कोविड-19 की महामारी के कारण सभी यात्री गाड़ियां 14 अप्रैल, 2020 तक रद्द हैं। हालांकि मालवाहक सेवाएं बहाल हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में अनिवार्य वस्तुएं पहुंचाने वाली गाड़ियां चल रही हैं। रेलवे ने ई-कॉमर्स कंपनियों और राज्य सरकारों सहित दूसरे ग्राहकों के लिए क्विक मास ट्रांसपोटेशन हेतु रेलवे पार्सल वैन्स भी उपलब्ध कराई है ताकि कुछ वस्तुओं का परिवहन किया जा सके। इनमें छोटे पार्सल साइज में मेडिकल सप्लाई, मेडिकल उपकरण, खाद्य पदार्थ इत्यादि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त रेलवे ने कोविड-19 के दौरान मदद हेतु कई दूसरे कदम भी उठाए हैं।
चूंकि यात्रा पर 23 मार्च से 14 अप्रैल, 2020 तक प्रतिबंध है (जोकि आगे भी बढ़ सकता है), इसने 2019-20 और 2020-21 में रेलवे की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है। इस पोस्ट में हम रेलवे की वित्तीय स्थिति पर चर्चा करेंगे और इस बात पर भी विचार विमर्श किया जाएगा कि यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे के राजस्व पर क्या संभावित असर हो सकता है।
रेलवे के आंतरिक राजस्व पर प्रतिबंध का प्रभाव
रेलवे को मुख्य रूप से यात्री यातायात और माल की ढुलाई से आंतरिक राजस्व प्राप्त होता है। 2018-19 में (हालिया वास्तविक) माल ढुलाई और यात्री यातायात से क्रमशः 67% और 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त हुआ था। शेष आंतरिक राजस्व विविध स्रोतों से प्राप्त हुआ था, जैसे पार्सल सेवा, कोचिंग रसीद और प्लेटफॉर्म टिकटों की बिक्री। 2020-21 में रेलवे को माल ढुलाई से 65% और यात्री यातायात से 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है।
यात्री यातायात: 2020-21 में रेलवे को यात्री यातायात से 61,000 करोड़ रुपए की आय होने की उम्मीद है, जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक हैं (56,000 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक यात्री यातायात से लगभग 48,801 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में यात्री राजस्व के संशोधित अनुमानों की तुलना में 7,199 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 13%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत यात्री राजस्व लगभग 4,432 करोड़ रुपए रहा है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में यात्री राजस्व 4,440 करोड़ रुपए था। 23 मार्च से यात्रा पर पूरी तरह से प्रतिबंध के कारण 2019-20 में रेलवे का यात्री राजस्व अपने लक्ष्य से कम हो जाएगा।
अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि देश भर में रेल यात्राएं हमेशा की तरह कब से शुरू होंगी। कुछ राज्यों ने लॉकडाउन को बढ़ाना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में यात्री राजस्व में गिरावट लॉकडाउन के इन तीन हफ्तों के बाद भी रह सकती है।
माल ढुलाई: 2020-21 में रेलवे को गुड्स ट्रैफिक से 1,47,000 करोड़ रुपए की कमाई की उम्मीद है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक है (1,34,733 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक माल ढुलाई से लगभग 1,08,658 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में माल ढुलाई के संशोधित अनुमानों की तुलना में 26,075 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 19%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत माल ढुलाई लगभग 10,029 करोड़ रुपए रही है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में माल ढुलाई 16,721 करोड़ रुपए था।
हालांकि यात्री यातायात पूरी तरह से प्रतिबंधित है, माल ढुलाई जारी है। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य वस्तुओं का परिवहन, कार्गो मूवमेंट के लिए रेलवे का परिचालन, राहत और निकासी तथा उससे संबंधित ऑपरेशनल संगठनों को अनुमति दी गई है। रेलवे की ढुलाई वाली अनेक वस्तुओं (कोयला, लौह अयस्क, स्टील, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, उर्वरक) को अनिवार्य वस्तुएं घोषित किया गया है। लॉकडाउन में रेलवे ने स्पेशल पार्सल रेलों को चलाना भी शुरू किया है (अनिवार्य वस्तुओं, ई-कॉमर्स गुड्स इत्यादि)। इन गतिविधियों से माल राजस्व प्राप्त होने में मदद मिलती रहेगी।
हालांकि कुछ ऐसी वस्तुएं जिनका परिवहन रेलवे करता है, जैसे सीमेंट, को अनिवार्य वस्तुओं में वर्गीकृत नहीं किया गया है। रेलवे के माल राजस्व में इन वस्तुओं के परिवहन का योगदान लगभग 8% है। रेलवे ने माल ढुलाई पर वसूले जाने वाले कई शुल्कों में राहत भी दी है। यह देखना अभी बाकी है कि क्या रेलवे माल राजस्व के अपने लक्ष्यों को पूरा कर पाता है।
रेखाचित्र 1: 2018-19 में माल ढुलाई का हिस्सा और राजस्व (% में)
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
माल ढुलाई यात्री यातायात को क्रॉस सब्सिडाइज़ करता है, इसकी स्थिति इस वर्ष और बुरी हो सकती है
रेलवे अपनी माल ढुलाई से प्राप्त लाभ का इस्तेमाल यात्री सेगमेंट के नुकसान की भरपाई करने और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए करता है। इस क्रॉस सब्सिडी से माल भाड़े में बढ़ोतरी हुई है। यात्रा पर प्रतिबंध और अगर लॉकडाउन (कुछ रूप में) जारी रहता है तो यात्री परिचालन को काफी नुकसान होगा। इससे माल ढुलाई पर क्रॉस सब्सिडी का दबाव और बढ़ सकता है। चूंकि रेलवे अपने माल भाड़े को और अधिक नहीं बढ़ा सकता, यह अस्पष्ट है कि यह क्रॉस सब्सिडी कैसे काम करेगी।
उदाहरण के लिए 2017-18 में यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं को 37,937 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, जबकि माल ढुलाई को 39,956 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। माल ढुलाई से प्राप्त लगभग 95% लाभ से यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं से होने नुकसान की भरपाई की गई। इस अवधि में कुल यात्री राजस्व 46,280 करोड़ रुपए था। इसका अर्थ यह था कि यात्री कारोबार में हुआ घाटा, रेलवे के राजस्व का 82% है। इसलिए 2017-18 में अपने यात्री कारोबार से रेलवे को अगर एक रुपए की आमदनी हुई तो उसने उस पर 1.82 रुपए खर्च किए।
रेलवे का व्यय
यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे अपनी सभी सेवाएं नहीं संचालित कर सकता, पर उसे अपने परिचालन व्यय का वहन करना होगा। कर्मचारियों का वेतन और पेंशन चुकानी होगी, जोकि कुल मिलाकर रेलवे का 66% राजस्व व्यय होता है। 2015 और 2020 के बीच (बजट अनुमान), वेतन पर रेलवे के व्यय में औसत 13% की दर से हर साल वृद्धि हुई है।
राजस्व व्यय का लगभग 18% ईंधन पर खर्च किया जाता है लेकिन तेल की कीमतों में गिरावट के कारण इसमें कुछ कमी देखी जा सकती है। रेलवे को रखरखाव, सुरक्षा और मूल्यह्रास पर खर्च करना ही होगा क्योंकि यह दीर्घावधि की लागत हैं जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त माल ढुलाई के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का नियमित रखरखाव भी जरूरी होगा।
राजस्व अधिशेष और परिचालन अनुपात और प्रभावित हो सकते हैं
रेलवे के अधिशेष को उसके कुल आंतरिक राजस्व और कुल राजस्व व्यय (कार्यचालन व्यय और पेंशन एवं मूल्य ह्रास कोष संबंधी विनियोग) के अंतर के आधार पर आंका जाता है। परिचालन अनुपात यातायात से अर्जित होने वाले राजस्व में कार्यचालन व्यय (रेलवे के रोजमर्रा के कामकाज में होने वाला व्यय) का अनुपात होता है। इसलिए उच्च अनुपात यह संकेत देता है कि रेलवे में अधिशेष अर्जित करने की क्षमता कम है जिनका उपयोग पूंजीगत निवेश के लिए किया जा सकता है, जैसे नई लाइनें बिछाना, नए कोच लगाना, इत्यादि। राजस्व अधिशेष में गिरावट से रेलवे की अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की क्षमता प्रभावित होती है।
पिछले एक दशक से रेलवे उच्च अधिशेष अर्जित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिणामस्वरूप परिचालन अनुपात एक दशक से भी अधिक समय से लगातार 90% से अधिक रहा है (रेखाचित्र 2)। 2018-19 में यह 92.8% के अनुमानित अनुपात की तुलना में 97.3% हो गया। कैग (2019) ने कहा कि 2018-19 के अग्रिम को प्राप्तियों में शामिल न किया जाता तो 2017-18 का परिचालन अनुपात 102.66% होता।
2020-21 में रेलवे द्वारा 6,500 करोड़ रुपए का अधिशेष अर्जित करने और परिचालन अनुपात के 96.2% पर बहाल रहने की उम्मीद है। लॉकडाउन के कारण राजस्व पर असर होगा तो इस अधिशेष में और गिरावट आ सकती है, और परिचालन अनुपात पर और बुरा असर हो सकता है।
रेखाचित्र 2: परिचालन अनुपात
Note: RE – Revised Estimates, BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
राजस्व के अन्य स्रोत
आंतरिक स्रोतों के अतिरिक्त रेलवे के वित्त पोषण के दो अन्य स्रोत होते हैं: (i) केंद्र सरकार से बजटीय समर्थन, और (ii) अतिरिक्त बजटीय संसाधन (जैसे प्राथमिक उधारियां, जिसमें संस्थागत वित्त पोषण, सार्वजनिक निजी सहभागिता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शामिल हैं)।
केंद्र सरकार से बजटीय सहयोग: केंद्र सरकार रेलवे को अपना नेटवर्क बढ़ाने और पूंजीगत व्यय में निवेश के लिए सहयोग देती है। 2020-21 में केंद्र सरकार से सकल बजटीय सहयोग 70,250 करोड़ रुपए प्रस्तावित है। यह 2019-20 के संशोधित अनुमानों से 3% अधिक है (68,105 करोड़ रुपए)। उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी के कारण सरकारी राजस्व भी प्रभावित हो रहा है, यह राशि भी वर्ष के दौरान कम हो सकती है।
उधारियां: रेलवे अधिकतर भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) के जरिए धनराशि उधार लेता है। आईआरएफसी बाजार से धनराशि लेता है (टैक्स योग्य तथा टैक्स मुक्त बॉन्ड इश्यूएंस, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से टर्म लोन्स), और फिर भारतीय रेलवे के रोलिंग स्टॉक एसेट्स और प्रॉजेक्ट एसेट्स को वित्त पोषित करने के लिए एक लीजिंग मॉडल का इस्तेमाल करता है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान उपलब्ध संसाधनों और व्यय के बीच के अंतर को कम करने के लिए उधारियां बढ़ाई गईं। जैसा कि पहले कहा गया है, रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को केंद्र सरकार के बजटीय सहयोग के जरिए पूरा किया जाता है। 2015-16 में इस प्रवृत्ति में बदलाव हुआ और रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को ईबीआर के जरिए पूरा किया गया। 2020-21 में ईबीआर के जरिए 83,292 करोड़ रुपए जुटाने का अनुमान है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों से कुछ अधिक हैं (83,247 करोड़ रुपए)।
उल्लेखनीय है कि इन दोनों स्रोतों को मुख्य रूप से रेलवे के पूंजीगत व्यय को वित्त पोषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। केंद्र सरकार के सहयोग के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल रणनीतिक लाइनों पर रेलवे को होने वाले परिचालनगत नुकसान और आईआरसीटीसी पर ई-टिकटिंग की परिचालन लागत की भरपाई के लिए किया जाता है (2020-21 के बजट अनुमानों के अनुसार 2,216 करोड़ रुपए)।
अगर इस वर्ष रेलवे की राजस्व प्राप्तियों में गिरावट होती है तो राजस्व व्यय को वित्त पोषित करने के लिए उसे केंद्र सरकार के अतिरिक्त सहयोग की जरूरत हो सकती है या वह उसे अपनी उधारियों के जरिए वित्त पोषित करेगा। हालांकि उधारियों पर अधिक निर्भरता से रेलवे की वित्तीय स्थिति और खराब हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान रेल आधारित माल ढुलाई और यात्री यातायात, दोनों की वृद्धि में गिरावट हुई है (देखें रेखाचित्र 3)। इससे माल ढुलाई और यात्री ट्रेनों के मुख्य कारोबार से रेलवे की आय प्रभावित हुई। राजस्व में गिरावट बढ़ने से भविष्य में रेलवे के अपने उधार चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी।
रेखाचित्र 3: माल ढुलाई और यात्री यातायात की मात्रा में वृद्धि (वर्ष दर वर्ष)
Note: RE – Revised Estimates; BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
रेलवे की सामाजिक सेवा
मालगाड़ियां चलाने के अतिरिक्त रेलवे ऐसे अनेक कार्य कर रहा है जोकि महामारी को नियंत्रित करने में मददगार हों। उदाहरण के लिए रेलवे की मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता का इस्तेमाल कोविड-19 से निपटने के लिए किया जा रहा है। रेलवे के उत्पादन केंद्रों में पीपीई गियर जैसी वस्तुएं बनाई जा रही हैं। रेलवे इस बात का पता भी कर रहा है कि साधारण बेड, मेडिकल ट्रॉली और वेंटिलेटर्स बनाने के लिए अपने मौजूदा मैन्यूफैक्चरिंग केंद्रों का इस्तेमाल कैसे किया जाए। जिन स्थानों पर आईआरसीटीसी बेस किचन मौजूद हैं, रेलवे ने वहां जरूरतमंद लोगों को थोक में पका हुआ खाना बांटना भी शुरू किया है। रेलवे ने कोविड मरीजों के लिए अपने अस्पताल भी खोल दिए हैं।
6 अप्रैल तक 2,500 रेलवे कोचों को आईसोलेशन कोचों में तब्दील किया गया था। देश में 133 स्थानों पर औसतन एक दिन में 375 कोचों को तब्दील किया गया है।
इस बात पर विचार करते हुए कि रेलवे सरकार के अंतर्गत एक कमर्शियल विभाग के रूप में कार्य करता है, सवाल यह उठता है कि क्या उसे ऐसी सामाजिक बाध्यताओं का पालन करना चाहिए। नीति आयोग (2016) ने कहा कि रेलवे के सामाजिक और कमर्शियल उद्देश्यों में स्पष्टता की कमी है। तर्क दिया जा सकता है कि महामारी के दौरान ऐसी सेवाओं को सार्वजनिक हित माना जाना चाहिए। फिर भी सवाल यह है कि ऐसी सेवाएं प्रदान करने का वित्तीय दबाव किसे वहन करना चाहिए? वह भारतीय रेलवे होना चाहिए या केंद्र अथवा राज्य सरकार को स्पष्ट सब्सिडी के रूप में यह राशि प्रदान करनी चाहिए?
देश और विभिन्न राज्यों में कोविड के दैनिक मामलों के संख्या संबंधी विवरण के लिए कृपया यहां देखें। केंद्र और राज्य द्वारा जारी कोविड संबंधी मुख्य अधिसूचनाओं के लिए कृपया यहां देखें। रेलवे के कामकाज और वित्तीय स्थिति पर विस्तृत विवरण कृपया यहां देखें और इस वर्ष के रेल बजट को समझने के लिए कृपया यहां देखें।
भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन किया था। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य के रूप में वर्गीकृत गतिविधियों को छोड़कर अधिकतर आर्थिक गतिविधियों बंद थीं। इसके कारण राज्यों ने चिंता जताई थी कि आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण अनेक व्यक्तियों और व्यापार जगत को आय का नुकसान हुआ है। कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में स्थित इस्टैबलिशमेंट्स में कुछ गतिविधियों को शुरू करने के लिए मौजूदा श्रम कानूनों से छूट दी है। इस ब्लॉग में बताया गया है कि भारत में श्रम को किस प्रकार रेगुलेट किया जाता है और विभिन्न राज्यों ने श्रम कानूनों में कितनी छूट दी है।
भारत में श्रम को कैसे रेगुलेट किया जाता है?
श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है। इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं श्रम को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती हैं। वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने वाले लगभग 100 राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। ये कानून औद्योगिक विवादों को निपटाने, कार्यस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन इत्यादि पर केंद्रित हैं। कानूनों के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने और केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न श्रम कानूनों को चार संहिताओं में संहिताबद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये चार संहिताएं हैं (i) औद्योगिक संबंध, (ii) व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां, (iii) वेतन, और (iv) सामाजिक सुरक्षा। इन संहिताओं में कई कानूनों को समाहित किया गया है जैसे औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947, फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 और वेतन भुगतान एक्ट, 1936।
राज्य सरकारें श्रम को कैसे रेगुलेट करती हैं?
राज्य सरकारें निम्नलिखित द्वारा श्रम को रेगुलेट कर सकती हैं: (i) अपने श्रम कानून पारित करके, या (ii) राज्यों में लागू होने वाले केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में संशोधन करके। अगर किसी विषय पर केंद्र और राज्यों के कानूनों में तालमेल न हो, उन स्थितियों में केंद्रीय कानून लागू होते हैं और राज्य के कानून निष्प्रभावी हो जाते हैं। हालांकि अगर राज्य के कानून का तालमेल केंद्रीय कानून से न हो, और राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल जाए तो राज्य का कानून राज्य में लागू हो सकता है। उदाहरण के लिए 2014 में राजस्थान ने औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 में संशोधन किया था। एक्ट में 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स में छंटनी, नौकरी से हटाए जाने और उनके बंद होने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स के नियोक्ता को श्रमिकों की छंटनी करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। राजस्थान ने 300 कर्मचारियों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर इन विशेष प्रावधानों को लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया। राजस्थान में यह संशोधन लागू हो गया, क्योंकि इसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी।
किन राज्यों ने श्रम कानूनों में छूट दी है?
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी और मध्य प्रदेश ने एक अध्यादेश जारी किया ताकि मौजूदा श्रम कानूनों के कुछ पहलुओं में छूट दी जा सके। इसके अतिरिक्त गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, गोवा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने नियमों के जरिए श्रम कानूनों में रियायतों को अधिसूचित किया है।
मध्य प्रदेश
6 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को जारी किया। यह अध्यादेश दो राज्य कानूनों में संशोधन करता है: मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1961 और मध्य प्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1982। 1961 का एक्ट श्रमिकों के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करता है और 50 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होता है। अध्यादेश ने संख्या की सीमा को बढ़ाकर 100 या उससे अधिक श्रमिक कर दिया है। इस प्रकार यह एक्ट अब उन इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू नहीं होता जिनमें 50 और 100 के बीच श्रमिक काम करते हैं। इन्हें पहले इस कानून के जरिए रेगुलेट किया गया था। 1982 के एक्ट के अंतर्गत एक कोष बनाने का प्रावधान था जोकि श्रमिकों के कल्याण से संबंधित गतिविधियों को वित्त पोषित करता है। अध्यादेश में इस एक्ट को संशोधित किया गया है और राज्य सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह अधिसूचना के जरिए किसी इस्टैबलिशमेंट या इस्टैबलिशमेंट्स की एक श्रेणी को एक्ट के प्रावधानों से छूट दे सकती है। इस प्रावधान में नियोक्ता द्वारा हर छह महीने में तीन रुपए की दर से कोष में अंशदान देना भी शामिल है।
इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश सरकार ने सभी नए कारखानों को औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के कुछ प्रावधानों से छूट दी है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने और छंटनी तथा इस्टैबलिशमेंट्स के बंद होने से संबंधित प्रावधान राज्य में लागू रहेंगे। हालांकि एक्ट के औद्योगिक विवाद निवारण, हड़ताल और लॉकआउट और ट्रेड यूनियंस जैसे प्रावधान लागू नहीं होंगे। ये छूट अगले 1,000 दिनों (33 महीने) तक लागू रहेगी। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि वह कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को इसके प्रावधानों से छूट दे सकती है, अगर सरकार इस बात से संतुष्ट है कि औद्योगिक विवादों के निपटान और जांच के लिए एक तंत्र उपलब्ध है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, अध्यादेश मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रियाओं में लगे सभी कारखानों और इस्टैबलिशमेंट्स को तीन वर्ष की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देता है, अगर वे कुछ शर्तो को पूरा करते हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
यह अस्पष्ट है कि क्या सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक विवाद निवारण, ट्रेड यूनियन, हड़तालों इत्यादि का प्रावधान करने वाले श्रम कानून अध्यादेश में निर्दिष्ट तीन वर्ष की अवधि के लिए उत्तर प्रदेश के व्यापारों पर लागू रहेंगे। चूंकि अध्यादेश केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों के कार्यान्वयन को प्रतिबंधित करता है, उसे लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।
काम के घंटों में परिवर्तन
फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति देता है कि वह तीन महीने के लिए काम के घंटों से संबंधित प्रावधानों से कारखानों को छूट दे सकती है, अगर कारखान अत्यधिक काम कर रहे हैं (एक्सेप्शनल अमाउंट ऑफ वर्क)। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें पब्लिक इमरजेंसी में कारखानों को एक्ट के सभी प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गोवा, असम और उत्तराखंड की सरकारों ने इस प्रावधान की मदद से कुछ कारखानों के लिए काम के अधिकतम साप्ताहिक घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 तथा रोजाना काम के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 कर दिया। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश ने सभी कारखानों को फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी, जोकि काम के घंटों को रेगुलेट करते हैं। इन राज्य सरकारों ने कहा कि काम के घंटों को बढ़ाने से लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कम संख्या की समस्या को हल किया जा सकेगा और लंबी शिफ्ट्स से यह सुनिश्चित होगा कि कारखानों में कम श्रमिक काम करें, ताकि सोशल डिस्टेसिंग बनी रहे। तालिका 1 में विभिन्न राज्यों में काम के अधिकतम घंटों में वृद्धि को प्रदर्शित किया गया है।
तालिका 1: विभिन्न राज्यों में काम के घंटों में बदलाव
राज्य |
इस्टैबलिशमेंट्स |
सप्ताह में काम के अधिकतम घंटे |
रोज काम के अधिकतम घंटे |
ओवरटाइम वेतन |
समय अवधि |
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
अनिवार्य वस्तुओं का वितरण करने वाले और अनिवार्य वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
दो महीने |
|
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने* |
|
सभी कारखाने और सतत प्रक्रिया उद्योग जिन्हें सरकार ने काम करने की अनुमति दी है |
सप्ताह में अधिकतम 6 दिन |
12-12 घंटे की दो शिफ्ट |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
गोवा |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
लगभग तीन महीने |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
तीन महीने |
Note: *The Uttar Pradesh notification was withdrawn