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राज्यों और राज्य विधानसभाओं

राज्यों के कृषि मार्केंटिंग कानूनों में परिवर्तन

प्राची कौर - मई 19, 2020

मार्च 2020 से भारत में कोविड-19 के मामलों में निरंतर वृद्धि हुई है। 18 मई, 2020 को इस संक्रामक रोग के 96,169 पुष्ट मामले थे जिनमें से 3,029 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन किया जोकि पहले 14 अप्रैल तक लागू था, फिर इसे बढ़ाकर 31 मई कर दिया गया है।  लॉकडाउन के दौरान बीमारी की रोकथाम हो और कृषि उत्पादों की सप्लाई पर असर न हो, इसके लिए कई राज्यों ने अपने कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमिटी (एपीएमसी) कानूनों में संशोधन किए। इस ब्लॉग में हम बता रहे हैं कि भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है, केंद्र सरकार ने कोविड-19 संकट के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए क्या कदम उठाए और विभिन्न राज्यों ने एपीएमसी कानूनों में क्या हालिया संशोधन किए हैं।  

भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है?

कृषि संविधान की राज्य सूची में आने वाला विषय है। अधिकतर राज्यों में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन एपीएमसी द्वारा किया जाता है जिसकी स्थापना राज्य सरकारें अपने एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत करती हैं।  एपीएमसी कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करती हैं, उत्पादों की बिक्री को रेगुलेट करती हैं और राज्य से मार्केट फीस जमा करती हैं, साथ ही कृषि मार्केटिंग में प्रतिस्पर्धा को रेगुलेट करती हैं। 2017 में केंद्र सरकार ने नए कानून को लागू करने और कृषि क्षेत्र में बाजार संबंधी व्यापक सुधार करने के लिए मॉडल कृषि उत्पाद और पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 2017 जारी किया। 2017 के मॉडल एक्ट का उद्देश्य मुक्त प्रतिस्पर्धा की अनुमति देना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना, बिखरे हुए बाजारों को एकीकृत करना, उत्पादों के प्रवाह को सरल बनना और मल्टीपल मार्केटिंग चैनल्स के कामकाज को प्रोत्साहित करना है। नवंबर 2019 में 15वें वित्त आयोग (चेयर: एन. के. सिंह) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस मॉडल एक्ट के सभी प्रावधानों को लागू करने वाले राज्य कुछ वित्तीय प्रोत्साहनों के पात्र होंगे।

कोविड-19 के मद्देनजर केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?

2 अप्रैल को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक- राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म के नए फीचर्स को लॉन्च किया। इसका उद्देश्य कृषि मार्केटिंग को मजबूती देना है, और यह भी कि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए थोक मंडियों में शारीरिक रूप से न आना पड़े। ई-नाम प्लेटफॉर्म संपर्करहित सुदूर नीलामी और मोबाइल आधारित एनी टाइम भुगतान की सुविधा प्रदान करता है जिसके लिए व्यापारियों को मंडी या बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे कोविड-19 की रोकथाम के लिए एपीएमसी मार्केट्स में सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।   

4 अप्रैल, 2020 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों को एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत रेगुलेशंस में राहत देने के संबंध में एडवाइजरी जारी की। एडवाइजरी में कहा गया कि कृषि उत्पादों की प्रत्यक्ष मार्केटिंग को सरल बनाया जाए। थोक व्यापारी, बड़े रीटेल्स और प्रोसेसर्स किसानों, किसान उत्पादक संघों और सहकारी संघों से उत्पादों की सीधी खरीद कर सकते हैं। 

15 मई, 2020 को केंद्रीय वित्त मंत्री ने कोविड-19 और लॉकडाउन के असर को कम करने के लिए देश में कृषि क्षेत्र के लिए कई सुधारों की घोषणा की। कुछ मुख्य सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एक ऐसा केंद्रीय कानून बनाना जोकि किसानों को आकर्षक कीमतों पर अपने कृषि उत्पाद बेचने, बिना किसी बाधा के अंतरराज्यीय व्यापार करने और कृषि उत्पादों के ई-व्यापार के लिए फ्रेमवर्क बनाने के पर्याप्त विकल्प दे,

(ii) अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 में संशोधन ताकि अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों को बेहतर कीमतें मिल सकें, और (iii) कॉन्ट्रैक्ट पर खेती के लिए सरल कानूनी संरचना बनाना, ताकि किसान प्रोसेसर्स, बड़े रीटेलर्स और निर्यातकों के साथ सीधे संपर्क कर सकें। 

किन राज्यों ने कृषि मार्केटिंग के कानूनों में बदलाव किए हैं?

उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है और मध्य प्रदेश, गुजरात, और कर्नाटक ने अपने एपीएमसी कानूनों के रेगुलेटरी पहलुओं में छूट देने के लिए अध्यादेश जारी किए हैं। इन अध्यादेशों का सारांश प्रस्तुत किया जा रहा है:

मध्य प्रदेश

1 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। यह अध्यादेश मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी एक्ट, 1972 में संशोधन करता है। 1972 का एक्ट कृषि मार्केट की स्थापना और अधिसूचित कृषि उत्पादों की मार्केटिंग को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:

  • मार्केट यार्ड्स: 1972 का एक्ट प्रावधान करता है कि हर मार्केट क्षेत्र में एक मार्केट यार्ड होना चाहिए जिसमें एक या उससे अधिक सब मार्केट यार्ड हों ताकि उत्पाद की एसेंबलिंग, ग्रेडिंग, स्टोरेज, बिक्री और खरीद जैसी सभी गतिविधियों को संचालित किया जा सके। अध्यादेश इस प्रावधान को हटाता है और यह निर्दिष्ट करता है कि हर मार्केट क्षेत्र के लिए निम्नलिखित हो सकता है: (i) एपीएमसी का प्रिंसिपल मार्केट यार्ड और सब-मार्केट यार्ड, (ii) निजी मार्केट यार्ड को प्रबंधित करने वाला लाइसेंस धारी व्यक्ति (यह लाइसेंस उसे कृषि मार्केटिंग निदेशक से मिलता है), और (iii) इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स (जहां अधिसूचित उत्पादों की ट्रेडिंग इंटरनेट के जरिए इलेक्ट्रॉनिकली की जाती हैं)। 
     
  • कृषि मार्केटिंग निदेशक: अध्यादेश कृषि मार्केटिंग निदेशक का प्रावधान करता है जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। निदेशक निम्नलिखित को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार होगा: (i) अधिसूचित कृषि उत्पादों के लिए ट्रेडिंग और उससे संबंधित गतिविधियां, (ii) निजी मार्केट यार्ड्स, और (iii) इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स। वह इन गतिविधियों के लिए लाइसेंस भी दे सकता है।   
     
  • मार्केट फी: अध्यादेश में यह प्रावधान भी है कि कृषि मार्केटिंग निदेशक द्वारा दिए गए लाइसेंस के अंतर्गत ट्रेडिंग के लिए मार्केट फी राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट तरीके से वसूली जाएगी।

गुजरात

6 मई, 2020 को गुजरात सरकार ने गुजरात कृषि उत्पाद बाजार (संशोधन) अध्यादेश, 2020 किया। यह अध्यादेश गुजरात कृषि उत्पाद बाजार एक्ट, 1963 में संशोधन करता है। संशोधित एक्ट गुजरात कृषि उत्पाद एवं पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 1963 कहा गया। अध्यादेश क अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:  

  • पशु बाजार का रेगुलेशन: अध्यादेश एक्ट के अंतर्गत आने वाले पशुओं, जैसे गाय, भैंस, बैल, भैंसे और मछलियों की मार्केटिंग का रेगुलेशन करता है।
     
  • एकीकृत बाजार क्षेत्र: अध्यादेश में प्रावधान है कि राज्य सरकार अधिसूचना के जरिए पूरे राज्य को एकीकृत बाजार घोषित कर सकती है। ऐसा अधिसूचित कृषि उत्पाद की मार्केटिंग के रेगुलेशन के उद्देश्य से किया जा सकता है।
     
  • एकीकृत सिंगल लाइसेंस: अध्यादेश में सिंगल एकीकृत ट्रेडिंग लाइसेंस देने का प्रावधान है। लाइसेंस राज्य के किसी भी बाजार क्षेत्र में वैध होगा। अध्यादेश के जारी होने की तारीख से छह महीने में मौजूदा ट्रेड लाइसेंस को सिंगल एकीकृत लाइसेंस से बदला जा सकता है।
     
  • ट्रेडिंग करने के लिए मार्केट्स: अध्यादेश में राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे बाजार क्षेत्र में किसी भी स्थान को प्रिंसिपल मार्केट यार्ड, सब मार्केट यार्ड, मार्केट सब यार्ड या अधिसूचित कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के रेगुलेशन के लिए किसान उपभोक्ता मार्केट यार्ड अधिसूचित कर सकती हैं। बाजार क्षेत्र में कुछ स्थानों को निजी मार्केट यार्ड, निजी मार्केट सब यार्ड या निजी किसान-उपभोक्ता मार्केट यार्ड घोषित किया जा सकता है। अध्यादेश कहता है कि अधिसूचित कृषि उत्पाद को लाइसेंस धारक को किसी अन्य स्थान पर भी बेचा जा सकता है, अगर मार्केट कमिटी ने विशेष रूप से इसकी अनुमति दी हो।
     
  • मार्केट सब यार्ड: अध्यादेश में यह प्रावधान है कि बाजार क्षेत्र में मार्केट सब यार्ड (वेयरहाउस, स्टोरेज टावर, कोल्ड स्टोरेज एन्क्लोजर बिल्डिंग्स या ऐसी दूसरी संरचना या स्थान या लोकेलिटी) होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसमें प्रावधान है कि वेयरहाउस, सिलो, कोल्ड स्टोरेज या मार्केट सब यार्ड के रूप में अधिसूचित दूसरी ऐसी संरचना या स्थान का मालिक अधिसूचित कृषि उत्पाद पर मार्केट फी जमा कर सकता है। मार्केट सब यार्ड में जिन गैर अधिसूचित कृषि उत्पादों का लेनदेन हो, उनके लिए यूजर चार्ज भी जमा किया जा सकता है। यह दर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित दर से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि किसानों से मार्केट फी नहीं ली जानी चाहिए।
     
  • ई-ट्रेडिंग: अध्यादेश में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग (ई-ट्रेडिंग) प्लेटफॉर्म्स की स्थापना और उन्हें बढ़ावा देने का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित करने के लिए कृषि मार्केटिंग निदेशक से प्राप्त लाइसेंस जरूरी है। इसके अतिरिक्त निदेशक द्वारा निर्धारित मानदंडों और विनिर्देशों के अनुसार ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर आवेदन दूसरे ई-प्लेटफॉर्म्स के साथ इंटर-ऑपरेबल होंगे। ऐसा एकीकृत राष्ट्रीय क़ृषि बाजार की स्थापना और विभिन्न ई-प्लेटफॉर्म्स के एकीकरण के लिए किया जाएगा।

कर्नाटक

16 मई को कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। अध्यादेश कर्नाटक कृषि उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) एक्ट, 1966 में संशोधन करता है। 1966 का एक्ट राज्य में कृषि उत्पादों की खरीद और बिक्री तथा बाजारों की स्थापना को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं: 

  • कृषि उत्पाद के लिए मार्केट्स: 1966 के एक्ट में प्रावधान है कि मार्केट यार्ड, मार्केट सब यार्ड, सब मार्केट यार्ड, या किसान-उपभोक्ता मार्केट यार्ड के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अध्यादेश इसके स्थान पर कहता है कि मार्केट कमिटी, मार्केट यार्ड्स, मार्केट सब यार्ड्स और सब मार्केट यार्ड्स में अधिसूचित कृषि उत्पाद की मार्केटिंग को रेगुलेट करेगी। यानी अब एक्ट किसी स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की ट्रेंडिंग से प्रतिबंधित नहीं करता।
     
  • सजा: 1966 के एक्ट में प्रावधान है कि जो कोई भी किसी स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की खरीद या बिक्री के लिए इस्तेमाल करेगा, उसे छह महीने तक का कारावास या 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों भुगतना पड़ सकता है। अध्यादेश एक्ट के प्रावधान से इस सजा को हटाता है। 

उत्तर प्रदेश

6 मई को उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी। राज्य की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने 46 फलों और सब्जियों को उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी एक्ट, 1964 के दायरे से बाहर कर दिया। 1964 के एक्ट में अधिसूचित कृषि उत्पाद की बिक्री और खरीद के रेगुलेशन तथा उत्तर प्रदेश में कृषि बाजारों की स्थापना एवं नियंत्रण का प्रावधान है।   

  • कुछ फलों और सब्जियों को एक्ट के प्रावधानों से छूट: इन फलों और सब्जियों में आम, सेब, गाजर, केला और भिंडी शामिल हैं। प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य यह है कि इन उत्पादों को सरलता से किसानों से सीधा खरीदा जा सके। किसानों को इन्हें एपीएमसी मंडियों में बेचने को भी अनुमति होगी, जहां उनसे मंडी का शुल्क नहीं वसूला जाएगा। उनसे सिर्फ यूजर चार्ज वसूला जाएगा जो राज्य सरकार ने निर्धारित किया है। राज्य सरकार के अनुसार, इससे एपीएमसीज़ को हर साल लगभग 125 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।   
     
  • लाइसेंस: एपीएमसी मार्केट्स के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर व्यापार करने के लिए विशिष्ट लाइसेंस लिए जा सकते हैं। इससे वेयरहाउस, सिलो और कोल्ड स्टोरेज को मंडी के तौर पर इस्तेमाल करने को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे इस्टैबलिशमेंट्स के मालिक या प्रबंधक मंडी को प्रबंधित करने के लिए यूजर फी ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त एकीकृत लाइसेंस को ग्रामीण स्तर पर व्यापार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 
Policy

कोविड-19 महामारी पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया (27 अप्रैल- 4 मई, 2020)

Anya Bharat Ram - मई 4, 2020

4 मई, 2020 तक भारत में कोविड-19 के 42,533 पुष्ट मामले हैं। 27 अप्रैल से 14,641 नए मामले दर्ज किए गए हैं। पुष्ट मामलों में 11,707 मरीजों का इलाज हो चुका है/उन्हें डिस्चार्ज किया जा चुका है और 1,373 की मृत्यु हई है। जैसे इस महामारी का प्रकोप बढ़ा है, केंद्र सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए अनेक नीतिगत फैसलों और महामारी से प्रभावित नागरिकों और व्यवसायों को मदद देने के उपायों की घोषणाएं की हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम केंद्र सरकार के 27 अप्रैल से 4 मई, 2020 तक के कुछ मुख्य कदमों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं।

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Source: Ministry of Health and Family Welfare; PRS.

लॉकडाउन

18 मई, 2020 तक लॉकडाउन बढ़ाया गया

गृह मंत्रालय ने 4 मई, 2020 से लॉकडाउन को दो हफ्तों के लिए बढ़ाने का आदेश दिया (18 मई, 2020 तक)। इस लॉकडाउन में जिन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा रहेगा, वे इस प्रकार हैं: 

  • यात्रा और आवाजाही: निम्नलिखित द्वारा आवाजाही: (i) हवाई (मेडिकल और सुरक्षा कारणों के अतिरिक्त), (ii) रेल (सुरक्षा उद्देश्यों के अतिरिक्त), (iii) अंतरराज्यीय बस (केवल केंद्र सरकार द्वारा अनुमत), और (iv) मेट्रो प्रतिबंधित रहेगी। मेडिकल कारणों के अतिरिक्त या केंद्र सरकार द्वारा अनुमत होने पर लोग अंतरराज्यीय आवाजाही कर सकते हैं। गैर अनिवार्य गतिविधियों के लिए राज्य के भीतर लोगों की आवाजाही पर शाम 7 बजे से सुबह 7 बजे तक प्रतिबंध है। 

  • शिक्षा: सभी शिक्षण संस्थान जैसे स्कूल और कॉलेज बंद रहेंगे, सिवाय ऑनलाइन लर्निंग को छोड़कर।

  • हॉस्पिटैलिटी सेवाएं और मनोरंजक गतिविधियां: होटल जैसी सभी हॉस्पिटेलिटी सेवाएं बंद रहेंगी, सिवाय क्वारंटाइन सुविधाएं या स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस और बेसहारा लोगों को आवास की सुविधा प्रदान करने वाले होटल खुले रहेंगे। इसके अतिरिक्त सिनेमा, मॉल, जिम और बार जैसे मनोरंजक केंद्र बंद रहेंगे।

  • धार्मिक जमावड़े: सभी धार्मिक स्थल बंद रहेंगे और धार्मिक उद्देश्यों के लिए लोगों को जमावड़े पर प्रतिबंध लगा रहेगा।

लॉकडाउन के संशोधित दिशानिर्देशों में जिलों की रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन्स के रूप में रिस्क प्रोफाइलिंग करना शामिल है। जोन का वर्गीकरण स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जाएगा और इसे साप्ताहिक आधार पर राज्यों के साथ साझा किया जाएगा। राज्य अतिरिक्त जिलों को रेड या ऑरेंज जोन में शामिल कर सकते हैं। लेकिन वे किसी जिले के वर्गीकरण को नीचे नहीं कर सकते। किसी जिले को रेड से ऑरेंज जोन में या ऑरेंज से ग्रीन जोन में तब खिसकाया जाएगा, जब वहां 21 दिनों में कोई मामला सामने नहीं आता। जोन्स का वर्गीकरण और अनुमत गतिविधियों का विवरण इस प्रकार है: 

  • रेड जोन्स या हॉटस्पॉट्स: इन जिलों को सक्रिय मामलों की कुल संख्या, पुष्ट मामलों के डबलिंग रेट और जांच एवं निगरानी संबंधी फीडबैक के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा। रेड जोन्स में जिन अतिरिक्त गतिविधियों पर प्रतिबंध रहेगा, वे इस प्रकार हैं: (i) साइकिल और ऑटोरिक्शा, (ii) टैक्सी, (iii) बस और (iv) नाई की दुकानें, स्पा और सैलून। जिन गतिविधियों की अनुमति होगी, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) व्यक्तियों की आवाजाही (चारपहिया वाहन पर अधिकतम दो लोग और दुपहिया वाहन पर एक व्यक्ति), (ii) ग्रामीण क्षेत्रों में सभी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स और शहरी क्षेत्रों में अनिवार्य वस्तुओं की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले कुछ औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स, और (iii) सभी स्टैंडएलोन और आस-पड़ोस की दुकानें। 

  • ग्रीन जोन्स: इन जोन्स में ऐसे जिले शामिल हैं जहां अब तक कोई पुष्ट मामले नहीं हुए या पिछले 21 दिनों में कोई पुष्ट मामले सामने नहीं आए। इन जोन्स में किसी अतिरिक्त गतिविधि पर प्रतिबंध नहीं है। रेड जोन्स में अनुमत गतिविधियों के अतिरिक्त इन जोन्स में बसें 50% सीटिंग क्षमता के साथ चल सकती हैं। 

  • ऑरेंज जोन्स: इन जोन्स में वे सभी जिले शामिल हैं जो रेड या ऑरेंज जोन्स में नहीं आते। इन जोन्स में अंतरराज्यीय या राज्यों की भीतर बसें नहीं चलेंगी। जिन गतिविधियों की अनुमति होगी (रेड जोन्स में अनुमत गतिविधियों के अतिरिक्त), वे इस प्रकार हैं: (i) अधिकतम एक ड्राइवर और दो यात्रियों के साथ टैक्सियां, (ii) अनुमत गतिविधियों के लिए व्यक्तियों और वाहनों की अंतरराज्यीय आवाजाही, और (iii) अधिकतम एक ड्राइवर और दो यात्रियों के साथ चारपहिया वाहन। 

जिला प्रशासन रेड और ऑरेंज जोन्स में आने वाले कुछ क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन्स के रूप में चिन्हित कर सकता है। कंटेनमेंट जोन्स में आवासीय कालोनियां, टाउन्स या म्यूनिसिपल वॉर्ड जैसे क्षेत्र शामिल हो सकते हैं। कंटेनमेंट जोन्स में स्थानीय प्रशासन आरोग्य सेतु ऐप का 100% कवरेज, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, जोखिम के आधार पर व्यक्तियों का क्वारंटाइन और घर-घर छानबीन सुनिश्चित कर सकता है। इसके अतिरिक्त केवल मेडिकल इमरजेंसी और अनिवार्य वस्तुओं के लिए व्यक्ति आना-जाना कर सकता है। 

विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए लोगों की आवाजाही

गृह मंत्रालय ने विशेष ट्रेनों द्वारा प्रवासी श्रमिकों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों, विद्यार्थियों और विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए लोगों की आवाजाही को मंजूरी दी। इसके लिए सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे लोगों को भेजने, उन्हें प्राप्त करने और उनके पंजीकरण के लिए नोडल अधिकारियों को नामित करेंगे। इस विनिमय के लिए लोगों को भेजने और उन्हें प्राप्त करने वाले दोनों राज्यों का सहमत होना जरूरी है। प्रत्येक ट्रेन 1,200 लोगों को ले जा सकती है और कोई ट्रेन 90% क्षमता से कम पर नहीं चलेगी। राज्य सरकार द्वारा यात्रा की अनुमति देने वाले लोगों को टिकट का कुछ मूल्य चुकाना पड़ सकता है।

शिक्षा

यूजीसी ने विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं और शैक्षणिक कैलेंडर के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कोविड-10 महामारी के मद्देनजर विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं और शैक्षणिक कैलेंडर पर दिशानिर्देश जारी किए।   

  • शैक्षणिक कैलेंडर: विश्वविद्यालयों में ईवन सेमिस्टर्स की क्लासेज़ 16 मार्च, 2020 से रद्द कर दी गईं। दिशानिर्देशों में यह कहा गया है कि शिक्षण को 31 मई तक जारी रखा जाना चाहिए, भले ही वह ऑनलाइन या दूरस्थ शिक्षण मोड, सोशल मीडिया (व्हॉट्सएप/यूट्यूब), ईमेल या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हो। मौजूदा शैक्षणिक वर्ष के लिए परीक्षाएं जुलाई 2020 में की जानी चाहिए और परिणाम 31 जुलाई (टर्मिनल ईयर के विद्यार्थियों के लिए) और 14 अगस्त (इंटरमीडिएट ईयर के विद्यार्थियों के लिए) को घोषित किए जाने चाहिए।

  • शैक्षणिक सत्र 2020-21 पुराने विद्यार्थियों के लिए अगस्त 2020 और नए विद्यार्थियों के लिए सितंबर 2020 हो सकता है। नए विद्यार्थियों के लिए दाखिला प्रक्रिया अगस्त के महीने में की जा सकती है। परिणामस्वरूप 2020-21 का ईवन सेमिस्टर 27 जनवरी, 2021 से शुरू हो सकता है। शैक्षणिक सत्र 2021-22 की शुरुआत अगस्त 2021 हो सकती है। 2019-20 के शेष सत्र और 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के लिए शिक्षण के नुकसान की भरपाई के लिए विश्वविद्यालय छह दिन के सप्ताह का पैटर्न अपना सकता है।

  • परीक्षाएं: विश्वविद्यालय ऑफलाइन या ऑनलाइन मोड में सेमिस्टर या वार्षिक परीक्षाएं ले सकती है। यह ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के निर्देशों का पालन करते हुए और सभी विद्यार्थियों के लिए निष्पक्ष अवसरों को सुनिश्चित करते हुए किया जाना चाहिए। परीक्षाओं के वैकल्पिक, सरल तरीकों को अपनाकर ऐसा किया जा सकता है, जैसे एमसीक्यू (मल्टीपल च्वाइस क्वेश्चंस) आधारित परीक्षाएं या ओपन बुक परीक्षाएं। अगर मौजूदा स्थिति को देखते हुए परीक्षाएं नहीं की जा सकती हैं तो पिछले सेमिस्टर में आंतरिक मूल्यांकन और प्रदर्शन के आधार पर ग्रेडिंग की जा सकती है। विश्वविद्यालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीएचडी वाइवा परीक्षा संचालित कर सकते हैं।

  • दूसरे दिशानिर्देश: प्रत्येक विश्वविद्यालय को एक कोविड-19 सेल स्थापित करना होगा ताकि महामारी के दौरान विद्यार्थियों की परीक्षाओं और शिक्षण गतिविधियों से संबंधित शिकायतों को हल किया जा सके। उसे विद्यार्थियों को इसके बारे में प्रभावी तरीके से बताना होगा। इसके अतिरिक्त जल्द फैसला लेने के लिए यूजीसी में भी एक कोविड-19 सेल बनाया जाएगा।

कोविड-19 के प्रसार पर अधिक जानकारी और महामारी पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के लिए कृपया यहां देखें।

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