india-map

अपने सांसद को खोजें

Switch to English
  • सांसद और विधायक
    संसद राज्य 2024 चुनाव
  • विधान मंडल
    संसद
    प्राइमर वाइटल स्टैट्स
    राज्यों
    विधानमंडल ट्रैक वाइटल स्टैट्स
    चर्चा पत्र
  • बिल
    संसद राज्य स्टेट लेजिस्लेटिव ब्रीफ
  • बजट
    संसद राज्य चर्चा पत्र
  • नीति
    चर्चा पत्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति मंथली पॉलिसी रिव्यू कमिटी की रिपोर्ट राष्ट्रपति का अभिभाषण वाइटल स्टैट्स COVID-19
  • करियर

अपने सांसद को खोजें

संसद राज्य 2024 चुनाव
प्राइमर वाइटल स्टैट्स
विधानमंडल ट्रैक वाइटल स्टैट्स
चर्चा पत्र
संसद राज्य स्टेट लेजिस्लेटिव ब्रीफ
संसद राज्य चर्चा पत्र
चर्चा पत्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति मंथली पॉलिसी रिव्यू कमिटी कीरिपोर्ट राष्ट्रपति का अभिभाषण वाइटल स्टैट्स COVID-19
  • The PRS Blog
  • लोकसभा का 17वां सत्र: हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं
संसद

लोकसभा का 17वां सत्र: हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं

, साकेत सूर्य - मई 29, 2019

2019 के आम चुनावों के परिणाम पिछले हफ्ते घोषित किए गए हैं और 17वीं लोकसभा के निर्वाचन की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है। नतीजे के तुरंत बाद पिछली लोकसभा भंग कर दी गई। आने वाले कुछ दिनों में अनेक मुख्य घटनाक्रम देखने को मिलेंगे। प्रधानमंत्री और कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद, लोकसभा का 17वां सत्र प्रारंभ होगा। पहले सत्र में नवनिर्वाचित सांसद शपथ लेंगे, 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष को चुना जाएगा और राष्ट्रपति संसद की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे। इस ब्लॉग में हम इन घटनाक्रमों की प्रक्रिया और उनके महत्व को स्पष्ट करेंगे।

17वीं लोकसभा के पहले सत्र के मुख्य घटनाक्रम

भारतीय जनता पार्टी बहुमत हासिल करने वाली अकेली पार्टी है और उसके नेता प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। संविधान के अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार, अन्य मंत्रियों को प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। संविधान का 91वां संशोधन मंत्रिपरिषद की सदस्य संख्या को, सदन की कुल सदस्य संख्या के 15% पर सीमित करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंत्रिपरिषद का शपथ ग्रहण 30 मई, 2019 को होना तय किया गया है।    

पहले सत्र का शेड्यूल कैसे तय होता है?

17वीं लोकसभा का पहला सत्र जून के पहले हफ्ते में शुरू होगा। पहले सत्र की शुरुआत की निश्चित तिथि और सत्र के मुख्य घटनाक्रमों का शेड्यूल, जिसमें राष्ट्रपति के संबोधन की तिथि भी शामिल है, को संसदीय मामलों की कैबिनेट कमिटी तय करती है। मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण के बाद कमिटी का गठन किया जाएगा। पिछली लोकसभा 4 जून, 2014 को शुरू हुई थी और उसके पहले सत्र की छह दिन बैठक हुई थी (4 जून, 2014 से 11 जून, 2014)।

पहले सत्र की अध्यक्षता कौन करता है?

सदन की प्रत्येक कार्यवाही की अध्यक्षता स्पीकर (अध्यक्ष) द्वारा की जाती है। नई लोकसभा के पहली बैठक से तत्काल पहले अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है। इसलिए एक अस्थायी अध्यक्ष, जिसे प्रो-टेम स्पीकर कहा जाता है, को नव निर्वाचित सांसदों में से चुना जाता है। प्रो-टेम स्पीकर नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ/प्रतिज्ञान दिलाता है, और उस बैठक की अध्यक्षता करता है जिसमें नए अध्यक्ष को चुना जाता है। नए अध्यक्ष के निर्वाचित होने के बाद प्रो-टेम स्पीकर का पद समाप्त हो जाता है।

प्रो-टेम स्पीकर को कैसे चुना जाता है?

नई सरकार के चुने जाने के बाद सदन के वरिष्ठतम सदस्यों के नामों की सूची तैयार की जाती है। वरिष्ठता का निर्धारण संसद के किसी भी सदन में कुल कार्यकाल के आधार पर किया जाता है। इसके बाद प्रधानमंत्री सूची में से उस सदस्य को चिन्हित करते हैं जो प्रो-टेम स्पीकर के रूप में कार्य करेगा। तीन अन्य सदस्यों को भी चिन्हित किया जाता है जिनके समक्ष अन्य सदस्य शपथ/प्रतिज्ञान ले सकते हैं।

नए अध्यक्ष को कैसे चुना जाता है?

कोई भी सदस्य इस प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है कि किसी दूसरे सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुना जाए। फिर इस प्रस्ताव को रखा जाता है और उस पर वोटिंग होती है। परिणाम घोषित होने के बाद प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता सहित सभी राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष को बधाई दी जाती है। इसके बाद नए अध्यक्ष द्वारा सदन की कार्यवाही संचालित की जाती है। 

संविधान की जानकारी और संसद की कार्य प्रक्रिया के नियमों और परंपराओं की जानकारी अध्यक्ष की मुख्य थाती मानी जाती है। हालांकि इससे इस बात का संकेत मिलता है कि अध्यक्ष सदन का वरिष्ठतम सदस्य होता है, यह सदैव का नियम नहीं है। अतीत में ऐसे कई मौके आए हैं जब सदन का अध्यक्ष पहली बार सांसद बना हो। उदाहरण के लिए छठी लोकसभा के अध्यक्ष के.एस.हेगड़े और सातवीं लोकसभा के अध्यक्ष बलराम जाखड़ पहली बार अध्यक्ष बने थे।

सदन में अध्यक्ष की क्या भूमिका होती है?

विधायिका के कामकाज में अध्यक्ष की केंद्रीय भूमिका होती है। सदन की कार्यवाही कार्य प्रक्रिया के नियमों से निर्देशित होते हैं और इन नियमों की व्याख्या और कार्यान्वयन की अंतिम अथॉरिटी अध्यक्ष के पास होती है। अध्यक्ष सदन में चर्चा कराने और व्यवस्था कायम करने के लिए जिम्मेदार होता है। उदाहरण के लिए यह अध्यक्ष के विवेक पर है कि वह किसी सदस्य को सदन में लोकहित के मुद्दे को उठाने की अनुमति देता है अथवा नहीं। अध्यक्ष सदन के कामकाज को बाधित करने पर किसी सदस्य को निलंबित कर सकता है या अधिक अव्यवस्था होने पर सदन को स्थगित कर सकता है।

अध्यक्ष कार्य मंत्रणा समिति का भी अध्यक्ष होता है। यह समिति सदन के कामकाज के निर्धारण के लिए जिम्मेदार होती है और उसके लिए समय आबंटित करती है। अध्यक्ष लोकसभा की सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति की भी अध्यक्षता करता है और सदस्यों के बीच से समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है। इससे पूर्व समिति प्रणाली को मजबूत करने में अध्यक्षों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 10वीं लोकसभा के अध्यक्ष शिवराज पाटील ने 17 विभाग संबंधी स्टैंडिंग कमिटियों की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाई थी जिससे संसद अधिक प्रभावी तरीके से कार्यकारिणी की निगरानी कर सके।

चूंकि अध्यक्ष पूरे सदन का प्रतिनिधित्व करता है, उसके पद में निष्पक्षता और स्वतंत्रता निहित है। संविधान और कार्य प्रक्रिया के नियमों में ऐसे दिशानिर्देश दिए गए हैं जिनसे अध्यक्ष के पद की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित हो। चौथी लोकसभा के अध्यक्ष डॉ. एन. संजीवा रेड्डी ने अपने राजनैतिक दल से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उनका यह मानना था कि अध्यक्ष पूरे सदन के लिए होता है इसलिए उसे निष्पक्ष बने रहना चाहिए। संविधान के 100वें अनुच्छेद के अनुसार, अध्यक्ष पहले तो किसी मामले में वोट नहीं देगा। हालांकि वोट बराबर होने की स्थिति में वह अपना वोट देगा।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में क्या होता है?

अध्यक्ष के चुनाव के बाद राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। भारतीय संविधान के 87वें अनुच्छेद में राष्ट्रपति से यह अपेक्षा की गई है कि वह प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत में दोनों सदनों को संबोधित करेगा। राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में भी दोनों सदनों को संबोधित करता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में पिछले वर्ष के सरकार के कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला जाता है और आगामी वर्ष के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं का उल्लेख किया जाता है।

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 17वीं लोकसभा के पहले सत्र को संबोधित करेंगे। 16वीं लोकसभा के दौरान 9 जून, 2014 को राष्ट्रपति का पहला अभिभाषण हुआ था। राष्ट्रपति का अंतिम अभिभाषण 31 जनवरी, 2019 को हुआ था (इस अभिभाषण की झलकियों को यहां पढ़ा जा सकता है।

अभिभाषण के बाद सत्तारूढ़ दल संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हैं। धन्यवाद प्रस्ताव में सांसद इस प्रस्ताव में संशोधन पेश कर सकते हैं जिसके बाद उन पर वोट होता है। अभिभाषण में संशोधन को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के रूप में देखा जाता है।  

 

Sources: The Constitution of India; Rules and Procedure and Conduct of Business in Lok Sabha; Handbook on the Working of Ministry of Parliamentary Affairs; The website of Parliament of India, Lok Sabha; The website of Office of the Speaker, Lok Sabha.

 
National Companies Law Tribunal

विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में छूट

Anya Bharat Ram - मई 12, 2020

भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन किया था। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य के रूप में वर्गीकृत गतिविधियों को छोड़कर अधिकतर आर्थिक गतिविधियों बंद थीं। इसके कारण राज्यों ने चिंता जताई थी कि आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण अनेक व्यक्तियों और व्यापार जगत को आय का नुकसान हुआ है। कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में स्थित इस्टैबलिशमेंट्स में कुछ गतिविधियों को शुरू करने के लिए मौजूदा श्रम कानूनों से छूट दी है। इस ब्लॉग में बताया गया है कि भारत में श्रम को किस प्रकार रेगुलेट किया जाता है और विभिन्न राज्यों ने श्रम कानूनों में कितनी छूट दी है।

भारत में श्रम को कैसे रेगुलेट किया जाता है?

श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है। इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं श्रम को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती हैं। वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने वाले लगभग 100 राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। ये कानून औद्योगिक विवादों को निपटाने, कार्यस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन इत्यादि पर केंद्रित हैं। कानूनों के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने और केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न श्रम कानूनों को चार संहिताओं में संहिताबद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये चार संहिताएं हैं (i) औद्योगिक संबंध, (ii) व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां, (iii) वेतन, और (iv) सामाजिक सुरक्षा। इन संहिताओं में कई कानूनों को समाहित किया गया है जैसे औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947, फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 और वेतन भुगतान एक्ट, 1936।

राज्य सरकारें श्रम को कैसे रेगुलेट करती हैं?

राज्य सरकारें निम्नलिखित द्वारा श्रम को रेगुलेट कर सकती हैं: (i) अपने श्रम कानून पारित करके, या (ii) राज्यों में लागू होने वाले केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में संशोधन करके। अगर किसी विषय पर केंद्र और राज्यों के कानूनों में तालमेल न हो, उन स्थितियों में केंद्रीय कानून लागू होते हैं और राज्य के कानून निष्प्रभावी हो जाते हैं। हालांकि अगर राज्य के कानून का तालमेल केंद्रीय कानून से न हो, और राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल जाए तो राज्य का कानून राज्य में लागू हो सकता है। उदाहरण के लिए 2014 में राजस्थान ने औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 में संशोधन किया था। एक्ट में 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स में छंटनी, नौकरी से हटाए जाने और उनके बंद होने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स के नियोक्ता को श्रमिकों की छंटनी करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। राजस्थान ने 300 कर्मचारियों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर इन विशेष प्रावधानों को लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया। राजस्थान में यह संशोधन लागू हो गया, क्योंकि इसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी। 

किन राज्यों ने श्रम कानूनों में छूट दी है?

उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी और मध्य प्रदेश ने एक अध्यादेश जारी किया ताकि मौजूदा श्रम कानूनों के कुछ पहलुओं में छूट दी जा सके। इसके अतिरिक्त गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, गोवा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने नियमों के जरिए श्रम कानूनों में रियायतों को अधिसूचित किया है।     

   

मध्य प्रदेश

6 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को जारी किया। यह अध्यादेश दो राज्य कानूनों में संशोधन करता है: मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1961 और मध्य प्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1982। 1961 का एक्ट श्रमिकों के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करता है और 50 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होता है। अध्यादेश ने संख्या की सीमा को बढ़ाकर 100 या उससे अधिक श्रमिक कर दिया है। इस प्रकार यह एक्ट अब उन इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू नहीं होता जिनमें 50 और 100 के बीच श्रमिक काम करते हैं। इन्हें पहले इस कानून के जरिए रेगुलेट किया गया था। 1982 के एक्ट के अंतर्गत एक कोष बनाने का प्रावधान था जोकि श्रमिकों के कल्याण से संबंधित गतिविधियों को वित्त पोषित करता है। अध्यादेश में इस एक्ट को संशोधित किया गया है और राज्य सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह अधिसूचना के जरिए किसी इस्टैबलिशमेंट या इस्टैबलिशमेंट्स की एक श्रेणी को एक्ट के प्रावधानों से छूट दे सकती है। इस प्रावधान में नियोक्ता द्वारा हर छह महीने में तीन रुपए की दर से कोष में अंशदान देना भी शामिल है।

इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश सरकार ने सभी नए कारखानों को औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के कुछ प्रावधानों से छूट दी है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने और छंटनी तथा इस्टैबलिशमेंट्स के बंद होने से संबंधित प्रावधान राज्य में लागू रहेंगे। हालांकि एक्ट के औद्योगिक विवाद निवारण, हड़ताल और लॉकआउट और ट्रेड यूनियंस जैसे प्रावधान लागू नहीं होंगे। ये छूट अगले 1,000 दिनों (33 महीने) तक लागू रहेगी। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि वह कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को इसके प्रावधानों से छूट दे सकती है, अगर सरकार इस बात से संतुष्ट है कि औद्योगिक विवादों के निपटान और जांच के लिए एक तंत्र उपलब्ध है।

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, अध्यादेश मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रियाओं में लगे सभी कारखानों और इस्टैबलिशमेंट्स को तीन वर्ष की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देता है, अगर वे कुछ शर्तो को पूरा करते हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वेतन: अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से कम वेतन नहीं चुकाया जा सकता। इसके अतिरिक्त श्रमिकों को वेतन भुगतान एक्ट, 1936 में निर्धारित समय सीमा के भीतर वेतन चुकाना होगा। एक्ट में निर्दिष्ट किया गया है कि (i) 1,000 से कम श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स को वेतन अवधि के अंतिम दिन के बाद सातवें दिन से पहले मजदूरी का भुगतान करना होगा, और (ii) सभी दूसरे इस्टैबलिशमेंट्स को वेतन अवधि के अंतिम दिन के बाद दसवें दिन से पहले मजदूरी का भुगतान करना होगा। वेतन श्रमिकों के बैंक खातों में चुकाया जाएगा। 
  • स्वास्थ्य एवं सुरक्षा: अध्यादेश कहता है कि भवन निर्माण एवं अन्य निर्माण श्रमिक एक्ट, 1996 तथा फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 में निर्दिष्ट स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी प्रावधान लागू होंगे। ये प्रावधान खतरनाक मशीनरी के प्रयोग, निरीक्षण, कारखानों के रखरखाव इत्यादि को रेगुलेट करते हैं। 
  • काम के घंटे: श्रमिकों से दिन में 11 घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता, और काम का विस्तार रोजाना 12 घंटे से अधिक नहीं हो सकता।   
  • मुआवजा: किसी दुर्घटना में मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में श्रमिकों को कर्मचारी मुआवजा एक्ट, 1923 के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा। 
  • बंधुआ मजदूरी: बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट, 1973 लागू रहेगा। यह बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन का प्रावधान करता है। बंधुआ मजदूरी ऐसे प्रणाली होती है जिसमें लेनदार देनदार के साथ कुछ शर्तों पर समझौता करता है, जैसे उसके द्वारा या उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने के लिए वह मजदूरी करेगा, विशेष रूप से अपनी जाति या समुदाय या सामाजिक बाध्यता के कारण। 
  • महिला एवं बच्चे: श्रम कानून के महिलाओं और बच्चों के रोजगार से संबंधित प्रावधान लागू रहेंगे।  

यह अस्पष्ट है कि क्या सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक विवाद निवारण, ट्रेड यूनियन, हड़तालों इत्यादि का प्रावधान करने वाले श्रम कानून अध्यादेश में निर्दिष्ट तीन वर्ष की अवधि के लिए उत्तर प्रदेश के व्यापारों पर लागू रहेंगे। चूंकि अध्यादेश केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों के कार्यान्वयन को प्रतिबंधित करता है, उसे लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।   

काम के घंटों में परिवर्तन

फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति देता है कि वह तीन महीने के लिए काम के घंटों से संबंधित प्रावधानों से कारखानों को छूट दे सकती है, अगर कारखान अत्यधिक काम कर रहे हैं (एक्सेप्शनल अमाउंट ऑफ वर्क)। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें पब्लिक इमरजेंसी में कारखानों को एक्ट के सभी प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गोवा, असम और उत्तराखंड की सरकारों ने इस प्रावधान की मदद से कुछ कारखानों के लिए काम के अधिकतम साप्ताहिक घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 तथा रोजाना काम के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 कर दिया। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश  ने सभी कारखानों को फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी, जोकि काम के घंटों को रेगुलेट करते हैं। इन राज्य सरकारों ने कहा कि काम के घंटों को बढ़ाने से लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कम संख्या की समस्या को हल किया जा सकेगा और लंबी शिफ्ट्स से यह सुनिश्चित होगा कि कारखानों में कम श्रमिक काम करें, ताकि सोशल डिस्टेसिंग बनी रहे। तालिका 1 में विभिन्न राज्यों में काम के अधिकतम घंटों में वृद्धि को प्रदर्शित किया गया है। 

तालिका 1: विभिन्न राज्यों में काम के घंटों में बदलाव

राज्य 

इस्टैबलिशमेंट्स

सप्ताह में काम के अधिकतम घंटे 

रोज काम के अधिकतम घंटे 

ओवरटाइम वेतन

समय अवधि

गुजरात 

सभी कारखाने

48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे 

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे 

आवश्यक नहीं

तीन महीने

हिमाचल प्रदेश

सभी कारखाने

48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे  

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे  

आवश्यक

तीन महीने

राजस्थान 

अनिवार्य वस्तुओं का वितरण करने वाले और अनिवार्य वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले सभी कारखाने 

48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे  

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे  

आवश्यक

तीन महीने

हरियाणा 

सभी कारखाने

निर्दिष्ट नहीं 

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे  

आवश्यक

दो महीने 

उत्तर प्रदेश

सभी कारखाने

48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे 

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे 

आवश्यक नहीं

तीन महीने*

उत्तराखंड

सभी कारखाने और सतत प्रक्रिया उद्योग जिन्हें सरकार ने काम करने की अनुमति दी है

सप्ताह में अधिकतम 6 दिन

12-12 घंटे की दो शिफ्ट

आवश्यक 

तीन महीने

असम

सभी कारखाने

निर्दिष्ट नहीं

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे

आवश्यक

तीन महीने

गोवा

सभी कारखाने

निर्दिष्ट नहीं

9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे

आवश्यक

लगभग तीन महीने

मध्य प्रदेश

सभी कारखाने

निर्दिष्ट नहीं 

निर्दिष्ट नहीं 

निर्दिष्ट नहीं

तीन महीने

Note: *The Uttar Pradesh notification was withdrawn

Read More
  • «
  • 16
  • 17
  • 18
  • 19
  • 20
  • 21
  • 22
  • 23
  • 24
  • 25
  • »

संबंधित पोस्ट

  1. 1. बिजली क्षेत्र का घाटा क्यों बढ़ रहा है?
  2. 2. 17वीं लोकसभा के पहले अविश्वास प्रस्ताव पर आज चर्चा
  3. 3. प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल विरोधी कानून
  4. 4. उत्तराखंड विधानसभा का दो दिवसीय सत्र समाप्त; 13 बिल पेश और पारित
  5. 5. केंद्र सरकार को नियम बनाने में कितना समय लगता है?

हमें फॉलो करें

Copyright © 2025    prsindia.org    All Rights Reserved.