्रालय ने जितनी मांग (794 करोड़ रुपए) की थी, उसके मुकाबले 2022-23 के बजट चरण में आबंटित राशि (660 करोड़ रुपए) 17% कम है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिसके जरिए स्कूल, अस्पतालों, सड़क एवं पुलों जैसी परिसंपत्तियों का सृजन होता है। कमिटी ने गौर किया कि इससे उन परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन पर गंभीर असर हो सकता है जिनके लिए पूंजीगत परिव्यय की जरूरत होती है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस विषय में वित्त मंत्रालय से बात करनी चाहिए और वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित चरण में अतिरिक्त सहायता की मांग करनी चाहिए।  

पिछले कुछ वर्षों में धनराशि की पूरा उपयोग नहीं किया गया

2011-12 (2016-17 को छोड़कर) के बाद से मंत्रालय बजटीय चरण में आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं कर पाया है (रेखाचित्र 1)। उदाहरण के लिए 2020-21 में पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के मामले में धनराशि का 52% उपयोग किया गया, जबकि पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (जलापूर्ति, बिजली, कनेक्टिविटी, सोशल इंफ्रास्ट्रक्टर से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स) के अंतर्गत केवल 34धनराशि का उपयोग किया गया। मंत्रालय ने धनराशि के उपयोग न हो पाने के कई कारण बताए इनमें परियोजनाओं के प्रस्ताव देर से प्राप्त होना और राज्य सरकारों की तरफ से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स प्राप्त न होना शामिल है।

रेखाचित्र 12011-12 के बाद मंत्रालय द्वारा धनराशि का पूरा उपयोग न करना

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 नोटसंशोधित अनुमान का उपयोग 2021-22 के वास्तविक व्यय के तौर पर किया गया है।
 स्रोतकेंद्रीय बजट दस्तावेज (2011-12 से 2022-23); पीआरएस।

परियोजनाओं की धीमी रफ्तार 

मंत्रालय सड़क एवं पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। कुछ योजनाओं की प्रगति अपर्याप्त रही है। स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत कई सड़क परियोजनाओं की भौतिक प्रगति या तो शून्य है, या सिंगल डिजिट परसेंट में है, इसके बावजूद कि परियोजना के लिए धनराशि जारी की जा चुकी है। इसी तरह करबी अंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (असम में स्वायत्त जिला परिषद) तथा सामाजिक एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़क, पुलों का निर्माण, और स्कूलों एवं जलापूर्ति परियोजनाओं का निर्माण) के अंतर्गत परियोजनाओं की अपर्याप्त प्रगति देखी गई है।

घटते वन आवरण पर ध्यान देने की जरूरत

स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को वन आवरण के संरक्षण के लिए काम करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने पूर्वोत्तर भारत में वन आवरण के घटने पर भी ध्यान दिया। भारतीय वनों की स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच जिन राज्यों के वन आवरण को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं(i) अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किलोमीटर वन आवरण का नुकसान), (ii) मणिपुर (249 वर्ग किलोमीटर), (iii) नागालैंड (235 वर्ग किलोमीटर), (iv) मिजोरम (186 वर्ग किलोमीटर), और (v) मेघालय (73 वर्ग किलोमीटर)। वन आवरण में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे झूम खेती, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएं, मानवजनित (पर्यावरणीय प्रदूषण) दबाव और विकासपरक गतिविधियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के विभिन्न उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और निर्धारित समय अवधि में उन्हें लागू किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए: (i) वन आवरण/घनत्व को बढ़ाने के लिए नियमित पौधरोपण करना चाहिए, और (ii) केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत वनों के संरक्षण के अंतिम लक्ष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण विषय उठाए

राज्यसभा में 14 मार्च, 2022 को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की गई। सदस्यों ने जिन विषयों को उठाया, उनमें से एक यह था कि मंत्रालय के पास अपना लाइन विभाग नहीं है। इस वजह से मंत्रालय को परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के प्रशासनिक बल पर निर्भर रहना पड़ता है। कई दूसरे सदस्यों ने यह भी कहा कि क्षेत्र रेलवे और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है जिससे इसका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। सदन में इसके जवाब में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग और दूरसंचार के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार करने के निरंतर प्रयास कर रही है।

पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के आबंटन

केंद्रीय मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर के लिए अपना 10% बजट आबंटित किया (धनराशि के आबंटन और उपयोग के लिए रेखाचित्र 2 को देखें)। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय वह नोडल मंत्रालय है जोकि विभिन्न मंत्रालयों के आबंटनों की निगरानी करता है। 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सभी मंत्रालयों ने 76,040 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों (68,440 करोड़ रुपए) के मुकाबले इसमें 11की वृद्धि है। 2019-20 और 2021-22 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए वास्तविक व्यय बजट अनुमान से क्रमशः 18% और 19% कम था। 

रेखाचित्र 2पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)

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स्रोत: रिपोर्ट संख्या 239पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अनुदान मांग (2022-23)गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।