कोविड-19 की महामारी के कारण सभी यात्री गाड़ियां 14 अप्रैल, 2020 तक रद्द हैं। हालांकि मालवाहक सेवाएं बहाल हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में अनिवार्य वस्तुएं पहुंचाने वाली गाड़ियां चल रही हैं। रेलवे ने ई-कॉमर्स कंपनियों और राज्य सरकारों सहित दूसरे ग्राहकों के लिए क्विक मास ट्रांसपोटेशन हेतु रेलवे पार्सल वैन्स भी उपलब्ध कराई है ताकि कुछ वस्तुओं का परिवहन किया जा सके। इनमें छोटे पार्सल साइज में मेडिकल सप्लाई, मेडिकल उपकरण, खाद्य पदार्थ इत्यादि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त रेलवे ने कोविड-19 के दौरान मदद हेतु कई दूसरे कदम भी उठाए हैं।
चूंकि यात्रा पर 23 मार्च से 14 अप्रैल, 2020 तक प्रतिबंध है (जोकि आगे भी बढ़ सकता है), इसने 2019-20 और 2020-21 में रेलवे की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है। इस पोस्ट में हम रेलवे की वित्तीय स्थिति पर चर्चा करेंगे और इस बात पर भी विचार विमर्श किया जाएगा कि यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे के राजस्व पर क्या संभावित असर हो सकता है।
रेलवे के आंतरिक राजस्व पर प्रतिबंध का प्रभाव
रेलवे को मुख्य रूप से यात्री यातायात और माल की ढुलाई से आंतरिक राजस्व प्राप्त होता है। 2018-19 में (हालिया वास्तविक) माल ढुलाई और यात्री यातायात से क्रमशः 67% और 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त हुआ था। शेष आंतरिक राजस्व विविध स्रोतों से प्राप्त हुआ था, जैसे पार्सल सेवा, कोचिंग रसीद और प्लेटफॉर्म टिकटों की बिक्री। 2020-21 में रेलवे को माल ढुलाई से 65% और यात्री यातायात से 27% आंतरिक राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है।
यात्री यातायात: 2020-21 में रेलवे को यात्री यातायात से 61,000 करोड़ रुपए की आय होने की उम्मीद है, जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक हैं (56,000 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक यात्री यातायात से लगभग 48,801 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में यात्री राजस्व के संशोधित अनुमानों की तुलना में 7,199 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 13%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत यात्री राजस्व लगभग 4,432 करोड़ रुपए रहा है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में यात्री राजस्व 4,440 करोड़ रुपए था। 23 मार्च से यात्रा पर पूरी तरह से प्रतिबंध के कारण 2019-20 में रेलवे का यात्री राजस्व अपने लक्ष्य से कम हो जाएगा।
अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि देश भर में रेल यात्राएं हमेशा की तरह कब से शुरू होंगी। कुछ राज्यों ने लॉकडाउन को बढ़ाना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में यात्री राजस्व में गिरावट लॉकडाउन के इन तीन हफ्तों के बाद भी रह सकती है।
माल ढुलाई: 2020-21 में रेलवे को गुड्स ट्रैफिक से 1,47,000 करोड़ रुपए की कमाई की उम्मीद है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9% अधिक है (1,34,733 करोड़ रुपए)।
रेल मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 तक माल ढुलाई से लगभग 1,08,658 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। यह 2019-20 में माल ढुलाई के संशोधित अनुमानों की तुलना में 26,075 करोड़ रुपए कम था जिसका अर्थ यह था कि यह राशि मार्च 2020 में अर्जित करनी जरूरी होगी ताकि संशोधित अनुमान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके (वर्ष के लक्ष्य का 19%)। हालांकि 2019-20 (11 महीनों के लिए) में औसत माल ढुलाई लगभग 10,029 करोड़ रुपए रही है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में माल ढुलाई 16,721 करोड़ रुपए था।
हालांकि यात्री यातायात पूरी तरह से प्रतिबंधित है, माल ढुलाई जारी है। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य वस्तुओं का परिवहन, कार्गो मूवमेंट के लिए रेलवे का परिचालन, राहत और निकासी तथा उससे संबंधित ऑपरेशनल संगठनों को अनुमति दी गई है। रेलवे की ढुलाई वाली अनेक वस्तुओं (कोयला, लौह अयस्क, स्टील, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, उर्वरक) को अनिवार्य वस्तुएं घोषित किया गया है। लॉकडाउन में रेलवे ने स्पेशल पार्सल रेलों को चलाना भी शुरू किया है (अनिवार्य वस्तुओं, ई-कॉमर्स गुड्स इत्यादि)। इन गतिविधियों से माल राजस्व प्राप्त होने में मदद मिलती रहेगी।
हालांकि कुछ ऐसी वस्तुएं जिनका परिवहन रेलवे करता है, जैसे सीमेंट, को अनिवार्य वस्तुओं में वर्गीकृत नहीं किया गया है। रेलवे के माल राजस्व में इन वस्तुओं के परिवहन का योगदान लगभग 8% है। रेलवे ने माल ढुलाई पर वसूले जाने वाले कई शुल्कों में राहत भी दी है। यह देखना अभी बाकी है कि क्या रेलवे माल राजस्व के अपने लक्ष्यों को पूरा कर पाता है।
रेखाचित्र 1: 2018-19 में माल ढुलाई का हिस्सा और राजस्व (% में)
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
माल ढुलाई यात्री यातायात को क्रॉस सब्सिडाइज़ करता है, इसकी स्थिति इस वर्ष और बुरी हो सकती है
रेलवे अपनी माल ढुलाई से प्राप्त लाभ का इस्तेमाल यात्री सेगमेंट के नुकसान की भरपाई करने और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए करता है। इस क्रॉस सब्सिडी से माल भाड़े में बढ़ोतरी हुई है। यात्रा पर प्रतिबंध और अगर लॉकडाउन (कुछ रूप में) जारी रहता है तो यात्री परिचालन को काफी नुकसान होगा। इससे माल ढुलाई पर क्रॉस सब्सिडी का दबाव और बढ़ सकता है। चूंकि रेलवे अपने माल भाड़े को और अधिक नहीं बढ़ा सकता, यह अस्पष्ट है कि यह क्रॉस सब्सिडी कैसे काम करेगी।
उदाहरण के लिए 2017-18 में यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं को 37,937 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, जबकि माल ढुलाई को 39,956 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। माल ढुलाई से प्राप्त लगभग 95% लाभ से यात्री और अन्य कोचिंग सेवाओं से होने नुकसान की भरपाई की गई। इस अवधि में कुल यात्री राजस्व 46,280 करोड़ रुपए था। इसका अर्थ यह था कि यात्री कारोबार में हुआ घाटा, रेलवे के राजस्व का 82% है। इसलिए 2017-18 में अपने यात्री कारोबार से रेलवे को अगर एक रुपए की आमदनी हुई तो उसने उस पर 1.82 रुपए खर्च किए।
रेलवे का व्यय
यात्रा पर प्रतिबंध से रेलवे अपनी सभी सेवाएं नहीं संचालित कर सकता, पर उसे अपने परिचालन व्यय का वहन करना होगा। कर्मचारियों का वेतन और पेंशन चुकानी होगी, जोकि कुल मिलाकर रेलवे का 66% राजस्व व्यय होता है। 2015 और 2020 के बीच (बजट अनुमान), वेतन पर रेलवे के व्यय में औसत 13% की दर से हर साल वृद्धि हुई है।
राजस्व व्यय का लगभग 18% ईंधन पर खर्च किया जाता है लेकिन तेल की कीमतों में गिरावट के कारण इसमें कुछ कमी देखी जा सकती है। रेलवे को रखरखाव, सुरक्षा और मूल्यह्रास पर खर्च करना ही होगा क्योंकि यह दीर्घावधि की लागत हैं जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त माल ढुलाई के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का नियमित रखरखाव भी जरूरी होगा।
राजस्व अधिशेष और परिचालन अनुपात और प्रभावित हो सकते हैं
रेलवे के अधिशेष को उसके कुल आंतरिक राजस्व और कुल राजस्व व्यय (कार्यचालन व्यय और पेंशन एवं मूल्य ह्रास कोष संबंधी विनियोग) के अंतर के आधार पर आंका जाता है। परिचालन अनुपात यातायात से अर्जित होने वाले राजस्व में कार्यचालन व्यय (रेलवे के रोजमर्रा के कामकाज में होने वाला व्यय) का अनुपात होता है। इसलिए उच्च अनुपात यह संकेत देता है कि रेलवे में अधिशेष अर्जित करने की क्षमता कम है जिनका उपयोग पूंजीगत निवेश के लिए किया जा सकता है, जैसे नई लाइनें बिछाना, नए कोच लगाना, इत्यादि। राजस्व अधिशेष में गिरावट से रेलवे की अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की क्षमता प्रभावित होती है।
पिछले एक दशक से रेलवे उच्च अधिशेष अर्जित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिणामस्वरूप परिचालन अनुपात एक दशक से भी अधिक समय से लगातार 90% से अधिक रहा है (रेखाचित्र 2)। 2018-19 में यह 92.8% के अनुमानित अनुपात की तुलना में 97.3% हो गया। कैग (2019) ने कहा कि 2018-19 के अग्रिम को प्राप्तियों में शामिल न किया जाता तो 2017-18 का परिचालन अनुपात 102.66% होता।
2020-21 में रेलवे द्वारा 6,500 करोड़ रुपए का अधिशेष अर्जित करने और परिचालन अनुपात के 96.2% पर बहाल रहने की उम्मीद है। लॉकडाउन के कारण राजस्व पर असर होगा तो इस अधिशेष में और गिरावट आ सकती है, और परिचालन अनुपात पर और बुरा असर हो सकता है।
रेखाचित्र 2: परिचालन अनुपात
Note: RE – Revised Estimates, BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
राजस्व के अन्य स्रोत
आंतरिक स्रोतों के अतिरिक्त रेलवे के वित्त पोषण के दो अन्य स्रोत होते हैं: (i) केंद्र सरकार से बजटीय समर्थन, और (ii) अतिरिक्त बजटीय संसाधन (जैसे प्राथमिक उधारियां, जिसमें संस्थागत वित्त पोषण, सार्वजनिक निजी सहभागिता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शामिल हैं)।
केंद्र सरकार से बजटीय सहयोग: केंद्र सरकार रेलवे को अपना नेटवर्क बढ़ाने और पूंजीगत व्यय में निवेश के लिए सहयोग देती है। 2020-21 में केंद्र सरकार से सकल बजटीय सहयोग 70,250 करोड़ रुपए प्रस्तावित है। यह 2019-20 के संशोधित अनुमानों से 3% अधिक है (68,105 करोड़ रुपए)। उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी के कारण सरकारी राजस्व भी प्रभावित हो रहा है, यह राशि भी वर्ष के दौरान कम हो सकती है।
उधारियां: रेलवे अधिकतर भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) के जरिए धनराशि उधार लेता है। आईआरएफसी बाजार से धनराशि लेता है (टैक्स योग्य तथा टैक्स मुक्त बॉन्ड इश्यूएंस, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से टर्म लोन्स), और फिर भारतीय रेलवे के रोलिंग स्टॉक एसेट्स और प्रॉजेक्ट एसेट्स को वित्त पोषित करने के लिए एक लीजिंग मॉडल का इस्तेमाल करता है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान उपलब्ध संसाधनों और व्यय के बीच के अंतर को कम करने के लिए उधारियां बढ़ाई गईं। जैसा कि पहले कहा गया है, रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को केंद्र सरकार के बजटीय सहयोग के जरिए पूरा किया जाता है। 2015-16 में इस प्रवृत्ति में बदलाव हुआ और रेलवे के अधिकतर पूंजीगत व्यय को ईबीआर के जरिए पूरा किया गया। 2020-21 में ईबीआर के जरिए 83,292 करोड़ रुपए जुटाने का अनुमान है जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमानों से कुछ अधिक हैं (83,247 करोड़ रुपए)।
उल्लेखनीय है कि इन दोनों स्रोतों को मुख्य रूप से रेलवे के पूंजीगत व्यय को वित्त पोषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। केंद्र सरकार के सहयोग के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल रणनीतिक लाइनों पर रेलवे को होने वाले परिचालनगत नुकसान और आईआरसीटीसी पर ई-टिकटिंग की परिचालन लागत की भरपाई के लिए किया जाता है (2020-21 के बजट अनुमानों के अनुसार 2,216 करोड़ रुपए)।
अगर इस वर्ष रेलवे की राजस्व प्राप्तियों में गिरावट होती है तो राजस्व व्यय को वित्त पोषित करने के लिए उसे केंद्र सरकार के अतिरिक्त सहयोग की जरूरत हो सकती है या वह उसे अपनी उधारियों के जरिए वित्त पोषित करेगा। हालांकि उधारियों पर अधिक निर्भरता से रेलवे की वित्तीय स्थिति और खराब हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान रेल आधारित माल ढुलाई और यात्री यातायात, दोनों की वृद्धि में गिरावट हुई है (देखें रेखाचित्र 3)। इससे माल ढुलाई और यात्री ट्रेनों के मुख्य कारोबार से रेलवे की आय प्रभावित हुई। राजस्व में गिरावट बढ़ने से भविष्य में रेलवे के अपने उधार चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी।
रेखाचित्र 3: माल ढुलाई और यात्री यातायात की मात्रा में वृद्धि (वर्ष दर वर्ष)
Note: RE – Revised Estimates; BE – Budget Estimates.
Sources: Expenditure Profile, Union Budget 2020-21; PRS.
रेलवे की सामाजिक सेवा
मालगाड़ियां चलाने के अतिरिक्त रेलवे ऐसे अनेक कार्य कर रहा है जोकि महामारी को नियंत्रित करने में मददगार हों। उदाहरण के लिए रेलवे की मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता का इस्तेमाल कोविड-19 से निपटने के लिए किया जा रहा है। रेलवे के उत्पादन केंद्रों में पीपीई गियर जैसी वस्तुएं बनाई जा रही हैं। रेलवे इस बात का पता भी कर रहा है कि साधारण बेड, मेडिकल ट्रॉली और वेंटिलेटर्स बनाने के लिए अपने मौजूदा मैन्यूफैक्चरिंग केंद्रों का इस्तेमाल कैसे किया जाए। जिन स्थानों पर आईआरसीटीसी बेस किचन मौजूद हैं, रेलवे ने वहां जरूरतमंद लोगों को थोक में पका हुआ खाना बांटना भी शुरू किया है। रेलवे ने कोविड मरीजों के लिए अपने अस्पताल भी खोल दिए हैं।
6 अप्रैल तक 2,500 रेलवे कोचों को आईसोलेशन कोचों में तब्दील किया गया था। देश में 133 स्थानों पर औसतन एक दिन में 375 कोचों को तब्दील किया गया है।
इस बात पर विचार करते हुए कि रेलवे सरकार के अंतर्गत एक कमर्शियल विभाग के रूप में कार्य करता है, सवाल यह उठता है कि क्या उसे ऐसी सामाजिक बाध्यताओं का पालन करना चाहिए। नीति आयोग (2016) ने कहा कि रेलवे के सामाजिक और कमर्शियल उद्देश्यों में स्पष्टता की कमी है। तर्क दिया जा सकता है कि महामारी के दौरान ऐसी सेवाओं को सार्वजनिक हित माना जाना चाहिए। फिर भी सवाल यह है कि ऐसी सेवाएं प्रदान करने का वित्तीय दबाव किसे वहन करना चाहिए? वह भारतीय रेलवे होना चाहिए या केंद्र अथवा राज्य सरकार को स्पष्ट सब्सिडी के रूप में यह राशि प्रदान करनी चाहिए?
देश और विभिन्न राज्यों में कोविड के दैनिक मामलों के संख्या संबंधी विवरण के लिए कृपया यहां देखें। केंद्र और राज्य द्वारा जारी कोविड संबंधी मुख्य अधिसूचनाओं के लिए कृपया यहां देखें। रेलवे के कामकाज और वित्तीय स्थिति पर विस्तृत विवरण कृपया यहां देखें और इस वर्ष के रेल बजट को समझने के लिए कृपया यहां देखें।
इस हफ्ते केंद्र ने दो अध्यादेश जारी किए: (i) सांसदों के वेतन में एक वर्ष के लिए 30% की कटौती हेतु संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन एक्ट, 1954, में संशोधन और (ii) मंत्रियों के सत्कार भत्ते में एक वर्ष के लिए 30% की कटौती हेतु मंत्रियों का वेतन और भत्ते एक्ट, 1952 में संशोधन। सरकार ने 1954 के एक्ट में अधिसूचित नियमों में भी संशोधन किया है ताकि सांसदों के कुछ भत्तों में एक वर्ष के लिए कटौतियां की जा सकें और दो वर्षों के लिए एमपीलैड (सांसद निधि) को रोका गया है। कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए केंद्र के वित्तीय संसाधनों को पूरा करने हेतु संशोधन किए गए हैं। ये संशोधन बड़े सवाल उठाते हैं- जैसे, राज्य की महामारी से लड़ने की क्षमता पर उसका क्या असर होगा और सांसदों के वेतन को किस प्रकार से निर्धारित किया जाना चाहिए।
संशोधनों पर एक नजर
1954 के एक्ट में कार्यकाल के दौरान सांसदों के वेतन और भत्तों तथा पूर्व सांसदों की पेंशन से संबंधित प्रावधान हैं। सांसदों को प्रति माह एक लाख रुपए वेतन मिलता है तथा सरकारी खर्चे की प्रतिपूर्ति भत्तों के रूप में की जाती है। इसमें संसद सत्र में भाग लेने के लिए दैनिक भत्ता, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालयी व्यय भत्ता शामिल हैं। पहले अध्यादेश के अंतर्गत सांसदों के वेतन में 30% की कटौती की गई है। इसके अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालयी व्यय भत्ता क्रमशः 21,000 रुपए और 6,000 रुपए कम किया जा रहा है।
1952 का एक्ट मंत्रियों (प्रधानमंत्री सहित) के वेतन और अन्य भत्तों को रेगुलेट करता है। एक्ट में प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और डेप्युटी मंत्रियों को विभिन्न दरों पर मासिक सत्कार भत्ते (आगंतुकों के मनोरंजन/सत्कार पर होने वाला खर्च) के भुगतान का प्रावधान है। दूसरा अध्यादेश मंत्रियों के सत्कार भत्ते को 30% कम करता है।
उल्लेखनीय है कि 1952 के एक्ट में मंत्रियों का वेतन, और दैनिक एवं निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 1954 के एक्ट के अंतर्गत सांसद के लिए निर्दिष्ट दरों के अनुसार ही है। इसी प्रकार दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों (राज्यसभा के अध्यक्ष को छोड़कर) पर भी ऐसे ही प्रावधान लागू होते हैं जोकि दूसरे एक्ट्स से रेगुलेट होते हैं। इसीलिए सांसदों के वेतन और निर्वाचन क्षेत्र भत्ते में किए गए संशोधन मंत्रियों, लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के उपाध्यक्ष पर भी लागू होंगे। राज्यसभा अध्यक्ष का वेतन अध्यादेश से प्रभावित नहीं होगा (चार लाख रुपए प्रति माह)।
इसके अतिरिक्त संसद सदस्य और स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीलैड) योजना, 1993 के अंतर्गत सांसद प्रत्येक वर्ष अपने निर्वाचन क्षेत्र में सरकारी निर्माण के कार्यों के लिए प्रॉजेक्ट्स को चिन्हित कर सकते हैं और उनके लिए धनराशि मंजूर कर सकते हैं। 2011-12 से इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक सांसद हर वर्ष पांच करोड़ रुपए तक खर्च कर सकता है। केंद्रीय कैबिनेट ने दो वर्षों के लिए एमपीलैड योजना को रोकने को मंजूरी दी है। तालिका 1 में सांसदों के वेतन, भत्तों में परिवर्तनों और एमपीलैड योजना को रोकने से संबंधित विवरण हैं।
तालिका 1: सांसदों के वेतन, भत्तों में परिवर्तन और एमपीलैड की पात्रता
विषय |
पूर्व पात्रता (रुपए प्रति माह में) |
नई पात्रता (रुपए प्रति माह में) |
परिवर्तन की समय अवधि |
|
वेतन |
1,00,000 |
70,000 |
एक वर्ष |
|
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता |
70,000 |
49,000 |
एक वर्ष |
|
कार्यालयी भत्ता |
60,000 |
54,000 |
एक वर्ष |
|
इसमें से |
कार्यालयी भत्ता |
20,000 |
14,000 |
- |
|
सचिवीय सहायता |
40,000 |
40,000 |
- |
प्रधानमंत्री का सत्कार भत्ता |
3,000 |
2,100 |
एक वर्ष |
|
कैबिनेट मंत्रियों का सत्कार भत्ता |
2,000 |
1,400 |
एक वर्ष |
|
राज्य मंत्रियों का सत्कार भत्ता |
1,000 |
700 |
एक वर्ष |
|
डेप्युटी मंत्रियों का सत्कार भत्ता |
600 |
420 |
एक वर्ष |
|
एमपीलैड योजना के अंतर्गत धनराशि |
5 crore |
कुछ नहीं |
दो वर्ष |
Sources: 2020 Ordinance; Members of Parliament (Constituency Allowance) Amendment Rules, 2020; Members of Parliament (Office Expense Allowance) Amendment Rules, 2020; “Cabinet approves Non-operation of MPLADs for two years (2020-21 and 2021-22) for managing COVID 19”, Press Information Bureau, Cabinet, April 6, 2020; PRS.
कोविड-19 से संघर्ष के लिए संसाधन जुटाने में संशोधनों का क्या असर होगा
सांसदों और मंत्रियों के वेतन और भत्तों में प्रस्तावित कटौती से लगभग 55 करोड़ रुपए की बचत होगी और एमपीलैड योजना को रोकने से 7800 करोड़ रुपए की बचत की उम्मीद है। कोविड-19 के कारण तत्काल आर्थिक संकट से लड़ने के लिए जितनी अनुमानित राशि की जरूरत होगी, यह बचत राशि उसका क्रमशः 0.03% और 4.5% है। सरकार ने अनुमान लगाया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत कोविड राहत उपायों के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपए की राशि की जरूरत होगी। इसलिए महामारी से लड़ने के लिए धनराशि जुटाने हेतु सांसदों के वेतन और भत्तों में कटौती करने का बहुत अधिक असर होने की संभावना नहीं है।
सांसदों का वेतन कैसे निर्धारित किया जा सकता है
प्रत्येक सांसद से अपने निर्वाचन क्षेत्र के हितों का प्रतिनिधित्व करने, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर कानून बनाने, सरकार की जवाबदेही तय करने, और सार्वजनिक संसाधनों का प्रभावी आबंटन करने की अपेक्षा की जाती है। सांसदों के वेतन और कार्यालयी भत्तों का आकलन उनकी जिम्मेदारियों के आधार पर तय किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने से कि सांसदों को यथोचित वेतन मिलता है, वे समर्पित भाव से अपने कर्तव्य निभाते हैं, स्वतंत्र तरीके से फैसले लेते हैं और इस बात की भी गारंटी मिलती है कि हर स्तर के नागरिक को संसदीय चुनाव लड़ने का मौका मिल सकता है। प्रश्न यह है कि- यह कौन तय करेगा कि सांसदों के लिए यथोचित वेतन क्या है।
वर्तमान में भारत में सांसद स्वयं अपना वेतन तय करते हैं जोकि संसद के एक्ट के रूप में पारित किया जाता है। सांसदों द्वारा अपना वेतन तय करने से हितों का टकराव होता है। इस मसले को हल करने का एक तरीका तो यह है कि सांसदों के वेतन को तय करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए। अनेक लोकतांत्रिक देशों में यह किया जाता है, जैसे न्यूजीलैंड और युनाइटेड किंगडम। दूसरे कई देशों में वार्षिक वेतन दर सूचकांक के आधार पर सांसदों का वेतन निर्धारित किया जाता है जैसे कनाडा। तालिका 2 में प्रदर्शित किया गया है कि विधि निर्माताओं के वेतन को निर्धारित करने के लिए क्या तरीके अपनाए जाते हैं।
तालिका 2: विभिन्न लोकतांत्रिक देशों में वेतन तय करने के तरीके
देश |
विधि निर्माताओं के वेतन तय करने की प्रक्रिया |
भारत |
संसद एक्ट पारित करके तय करती है। |
ऑस्ट्रेलिया |
रिमुनरेशन ट्रिब्यूनल वेतन तय करती है। इसे हर साल संशोधित किया जाता है। |
न्यूजीलैंड |
रिमुनरेशन ट्रिब्यूनल वेतन तय करती है। इसे हर साल संशोधित किया जाता है। |
यूके |
सार्वजनिक क्षेत्र में औसत आय में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार स्वतंत्र पार्लियामेंटरी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी वार्षिक वेतन तय करती है। इन परिवर्तनों की जानकारी ऑफिस ऑफ नेशनल स्टैटिस्टिक्स द्वारा दी जाती है। |
कनाडा |
संघीय सरकार के वार्षिक वेतन दर सूचकांक के अनुसार हर वर्ष सदस्यों का वेतन समायोजित किया जाता है। |
जर्मनी |
सर्वोच्च संघीय न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन पर आधारित और संसद द्वारा हर वर्ष समायोजित। |
Sources: Various government websites of respective countries; PRS.
भारत के पास सरकारी अधिकारियों के मेहनताने की समीक्षा करने के लिए स्वतंत्र आयोगों की नियुक्ति का अनुभव है। केंद्र सरकार समय समय पर वेतन आयोगों का गठन करती है जोकि सरकारी सेवाओं में प्रतिभावान व्यक्तियों को आकर्षित करने हेतु सरकारी कर्मचारियों की वेतन संरचना की समीक्षा करते हैं और उनमें संशोधन पर सुझाव देते हैं। सबसे हाल में 2014 में केंद्रीय वेतन आयोग का गठन किया गया था जिसने केंद्र सरकार के कर्मचारियों, सैन्य कर्मियों, सांविधिक निकायों के कर्मचारियों और सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के वेतन को तय किया था। सामान्यतया आयोगों की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश द्वारा की जाती है और इनके सदस्यों में सरकारी सेवाओं से जुड़े लोग और स्वतंत्र विशेषज्ञ होते हैं।
एमपीलैड को रोकना
इन संशोधनों के विपरीत, एमपीलैड योजना को रोकना एक सकारात्मक कदम है।
एमपीलैड योजना (एमपीलैड्स) या सांसद निधि को 1993 में शुरू किया गया था ताकि सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के स्थानीय विकास से जुड़ी समस्याओं को हल कर सकें। एमपीलैड्स के अंतर्गत सांसदों को हर साल अपने क्षेत्र में लोक निर्माण के प्रॉजेक्ट्स के लिए पांच करोड़ रुपए दिए जाते हैं और वे इन प्रॉजेक्ट्स को कार्यान्वित करने के लिए जिला प्रशासन को सुझाव दे सकते हैं। सामान्यतया एमपीलैड्स के अंतर्गत धनराशि को सरकारी सुविधाओं (जैसे स्कूल के भवन, सड़क और बिजली की सुविधा) के निर्माण या स्थापना, उपकरणों की सप्लाई (जैसे शिक्षण संस्थानों में कंप्यूटर) और सैनिटेशन प्रॉजेक्ट्स पर खर्च किया जाता है।
2010 में सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एमपीलैड्स की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर फैसला दिया था। यह कहा गया था कि एमपीलैड्स कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा का उल्लंघन करता है, चूंकि यह स्थानीय सरकारी कार्यों पर सांसद को कार्यकारी शक्तियां प्रदान करता है। न्यायालय ने फैसला दिया था कि शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होता क्योंकि इस मामले में सांसद की भूमिका सुझावपरक है और असली काम सरकारी प्रशासन द्वारा ही किया जाता है।
हालांकि योजना सांसद की राष्ट्रीय स्तर के विधि निर्माता की भूमिका को कम करके आंकती है। सांसद की भूमिका यह तय करना है कि क्या विकास संबंधी प्राथमिकताओं के लिए सरकार का बजटीय आबंटन पर्याप्त है और संसद द्वारा मंजूर धनराशि प्रभावी और कुशलतापूर्वक खर्च की जा रही है। हालांकि स्थानीय प्रशासन के स्तर के मुद्दों, जैसे सड़कों या सैनिटेशन प्रॉजेक्ट्स पर ध्यान केंद्रित करने से सांसद की निगरानी रखने की भूमिका अस्पष्ट होती है। एमपीलैड्स का एक नकारात्मक पहलु और है। इसके परिणामस्वरूप नागरिक सांसदों से व्यापक नीतिगत और विधायी फैसले लेने की उम्मीद करने की बजाय उनसे स्थानीय विकास की समस्याओं को सुलझाने की अपेक्षा करते हैं। एमपीलैड को रोकने से सांसदों को संसद में अपनी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा।
अध्यादेश के जरिए कानून निर्माण
इन अध्यादेशों के माध्यम से कार्यपालिका ने सांसदों और मंत्रियों के वेतन और भत्तों में संशोधन किया है। सैद्धांतिक रूप से संसद के पास कानून निर्माण की शक्ति है। असाधारण स्थितियों में संविधान कार्यपालिका को अध्यादेश के जरिए कानून बनाने की अनुमति देता है, अगर संसद सत्र न चल रहा हो और तत्काल कार्रवाई की जरूरत हो। कानून के रूप में जारी रहने के लिए इन दो अध्यादेशों को छह हफ्ते के भीतर संसद द्वारा मंजूर होना चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के अतिरिक्त भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां कार्यपालिका को कानून बनाने की शक्ति है, भले ही उसकी प्रकृति अस्थायी है।
अध्यादेश सांसदों के वेतन में संशोधन करता है- इससे एक प्रश्न और उठता है, क्या यह उपयुक्त है कि कार्यपालिका के पास सांसदों के मेहनताने में संशोधन करने की शक्ति है- इससे विधायिका की स्वतंत्रता पर क्या असर होगा जिसका कार्य कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना है।