विश्व में सबसे तेजी से बढ़ते उड्डयन बाजारों में भारत का शुमार भी होता है। दक्षिण एशिया के कुल हवाई यातायात में भारत के घरेलू यातायात का हिस्सा 69% तक है। उम्मीद है कि 2030 तक भारत की हवाई क्षमता सालाना एक बिलियन यात्राओं की हो जाएगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय राष्ट्रीय उड्डयन नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने का काम करता है। हाल ही में लोकसभा में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के बजट पर चर्चा की गई। इसके मद्देनजर हम भारत के उड्डयन क्षेत्र के मुख्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

कोविड-19 महामारी के दौरान उड्डयन क्षेत्र पर गंभीर वित्तीय दबाव पड़ा था। मार्च 2020 में हवाई परिवहन के निरस्त होने के बाद भारत के एयरलाइन ऑपरेटरों को 19,500 करोड़ रुपए के मूल्य से अधिक का नुकसान हुआ जबकि हवाई अड्डों को 5,120 करोड़ रुपए मूल्य से अधिक का घाटा हुआ, हालांकि महामारी से पूर्व भी कई एयरलाइन कंपनियां वित्तीय तनाव में थीं। जैसे पिछले 15 वर्षों में 17 एयरलाइन कंपनियां बाजार से बाहर हो गईं। इनमें से दो एयरलाइंस, एयर ओड़िशा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और डेक्कन चार्टर्स प्राइवेट लिमिटेड 2020 में बाजार से बाहर हो गईं। एयर इंडिया को पिछले चार वर्षों से लगातार नुकसान हो रहा है। देश की दूसरी कई बड़ी निजी एयरलाइन्स जैसे इंडिगो और स्पाइस जेट को 2018-19 में घाटे उठाना पड़े हैं।

रेखाचित्र 1भारत में प्रमुख एयरलाइन्स का परिचालनगत लाभ/घाटा (करोड़ रुपए में) 

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नोट: विस्तारा एयरलाइन्स ने 2015 से काम करना शुरू किया, जबकि एयर एशिया ने 2014 मेंनेगेटिव वैल्यू परिचालनगत घाटे का संकेत देती है। 
स्रोत: 4 अगस्त, 2021 को अतारांकित प्रश्न 1812 का उत्तर, और 21 सितंबर, 2020 को अतारांकित प्रश्न 1127 का उत्तरराज्यसभा; पीआरएस।

एयर इंडिया की बिक्री

2011-12 से नागरिक उड्डयन मंत्रालय का सबसे अधिक व्यय एयर इंडिया पर हुआ है। 2009-10 और 2020-21 के बीच सरकार ने बजटीय आबंटनों के जरिए एयर इंडिया पर 1,22,542 करोड़ रुपए खर्च किए। अक्टूबर 2021 में टेलेस लिमिटेड को एयर इंडिया को बेचने को मंजूरी दी गई। यह टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड की सबसिडियरी है। एयर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ रुपए की बोली को अंतिम रूप दिया गया।  

जनवरी 2020 तक एयर इंडिया पर 60,000 करोड़ रुपए मूल्य का संचित ऋण था। केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में इस ऋण को चुका रही है। बिक्री को अंतिम रूप देने के बाद सरकार ने एयर इंडिया से जुड़े खर्चों के लिए लगभग 71,000 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं।

ऋण पुनर्भुगतान के अतिरिक्त कोविड-19 के झटके से उबरने के लिए 2021-22 में सरकार एयर इंडिया को नया ऋण (4,500 करोड़ रुपए) और अनुदान (1,944 करोड़ रुपए) देगी। एयर इंडिया के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के मेडिकल लाभ का भुगतान करने के लिए केंद्र सरकार हर वर्ष 165 करोड़ रुपए खर्च करेगी। 

2022-23 में एआईएएचएल के ऋण को चुकाने के लिए 9,260 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं (देखें तालिका 1)। एआईएएचएल एक स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) है जिसे सरकार ने एयर इंडिया की बिक्री के दौरान उसके एसेट्स और देनदारियों को नियंत्रित करने के लिए बनाया है। 

तालिका 1: एयर इंडिया के व्यय का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में) 

प्रमुख मद

2020-21 वास्तविक

2021-22 संअ

2022-23 बअ

2021-22 संअ से 2022-23 बअ में परिवर्तन का %

एआईएएचएल में इक्विटी इंफ्यूजन

-

62,057

-

-100%

एआईएएचएल की ऋण चुकौती

2,184

2,217

9,260

318%

सेवानिवृत्त कर्मचारियों को मेडिकल लाभ

-

165

165

0%

एयर इंडिया के ऋण

-

4,500

-

-100%

कोविड-19 के दौरान नकद नुकसान के लिए अनुदान

-

1,944

-

-100%

कुल

2,184

70,883

9,425

-87%

नोट: बअ – बजट अनुमानसंअ – संशोधित अनुमानएएआईभारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटीएआईएएचएल – एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेडएआई – एयर इंडिया। प्रतिशत परिवर्तन संअ 2021-22 से बअ 2022-23 में है। 
स्रोत: अनुदान मांग 2022-23, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।

हवाईअड्डों का निजीकरण

देश में नागरिक उड्डयन से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने, उसे अपग्रेड करने, उसके रखरखाव और प्रबंधन का काम भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी (एएआई) के जिम्मे है। 23 जून, 2020 तक अथॉरिटी देश के 137 हवाईअड्डों का परिचालन और प्रबंधन करती थी। घरेलू हवाई यातायात 2013-14 में लगभग 61 मिलियन यात्रियों से दोगुने से भी ज्यादा होकर 2019-20 में लगभग 137 मिलियन हो गया। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय यात्री यातायात 2013-14 में 47 मिलियन से बढ़कर 2019-20 में करीब 67 मिलियन हो गया यानी हर वर्ष करीब 6की वृद्धि दर्ज की गई। परिणाम के तौर पर भारतीय हवाईअड्डों पर भीड़भाड़ बढ़ रही है। अधिकतर बड़े हवाईअड्डे अपनी हैंडलिंग क्षमता से 85% से 120% पर काम कर रहे हैं। इस कारण सरकार ने भीड़भाड़ की समस्या को काबू में करने के लिए कुछ हवाईअड्डों के निजीकरण का फैसला लिया है।

एएआई ने अपने आठ हवाईअड्डों को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के जरिए लंबी अवधि की लीज पर दिया है। इसमें हवाईअड्डों का परिचालन, प्रबंधन और विकास शामिल है। इनमें से छह हवाईअड्डों, अहमदाबाद, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुअनंतपुरम और मैंगलुरू को 50 वर्षों के लिए मेसर्स अडानी इंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड (एईएल) को लीज़ पर दिया गया है (पीपीपी के अंतर्गत)। इन हवाईअड्डों का स्वामित्व एएआई के पास है और कनसेशन की अवधि पूरी होने के बाद इनका परिचालन एएआई के पास वापस चला जाएगा। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि सरकार के पास 2024 तक 24 पीपीपी हवाईअड्डे होने की उम्मीद है।  

रेखाचित्र 2: एएआई के लिए आबंटन (करोड़ रुपए में) 

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नोट: बअ – बजट अनुमानसंअ – संशोधित अनुमानएएआईभारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी; आईईबीआर– आंतरिक और बजटेतर संसाधनस्रोतअनुदान मांग दस्तावेजनागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस। 

कमिटी ने हवाईअड्डों को कनसेशन पर देने के तरीके में संरचनागत मुद्दों पर गौर किया। अब तक जो कंपनियां सबसे बड़ी राशि की बोली लगाती हैं, उन्हें हवाईअड्डे के परिचालन का अधिकार दिया जाता है। इससे एयलाइन ऑपरेटर ज्यादा प्रभार वसूलते हैं। इस प्रणाली में सेवा की वास्तविक लागत पर ध्यान नहीं दिया जाता और एयरलाइन ऑपरेटरों की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी होती है। मंत्रालय मानता है कि भविष्य में नीतियों से संबंधित मुद्दों में एएआई की बड़ी भूमिका होगी जिसमें अच्छी क्वालिटी, सुरक्षित और ग्राहक अनुकूल हवाईअड्डे और एयर नैविगेशन सेवाएं प्रदान करना शामिल है। 2022-23 में सरकार ने एएआई को 150 करोड़ रुपए आबंटित किए जोकि 2021-22 के बजट अनुमानों से करीब दस गुना ज्यादा हैं।

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस-उड़ान) 

देश के 15 प्रमुख हवाईड्डों में लगभग 83% कुल यात्री यातायात है ये हवाईअड्डे अपनी सैचुरेशन लिमिट के बहुत करीब हैं और इसलिए मंत्रालय का कहना है कि टियर-II और टियर-III शहरों को अधिक संख्या में एविएशन नेटवर्क से जोड़ने की जरूरत है। क्षेत्रीय हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और आम लोगों के लिए हवाई यात्रा को सस्ता बनाने के लिए 2016 में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना को शुरू किया गया। 2016-17 से 2021-22 के दौरान पांच वर्षों के लिए इस योजना का बजट 4,500 करोड़ रुपए है। 16 दिसंबर, 2021 तक इसके लिए 46% राशि को जारी कर दिया गया है। 2022-23 में इस योजना के लिए 601 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया जोकि 2021-22 के संशोधित अनुमानों (994 करोड़ रुपए) से 60% कम है। 

योजना के अंतर्गत एयरलाइन ऑपरेटर्स को वायबिलिटी गैप फंडिंग और हवाईअड्डों के शुल्क से छूट देकर अंडरसर्व्ड रूट्स में ऑपरेट करने को प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना की कार्यान्वयन एजेंसी एएआई ने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 948 रूट्स को मंजूरी दी है। 31 जनवरी, 2022 तक इनमें से 43% रूट्स को चालू कर दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार, भूमि की अनुपलब्धता और क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव के कारण योजना में विलंब हुआ है। इसके अलावा लाइसेंस हासिल करने से जुड़ी समस्याएं और मंजूर किए गए रूट्स का परिचालन लंबे समय तक कायम न रहना भी विलंब के कारणों में शामिल है। मंत्रालय के अनुसार, इन कारणों के अतिरिक्त महामारी के झटके ने भी धनराशि के कारगर उपयोग में रुकावट पैदा की है।

रेखाचित्र 3: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना पर व्यय (करोड़ रुपए में) 

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 नोटबअ – बजट अनुमानसंअ – संशोधित अनुमान। 
 स्रोतअनुदान मांग दस्तावेजनागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।

एयर कार्गों की क्षमता 

परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि भौगोलिक स्थिति, बढ़ती अर्थव्यवस्था और पिछले दशक में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के कारण भारत के कार्गो उद्योग की क्षमता व्यापक है। 2019-20 में सभी भारतीय हवाईअड्डे मिलकर 3.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) माल की ढुलाई करते थे। यह हांगकांग (4.5 एमएमटी)मेम्फिस (4.8 एमएमटी) और शंघाई (3.7 एमएमटी) द्वारा की जाने वाली ढुलाई से काफी कम है जो माल ढुलाई की मात्रा के मामले में शीर्ष तीन हवाईअड्डे हैं। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि देश के हवाई कार्गो क्षेत्र के विकास की सबसे बड़ी रुकावट इंफ्रास्ट्रक्चर का पर्याप्त न होना है। इन रुकावटों को दूर करने के लिए उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय डेडिकेटेड कार्गो हवाईअड्डे बनाए और अनावश्यक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए हवाई कार्गो प्रक्रियाओं और सूचना प्रणालियों को स्वचालित बनाए।

कमिटी ने यह भी कहा कि ओपन स्काई नीति के कारण विदेशी कार्गो कैरियर्स ऐसे किसी भी हवाई अड्डे पर आसानी से कार्गो सेवाएं संचालित कर सकते हैं जहां कस्टम्स/इमिग्रेशन सुविधाएं हैं। भारत में 90%-95% अंतरराष्ट्रीय कार्गो इसी के जरिए लाया-ले जाया जाता है। दूसरी तरफ भारतीय कार्गो ऑपरेटर्स को विदेशों में अंतरराष्ट्रीय कार्गो उड़ानों के संचालन में भेदभावपूर्ण पद्धतियों और रेगुलेटरी रुकावटों का सामना करना पड़ता है। कमिटी ने मंत्रालय से आग्रह किया कि वह भारतीय हवाई कार्गो ऑपरेटर्स के लिए समान अवसर मुहैय्या कराए और यह सुनिश्चित करे कि उन्हें एक बराबर मौके मिलें। मंत्रालय ने दिसंबर 2020 में ओपन स्काई नीति में संशोधन किए। संशोधित नीति के अंतर्गत फॉरेन एडहॉक और शुद्ध गैर-अनुसूचित मालवाहक चार्टर सेवा उड़ानों के संचालन को छह हवाईअड्डों - बेंगलुरूचेन्नईदिल्लीकोलकाता, हैदराबाद और मुंबई तक सीमित कर दिया गया है। 

एविएशन टर्बाइन ईंधन की बढ़ती कीमत

एविएशन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) की लागत एयरलाइन्स की परिचालन लागत का करीब 40% हिस्सा होती है और उनकी वित्तीय व्यावहारिकता को प्रभावित करती है। पिछले कुछ वर्षों में एटीएफ के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हुई है जिससे एयरलाइन कंपनियों की बैलेंस शीट्स पर दबाव पड़ता है। हाल की न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, हवाई किराये के बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण एटीएफ महंगा हो रहा है। 

एटीएफ पर वैट लगता है जोकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है और इस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता। एविएशन ईंधन और वैट, दोनों की उच्च दरें एयरलाइन कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। 

तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों के दौरान एयरलाइन्स का एटीएफ पर व्यय (करोड़ रुपए में) 

वर्ष

राष्ट्रीय जहाज कंपनियां

निजी घरेलू एयरलाइन्स

2016-17

7,286

10,506

2017-18

8,563

13,596

2018-19

11,788

20,662

2019-20

11,103

23,354

2020-21

3,047

7,452

स्रोत: अतारांकित प्रश्न 2581, राज्यसभा; पीआरएस। 

जनवरी 2020 में मंत्रालय ने ईंधन पर थ्रूपुट चार्ज को खत्म कर दिया जोकि हवाईअड्डा ऑपरेटरों को भारत के सभी हवाईअड्डों पर चुकाना पड़ता था। इससे एटीएफ पर टैक्स का दबाव कम हुआ।  11 अक्टूबर, 2018 से एटीएफ पर केंद्रीय एक्साइज को 14% से घटाकर 11कर दिया गया। राज्य सरकारों ने भी आरसीएस हवाईअड्डों पर वसूले जाने वाले वैट/सेल्स टैक्स को 10 वर्षों के लिए 1% या उससे कम कर दिया है। गैर आरसीएस-उड़ानों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने एटीएफ पर वैट/सेल्स टैक्स को घटाकर 5% के भीतर कर दिया है। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने एटीएफ को जीएसटी के दायरे में शामिल करने का सुझाव दिया और यह भी कि जीएसटी एटीएफ पर फुल इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 12% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए कृपया नागरिक उड्डयन मंत्रालय की 2022-23 की अनुदान मांगों का विश्लेषण देखें। 

जुलाई में राष्ट्रपति के रूप में श्री रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि इस हफ्ते भारतीय निर्वाचन आयोग चुनावों की तारीख को अधिसूचित कर देगा। इसके मद्देनजर हम बता रहे हैं कि भारत अपने अगले राष्ट्रपति का चुनाव कैसे करेगा। 

देश के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति संसद का अहम हिस्सा होता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संसद के दोनों सदनों का सत्र बुलाता है। लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कोई भी बिल तब तक कानून नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति की अनुमति न हो। इसके अतिरिक्त जब संसद सत्र में नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास अध्यादेश के जरिए तत्काल प्रभाव से किसी कानून पर दस्तखत करने की शक्ति होती है।    

राष्ट्रपति कौन चुनता है?

राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका संविधान के अनुच्छेद 55 में दिया गया है। दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित संसद और विधानसभाओं के सदस्यों (सांसद और विधायक) का एक इलेक्टोरल कॉलेज होता है जो राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है। कम से कम 50 इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव देते हैं (प्रस्तावक) और 50 दूसरे इलेक्टर उसे अपना अनुमोदन देते हैं (अनुमोदक)। इसके बाद वह व्यक्ति राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। विधान परिषदों के सदस्य और राज्यसभा के 12 मनोनीत सदस्य मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।

प्रस्तावकों और अनुमोदकों का इतिहास

एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव दें, यह प्रथा पहले पांच राष्ट्रपति चुनावों के बाद शुरू हुई। तब यह बहुत आम बात थी कि बहुत से उम्मीदवार चुनाव में खड़े हो जाते थे, जबकि उनके चुने जाने की संभावना बहुत कम होती थी। 1967 के राष्ट्रपति चुनावों में 17 उम्मीदवार खड़े हुए लेकिन उनमें से नौ को एक भी वोट नहीं मिला। ऐसा 1969 के चुनावों में भी हुआ, जब 15 उम्मीदवारों में से पांच को एक भी वोट नहीं मिला। 

इस प्रथा को निरुत्साहित करने के लिए 1974 से यह नियम बनाया गया कि उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा होने के लिए कम से कम 10 प्रस्तावकों और 10 अनुमोदकों की जरूरत होगी। इसके अलावा 2,500 रुपए के अनिवार्य सिक्योरिटी डिपॉजिट को भी शुरू किया गया। ये परिवर्तन राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय चुनाव एक्ट, 1952 में संशोधनों के जरिए लाए गए।   

1997 में एक्ट में फिर संशोधन किया गया। इन संशोधनों में सिक्योरिटी डिपॉजिट को बढ़ाकर 15,000 रुपए और प्रस्तावकों तथा अनुमोदकों, प्रत्येक की संख्या 50 कर दी गई है।

मतों की गणना कैसे होती है?

राष्ट्रपति चुनाव में मतों की गणना के लिए विशेष वोटिंग का इस्तेमाल किया जाता है। सांसदों और विधायकों को अलग-अलग वोटिंग वेटेज दिया जाता है। प्रत्येक विधायक की वोट वैल्यू उसके राज्य की जनसंख्या और विधायकों की संख्या के आधार पर निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक की वैल्यू 208 होगी और सिक्किम की विधायक की 7 (देखें तालिका 1)। चूंकि संवैधानिक संशोधन 2002 में पारित किया गया था इसलिए राज्य की जनसंख्या की गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है। देश भर में विधायकों के सभी वोटों के योग को निर्वाचित सांसदों की संख्या से विभाजित करने पर एक सांसद के वोट की वैल्यू मिलती है। 

2022 में गणित क्या होगा?

2017 के राष्ट्रपति चुनावों में 31 राज्यों तथा दिल्ली और पुद्दूचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के इलेक्टर्स ने हिस्सा लिया था। लेकिन 2019 में जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन एक्ट के साथ राज्यों की संख्या घटकर 30 रह गई है। एक्ट के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा भंग कर दी गई और जम्मू एवं कश्मीर यूटी के लिए एक नई विधायिका का गठन होना अभी बाकी है। राष्ट्रपति चुनावों के इलेक्टोरल कॉलेज में पहले विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया जाता था। 1992 में संविधान में संशोधन किया गया ताकि दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें खास तौर से शामिल किया जा सके। उल्लेखनीय है कि जम्मू एवं कश्मीर के विधायक भविष्य में राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा ले सकें, इसके लिए संसद में एक ऐसा ही संवैधानिक संशोधन पारित करना होगा। 

इस अनुमान के आधार पर कि जम्मू एवं कश्मीर 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में शामिल नहीं है, इन चुनावों में विधायकों के वोटों की कुल संख्या को समायोजित किया जाएगा। कुल 4,120 विधायकों की संख्या से जम्मू एवं कश्मीर के 87 विधायकों को हटा दिया दिया जाना चाहिए। जम्मू और कश्मीर के वोट शेयर 6,264 को भी कुल वोट शेयर 549,495 से कम किया जाना चाहिए। इन परिवर्तनों को समायोजित करने के बाद, 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में 4,033 विधायक भाग लेंगे और सभी विधायकों का संयुक्त वोट शेयर 5,43,231 होगा। 

तालिका 1: 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में विभिन्न राज्यों के निर्वाचित विधायकों के वोटों की वैल्यू 

राज्य का नाम

विधानसभा सीटों की संख्या 

जनसंख्या (1971 जनगणना)

प्रत्येक विधायक के वोट की वैल्यू

राज्य के वोटों की कुल वैल्यू (ग x घ)

आंध्र प्रदेश

175

2,78,00,586

159

27,825

अरुणाचल प्रदेश

60

4,67,511

8

480

असम

126

1,46,25,152

116

14,616

बिहार

243

4,21,26,236

173

42,039

छत्तीसगढ़

90

1,16,37,494

129

11,610

गोवा

40

7,95,120

20

800

गुजरात

182

2,66,97,475

147

26,754

हरियाणा

90

1,00,36,808

112

10,080

हिमाचल प्रदेश

68

34,60,434

51

3,468

जम्मू और कश्मीर

87

63,00,000

72

6,264

झारखंड

81

1,42,27,133

176

14,256

कर्नाटक

224

2,92,99,014

131

29,344

केरल

140

2,13,47,375

152

21,280

मध्य प्रदेश

230

3,00,16,625

131

30,130

महाराष्ट्र

288

5,04,12,235

175

50,400

मणिपुर

60

10,72,753

18

1,080

मेघालय

60

10,11,699

17

1,020

मिजोरम

40

3,32,390

8

320

नगालैंड

60

5,16,449

9

540

ओड़िशा

147

2,19,44,615

149

21,903

पंजाब

117

1,35,51,060

116

13,572

राजस्थान

200

2,57,65,806

129

25,800

सिक्किम

32

2,09,843

7

224

तमिलनाडु

234

4,11,99,168

176

41,184

तेलंगाना

119

1,57,02,122

132

15,708

त्रिपुरा

60

15,56,342

26

1,560

उत्तराखंड

70

44,91,239

64

4,480

उत्तर प्रदेश

403

8,38,49,905

208

83,824

पश्चिम बंगाल

294

4,43,12,011

151

44,394

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली

70

40,65,698

58

4,060

पुद्दूचेरी

30

4,71,707

16

480

कुल

4,120

54,93,02,005

 

5,49,495

स्रोत: भारतीय निर्वाचन आयोग (2017); पीआरएस।

एक सांसद के वोट की वैल्यू 2017 में 708 से घटकर 2022 में 700 हो जाएगी।

सांसद के वोट की वैल्यू =   विधायकों के सभी वोट्स की कुल वैल्यू =  543231 = 700 
                          निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या         776

उल्लेखनीय है कि सांसदों के वोट की वैल्यू को सबसे करीबी होल नंबर में राउंड ऑफ कर दिया जाता है (यानी उसे पूर्णांक बना दिया जाता है)। इससे सभी सांसदों के वोटों की कंबाइंड वैल्यू 543,200 (700 776) हो जाती है।

जीतने के लिए कितने वोट्स की जरूरत होती है?

राष्ट्रपति पद का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली के जरिए किया जाता है। इस प्रणाली में इलेक्टर्स वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं। कोई उम्मीदवार तब विजेता होता है जब उसे वैध वोटों की कुल वैल्यू का आधे से अधिक हासिल हो। इसे कोटा कहा जाता है।    

कल्पना कीजिए कि हर इलेक्टर वोट देता है और हर वोट वैध होता है:

कोटा = सांसदों के वोट्स की कुल वैल्यू + विधायकों के वोट्स की कुल वैल्यू + 1 
                                 2

= 543200 + 543231 +1     =   1086431 +1     =    543,216 
          2                       2

दलबदल विरोधी कानून जोकि सांसदों को दलगत विचारधारा से इतर जाने से रोकता है, वह राष्ट्रपति चुनावों पर लागू नहीं होता। इसका मतलब यह है कि सांसद और विधायक अपन बैलेट गुप्त रख सकते हैं। 

वोटों की गिनती राउंट्स में होती है। पहले राउंड में गिने जाने वाले हर बैलेट पर पहला प्रिफरेंस लिखा जाता है। अगर किसी उम्मीदवार को इस चरण में कोटा मिलता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को कोटा नहीं मिलता तो दूसरे राउंड की गिनती शुरू हो जाती है। जिस उम्मीदवार को पहले राउंड में सबसे कम वोट मिले थे, इस राउंड में उसके वोट ट्रांसफर हो जाते हैं। यानी ये वोट अब उस उम्मीदवार को चले जाते हैं जिसे हर बैलेट में दूसरा प्रिफरेंस मिला था। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक सिर्फ एक उम्मीदवार रह जाता है। यह जरूरी नहीं है कि कोई इलेक्टर सभी उम्मीदवारों के लिए अपने प्रिफरेंस बताए। अगर बैलेट में कोई दूसरा प्रिफरेंस नहीं बताया गया है तो बैलेट को दूसरे राउंड में एग्जॉस्टेड बैलेट माना जाएगा और आगे गिनती में वह शामिल नहीं होगा। 

पांचवे राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें श्री वी.वी. गिरी को चुना गया था, वह अकेला अवसर था जब किसी उम्मीदवार ने पहले राउंड में कोटा हासिल नहीं किया था। फिर दूसरे फ्रिफरेंस वोट्स का मूल्यांकन किया गया था और श्री गिरी को 8,36,337 में से 4,20,077 मिले थे और वह राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए थे। 

भारत के अकेले राष्ट्रपति जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल की 

भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी (1977-1982) अकेले राष्ट्रपति थे जिन्हें निर्विरोध चुना गया था। 1977 के चुनावों में 37 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन भरे थे, लेकिन छानबीन करने पर 36 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज कर दिए और श्री रेड्डी एकमात्र उम्मीदवार बचे थे।