14 मार्च, 2022 को राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के कामकाज पर चर्चा की। चर्चा के दौरान बजटीय आबंटन, योजनाओं के कार्यान्वयन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया गया। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित विकास योजनाओं और प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने, उनके कार्यान्वयन और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मंत्रालय के लिए 2022-23 के बजटीय आबंटनों का विश्लेषण करेंगे और उससे संबंधित विषयों पर विचार करेंगे।

इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पीएम-डिवाइन नामक नई योजना की घोषणा

2022-23 में मंत्रालय के आबंटन में 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5की वृद्धि हुई है। मंत्रालय को 2,800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसे पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना और पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। तालिका 1 में मंत्रालय के बजटीय आबंटन का क्षेत्रवार ब्रेकअप दिया गया है।   

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर विकास पहल (पीएम-डिवाइन) नाम की एक नई योजना की घोषणा की थी। इसे पूर्वोत्तर परिषद (पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी) द्वारा लागू किया जाएगा। पीएम-डिवाइन सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करेगी। यह योजना मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र या केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं का स्थान नहीं लेगी, या उन्हें समाहित नहीं करेगी। योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का शुरुआती आबंटन किया जाएगा। 

तालिका 1पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के आबंटन का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में) 

 

प्रमुख मद

2020-21

वास्तविक

2021-22

बअ

2021-22

संअ

2022-23

बअ

2021-22 संअ से 2022-23 बअ से परिवर्तन का %

पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना

446

675

674

1,419

111%

पूर्वोत्तर परिषद की योजनाएं

567

585

585

702

20%

पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना

416

696

674

496

-26%

पूर्वोत्तर एवं सिक्किम के लिए संसाधनों का केंद्रीय पूल

342

581

581

-

-

अन्य

270

322

344

241

-30%

कुल

1,854

2,658

2,658

2,800

5%

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नोट: बअ– बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; पूर्वोत्तर परिषद की योजनाओं में विशेष विकास परियोजनाएं शामिल हैं।
स्रोत: 2022-23 के केंद्रीय बजट दस्तावेजों की मांग संख्या 23पीआरएस। 

पूंजीगत परिव्यय के लिए मांग से कम आबंटन

गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि मंत्रालय ने जितनी मांग (794 करोड़ रुपए) की थी, उसके मुकाबले 2022-23 के बजट चरण में आबंटित राशि (660 करोड़ रुपए) 17% कम है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिसके जरिए स्कूल, अस्पतालों, सड़क एवं पुलों जैसी परिसंपत्तियों का सृजन होता है। कमिटी ने गौर किया कि इससे उन परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन पर गंभीर असर हो सकता है जिनके लिए पूंजीगत परिव्यय की जरूरत होती है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस विषय में वित्त मंत्रालय से बात करनी चाहिए और वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित चरण में अतिरिक्त सहायता की मांग करनी चाहिए।  

पिछले कुछ वर्षों में धनराशि की पूरा उपयोग नहीं किया गया

2011-12 (2016-17 को छोड़कर) के बाद से मंत्रालय बजटीय चरण में आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं कर पाया है (रेखाचित्र 1)। उदाहरण के लिए 2020-21 में पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के मामले में धनराशि का 52% उपयोग किया गया, जबकि पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (जलापूर्ति, बिजली, कनेक्टिविटी, सोशल इंफ्रास्ट्रक्टर से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स) के अंतर्गत केवल 34धनराशि का उपयोग किया गया। मंत्रालय ने धनराशि के उपयोग न हो पाने के कई कारण बताए इनमें परियोजनाओं के प्रस्ताव देर से प्राप्त होना और राज्य सरकारों की तरफ से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स प्राप्त न होना शामिल है।

रेखाचित्र 12011-12 के बाद मंत्रालय द्वारा धनराशि का पूरा उपयोग न करना

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 नोटसंशोधित अनुमान का उपयोग 2021-22 के वास्तविक व्यय के तौर पर किया गया है।
 स्रोतकेंद्रीय बजट दस्तावेज (2011-12 से 2022-23); पीआरएस।

परियोजनाओं की धीमी रफ्तार 

मंत्रालय सड़क एवं पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। कुछ योजनाओं की प्रगति अपर्याप्त रही है। स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत कई सड़क परियोजनाओं की भौतिक प्रगति या तो शून्य है, या सिंगल डिजिट परसेंट में है, इसके बावजूद कि परियोजना के लिए धनराशि जारी की जा चुकी है। इसी तरह करबी अंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (असम में स्वायत्त जिला परिषद) तथा सामाजिक एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़क, पुलों का निर्माण, और स्कूलों एवं जलापूर्ति परियोजनाओं का निर्माण) के अंतर्गत परियोजनाओं की अपर्याप्त प्रगति देखी गई है।

घटते वन आवरण पर ध्यान देने की जरूरत

स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को वन आवरण के संरक्षण के लिए काम करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने पूर्वोत्तर भारत में वन आवरण के घटने पर भी ध्यान दिया। भारतीय वनों की स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच जिन राज्यों के वन आवरण को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं(i) अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किलोमीटर वन आवरण का नुकसान), (ii) मणिपुर (249 वर्ग किलोमीटर), (iii) नागालैंड (235 वर्ग किलोमीटर), (iv) मिजोरम (186 वर्ग किलोमीटर), और (v) मेघालय (73 वर्ग किलोमीटर)। वन आवरण में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे झूम खेती, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएं, मानवजनित (पर्यावरणीय प्रदूषण) दबाव और विकासपरक गतिविधियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के विभिन्न उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और निर्धारित समय अवधि में उन्हें लागू किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए: (i) वन आवरण/घनत्व को बढ़ाने के लिए नियमित पौधरोपण करना चाहिए, और (ii) केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत वनों के संरक्षण के अंतिम लक्ष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण विषय उठाए

राज्यसभा में 14 मार्च, 2022 को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की गई। सदस्यों ने जिन विषयों को उठाया, उनमें से एक यह था कि मंत्रालय के पास अपना लाइन विभाग नहीं है। इस वजह से मंत्रालय को परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के प्रशासनिक बल पर निर्भर रहना पड़ता है। कई दूसरे सदस्यों ने यह भी कहा कि क्षेत्र रेलवे और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है जिससे इसका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। सदन में इसके जवाब में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग और दूरसंचार के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार करने के निरंतर प्रयास कर रही है।

पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के आबंटन

केंद्रीय मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर के लिए अपना 10% बजट आबंटित किया (धनराशि के आबंटन और उपयोग के लिए रेखाचित्र 2 को देखें)। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय वह नोडल मंत्रालय है जोकि विभिन्न मंत्रालयों के आबंटनों की निगरानी करता है। 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सभी मंत्रालयों ने 76,040 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों (68,440 करोड़ रुपए) के मुकाबले इसमें 11की वृद्धि है। 2019-20 और 2021-22 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए वास्तविक व्यय बजट अनुमान से क्रमशः 18% और 19% कम था। 

रेखाचित्र 2पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)

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स्रोत: रिपोर्ट संख्या 239पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अनुदान मांग (2022-23)गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।

पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने परीक्षाओं में नकल को रोकने के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं, खासकर लोक सेवा आयोगों की भर्तियों से जुड़ी परीक्षाओं के लिए। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तराखंड में कई मौकों पर नकल और पेपर लीक होने की घटनाएं हुई हैं जिनमें 2016 में पंचायत विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा और 2021 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग परीक्षा शामिल हैं। जनवरी 2023 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पेपर भी लीक हो गए थे। राज्य में नकल की हाल की घटनाओं के चलते विरोध हुए और अशांति भड़की। इसके बाद 11 फरवरी, 2023 को राज्य ने सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने और दंड देने के लिए एक अध्यादेश जारी किया मार्च 2023 में उत्तराखंड विधानसभा ने अध्यादेश की जगह बिल पारित किया। अध्यादेश के लागू होने के बाद कई खबरें आई हैं कि फॉरेस्ट गार्ड और सेक्रेटेरियट गार्ड जैसे पदों की सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल करने पर उम्मीदवारों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें परीक्षा देने से प्रतिबंधित किया गया। नकल के ऐसे ही मामले दूसरे राज्यों में भी सामने आए हैं। न्यूज रिपोर्टों के अनुसार2015 के बाद से गुजरात में ऐसी कोई भर्ती परीक्षा नहीं हुई है, जिसमें पेपर लीक नहीं हुआ हो फरवरी 2023 में गुजरात विधानसभा ने भी सार्वजनिक परीक्षाओं में नकल के लिए सजा निर्दिष्ट करने वाला एक कानून पारित किया। अन्य राज्यों जैसे राजस्थान (2022 में एक्ट पारित किया गया)उत्तर प्रदेश (1998 में एक्ट पारित किया गयाऔर आंध्र प्रदेश (1997 में एक्ट पारित किया गयामें भी इसी तरह के कानून हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ राज्यों के नकल विरोधी कानूनों के बीच तुलना कर रहे हैं (तालिका 1 देखें)और कुछ विचारणीय मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। 

नकल विरोधी कानूनों के विशिष्ट प्रावधान

राज्यों के नकल विरोधी कानूनों में आमतौर पर ऐसे प्रावधान होते हैं जो सरकारी परीक्षाओं में परीक्षार्थियों और अन्य समूहों द्वारा अनुचित साधनों के उपयोग पर दंड निर्दिष्ट करते हैं। इन परीक्षाओं में राज्यों के लोक सेवा आयोगों और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्डों द्वारा संचालित परीक्षाएं शामिल हैं। मोटे तौर पर, अनुचित साधन के मायने हैं, जब उम्मीदवार अनाधिकृत मदद ले या लिखित सामग्री का अनाधिकृत इस्तेमाल करे। इन कानूनों में परीक्षाओं को संचालित करने के लिए जिम्मेदार लोगों को भी इस बात से प्रतिबंधित किया गया है कि वे अपनी भूमिका के कारण प्राप्त किसी भी जानकारी का खुलासा करें। गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान के हालिया कानूनों में अनुचित साधनों की परिभाषा में उम्मीदवारों का इम्पर्सनैशन (यानी किसी दूसरे की जगह परीक्षा देना) और एग्जाम पेपर को लीक करना भी शामिल है। उत्तराखंडगुजरातराजस्थानउत्तर प्रदेशछत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक एड्स के उपयोग पर रोक लगाते हैं। इस तरह के अनुचित साधनों का उपयोग करने के लिए अधिकतम जेल की सजा उत्तर प्रदेश में तीन महीने से लेकर आंध्र प्रदेश में सात वर्ष तक है।

विचारणीय मुद्दे

गुजरात और उत्तराखंड में नकल विरोधी कानूनों में नकल के लिए अपेक्षाकृत कड़े प्रावधान हैं। उत्तराखंड के कानून में नकल करते हुए या अनुचित साधनों का इस्तेमाल करते हुए पकड़े जाने पर तीन वर्ष की जेल की सजा है (पहले अपराध के लिए)। चूंकि एक्ट विभिन्न प्रकार के अनुचित साधनों के बीच अंतर नहीं करता हैइसलिए संभव है कि परीक्षार्थी को होने वाली सजा उसके अपराध के अनुपात में न हो। अधिकतर अन्य राज्यों मेंऐसे अपराधों के लिए कारावास की अधिकतम अवधि तीन वर्ष है। आंध्र प्रदेश में न्यूनतम कारावास की अवधि तीन वर्ष है। हालांकि सभी राज्यों में दंड के संबंध में एक सीमा दी गई है, यानी नकल के तरीके और उस नकल के असर के आधार पर जज कारावास की अवधि (निर्दिष्ट सीमा के भीतर) तय कर सकता है।  तालिका 1 में आठ राज्यों में कुछ अपराधों की सजा के बीच तुलना की गई है। 

उत्तराखंड के कानून में एक प्रावधान है जिसके तहत चार्जशीट दायर होने पर परीक्षार्थी को दो से पांच वर्ष के लिए राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया जाता है, भले ही दोष सिद्ध न हुआ हो। इस प्रकार यह कानून आरोपी को सिर्फ मुकदमा चलने पर परीक्षा देने से रोकता है, जबकि यह संभावना हो सकती है कि वह व्यक्ति अंततः निर्दोष साबित हो। गुजरात और राजस्थान के कानून भी उम्मीदवारों को दो वर्षों के लिए निर्दिष्ट परीक्षाओं में बैठने से रोकते हैं, लेकिन सिर्फ तभी जब उनका दोष सिद्ध हो गया हो।

विभिन्न राज्यों में इन कानूनों का दायरा भी अलग-अलग है। उत्तराखंड और राजस्थान में नकल विरोधी कानून सिर्फ राज्य सरकार के विभागों (जैसे लोक सेवा) की भर्ती परीक्षाओं पर लागू होते हैं। अन्य छह राज्यों में ये कानून डिप्लोमा और डिग्री जैसी शैक्षणिक योग्यता देने वाले शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं पर भी लागू होते हैं। उदाहरण के लिए गुजरात माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं भी गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023 के दायरे में आती हैं। सवाल यह है कि क्या शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं में भी वैसी ही सजा होना उचित है, जैसी सरकारी नौकरियों में भर्ती परीक्षाओं के लिए दी जाती है, चूंकि दोनों स्थितियों में होने वाला असर अलग-अलग होता है।

स्रोत: राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2022; उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1998; छत्तीसगढ़ सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 2008; उड़ीसा परीक्षा संचालन एक्ट, 1988; आंध्र प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (कदाचार और अनुचित साधनों की रोकथाम) एक्ट, 1997; झारखंड परीक्षा संचालन एक्ट, 2001, उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम और रोकथाम के उपाय) एक्ट, 2023, गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित तरीकों की रोकथाम) एक्ट, 2023; पीआरएस।