विश्व में सबसे तेजी से बढ़ते उड्डयन बाजारों में भारत का शुमार भी होता है। दक्षिण एशिया के कुल हवाई यातायात में भारत के घरेलू यातायात का हिस्सा 69% तक है। उम्मीद है कि 2030 तक भारत की हवाई क्षमता सालाना एक बिलियन यात्राओं की हो जाएगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय राष्ट्रीय उड्डयन नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने का काम करता है। हाल ही में लोकसभा में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के बजट पर चर्चा की गई। इसके मद्देनजर हम भारत के उड्डयन क्षेत्र के मुख्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
कोविड-19 महामारी के दौरान उड्डयन क्षेत्र पर गंभीर वित्तीय दबाव पड़ा था। मार्च 2020 में हवाई परिवहन के निरस्त होने के बाद भारत के एयरलाइन ऑपरेटरों को 19,500 करोड़ रुपए के मूल्य से अधिक का नुकसान हुआ जबकि हवाई अड्डों को 5,120 करोड़ रुपए मूल्य से अधिक का घाटा हुआ, हालांकि महामारी से पूर्व भी कई एयरलाइन कंपनियां वित्तीय तनाव में थीं। जैसे पिछले 15 वर्षों में 17 एयरलाइन कंपनियां बाजार से बाहर हो गईं। इनमें से दो एयरलाइंस, एयर ओड़िशा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और डेक्कन चार्टर्स प्राइवेट लिमिटेड 2020 में बाजार से बाहर हो गईं। एयर इंडिया को पिछले चार वर्षों से लगातार नुकसान हो रहा है। देश की दूसरी कई बड़ी निजी एयरलाइन्स जैसे इंडिगो और स्पाइस जेट को 2018-19 में घाटे उठाना पड़े हैं।
रेखाचित्र 1: भारत में प्रमुख एयरलाइन्स का परिचालनगत लाभ/घाटा (करोड़ रुपए में)
नोट: विस्तारा एयरलाइन्स ने 2015 से काम करना शुरू किया, जबकि एयर एशिया ने 2014 में; नेगेटिव वैल्यू परिचालनगत घाटे का संकेत देती है।
स्रोत: 4 अगस्त, 2021 को अतारांकित प्रश्न 1812 का उत्तर, और 21 सितंबर, 2020 को अतारांकित प्रश्न 1127 का उत्तर; राज्यसभा; पीआरएस।
एयर इंडिया की बिक्री
2011-12 से नागरिक उड्डयन मंत्रालय का सबसे अधिक व्यय एयर इंडिया पर हुआ है। 2009-10 और 2020-21 के बीच सरकार ने बजटीय आबंटनों के जरिए एयर इंडिया पर 1,22,542 करोड़ रुपए खर्च किए। अक्टूबर 2021 में टेलेस लिमिटेड को एयर इंडिया को बेचने को मंजूरी दी गई। यह टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड की सबसिडियरी है। एयर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ रुपए की बोली को अंतिम रूप दिया गया।
जनवरी 2020 तक एयर इंडिया पर 60,000 करोड़ रुपए मूल्य का संचित ऋण था। केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में इस ऋण को चुका रही है। बिक्री को अंतिम रूप देने के बाद सरकार ने एयर इंडिया से जुड़े खर्चों के लिए लगभग 71,000 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं।
ऋण पुनर्भुगतान के अतिरिक्त कोविड-19 के झटके से उबरने के लिए 2021-22 में सरकार एयर इंडिया को नया ऋण (4,500 करोड़ रुपए) और अनुदान (1,944 करोड़ रुपए) देगी। एयर इंडिया के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के मेडिकल लाभ का भुगतान करने के लिए केंद्र सरकार हर वर्ष 165 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
2022-23 में एआईएएचएल के ऋण को चुकाने के लिए 9,260 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं (देखें तालिका 1)। एआईएएचएल एक स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) है जिसे सरकार ने एयर इंडिया की बिक्री के दौरान उसके एसेट्स और देनदारियों को नियंत्रित करने के लिए बनाया है।
तालिका 1: एयर इंडिया के व्यय का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में)
प्रमुख मद |
2020-21 वास्तविक |
2021-22 संअ |
2022-23 बअ |
2021-22 संअ से 2022-23 बअ में परिवर्तन का % |
एआईएएचएल में इक्विटी इंफ्यूजन |
- |
62,057 |
- |
-100% |
एआईएएचएल की ऋण चुकौती |
2,184 |
2,217 |
9,260 |
318% |
सेवानिवृत्त कर्मचारियों को मेडिकल लाभ |
- |
165 |
165 |
0% |
एयर इंडिया के ऋण |
- |
4,500 |
- |
-100% |
कोविड-19 के दौरान नकद नुकसान के लिए अनुदान |
- |
1,944 |
- |
-100% |
कुल |
2,184 |
70,883 |
9,425 |
-87% |
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; एएआई: भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी; एआईएएचएल – एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड; एआई – एयर इंडिया। प्रतिशत परिवर्तन संअ 2021-22 से बअ 2022-23 में है।
स्रोत: अनुदान मांग 2022-23, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
हवाईअड्डों का निजीकरण
देश में नागरिक उड्डयन से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने, उसे अपग्रेड करने, उसके रखरखाव और प्रबंधन का काम भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी (एएआई) के जिम्मे है। 23 जून, 2020 तक अथॉरिटी देश के 137 हवाईअड्डों का परिचालन और प्रबंधन करती थी। घरेलू हवाई यातायात 2013-14 में लगभग 61 मिलियन यात्रियों से दोगुने से भी ज्यादा होकर 2019-20 में लगभग 137 मिलियन हो गया। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय यात्री यातायात 2013-14 में 47 मिलियन से बढ़कर 2019-20 में करीब 67 मिलियन हो गया यानी हर वर्ष करीब 6% की वृद्धि दर्ज की गई। परिणाम के तौर पर भारतीय हवाईअड्डों पर भीड़भाड़ बढ़ रही है। अधिकतर बड़े हवाईअड्डे अपनी हैंडलिंग क्षमता से 85% से 120% पर काम कर रहे हैं। इस कारण सरकार ने भीड़भाड़ की समस्या को काबू में करने के लिए कुछ हवाईअड्डों के निजीकरण का फैसला लिया है।
एएआई ने अपने आठ हवाईअड्डों को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के जरिए लंबी अवधि की लीज पर दिया है। इसमें हवाईअड्डों का परिचालन, प्रबंधन और विकास शामिल है। इनमें से छह हवाईअड्डों, अहमदाबाद, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुअनंतपुरम और मैंगलुरू को 50 वर्षों के लिए मेसर्स अडानी इंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड (एईएल) को लीज़ पर दिया गया है (पीपीपी के अंतर्गत)। इन हवाईअड्डों का स्वामित्व एएआई के पास है और कनसेशन की अवधि पूरी होने के बाद इनका परिचालन एएआई के पास वापस चला जाएगा। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि सरकार के पास 2024 तक 24 पीपीपी हवाईअड्डे होने की उम्मीद है।
रेखाचित्र 2: एएआई के लिए आबंटन (करोड़ रुपए में)
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; एएआई: भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी; आईईबीआर– आंतरिक और बजटेतर संसाधन; स्रोत: अनुदान मांग दस्तावेज, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
कमिटी ने हवाईअड्डों को कनसेशन पर देने के तरीके में संरचनागत मुद्दों पर गौर किया। अब तक जो कंपनियां सबसे बड़ी राशि की बोली लगाती हैं, उन्हें हवाईअड्डे के परिचालन का अधिकार दिया जाता है। इससे एयलाइन ऑपरेटर ज्यादा प्रभार वसूलते हैं। इस प्रणाली में सेवा की वास्तविक लागत पर ध्यान नहीं दिया जाता और एयरलाइन ऑपरेटरों की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी होती है। मंत्रालय मानता है कि भविष्य में नीतियों से संबंधित मुद्दों में एएआई की बड़ी भूमिका होगी जिसमें अच्छी क्वालिटी, सुरक्षित और ग्राहक अनुकूल हवाईअड्डे और एयर नैविगेशन सेवाएं प्रदान करना शामिल है। 2022-23 में सरकार ने एएआई को 150 करोड़ रुपए आबंटित किए जोकि 2021-22 के बजट अनुमानों से करीब दस गुना ज्यादा हैं।
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस-उड़ान)
देश के 15 प्रमुख हवाईड्डों में लगभग 83% कुल यात्री यातायात है। ये हवाईअड्डे अपनी सैचुरेशन लिमिट के बहुत करीब हैं और इसलिए मंत्रालय का कहना है कि टियर-II और टियर-III शहरों को अधिक संख्या में एविएशन नेटवर्क से जोड़ने की जरूरत है। क्षेत्रीय हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और आम लोगों के लिए हवाई यात्रा को सस्ता बनाने के लिए 2016 में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना को शुरू किया गया। 2016-17 से 2021-22 के दौरान पांच वर्षों के लिए इस योजना का बजट 4,500 करोड़ रुपए है। 16 दिसंबर, 2021 तक इसके लिए 46% राशि को जारी कर दिया गया है। 2022-23 में इस योजना के लिए 601 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया जोकि 2021-22 के संशोधित अनुमानों (994 करोड़ रुपए) से 60% कम है।
योजना के अंतर्गत एयरलाइन ऑपरेटर्स को वायबिलिटी गैप फंडिंग और हवाईअड्डों के शुल्क से छूट देकर अंडरसर्व्ड रूट्स में ऑपरेट करने को प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना की कार्यान्वयन एजेंसी एएआई ने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 948 रूट्स को मंजूरी दी है। 31 जनवरी, 2022 तक इनमें से 43% रूट्स को चालू कर दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार, भूमि की अनुपलब्धता और क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव के कारण योजना में विलंब हुआ है। इसके अलावा लाइसेंस हासिल करने से जुड़ी समस्याएं और मंजूर किए गए रूट्स का परिचालन लंबे समय तक कायम न रहना भी विलंब के कारणों में शामिल है। मंत्रालय के अनुसार, इन कारणों के अतिरिक्त महामारी के झटके ने भी धनराशि के कारगर उपयोग में रुकावट पैदा की है।
रेखाचित्र 3: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना पर व्यय (करोड़ रुपए में)
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान।
स्रोत: अनुदान मांग दस्तावेज, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
एयर कार्गों की क्षमता
परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि भौगोलिक स्थिति, बढ़ती अर्थव्यवस्था और पिछले दशक में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के कारण भारत के कार्गो उद्योग की क्षमता व्यापक है। 2019-20 में सभी भारतीय हवाईअड्डे मिलकर 3.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) माल की ढुलाई करते थे। यह हांगकांग (4.5 एमएमटी), मेम्फिस (4.8 एमएमटी) और शंघाई (3.7 एमएमटी) द्वारा की जाने वाली ढुलाई से काफी कम है जो माल ढुलाई की मात्रा के मामले में शीर्ष तीन हवाईअड्डे हैं। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि देश के हवाई कार्गो क्षेत्र के विकास की सबसे बड़ी रुकावट इंफ्रास्ट्रक्चर का पर्याप्त न होना है। इन रुकावटों को दूर करने के लिए उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय डेडिकेटेड कार्गो हवाईअड्डे बनाए और अनावश्यक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए हवाई कार्गो प्रक्रियाओं और सूचना प्रणालियों को स्वचालित बनाए।
कमिटी ने यह भी कहा कि ओपन स्काई नीति के कारण विदेशी कार्गो कैरियर्स ऐसे किसी भी हवाई अड्डे पर आसानी से कार्गो सेवाएं संचालित कर सकते हैं जहां कस्टम्स/इमिग्रेशन सुविधाएं हैं। भारत में 90%-95% अंतरराष्ट्रीय कार्गो इसी के जरिए लाया-ले जाया जाता है। दूसरी तरफ भारतीय कार्गो ऑपरेटर्स को विदेशों में अंतरराष्ट्रीय कार्गो उड़ानों के संचालन में भेदभावपूर्ण पद्धतियों और रेगुलेटरी रुकावटों का सामना करना पड़ता है। कमिटी ने मंत्रालय से आग्रह किया कि वह भारतीय हवाई कार्गो ऑपरेटर्स के लिए समान अवसर मुहैय्या कराए और यह सुनिश्चित करे कि उन्हें एक बराबर मौके मिलें। मंत्रालय ने दिसंबर 2020 में ओपन स्काई नीति में संशोधन किए। संशोधित नीति के अंतर्गत फॉरेन एडहॉक और शुद्ध गैर-अनुसूचित मालवाहक चार्टर सेवा उड़ानों के संचालन को छह हवाईअड्डों - बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद और मुंबई तक सीमित कर दिया गया है।
एविएशन टर्बाइन ईंधन की बढ़ती कीमत
एविएशन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) की लागत एयरलाइन्स की परिचालन लागत का करीब 40% हिस्सा होती है और उनकी वित्तीय व्यावहारिकता को प्रभावित करती है। पिछले कुछ वर्षों में एटीएफ के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हुई है जिससे एयरलाइन कंपनियों की बैलेंस शीट्स पर दबाव पड़ता है। हाल की न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, हवाई किराये के बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण एटीएफ महंगा हो रहा है।
एटीएफ पर वैट लगता है जोकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है और इस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता। एविएशन ईंधन और वैट, दोनों की उच्च दरें एयरलाइन कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों के दौरान एयरलाइन्स का एटीएफ पर व्यय (करोड़ रुपए में)
वर्ष |
राष्ट्रीय जहाज कंपनियां |
निजी घरेलू एयरलाइन्स |
2016-17 |
7,286 |
10,506 |
2017-18 |
8,563 |
13,596 |
2018-19 |
11,788 |
20,662 |
2019-20 |
11,103 |
23,354 |
2020-21 |
3,047 |
7,452 |
स्रोत: अतारांकित प्रश्न 2581, राज्यसभा; पीआरएस।
जनवरी 2020 में मंत्रालय ने ईंधन पर थ्रूपुट चार्ज को खत्म कर दिया जोकि हवाईअड्डा ऑपरेटरों को भारत के सभी हवाईअड्डों पर चुकाना पड़ता था। इससे एटीएफ पर टैक्स का दबाव कम हुआ। 11 अक्टूबर, 2018 से एटीएफ पर केंद्रीय एक्साइज को 14% से घटाकर 11% कर दिया गया। राज्य सरकारों ने भी आरसीएस हवाईअड्डों पर वसूले जाने वाले वैट/सेल्स टैक्स को 10 वर्षों के लिए 1% या उससे कम कर दिया है। गैर आरसीएस-उड़ानों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने एटीएफ पर वैट/सेल्स टैक्स को घटाकर 5% के भीतर कर दिया है। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने एटीएफ को जीएसटी के दायरे में शामिल करने का सुझाव दिया और यह भी कि जीएसटी एटीएफ पर फुल इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 12% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए कृपया नागरिक उड्डयन मंत्रालय की 2022-23 की अनुदान मांगों का विश्लेषण देखें।
राज्यसभा में राष्ट्रीय एंटी डोपिंग बिल, 2021 पारित होने के लिए आज सूचीबद्ध है। पिछले हफ्ते लोकसभा ने इस बिल को पारित कर दिया था। बिल खेलों में एंटी-डोपिंग नियमों के उल्लंघनों के लिए एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाता है। खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने इसकी समीक्षा की थी और लोकसभा में बिल को पारित करते समय, उसमें कमिटी के कुछ सुझावों को शामिल किया गया था।
एथलीट्स खेल प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कुछ प्रतिबंधित पदार्थों का उपभोग करते हैं। इसे डोपिंग कहा जाता है। विश्व स्तर पर विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी (वाडा) डोपिंग को रेगुलेट करती है। 1999 में स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के तौर पर इसकी स्थापना की गई थी। वाडा का मुख्य काम, सभी प्रकार के खेलों और देशों में एंटी-डोपिंग रेगुलेशंस को विकसित करना, उनके बीच सामंजस्य पैदा करना और उनका समन्वय करना है। इसके लिए एजेंसी विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (वाडा कोड) तथा उसके मानकों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम बिल द्वारा प्रस्तावित फ्रेमवर्क की जरूरत के बारे में बात कर रहे हैं और बता रहे हैं कि लोकसभा में बिल पर क्या चर्चा हुई।
भारत में डोपिंग
हाल ही में दो एथलीट्स डोपिंग टेस्ट पास नहीं कर पाए और उन्हें अस्थायी सस्पेंशन का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले भी भारतीय एथलीट्स एंटी-डोपिंग नियमों का उल्लंघन करते पाए गए हैं। वाडा के अनुसार, 2019 में डोपिंग के नियमों के सबसे ज्यादा उल्लंघन रूस (19%), इटली (18%) और भारत (17%) के एथलीट्स ने किए थे। डोपिंग के नियमों के सबसे ज्यादा उल्लंघन बॉडी-बिल्डिंग (22%), एथलेटिक्स (18%), साइकिलिंग (14%) और वेटलिफ्टिंग (13%) में किए गए। खेलों में डोपिंग पर काबू पाने के लिए वाडा यह अपेक्षा करती है कि सभी देशों में एंटी-डोपिंग गतिविधियों को रेगुलेट करने के लिए फ्रेमवर्क हों जिनका प्रबंधन उनके संबंधित राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संगठन करें।
वर्तमान में भारत में डोपिंग को राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी रेगुलेट करती है जिसकी स्थापना 2009 में सोसायटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत गठित स्वायत्त निकाय के तौर पर की गई थी। मौजूदा फ्रेमवर्क के साथ एक समस्या है, वह यह कि एंटी-डोपिंग नियम कानून समर्थित नहीं है, इसलिए अदालतों में उन्हें चुनौती मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त नाडा भी वैधानिक समर्थन के अभाव में एथलीट्स पर प्रतिबंध लगाती है। ऐसे मामलों को देखते हुए संसद की खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने सुझाव दिया था कि खेल विभाग को एंटी-डोपिंग कानून लाना चाहिए। यूएसए, यूके, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने एंटी-डोपिंग गतिविधियों को रेगुलेट करने के लिए कानूनों को लागू किया है।
राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021 द्वारा प्रस्तावित फ्रेमवर्क
बिल वैधानिक निकाय के रूप में नाडा के गठन का प्रयास करता है जिसके प्रमुख महानिदेशक होंगे और उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। एजेंसी के कार्यों में एंटी-डोपिंग गतिविधियों की योजना बनाना, उन्हे लागू और उनकी निगरानी करना, तथा एंटी-डोपिंग के नियमों के उल्लंघनों की जांच करना शामिल है। एंटी-डोपिंग नियमों के उल्लंघन के नतीजों को निर्धारित करने के लिए एक राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग डिसिप्लिनरी पैनल बनाया जाएगा। पैनल में कानूनी विशेषज्ञ, मेडिकल प्रैक्टीशनर और रिटायर एथलीट्स होंगे। इसके अतिरिक्त डिसिप्लिनरी पैनल के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग अपील पैनल बनाया जाएगा। एंटी-डोपिंग नियमों का उल्लंघन करते पाए जाने वाले एथलीट्स निम्नलिखित के अधीन हो सकते हैं: (i) परिणाम डिस्क्वालिफाई हो सकते हैं जिसमें मेडल, प्वाइंट्स और पुरस्कार को जब्त करना शामिल है, (ii) एक निर्दिष्ट अवधि तक किसी प्रतिस्पर्धा या आयोजन में भाग नहीं ले पाना, (iii) वित्तीय प्रतिबंध, और (iv) अन्य परिणाम, जिन्हें निर्दिष्ट किया जा सकता है। टीम स्पोर्ट्स के परिणामों को रेगुलेशंस के जरिए निर्दिष्ट किया जाएगा।
शुरुआत में बिल में संरक्षित एथलीट्स के लिए कोई प्रावधान नहीं था लेकिन जब स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिए तो ऐसे एथलीट्स से संबंधित प्रावधानों को बिल में शामिल कर लिया गया। केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित व्यक्तियों को निर्दिष्ट किया जाएगा। वाडा कोड के अनुसार, एक संरक्षित व्यक्ति वह है: (i) जिसकी आयु 16 वर्ष से कम है, या (ii) उसकी आयु 18 वर्ष से कम है और उसने ओपन श्रेणी में किसी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग नहीं लिया है, या (iii) अपने देश के कानूनी ढांचे के अनुसार उसमें कानूनी क्षमता का अभाव है।
बिल से संबंधित मुद्दे औऱ लोकसभा में चर्चा
बिल पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने कई मुद्दों को उठाया। हम यहां उनकी चर्चा कर रहे हैं-
नाडा की स्वतंत्रता
इस पर जो तमाम मुद्दे उठाए गए, उनमें से एक था, नाडा के महानिदेशक की स्वतंत्रता। वाडा में यह अपेक्षित है कि राष्ट्रीय एंटी डोपिंग संगठन का कामकाज स्वतंत्र हो, चूंकि उसे अपनी सरकार और राष्ट्रीय खेल निकायों के बाहरी दबाव को सामना करना पड़ सकता है और इससे उसके फैसले प्रभावित हो सकते हैं। पहले, बिल में महानिदेशक की क्वालिफिकेशन निर्दिष्ट नहीं है, और इसे नियमों के जरिए अधिसूचित करने के लिए छोड़ दिया गया है। दूसरा, केंद्र सरकार महानिदेशक को दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर या “ऐसे अन्य आधार” पर कार्यालय से हटा सकती है। इन प्रावधानों को केंद्र सरकार के विवेकाधीन छोड़ने से महानिदेशक के स्वतंत्र कामकाज पर असर पड़ सकता है।
एथलीट्स की प्राइवेसी
नाडा के पास एथलीट्स के कुछ पर्सनल डेटा को जमा करने की शक्ति होगी, जैसे: (i) सेक्स या जेंडर, (ii) मेडिकल हिस्ट्री, और (iii) एथलीट्स के पते-ठिकाने की जानकारी (आउट ऑफ कंपीटीशन टेस्टिंग और सैंपल कलेक्शन के लिए)। सांसदों ने एथलीट्स की प्राइवेसी को बरकरार रखने के संबंध में भी चिंता जताई। अपने जवाब में केंद्रीय खेल मंत्री ने सदन को आश्वासन दिया कि डेटा जमा और शेयर करने के दौरान प्राइवेसी के सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाएगा। डेटा सिर्फ संबंधित अथॉरिटीज़ के साथ शेयर किया जाएगा। बिल के अंतर्गत नाडा प्राइवेसी और व्यक्तिगत सूचना के संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप एथलीट्स के पर्सनल डेटा को जमा और इस्तेमाल करेगा। यह विश्व एंटी-डोपिंग संहिता के आठ ‘अनिवार्य’ मानकों में से एक है। केंद्रीय खेल मंत्री ने जितने संशोधन पेश किए, उनमें से एक संशोधन ने प्राइवेसी और व्यक्तिगत सूचना के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के पालन से संबंधित प्रावधान को हटा दिया है।
राज्यों में अधिक संख्या में टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़ की स्थापना
वर्तमान में भारत में एक राष्ट्रीय डोप टेस्टिंग लेबोरेट्री (एनडीटीएल) है। सांसदों ने टेस्टिंग की क्षमता को बढ़ाने के लिए राज्यों में टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़ की स्थापना की मांग उठाई। इसके जवाब में मंत्री ने कहा कि अगर भविष्य में जरूरत हुई तो सरकार राज्यों में और टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़ बनाएगी। इसके अतिरिक्त टेस्टिंग क्षमता बढ़ाने के लिए निजी लैब भी बनाए जा सकते हैं। खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने अधिक बड़ी संख्या में डोप टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़ खोलने की जरूरत पर भी जोर दिया, विशेष रूप से हर राज्य में एक, ताकि देश की जरूरत पूरी की जा सके और एंटी-डोपिंग विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्रों में देश दक्षिण एशिया क्षेत्र का अगुवा बन सके।
अगस्त 2019 में वाडा ने इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स फॉर लेबोरेटरीज (आईएसएल) का पालन नहीं करने के लिए एनडीटीएल पर छह महीने का सस्पेंशन लगाया था। फिर आईएसएल का पालन न करने के कारण जुलाई 2020 में इस सस्पेंशन को और छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था। दूसरा सस्पेंशन तब तक प्रभावी रहता, जब तक कि एनडीटीएल आईएसएल का अनुपालन नहीं करती। हालांकि निलंबन को जनवरी 2021 में और छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया क्योंकि कोविड-19 के कारण वाडा लेबोरेट्री का ऑन-साइट एसेसमेंट नहीं कर सकती थी। दिसंबर 2021 में वाडा ने एनडीटीएल की मान्यता बहाल कर दी।
जागरूकता बढ़ाना
भारत में बहुत से एथलीट्स एंटी-डोपिंग नियमों और प्रतिबंधित पदार्थों के प्रति जागरूक नहीं हैं। जागरूकता के अभाव में वे सप्लीमेंट्स के जरिए प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन कर लेते हैं। सांसदों ने कहा कि एंटी-डोपिंग के संबंध में जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है। मंत्री ने सदन को बताया कि पिछले एक वर्ष में नाडा ने एंटी-डोपिंग संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए 100 हाइब्रिड वर्कशॉप्स चलाईं। बिल नाडा को इस बात के लिए तैयार करेगा कि वह एंटी-डोपिंग पर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता अभियान चलाए और अनुसंधान करे। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक अथॉरिटी (एफएसएसएआई) के साथ काम कर रही है ताकि एथलीट्स के डायटरी सप्लिमेंट्स को टेस्ट किया जा सके।
बिल की समीक्षा करते हुए खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने सुझाव दिया था कि देश में एंटी-डोपिंग इकोसिस्टम में सुधार तथा उसे मजबूत करने के लिए अनेक उपाय किए जाएं। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) ‘डोप फ्री’ सर्टिफाइड सप्लिमेंट्स की लेबलिंग और इस्तेमाल के लिए रेगुलेटरी कार्रवाई करना, और (iii) एथलीट्स द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सप्लिमेंट्स के लिए स्वतंत्र निकायों के ‘डोप-फ्री’ सर्टिफिकेशन को अनिवार्य करना।