भारत 25 मार्च, 2020 से लॉकडाउन में है। इस दौरान अनिवार्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और सप्लाई न करने वाली गतिविधियों को पूरी तरह या आंशिक रूप से रोक दिया गया था। यात्री रेलों और हवाई उड़ानों को भी बंद कर दिया गया था। लॉकडाउन ने प्रवासियों को बुरी तरह प्रभावित किया है, उद्योगों के बंद होने से उनमें से बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई हैं और वे अपने मूल निवास स्थानों से दूर दूसरे स्थानों में फंसे हुए हैं तथा वापस जाना चाहते हैं। इसके बाद सरकार ने प्रवासियों के लिए राहत उपायों की घोषणा की है और प्रवासियों के लिए यह व्यवस्था की है कि वे अपने मूल निवास स्थान वापस जा सकें। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासियों की समस्याओं को महसूस करते हुए सरकार के परिवहन और राहत प्रबंध की समीक्षा की। 9 जून को न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि वे फंसे हुए शेष प्रवासियों के लिए परिवहन का पूरा प्रबंध करें और इस बात का ध्यान रखते हुए राहत उपाय करें कि लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलना आसान हो। इस ब्लॉग में हम भारत में प्रवास से संबंधित कुछ तथ्यों को पेश कर रहे हैं, साथ ही सरकार के राहत उपायों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त यह भी बता रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवासी लोगों के लिए लॉकडाउन से संबंधित क्या निर्देश जारी किए हैं।
प्रवासियों पर एक नजर
जब लोग अपने निवास स्थान को छोड़कर देश के भीतर किसी दूसरे स्थान पर (आंतरिक प्रवास) या किसी अन्य देश में (अंतरराष्ट्रीय प्रवास) पलायन करते हैं तो उसे प्रवास कहते हैं। प्रवास पर सरकार के हालिया आंकड़े 2011 की जनगणना से प्राप्त किए जा सकते हैं। जनगणना के अनुसार, भारत में 2011 में 45.6 करोड़ प्रवासी थे (जनसंख्या का 38%), जबकि 2001 में इनकी संख्या 31.5 करोड़ थी (जनसंख्या का 31%)। 2001 और 2011 के बीच जनसंख्या 18% और प्रवासियों की संख्या 45% बढ़ गई। 2011 में 99% प्रवास आंतरिक था, और आप्रवासियों (अंतरराष्ट्रीय प्रवासी) का हिस्सा सिर्फ 1% था।[1]
प्रवास की प्रवृत्तियां
आंतरिक प्रवास को मूल स्थान और गंतव्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। वर्गीकरण का एक अन्य प्रकार है: i) ग्रामीण-ग्रामीण, ii) ग्रामीण-शहरी, iii) शहरी-ग्रामीण, और iv) शहरी-शहरी। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 21 करोड़ ग्रामीण-ग्रामीण प्रवासी थे जिनका आंतरिक प्रवास में 54% हिस्सा था (जनगणना में ऐसे 5.3 करोड़ लोगों के संबंध में यह वर्गीकृत नहीं किया जा सका कि उनका मूल निवास स्थान ग्रामीण क्षेत्र है या शहरी क्षेत्र)। ग्रामीण-शहरी और शहरी-ग्रामीण, प्रत्येक किस्म का पलायन करने वाले लगभग 8 करोड़ लोग थे। लगभग 3 करोड़ शहरी-ग्रामीण प्रवासी थे (आंतरिक प्रवास का 7%)।
प्रवास को वर्गीकृत करने का एक अन्य तरीका है: (i) राज्यों के भीतर, और (ii) अंतरराज्यीय। 2011 में सभी आंतरिक प्रवास में राज्यों के भीतर प्रवास का हिस्सा 88% था (39.6 करोड़ व्यक्ति)।1
अंतरराज्यीय प्रवास के संबंध में कई भिन्नताएं हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 5.4 करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी हैं। 2011 में उत्तर प्रदेश और बिहार अंतरराज्यीय प्रवास के सबसे बड़े स्रोत थे, जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली सबसे बड़े गंतव्य (या प्राप्तकर्ता) राज्य। उत्तर प्रदेश के लगभग 83 लाख निवासियों और बिहार के 63 लाख निवासियों ने अस्थायी या स्थायी रूप से दूसरे राज्यों में पलायन किया। 2011 तक भारत के लगभग 60 लाख लोगों ने महाराष्ट्र में पलायन किया।
रेखाचित्र 1: अंतरराज्यीय प्रवास (लाख में)
Note: A net out-migrant state is one where more people migrate out of the state than those that migrate into the state. Net in-migration is the excess of incoming migrants over out-going migrants.
Sources: Census 2011; PRS.
आंतरिक प्रवास के कारण और प्रवासी श्रमिक बल का आकार
2011 में राज्यों के भीतर अधिकतर प्रवास (70%) का कारण विवाह और परिवार था, जिसमें पुरुष और महिला प्रवासियों के बीच भिन्नताएं थीं। 83% महिलाओं ने विवाह और परिवार के कारण पलायन किया था। ऐसा करने वाले पुरुषों की संख्या 39% थी। 8% लोगों ने काम के लिए राज्य के भीतर पलायन किया था (21% पुरुष प्रवासी और 2% महिला प्रवासी)।
अंतरराज्यीय प्रवासियों में काम के लिए पलायन करने वाले अधिक थे। 50% पुरुष और 5% महिलाएं अंतरराज्यीय प्रवासी थे। जनगणना के अनुसार, 2011 में 4.5 करोड़ प्रवासी श्रमिक थे। हालांकि माइग्रेशन पर वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, जनगणना में प्रवासी श्रमिकों की संख्या का कम आकलन किया गया था। महिला प्रवासियों के पलायन को परिवार के कारण दर्ज किया गया, चूंकि यही मुख्य कारण है। हालांकि बहुत सी महिलाएं पलायन के बाद रोजगार में संलग्न हो जाती हैं जोकि काम संबंधी कारणों से महिलाओं के पलायन में प्रदर्शित नहीं होता है।[2]
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, जनगणना में अस्थायी प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही के पूरे आंकड़े भी मौजूद नहीं हैं। 2007-08 में एनएसएसओ ने भारत के प्रवासी श्रमिकों की संख्या सात करोड़ अनुमानित की थी (श्रम बल का 29%)। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 ने 2001-2011 के बीच छह करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों का अनुमान लगाया था। आर्थिक सर्वेक्षण ने यह अनुमान भी लगाया था कि 2011-2016 के बीच हर वर्ष औसत 90 लाख लोगों ने काम के सिलसिले में यात्रा की।
रेखाचित्र 2: राज्य के भीतर प्रवास के कारण
Sources: Census 2011; PRS.
रेखाचित्र 3: अंतरराज्यीय प्रवास के कारण
Sources: Census 2011; PRS.
प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ई) सभी नागरिकों को भारत के परिक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास और बसने का अधिकार देता है, जोकि आम जनता के हित या किसी अधिसूचित जनजाति के संरक्षण हेतु उचित प्रतिबंध के अधीन है। हालांकि काम के लिए प्रवास करने वाले लोगों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: i) सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ की कमी और न्यूनतम सुरक्षा कानूनों का पूरी तरह से लागू न होना, ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों जैसे राज्य प्रदत्त लाभों की पोर्टिबिलिटी का अभाव, और iii) शहरी क्षेत्रों में सस्ते आवास और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में कमी।2
अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक एक्ट, 1979 (आईएसएमडब्ल्यू एक्ट) के अंतर्गत संरक्षणों का पूरी तरह से लागू न होना
आईएसएमडब्ल्यू एक्ट में अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिए संरक्षणों का प्रावधान है। प्रवासियों को काम पर रखने वाले ठेकेदारों से निम्नलिखित की अपेक्षा की जाती है: (i) वे लाइसेंसशुदा होंगे, (ii) सरकारी अथॉरिटीज़ में प्रवासियों को रजिस्टर करेंगे, और (iii) श्रमिकों के लिए एक पासबुक की व्यवस्था करेंगे जिसमें उनकी पहचान दर्ज होगी। ठेकेदार द्वारा दिए जाने वाले वेतन और संरक्षणों (आवास, मुफ्त मेडिकल सुविधा, प्रोटेक्टिव कपड़े) से संबंधित दिशानिर्देश भी कानून में दिए गए हैं।
दिसंबर 2011 में श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि आईएसएमडब्ल्यू एक्ट के अंतर्गत श्रमिकों का पंजीकरण बहुत कम था और उन्हें एक्ट में दिए गए संरक्षण भी प्राप्त नहीं थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस और लाभप्रद प्रयास नहीं किए कि ठेकेदार और नियोक्ता श्रमिकों को अनिवार्य रूप से रजिस्टर करें, ताकि उन्हें एक्ट के अंतर्गत लाभ मिल सकें।
सरकारी लाभ की पोर्टेबिलिटी की कमी
अगर प्रवासी एक स्थान पर सरकारी लाभ हासिल करने के लिए रजिस्टर होते हैं तो दूसरे स्थान पर जाने पर उन्हें उन लाभों से वंचित होना पड़ता है। यह पीडीएस के अंतर्गत पात्रताओं के संबंध में विशेष रूप से सही है। पीडीएस के अंतर्गत लाभ हासिल करने के लिए जरूरी राशन कार्ड राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं और वे विभिन्न राज्यों के बीच पोर्टेबल नहीं होते। इस प्रणाली में पीडीएस से अंतरराज्यीय प्रवासियों को बाहर कर दिया जाता है, बशर्ते अगर वे अपने गृह राज्य में अपना कार्ड सरेंडर कर दें और मेजबान राज्य में नया कार्ड ले लें।
शहरी क्षेत्रों में सस्ते आवाज और बुनियादी सुविधाओं का अभाव
2015 में शहरी आबादी में प्रवासियों का अनुपात 47% था।1 इसी वर्ष आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों को ऐसी सबसे बड़ी आबादी के रूप में चिन्हित किया था जिन्हें शहरों में घरों की जरूरत है। चूंकि शहरों में निम्न आय वाले अपने घर और किराए के घर पर्याप्त संख्या में मौजूद नहीं हैं। इससे शहरों में अनौपचारिक बसाहटें और स्लम्स फैलते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) केंद्र सरकार की एक योजना है जोकि आर्थिक रूप से कमजोर तबके और निम्न आय वाले समूहों को आवास उपलब्ध कराती है। योजना के अंतर्गत निम्नलिखित सहायता दी जाती है: i) स्लम्स का पुनर्वास, ii) होम लोन के लिए सबसिडाइज्ड क्रेडिट, iii) नए मकान बनाने या अपने स्वामित्व वाले मौजूदा मकान को विस्तार देने के लिए 1.5 लाख रुपए तक की सबसिडी, और iv) निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में सस्ती आवासीय इकाइयों की उपलब्धता बढ़ाना। चूंकि आवास राज्य का विषय है, इसलिए सस्ते आवास के लिए राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नताएं हैं।2
लॉकडाउन के दौरान सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए क्या कदम उठाए
लॉकडाउन के दौरान अनेक अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों ने अपने गृह राज्यों को लौटने का प्रयास किया। चूंकि सार्वजनिक परिवहन बंद था, प्रवासियों ने पैदल ही अपने गृह राज्य को चलना शुरू कर दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय के आधार पर बसों और श्रमिक विशेष ट्रेनों की अनुमति दी।[3],[4] 1 मई और 3 जून के बीच 58 लाख से अधिक प्रवासियों को विशेष ट्रेनों से तथा 41 लाख को बसों से वापस भेजा गया। सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों में निम्नलिखित शामिल हैं-
परिवहन: 28 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्यों को इस बात के लिए अधिकृत किया कि वे यात्रा करने वाले प्रवासियों को आवास उपलब्ध कराने के लिए आपदा प्रतिक्रिया कोष को इस्तेमाल कर सकते हैं। राज्यों को सलाह दी गई कि वे राजमार्गों पर राहत शिविर लगाएं जहां मेडिकल सुविधाएं भी मौजूद हों ताकि लॉकडाउन के दौरान लोग वहां रह सकें।
29 अप्रैल को जारी आदेश में गृह मंत्रालय ने राज्यों को इस बात की अनुमति दी कि वे प्रवासियों को बसों के जरिए भेजने के लिए व्यक्तिगत रूप से समन्वय करें। 1 मई को भारतीय रेलवे ने श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ यात्री सेवा शुरू की (22 मार्च के बाद पहली बार) ताकि अपने गृह राज्यों के बाहर फंसे प्रवासियों की आवाजाही संभव हो। 1 मई और 3 जून के बीच भारतीय रेलवे ने 4,197 श्रमिक ट्रेनों के जरिए 59 लाख प्रवासियों की वापसी सुनिश्चित की। सबसे अधिक गुजरात और महाराष्ट्र से ट्रेनें प्रवासियों को लेकर गईं और सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार में उन्हें छोड़ा।[5] उल्लेखनीय है कि ये रुझान मुख्य रूप से 2011 की जनगणना के आंकड़ों में प्रदर्शित प्रवास के पैटर्न के अनुरूप हैं।
खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत शिविरों में खाने, सैनिटेशन और मेडिकल सेवाओं की व्यवस्था करें। 14 मई को आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी श्रृंखला के अंतर्गत वित्त मंत्री ने घोषणा की कि उन प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के लिए मुफ्त खाद्यान्न दिया जाएगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। इससे आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लाभ होने की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड को लागू किया जाएगा ताकि पीडीएस के अंतर्गत पोर्टेबल लाभ प्रदान किए जा सकें। इससे भारत में उचित दर की किसी भी दुकान से राशन लिया जा सकेगा।
आवास: आत्मनिर्भर भारत अभियान में प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए एक योजना शुरू की गई है ताकि उन्हें पीएमएवाई के अंतर्गत सस्ते किराए पर आवासीय इकाइयां उपलब्ध कराई जा सकें। योजना में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी आवासीय मिशन (जेएनएनयूआरएम) के अंतर्गत उपलब्ध मौजूदा आवासों का इस्तेमाल तथा सरकारी एवं निजी एजेंसियों को किराए के लिए नई सस्ती इकाइयों के निर्माण को प्रोत्साहित करना प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त मध्यम आय वर्ग के लिए पीएमएवाई के अंतर्गत क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी योजना हेतु अतिरिक्त धनराशि आबंटित की गई है।
वित्तीय सहायता: कुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश) ने लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए वन टाइम कैश ट्रांसफर की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने लौटने वाले प्रवासियों के लिए, जिन्हें क्वारंटाइन में रहने की जरूरत है, के लिए 1,000 रुपए के मेनटेंस भत्ते की घोषणा की।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने देश में अलग-अलग भागों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की स्थिति की समीक्षा की और कहा कि इस स्थिति में सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त है और उसमें तमाम खामियां हैं।
[1] Census, 2011, Office of the Registrar General & Census Commissioner, Ministry of Home Affairs.
[2] Report of Working Group on Migration, Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation, January 2017, http://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/1566.pdf.
[3] Order No. 40-3/2020-DM-I (A), Ministry of Home Affairs, April 29, 2020, https://prsindia.org/files/covid19/notifications/4233.IND_Movement_of_Persons_April_29.pdf.
[4] Order No. 40-3/2020-DM-I (A), Ministry of Home Affairs, May 1, 2020, https://prsindia.org/files/covid19/notifications/IND_Special_Trains_May_1.jpeg.
[5] “Indian Railways operationalizes 4197 “Shramik Special” trains till 3rd June, 2020 (0900hrs) across the country and transports more than 58 lacs passengers to their home states through “Shramik Special” trains since May 1”, Press Information Bureau, Ministry of Railways, June 3, 2020, https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1629043.
पिछले कुछ महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और यह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 101.8 रुपए प्रति लीटर और डीजल का 89.9 रुपए प्रति लीटर था। दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा मूल्य 105.5 रुपए प्रति लीटर था, और डीजल का 94.2 रुपए प्रति लीटर था। मुंबई में यह मूल्य और अधिक, क्रमशः 111.7 रुपए प्रति लीटर और 102.5 रुपए प्रति लीटर था।
दो शहरों में खुदरा मूल्यों में अंतर की वजह यह है कि एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूला जाता है। इस ब्लॉग में हम पेट्रोल और डीजल की मूल्य संरचना में कर घटकों पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही राज्यों में उनके उतार-चढ़ाव और हाल के वर्षों में इन उत्पादों पर टैक्सेशन में आए मुख्य बदलावों पर विचार कर रहे हैं। हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खुदरा मूल्य में क्या परिवर्तन हुए हैं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ उनकी तुलना की गई है।
टैक्स रीटेल कीमतों का करीब 50% होते हैं
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज़) भारत में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं। यह संशोधन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में होने वाले बदलावों के अनुसार किए जाते हैं। डीलर्स से ली जाने वाली कीमत में ओएमसीज़ द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल ढुलाई की कीमत शामिल होती है। 16 अक्टूबर, 2021 तक डीलर से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42% और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49% है (तालिका 1)।
दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (16 अक्टूबर, 2021 तक) के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल के खुदरा मूल्य में 54% हिस्सा केंद्र और राज्य टैक्स हैं। डीजल के मामले में यह 49% के करीब है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन पर टैक्स लगाती है, जबकि राज्यों उनकी बिक्री पर टैक्स लगाते हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। यह पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का क्रमश: 31% और 34% है।
तालिका 1: दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों का ब्रेकअप (16 अक्टूबर, 2021 तक)
घटक |
पेट्रोल |
डीजल |
||
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
रुपए/लीटर |
खुदरा मूल्य का % |
|
डीलर से लिया जाने वाला मूल्य |
44.4 |
42% |
46.0 |
49% |
एक्साइज ड्यूटी (केंद्र द्वारा वसूली जाने वाली) |
32.9 |
31% |
31.8 |
34% |
डीलर का कमीशन (औसत) |
3.9 |
4% |
2.6 |
3% |
सेल्स टैक्स/वैट (राज्य द्वारा वसूला जाने वाला) |
24.3 |
23% |
13.8 |
15% |
खुदरा मूल्य |
105.5 |
100% |
94.2 |
100% |
नोट: दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट और डीजल पर 16.75% वैट वसूलती है।
स्रोत: भारतीय तेल निगम लिमिटेड; पीआरएस
एक्साइज ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक समान हैं। राज्य सेल्स टैक्स/मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाते हैं, जिनकी कर दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। जैसे ओड़िशा पेट्रोल पर 32% वैट वसूलता है जबकि उत्तर प्रदेश 26.8% वैट या 18.74 रुपए प्रति लीटर -इनमें से जो भी अधिक हो- वसूलता है। विभिन्न राज्यों के टैक्सों के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका देखें। निम्नलिखित रेखाचित्र में पेट्रोल और डीजल पर राज्यों की विभिन्न टैक्स दरों को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए राज्यों द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स की दरें तमिलनाडु में 13% से लेकर राजस्थान में 36% और कर्नाटक एवं तेलंगाना में 35% तक हैं। रेखाचित्र में दर्शाई गई टैक्स दरों के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, कुछ अतिरिक्त वसूलियां भी करती हैं, जैसे सेस।
रेखाचित्र 1: पेट्रोल और डीजल पर राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की दरें (1 अक्टूबर, 2021 तक)
नोट: महाराष्ट्र की दरें मुंबई-ठाणे क्षेत्र और राज्य के बाकी हिस्सों में लगाई गई दरों का औसत हैं। इस ग्राफ में सिर्फ प्रतिशत दर्शाए गए हैं।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
उल्लेखनीय है कि एक्साइज ड्यूटी से अलग, सेल्स टैक्स एक यथामूल्य कर है, यानी इसका कोई निश्चित मूल्य नहीं है, और उत्पाद की कीमत के प्रतिशत के रूप में शुल्क लिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जबकि मूल्य संरचना में एक्साइज ड्यूटी के घटक का मूल्य निश्चित है, पर सेल्स टैक्स की कीमत अन्य तीन घटकों पर निर्भर है, यानी डीलरों से वसूला गया मूल्य, डीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी।
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारत में खुदरा मूल्य
पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के लिए आयात पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1998-99 में शुद्ध आयात कुल खपत का 69% था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 95% हो गया। घरेलू खपत में आयात का बड़ा हिस्सा है, इसी वजह से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी तरह के बदलाव का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित दो रेखाचित्रों में पिछले नौ वर्षों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों की प्रवृत्तियों को प्रदर्शित किया गया है।
रेखाचित्र 2: कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य (दिल्ली में)
नोट: वैश्विक कच्चे तेल की कीमत भारतीय बास्केट की है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें दिल्ली की हैं। रेखाचित्र औसत मासिक मूल्य दर्शाता है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
जून 2014 और अक्टूबर 2018 के बीच रीटेल बिक्री मूल्य कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप नहीं थे। जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट हई और फिर फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई। हालांकि इस पूरी अवधि के दौरान रीटेल बिक्री मूल्य स्थिर बने रहे। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय रीटेल कीमतों के अलग-अलग होने की वजह टैक्सों में होने वाले बदलाव थे। जैसे जून 2014 और जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय कर क्रमशः 11 रुपए और 13 रुपए बढ़े। नतीजतन फरवरी 2016 और अक्टूबर 2018 के बीच पेट्रोल और डीजल पर करों में चार रुपए की गिरावट हुई। इसी तरह जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 69% की जबरदस्त गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल और डीजल पर क्रमशः 10 रुपए प्रति लीटर और 13 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी।
एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में बढ़ोतरी
मई 2020 में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप 2020-21 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन पिछले वर्ष (2019-20) में 2.38 लाख करोड़ से बढ़कर 3.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। परिणामस्वरूप इसके कलेक्शन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2019-20 में 4% से बढ़कर 2020-21 में 67% हो गई। हालांकि, उस अवधि के दौरान सेल्स टैक्स कलेक्शन (पेट्रोलियम उत्पादों से) कमोबेश स्थिर रहा (रेखाचित्र 3)।
रेखाचित्र 3: पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स/वैट (लाख करोड़ रुपए में)
नोट: इस रेखाचित्र में एक्साइज ड्यूटी में कच्चे तेल पर लगने वाला सेस शामिल है।
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी में राज्यों का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है
हालांकि केंद्र द्वारा केंद्रीय कर वसूले जाते हैं, उसे इन करों की वसूली से केवल 59% राजस्व मिलता है। शेष 41% राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित करना होता है, जैसा कि 15वें वित्त आयोग के सुझाव हैं। इन हस्तांतरित करों की प्रकृति अनटाइड होती है, यानी राज्य अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के दो बड़े घटक होते हैं: (i) टैक्स (यानी बेसिक एक्साइज ड्यूटी), और (ii) सेस और सरचार्ज। इनमें से केवल टैक्स से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सेस या सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व को राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता। वर्तमान में सरचार्ज के अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल पर वसूला जाने वाला सेस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस और सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेस होता है।
केंद्रीय बजट 2021-22 में पेट्रोल और डीजल पर कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं विकास सेस क्रमशः 2.5 रुपए प्रति लीटर और 4 रुपए प्रति लीटर घोषित किया गया था। हालांकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी और सरचार्ज को समान मात्रा में कम कर दिया गया था इसलिए इनकी दरें समान बनी रहीं। लेकिन इस प्रावधान से राज्यों के डिवाइजिबल टैक्स पूल से पेट्रोल का 1.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल से 3 रुपए प्रति लीटर का राजस्व, सेस और सरचार्ज राजस्व में पहुंच गया, जोकि पूरा का पूरा केंद्र का है। इसी तरह पिछले चार वर्षों के दौरान एक्साइज ड्यूटी में टैक्स का हिस्सा पेट्रोल पर 40% और डीजल पर 59% कम हुआ (देखें तालिका 2)। इस समय पेट्रोल (96%) और डीजल (94%) पर वसूली जाने वाली अधिकांश एक्साइज ड्यूटी सेस और सरचार्ज के रूप में है जिसके कारण यह पूरी तरह से केंद्र के हिस्से में जाती है (तालिका 2)।
तालिका 2: एक्साइज ड्यूटी का ब्रेकअप (रुपए प्रति लीटर)
एक्साइज ड्यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
||||||
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
अप्रैल-17 |
कुल का % हिस्सा |
फरवरी-21 |
% हिस्सा |
|
टैक्स (राज्यों को हस्तांतरित) |
9.48 |
44% |
1.4 |
4% |
11.33 |
65% |
1.8 |
6% |
सेस और सरचार्ज (केंद्र) |
12 |
56% |
31.5 |
96% |
6 |
35% |
30 |
94% |
कुल |
21.48 |
100% |
32.9 |
100% |
17.33 |
100% |
31.8 |
100% |
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय; पीआरएस।
एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में राज्यों के हस्तांतरण में पिछले चार वर्षों में गिरावट आई है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के बीच केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, इस अवधि के दौरान हस्तांतरित धनराशि 26,464 करोड़ रुपए से घटकर 19,578 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है।
अनुलग्नक
तालिका 3: भारत में राज्यों के टैक्स/वैट
राज्य/यूटी |
पेट्रोल |
डीजल |
सेल्स टैक्स/वैट |
||
अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह |
6% |
6% |
आंध्र प्रदेश |
31% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
22.25% वैट + 4 रुपए/लीटर वैट+ 1 रुपए/लीटर सड़क विकास सेस और उस पर वैट |
अरुणाचल प्रदेश |
20% |
13% |
असम |
32.66% या 22.63 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट |
23.66% या 17.45 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो, वैट घटाकर 5 रुपए प्रति लीटर की छूट
|
बिहार |
26% या 16.65 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
19% या 12.33 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो (वैट पर अपरिवर्तनीय कर के रूप में 30% सरचार्ज) |
चंडीगढ़ |
10 रुपए/केएल सेस+22.45% या 12.58 रुफए/लीटर जो भी अधिक हो |
10 रुपए/केएल सेस+14.02% या 7.63 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
छत्तीसगढ़ |
25% वैट+2 रुपए/लीटर वैट |
25% वैट+1 रुपए/लीटर वैट |
दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव |
20% वैट |
20% वैट |
दिल्ली |
30% वैट |
250 रुपए/केएल एयर एंबियंस चार्ज + 16.75% वैट |
गोवा |
27% गोवा + 0.5% ग्रीन सेस |
23% वैट+ 0.5% ग्रीन सेस |
गुजरात |
20.1% वैट+ 4% टाउन रेट पर सेस और वैट |
20.2% वैट+ 4 % टाउन रेट पर सेस और वैट |
हरियाणा |
25% वैट या 15.62 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
16.40% वैट या 10.08 रुपए/लीटर जो भी वैट से अधिक हो+ वैट पर 5% अतिरिक्त कर |
हिमाचल प्रदेश |
25% या 15.50 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
14% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो |
जम्मू एवं कश्मीर |
24% एमएसटी+.5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1.50 रुपए/लीटर रोजगार सेस |
झारखंड |
बिक्री मूल्य पर 22% या 17.00 रुपए प्रति लीटर, जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
बिक्री मूल्य का 22% या 12.50 रुपए प्रति लीटर जो भी अधिक हो + 1.00 रुपए प्रति लीटर का सेस |
कर्नाटक |
35% सेल्स टैक्स |
24% सेल्स टैक्स |
केरल |
30.08% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
22.76% सेल्स टैक्स+ 1 रुपए/लीटर अतिरिक्त सेल्स टैक्स + 1% सेस |
लद्दाख |
24% एमएसटी+ 5 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 2.5 रुपए/लीटर की कटौती |
16% एमएसटी+ 1 रुपए/लीटर रोजगार सेस, 0.50 रुपए/लीटर की कटौती |
लक्षद्वीप |
शून्य |
शून्य |
मध्य प्रदेश |
33 % वैट + 4.5 रुपए/लीटर वैट +1%सेस |
23% वैट+ 3 रुपए/लीटर वैट +1% सेस |
महाराष्ट्र- मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, अमरावती और औरंगाबाद |
26% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
24% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
महराष्ट्र (शेष राज्य) |
25% वैट+ 10.12 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
21% वैट+ 3.00 रुपए/लीटर अतिरिक्त कर |
मणिपुर |
32% वैट |
18% वैट |
मेघालय |
20% या 15.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
12% या 9.00 रुपए/लीटर- जो भी अधिक हो (0.10 रुपए/लीटर प्रदूषण सरचार्ज) |
मिजोरम |
25% वैट |
14.5% वैट |
नागालैंड |
25% वैट या 16.04 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो+ 5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
16.50% वैट या 10.51 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो +5% सरचार्ज + 2.00 रुपए/लीटर, सड़क रखरखाव सेस के रूप में |
ओड़िशा |
32% वैट |
28% वैट |
पुद्दूचेरी |
23% वैट |
17.75% वैट |
पंजाब |
2050 रुपए/केएल(सेस)+ 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+24.79% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
1050 रुपए/केएल(सेस) + 0.10 रुपए प्रति लीटर (शहरी परिवहन फंड)+ 0.25 रुपए प्रति लीटर (विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फीस)+ 15.94% वैट+वैट पर 10% अतिरिक्त कर |
राजस्थान |
36% वैट+ 1500 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
26% वैट+ 1750 रुपए/केएल सड़क विकास सेस |
सिक्किम |
25.25% वैट+ 3000 रुपए/केएल सेस |
14.75% वैट + रुपए/केएल सेस |
तमिलनाडु |
13% + 11.52 रुपए प्रति लीटर |
11% + 9.62 रुपए प्रति लीटर |
तेलंगाना |
35.20% वैट |
27% वैट |
त्रिपुरा |
25% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
16.50% वैट+ 3% त्रिपुरा सड़क विकास सेस |
उत्तर प्रदेश |
26.80% या 18.74 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
उत्तराखंड |
25% या 19 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
17.48% या 10.41 रुपए/लीटर जो भी अधिक हो |
पश्चिम बंगाल |
25% या 13.12 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |
17% या 7.70 रुपए/लीटर, सेल्स टैक्स के रूप में जो भी अधिक हो+1000 रुपए/केएल सेस –1000 रुपए/केल सेल्स टैक्स छूट (अपरिवर्तनीय कर के रूप में वैट पर 20% अतिरिक्त कर) |