भारत 25 मार्च, 2020 से लॉकडाउन में है। इस दौरान अनिवार्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और सप्लाई न करने वाली गतिविधियों को पूरी तरह या आंशिक रूप से रोक दिया गया था। यात्री रेलों और हवाई उड़ानों को भी बंद कर दिया गया था। लॉकडाउन ने प्रवासियों को बुरी तरह प्रभावित किया है, उद्योगों के बंद होने से उनमें से बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई हैं और वे अपने मूल निवास स्थानों से दूर दूसरे स्थानों में फंसे हुए हैं तथा वापस जाना चाहते हैं। इसके बाद सरकार ने प्रवासियों के लिए राहत उपायों की घोषणा की है और प्रवासियों के लिए यह व्यवस्था की है कि वे अपने मूल निवास स्थान वापस जा सकें। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासियों की समस्याओं को महसूस करते हुए सरकार के परिवहन और राहत प्रबंध की समीक्षा की। 9 जून को न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि वे फंसे हुए शेष प्रवासियों के लिए परिवहन का पूरा प्रबंध करें और इस बात का ध्यान रखते हुए राहत उपाय करें कि लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलना आसान हो। इस ब्लॉग में हम भारत में प्रवास से संबंधित कुछ तथ्यों को पेश कर रहे हैं, साथ ही सरकार के राहत उपायों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त यह भी बता रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवासी लोगों के लिए लॉकडाउन से संबंधित क्या निर्देश जारी किए हैं।

प्रवासियों पर एक नजर

जब लोग अपने निवास स्थान को छोड़कर देश के भीतर किसी दूसरे स्थान पर (आंतरिक प्रवास) या किसी अन्य देश में  (अंतरराष्ट्रीय प्रवास) पलायन करते हैं तो उसे प्रवास कहते हैं। प्रवास पर सरकार के हालिया आंकड़े 2011 की जनगणना से प्राप्त किए जा सकते हैं। जनगणना के अनुसार, भारत में 2011 में 45.6 करोड़ प्रवासी थे (जनसंख्या का 38%), जबकि 2001 में इनकी संख्या 31.5 करोड़ थी (जनसंख्या का 31%)। 2001 और 2011 के बीच जनसंख्या 18और प्रवासियों की संख्या 45बढ़ गई। 2011 में 99प्रवास आंतरिक था, और आप्रवासियों (अंतरराष्ट्रीय प्रवासी) का हिस्सा सिर्फ 1% था।[1] 

प्रवास की प्रवृत्तियां

आंतरिक प्रवास को मूल स्थान और गंतव्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। वर्गीकरण का एक अन्य प्रकार हैi) ग्रामीण-ग्रामीण, iiग्रामीण-शहरी, iiiशहरी-ग्रामीण, और ivशहरी-शहरी। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 21 करोड़ ग्रामीण-ग्रामीण प्रवासी थे जिनका आंतरिक प्रवास में 54हिस्सा था (जनगणना में ऐसे 5.3 करोड़ लोगों के संबंध में यह वर्गीकृत नहीं किया जा सका कि उनका मूल निवास स्थान ग्रामीण क्षेत्र है या शहरी क्षेत्र)। ग्रामीण-शहरी और शहरी-ग्रामीण, प्रत्येक किस्म का पलायन करने वाले लगभग 8 करोड़ लोग थे। लगभग 3 करोड़ शहरी-ग्रामीण प्रवासी थे (आंतरिक प्रवास का 7%)।  

प्रवास को वर्गीकृत करने का एक अन्य तरीका है: (iराज्यों के भीतर, और (iiअंतरराज्यीय। 2011 में सभी आंतरिक प्रवास में राज्यों के भीतर प्रवास का हिस्सा 88था (39.6 करोड़ व्यक्ति)।1 

अंतरराज्यीय प्रवास के संबंध में कई भिन्नताएं हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 5.4 करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी हैं। 2011 में उत्तर प्रदेश और बिहार अंतरराज्यीय प्रवास के सबसे बड़े स्रोत थे, जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली सबसे बड़े गंतव्य (या प्राप्तकर्ता) राज्य। उत्तर प्रदेश के लगभग 83 लाख निवासियों और बिहार के 63 लाख निवासियों ने अस्थायी या स्थायी रूप से दूसरे राज्यों में पलायन किया। 2011 तक भारत के लगभग 60 लाख लोगों ने महाराष्ट्र में पलायन किया। 

रेखाचित्र 1: अंतरराज्यीय प्रवास (लाख में) 

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NoteA net out-migrant state is one where more people migrate out of the state than those that migrate into the state.   Net in-migration is the excess of incoming migrants over out-going migrants.  

SourcesCensus 2011; PRS.

आंतरिक प्रवास के कारण और प्रवासी श्रमिक बल का आकार

2011 में राज्यों के भीतर अधिकतर प्रवास (70%) का कारण विवाह और परिवार था, जिसमें पुरुष और महिला प्रवासियों के बीच भिन्नताएं थीं। 83% महिलाओं ने विवाह और परिवार के कारण पलायन किया था। ऐसा करने वाले पुरुषों की संख्या 39% थी। 8% लोगों ने काम के लिए राज्य के भीतर पलायन किया था (21% पुरुष प्रवासी और 2% महिला प्रवासी)।

अंतरराज्यीय प्रवासियों में काम के लिए पलायन करने वाले अधिक थे। 50% पुरुष और 5% महिलाएं अंतरराज्यीय प्रवासी थे। जनगणना के अनुसार, 2011 में 4.5 करोड़ प्रवासी श्रमिक थे। हालांकि माइग्रेशन पर वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, जनगणना में प्रवासी श्रमिकों की संख्या का कम आकलन किया गया था। महिला प्रवासियों के पलायन को परिवार के कारण दर्ज किया गया, चूंकि यही मुख्य कारण है। हालांकि बहुत सी महिलाएं पलायन के बाद रोजगार में संलग्न हो जाती हैं जोकि काम संबंधी कारणों से महिलाओं के पलायन में प्रदर्शित नहीं होता है।[2]  

आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, जनगणना में अस्थायी प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही के पूरे आंकड़े भी मौजूद नहीं हैं। 2007-08 में एनएसएसओ ने भारत के प्रवासी श्रमिकों की संख्या सात करोड़ अनुमानित की थी (श्रम बल का 29%)। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 ने 2001-2011 के बीच छह करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों का अनुमान लगाया था। आर्थिक सर्वेक्षण ने यह अनुमान भी लगाया था कि 2011-2016 के बीच हर वर्ष औसत 90 लाख लोगों ने काम के सिलसिले में यात्रा की।  

रेखाचित्र 2: राज्य के भीतर प्रवास के कारण 

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SourcesCensus 2011; PRS.
 रेखाचित्र 3: अंतरराज्यीय प्रवास के कारण 

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SourcesCensus 2011; PRS.

प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं

संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ई) सभी नागरिकों को भारत के परिक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास और बसने का अधिकार देता है, जोकि आम जनता के हित या किसी अधिसूचित जनजाति के संरक्षण हेतु उचित प्रतिबंध के अधीन है। हालांकि काम के लिए प्रवास करने वाले लोगों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: i) सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ की कमी और न्यूनतम सुरक्षा कानूनों का पूरी तरह से लागू न होना, ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों जैसे राज्य प्रदत्त लाभों की पोर्टिबिलिटी का अभाव, और iii) शहरी क्षेत्रों में सस्ते आवास और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में कमी।2    

अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक एक्ट, 1979 (आईएसएमडब्ल्यू एक्ट) के अंतर्गत संरक्षणों का पूरी तरह से लागू न होना 

आईएसएमडब्ल्यू एक्ट में अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिए संरक्षणों का प्रावधान है। प्रवासियों को काम पर रखने वाले ठेकेदारों से निम्नलिखित की अपेक्षा की जाती है: (iवे लाइसेंसशुदा होंगे, (iiसरकारी अथॉरिटीज़ में प्रवासियों को रजिस्टर करेंगे, और (iii) श्रमिकों के लिए एक पासबुक की व्यवस्था करेंगे जिसमें उनकी पहचान दर्ज होगी। ठेकेदार द्वारा दिए जाने वाले वेतन और संरक्षणों (आवास, मुफ्त मेडिकल सुविधा, प्रोटेक्टिव कपड़े) से संबंधित दिशानिर्देश भी कानून में दिए गए हैं। 

दिसंबर 2011 में श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि आईएसएमडब्ल्यू एक्ट के अंतर्गत श्रमिकों का पंजीकरण बहुत कम था और उन्हें एक्ट में दिए गए संरक्षण भी प्राप्त नहीं थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस और लाभप्रद प्रयास नहीं किए कि ठेकेदार और नियोक्ता श्रमिकों को अनिवार्य रूप से रजिस्टर करें, ताकि उन्हें एक्ट के अंतर्गत लाभ मिल सकें। 

सरकारी लाभ की पोर्टेबिलिटी की कमी

अगर प्रवासी एक स्थान पर सरकारी लाभ हासिल करने के लिए रजिस्टर होते हैं तो दूसरे स्थान पर जाने पर उन्हें उन लाभों से वंचित होना पड़ता है। यह पीडीएस के अंतर्गत पात्रताओं के संबंध में विशेष रूप से सही है। पीडीएस के अंतर्गत लाभ हासिल करने के लिए जरूरी राशन कार्ड राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं और वे विभिन्न राज्यों के बीच पोर्टेबल नहीं होते। इस प्रणाली में पीडीएस से अंतरराज्यीय प्रवासियों को बाहर कर दिया जाता है, बशर्ते अगर वे अपने गृह राज्य में अपना कार्ड सरेंडर कर दें और मेजबान राज्य में नया कार्ड ले लें।

शहरी क्षेत्रों में सस्ते आवाज और बुनियादी सुविधाओं का अभाव 

2015 में शहरी आबादी में प्रवासियों का अनुपात 47था।1  इसी वर्ष आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों को ऐसी सबसे बड़ी आबादी के रूप में चिन्हित किया था जिन्हें शहरों में घरों की जरूरत है। चूंकि शहरों में निम्न आय वाले अपने घर और किराए के घर पर्याप्त संख्या में मौजूद नहीं हैं। इससे शहरों में अनौपचारिक बसाहटें और स्लम्स फैलते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) केंद्र सरकार की एक योजना है जोकि आर्थिक रूप से कमजोर तबके और निम्न आय वाले समूहों को आवास उपलब्ध कराती है। योजना के अंतर्गत निम्नलिखित   सहायता दी जाती है: i) स्लम्स का पुनर्वास, ii) होम लोन के लिए सबसिडाइज्ड क्रेडिट, iii) नए मकान बनाने या अपने स्वामित्व वाले मौजूदा मकान को विस्तार देने के लिए 1.5 लाख रुपए तक की सबसिडी, और iv) निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में सस्ती आवासीय इकाइयों की उपलब्धता बढ़ाना। चूंकि आवास राज्य का विषय है, इसलिए सस्ते आवास के लिए राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नताएं हैं।2 

लॉकडाउन के दौरान सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए क्या कदम उठाए 

लॉकडाउन के दौरान अनेक अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों ने अपने गृह राज्यों को लौटने का प्रयास किया। चूंकि सार्वजनिक परिवहन बंद था, प्रवासियों ने पैदल ही अपने गृह राज्य को चलना शुरू कर दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय के आधार पर बसों और श्रमिक विशेष ट्रेनों की अनुमति दी।[3],[4] 1 मई और 3 जून के बीच 58 लाख से अधिक प्रवासियों को विशेष ट्रेनों से तथा 41 लाख को बसों से वापस भेजा गया। सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों में निम्नलिखित शामिल हैं-

परिवहन: 28 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्यों को इस बात के लिए अधिकृत किया कि वे यात्रा करने वाले प्रवासियों को आवास उपलब्ध कराने के लिए आपदा प्रतिक्रिया कोष को इस्तेमाल कर सकते हैं। राज्यों को सलाह दी गई कि वे राजमार्गों पर राहत शिविर लगाएं जहां मेडिकल सुविधाएं भी मौजूद हों ताकि लॉकडाउन के दौरान लोग वहां रह सकें।

29 अप्रैल को जारी आदेश में गृह मंत्रालय ने राज्यों को इस बात की अनुमति दी कि वे प्रवासियों को बसों के जरिए भेजने के लिए व्यक्तिगत रूप से समन्वय करें। 1 मई को भारतीय रेलवे ने श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ यात्री सेवा शुरू की (22 मार्च के बाद पहली बार) ताकि अपने गृह राज्यों के बाहर फंसे प्रवासियों की आवाजाही संभव हो। 1 मई और 3 जून के बीच भारतीय रेलवे ने 4,197 श्रमिक ट्रेनों के जरिए 59 लाख प्रवासियों की वापसी सुनिश्चित की। सबसे अधिक गुजरात और महाराष्ट्र से ट्रेनें प्रवासियों को लेकर गईं और सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार में उन्हें छोड़ा।[5]  उल्लेखनीय है कि ये रुझान मुख्य रूप से 2011 की जनगणना के आंकड़ों में प्रदर्शित प्रवास के पैटर्न के अनुरूप हैं।

खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत शिविरों में खाने, सैनिटेशन और मेडिकल सेवाओं की व्यवस्था करें। 14 मई को आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी श्रृंखला के अंतर्गत वित्त मंत्री ने घोषणा की कि उन प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के लिए मुफ्त खाद्यान्न दिया जाएगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। इससे आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लाभ होने की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड को लागू किया जाएगा ताकि पीडीएस के अंतर्गत पोर्टेबल लाभ प्रदान किए जा सकें। इससे भारत में उचित दर की किसी भी दुकान से राशन लिया जा सकेगा।

आवासआत्मनिर्भर भारत अभियान में प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए एक योजना शुरू की गई है ताकि उन्हें पीएमएवाई के अंतर्गत सस्ते किराए पर आवासीय इकाइयां उपलब्ध कराई जा सकें। योजना में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी आवासीय मिशन (जेएनएनयूआरएम) के अंतर्गत उपलब्ध मौजूदा आवासों का इस्तेमाल तथा सरकारी एवं निजी एजेंसियों को किराए के लिए नई सस्ती इकाइयों के निर्माण को प्रोत्साहित करना प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त मध्यम आय वर्ग के लिए पीएमएवाई के अंतर्गत क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी योजना हेतु अतिरिक्त धनराशि आबंटित की गई है। 

वित्तीय सहायताकुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहारराजस्थान और मध्य प्रदेश) ने लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए वन टाइम कैश ट्रांसफर की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने लौटने वाले प्रवासियों के लिए, जिन्हें क्वारंटाइन में रहने की जरूरत है, के लिए 1,000 रुपए के मेनटेंस भत्ते की घोषणा की। 

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

सर्वोच्च न्यायालय ने देश में अलग-अलग भागों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की स्थिति की समीक्षा की और कहा कि इस स्थिति में सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त है और उसमें तमाम खामियां हैं। 

  • 26 मई को अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश जारी किया कि उन्होंने प्रवासी श्रमिकों के संबंध में जो भी उपाय किए हैं, उसकी जानकारी सौंपे।  
  • 28 मई को अदालत ने केंद्र और राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को अंतरिम निर्देश दिए कि वे प्रवासी श्रमिकों के लिए निम्नलिखित सुनिश्चित करें: i) प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन या बसों का किराया नहीं लिया जाएगा, ii) फंसे हुए प्रवासियों को संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा मुफ्त भोजन दिया जाना चाहिए और इस सूचना को प्रचारित किया जाना चाहिए, iii) राज्य प्रवासियों के परिवहन के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को सरल बनाएंगे और उसे स्पीड-अप करेंगे, और iv) प्रवासियों को रिसीव करने वाले राज्य लास्ट माइल ट्रांसपोर्ट, हेल्थ स्क्रीनिंग और दूसरी सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध कराएंगे। 
  • अपने पहले के निर्देशों को दोहराते हुए 5 जून को (पूरा आदेश 9 जून को जारी किया गया) सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को निम्नलिखित सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किया: i) जो भी श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं और अपने मूल स्थान को लौटना चाहते हैं, उनकी परिवहन की व्यवस्था को 15 दिनों में पूरा किया जाए, ii) प्रवासी श्रमिकों की पहचान को तुरंत पूरा किया जाए और प्रवासियों के रजिस्ट्रेशन को पुलिस स्टेशनों और स्थानीय अथॉरिटीज़ में विकेंद्रित किया जाए, iii) प्रवासी श्रमिकों के रिकॉर्ड्स रखे जाएं और उनमें उनके पूर्व रोजगार के स्थान और उनकी दक्षता की प्रकृति का भी उल्लेख हो, और iv) ब्लॉक स्तर पर काउंसिंग सेंटर्स बनाए जाएं जहां केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं और रोजगार के दूसरे क्षेत्रों की जानकारी प्रदान की जाए। अदालत ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को निर्देश दिया कि लॉकडाउन के आदेशों का कथित उल्लंघन के लिए प्रवासी श्रमिकों के खिलाफ आपदा प्रबंधन कानून के सेक्शन 51 के अंतर्गत प्रॉसीक्यूशन/शिकायतों को वापस लेने पर विचार किया जाए। 

[1] Census, 2011, Office of the Registrar General & Census Commissioner, Ministry of Home Affairs.

[2] Report of Working Group on Migration, Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation, January 2017, http://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/1566.pdf.

[3] Order No40-3/2020-DM-(A), Ministry of Home Affairs, April 29, 2020, https://prsindia.org/files/covid19/notifications/4233.IND_Movement_of_Persons_April_29.pdf

[4] Order No40-3/2020-DM-(A), Ministry of Home Affairs, May 1, 2020, https://prsindia.org/files/covid19/notifications/IND_Special_Trains_May_1.jpeg. 

[5] “Indian Railways operationalizes 4197 “Shramik Special” trains till 3rd June, 2020 (0900hrsacross the country and transports more than 58 lacs passengers to their home states through Shramik Special” trains since May 1, Press Information Bureau, Ministry of Railways, June 3, 2020, https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1629043

पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने परीक्षाओं में नकल को रोकने के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं, खासकर लोक सेवा आयोगों की भर्तियों से जुड़ी परीक्षाओं के लिए। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तराखंड में कई मौकों पर नकल और पेपर लीक होने की घटनाएं हुई हैं जिनमें 2016 में पंचायत विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा और 2021 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग परीक्षा शामिल हैं। जनवरी 2023 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पेपर भी लीक हो गए थे। राज्य में नकल की हाल की घटनाओं के चलते विरोध हुए और अशांति भड़की। इसके बाद 11 फरवरी, 2023 को राज्य ने सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने और दंड देने के लिए एक अध्यादेश जारी किया मार्च 2023 में उत्तराखंड विधानसभा ने अध्यादेश की जगह बिल पारित किया। अध्यादेश के लागू होने के बाद कई खबरें आई हैं कि फॉरेस्ट गार्ड और सेक्रेटेरियट गार्ड जैसे पदों की सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल करने पर उम्मीदवारों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें परीक्षा देने से प्रतिबंधित किया गया। नकल के ऐसे ही मामले दूसरे राज्यों में भी सामने आए हैं। न्यूज रिपोर्टों के अनुसार2015 के बाद से गुजरात में ऐसी कोई भर्ती परीक्षा नहीं हुई है, जिसमें पेपर लीक नहीं हुआ हो फरवरी 2023 में गुजरात विधानसभा ने भी सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल के लिए सजा निर्दिष्ट करने वाला एक कानून पारित किया। अन्य राज्यों जैसे राजस्थान (2022 में एक्ट पारित किया गया)उत्तर प्रदेश (1998 में एक्ट पारित किया गयाऔर आंध्र प्रदेश (1997 में एक्ट पारित किया गयामें भी इसी तरह के कानून हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ राज्यों के नकल विरोधी कानूनों के बीच तुलना कर रहे हैं (तालिका 1 देखें)और कुछ विचारणीय मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। 

नकल विरोधी कानूनों के विशिष्ट प्रावधान

राज्यों के नकल विरोधी कानूनों में आमतौर पर ऐसे प्रावधान होते हैं जो सरकारी परीक्षाओं में परीक्षार्थियों और अन्य समूहों द्वारा अनुचित साधनों के उपयोग पर दंड निर्दिष्ट करते हैं। इन परीक्षाओं में राज्यों के लोक सेवा आयोगों और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्डों द्वारा संचालित परीक्षाएं शामिल हैं। मोटे तौर पर, अनुचित साधन के मायने हैं, जब उम्मीदवार अनाधिकृत मदद ले या लिखित सामग्री का अनाधिकृत इस्तेमाल करे। इन कानूनों में परीक्षाओं को संचालित करने के लिए जिम्मेदार लोगों को भी इस बात से प्रतिबंधित किया गया है कि वे अपनी भूमिका के कारण प्राप्त किसी भी जानकारी का खुलासा करें। गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान के हालिया कानूनों में अनुचित साधनों की परिभाषा में उम्मीदवारों का इम्पर्सनैशन (यानी किसी दूसरे की जगह परीक्षा देना) और एग्जाम पेपर को लीक करना भी शामिल है। उत्तराखंडगुजरातराजस्थानउत्तर प्रदेशछत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक एड्स के उपयोग पर रोक लगाते हैं। इस तरह के अनुचित साधनों का उपयोग करने के लिए अधिकतम जेल की सजा उत्तर प्रदेश में तीन महीने से लेकर आंध्र प्रदेश में सात वर्ष तक है।

विचारणीय मुद्दे

गुजरात और उत्तराखंड में नकल विरोधी कानूनों में नकल के लिए अपेक्षाकृत कड़े प्रावधान हैं। उत्तराखंड के कानून में नकल करते हुए या अनुचित साधनों का इस्तेमाल करते हुए पकड़े जाने पर तीन वर्ष की जेल की सजा है (पहले अपराध के लिए)। चूंकि एक्ट विभिन्न प्रकार के अनुचित साधनों के बीच अंतर नहीं करता हैइसलिए संभव है कि परीक्षार्थी को होने वाली सजा उसके अपराध के अनुपात में न हो। अधिकतर अन्य राज्यों मेंऐसे अपराधों के लिए कारावास की अधिकतम अवधि तीन वर्ष है। आंध्र प्रदेश में न्यूनतम कारावास की अवधि तीन वर्ष है। हालांकि सभी राज्यों में दंड के संबंध में एक सीमा दी गई है, यानी नकल के तरीके और उस नकल के असर के आधार पर जज कारावास की अवधि (निर्दिष्ट सीमा के भीतर) तय कर सकता है।  तालिका 1 में आठ राज्यों में कुछ अपराधों की सजा के बीच तुलना की गई है। 

उत्तराखंड के कानून में एक प्रावधान है जिसके तहत चार्जशीट दायर होने पर परीक्षार्थी को दो से पांच वर्ष के लिए राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया जाता है, भले ही दोष सिद्ध न हुआ हो। इस प्रकार यह कानून आरोपी को सिर्फ मुकदमा चलने पर परीक्षा देने से रोकता है, जबकि यह संभावना हो सकती है कि वह व्यक्ति अंततः निर्दोष साबित हो। गुजरात और राजस्थान के कानून भी उम्मीदवारों को दो वर्षों के लिए निर्दिष्ट परीक्षाओं में बैठने से रोकते हैं, लेकिन सिर्फ तभी जब उनका दोष सिद्ध हो गया हो।

विभिन्न राज्यों में इन कानूनों का दायरा भी अलग-अलग है। उत्तराखंड और राजस्थान में नकल विरोधी कानून सिर्फ राज्य सरकार के विभागों (जैसे लोक सेवा) की भर्ती परीक्षाओं पर लागू होते हैं। अन्य छह राज्यों में ये कानून डिप्लोमा और डिग्री जैसी शैक्षणिक योग्यता देने वाले शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं पर भी लागू होते हैं। उदाहरण के लिए गुजरात माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं भी गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023 के दायरे में आती हैं। सवाल यह है कि क्या शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं में भी वैसी ही सजा होना उचित है, जैसी सरकारी नौकरियों में भर्ती परीक्षाओं के लिए दी जाती है, चूंकि दोनों स्थितियों में होने वाला असर अलग-अलग होता है।

स्रोत: राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2022; उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1998; छत्तीसगढ़ सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 2008; उड़ीसा परीक्षा संचालन एक्ट, 1988; आंध्र प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (कदाचार और अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1997; झारखंड परीक्षा संचालन एक्ट, 2001, उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम और रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2023, गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023; पीआरएस।