अप्रैल 2020 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के कारण विश्व स्तर पर करीब 2.5 करोड़ नौकरियां समाप्त हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त उसमें कहा गया था कि महामारी के कारण भारत में 40 करोड़ अनौपचारिक श्रमिक गरीबी के गर्त में गिर सकते हैं। पिछले वर्ष पीरिऑडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) ने अपनी त्रैमासिक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के आधार पर हम इस ब्लॉग में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी और उस पर कोविड-19 के असर के संबंधों पर चर्चा कर रहे हैं। इसमें बेरोजगारी को दूर करने के लिए सरकारी कदमों को भी रेखांकित किया गया है। 

पीएलएफएस रिपोर्ट्स में बेरोजगारी का अनुमान लगाने की कार्य प्रणाली

राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) ने अक्टूबर-दिसंबर 2020 की तिमाही के लिए अपनी हालिया पीएलएफएस रिपोर्ट जारी की है। पीएलएफएस रिपोर्ट में श्रम बल के संकेतकों, जैसे श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर), बेरोजगारी दर और विभिन्न उद्योगों में श्रमिकों के वितरण के अनुमान दर्शाए जाते हैं। रिपोर्ट्स तीन महीने में एक बार और साल में एक बार जारी की जाती हैं। तिमाही रिपोर्ट्स में सिर्फ शहरी इलाके शामिल होते हैं, जबकि वार्षिक रिपोर्ट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों। हाल की वार्षिक रिपोर्ट जुलाई 2019 से जून 2020 की अवधि के लिए उपलब्ध है।

त्रैमासिक पीएलएफएस रिपोर्ट्स में वर्तमान साप्ताहिक गतिविधि स्थिति (सीडब्ल्यूएस) के आधार पर अनुमान प्रस्तुत किए जाते हैं। सर्वेक्षण की तारीख से पहले सात दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों की स्थिति सीडब्ल्यूसी कहलाती है। सीडब्ल्यूसी के हिसाब से किसी व्यक्ति को एक हफ्ते के लिए बेरोजगार माना जाता है, अगर उसने संदर्भ सप्ताह के दौरान किसी एक दिन भी एक घंटे काम नहीं किया, लेकिन उसने काम मांगा था या वह काम के लिए उपलब्ध था। इसके विपरीत वार्षिक पीएलएफएस रिपोर्ट्स में रोजगार-बेरोजगारी के आंकड़े सामान्य गतिविधियों की स्थिति पर आधारित होते हैं। सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों की क्या स्थिति है, उस आधार पर सामान्य गतिविधि की स्थिति का आकलन किया जाता है।

कोविड से पहले के मुकाबले बेरोजगारी दर अब अधिक है 

कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए मार्च से मई 2020 के बीच देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था। लॉकडाउन के दौरान लोगों की आवाजाही और आर्थिक गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे। इससे अनिवार्य वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित गतिविधियों में बहुत अधिक रुकावट आ गई थी। 2020 में अप्रैल-जून के दौरान शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 21थी। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि की बेरोजगारी दर से दोगुना थी (8.9%)। बेरोजगारी दर श्रम बल में रोजगार रहित लोगों का प्रतिशत होती है। श्रम बल में वे नियुक्त या अनियुक्त लोग शामिल होते हैं जो काम की तलाश कर रहे होते हैं। आने वाले महीनों में लॉकडाउन के प्रतिबंधों में धीरे धीरे ढिलाई दी गई। 2020 के अप्रैल-जून के स्तर के मुकाबले बेरोजगारी दर में भी गिरावट हुई। 2020 में अक्टूबर-दिसंबर के दौरान (यही अब तक का उपलब्ध डेटा है) बेरोजगारी दर गिरकर 10.3हो गई। हालांकि यह पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की बेरोजगारी दर के मुकाबले काफी अधिक है (7.9%)

रेखाचित्र 1: वर्तमान साप्ताहिक गतिविधि स्थिति के अनुसार शहरी क्षेत्रों में सभी आयु वर्ग के लोगों की बेरोजगारी दर (आंकड़े में)

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नोट: पीएलएफएस में पुरुषों में ट्रांसजेंडर्स के आंकड़े शामिल हैं। 

SourcesQuarterly Periodic Labour Force Survey Reports, Ministry of Statistics and Program Implementation; PRS.

देशव्यापी लॉकडाउन के बाद महिलाओं में रिकवरी असमान

कोविड-19 से पहले के रुझानों से पता चलता है कि देश में पुरुष बेरोजगारी दर की तुलना में महिलाओं की बेरोजगारी दर बहुत अधिक है (2019 के अक्टूबर-दिसंबर में क्रमशः 7.3% बनाम 9.8%)। कोविड-19 महामारी के बाद से यह अंतर बढ़ता महसूस हुआ है। 2020 के अक्टूबर-दिसंबर के दौरान महिलाओं की बेरोजगारी दर 13.1% थी, जबकि पुरुषों की 9.5%। 

श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (अप्रैल 2021) ने कहा है कि महामारी के कारण संगठित और असंगठित क्षेत्रों की महिला श्रमिक बड़े पैमाने पर बेरोजगार हुई हैं। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं: (i) महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों से सरकारी खरीद को बढ़ाना, (ii) नई तकनीक के बारे में महिलाओं को प्रशिक्षित करना, (iii) महिलाओं को पूंजी उपलब्ध कराना, और (iv) बच्चों की देखभाल और संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना।

श्रम बल में भागीदारी

श्रम बल में प्रवेश करने वाले और उससे बाहर होने वाले लोग बेरोजगारी दर को प्रभावित कर सकते हैं। किसी समय, ऐसा भी संभव है कि काम करने की कानूनी उम्र से कम आयु के लोग इसमें शामिल हों या लोग विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारणों से, जैसे पढ़ाई करने के लिए, श्रम बल से बाहर हो जाएं। इसी के साथ इसमें ऐसे लोग शामिल हो सकते हैं जो नियुक्ति के इच्छुक हैं और उसके लायक भी, लेकिन हतोत्साहित होकर काम की तलाश बंद कर दें।   

श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) वह संकेतक है जोकि जनसंख्या के उस प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है जो श्रम बल का हिस्सा है। 2019 और 2020 के दौरान एलएफपीआर में सिर्फ मामूली बदलाव हुआ। अप्रैल-जून की तिमाही के दौरान (जब कोविड-19 संबंधी प्रतिबंध बहुत कड़े थे) एलएफपीआर 35.9थी जोकि 2019 में इसी अवधि के मुकाबले थोड़ी कम थी (36.2%)। उल्लेखनीय है कि भारत में महिला एलएफपीआर पुरुष एलएफपीआर से काफी कम है (2019 के अक्टूबर-दिसंबर में क्रमशः 16.6और 56.7%)।

रेखाचित्र 2: वर्तमान साप्ताहिक गतिविधि स्थिति के अनुसार शहरी क्षेत्रों में सभी आयु वर्गों में एलएफपीआर (आंकड़े में) 

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नोट: पीएलएफएस में पुरुषों में ट्रांसजेंडर्स के आंकड़े शामिल हैं।

SourcesQuarterly Periodic Labour Force Survey Reports, Ministry of Statistics and Program Implementation; PRS.

श्रमिकों के लिए सरकार के उपाय

अगस्त 2021 में श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में 90% श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। इन श्रमिकों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रवासी श्रमिक, (ii) कॉन्ट्रैक्ट श्रमिक, (iii) निर्माण श्रमिक और (iv) फुटपाथी दुकानदार। कमिटी ने कहा कि मौसमी रोजगार और असंगठित क्षेत्रों में नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों की कमी के कारण महामारी में इन श्रमिकों पर सबसे बुरा असर हुआ। कमिटी ने केंद्र और राज्य सरकारों को निम्नलिखित उपाय करने का सुझाव दिया: (i) उद्यमिता के अवसरों को बढ़ावा देना, (ii) परंपरागत मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करना और औद्योगिक क्लस्टर्स को विकसित करना, (iii) सामाजिक सुरक्षा उपायों को मजबूती देना, (iv) अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों का डेटाबेस बनाना, और (v) व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना। कमिटी ने श्रमिकों की मदद करने और कोविड-19 महामारी की चुनौतियों और खतरों से निपटने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न उपायों पर गौर किया (जो शहरी क्षेत्रों में किए गए हैं)

  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के अंतर्गत केंद्र सरकार ने कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड (ईपीएफ) में नियोक्ता के 12और कर्मचारी के 12अंशदान का भुगतान किया है। मार्च और अगस्त 2020 के बीच 2.63 लाख इस्टैबलिशमेंट्स के 38.85 लाख पात्र कर्मचारियों के ईपीएफ खातों में कुल 2,567.20 करोड़ रुपए जमा कराए गए। 
     
  • आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) को अक्टूबर 2020 से लागू किया गया था। इसका उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा लाभ और कोविड-19 महामारी के दौरान रोजगार की नुकसान भरपाई के साथ नए रोजगार के सृजन के लिए नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करना था। इसके अतिरिक्त ईपीएफओ के दायरे में आने वाले सभी इस्टैबलिशमेंट्स के नियोक्ता एवं कर्मचारियों के मौजूदा वैधानिक प्रॉविडेट फंड अंशदान को कम किया गया। इसे तीन महीने के लिए 12% से कम करके 10कर दिया गया। 30 जून, 2021 तक एबीआरवाई के अंतर्गत करीब 22 लाख लाभार्थियों में 950 करोड़ रुपए की धनराशि वितरित की गई। 
     
  • जुलाई 2018 में अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना को शुरू किया गया था। इसके अंतर्गत बीमित व्यक्तियों को रोजगार छूटने पर औसत आय का 25बेरोजगारी लाभ चुकाया जाता है। कोविड-19 के दौरान रोजगार गंवाने वाले बीमित व्यक्तियों को इस योजना के अंतर्गत उपलब्ध लाभ को 50कर दिया गया। 
     
  • प्रधानमंत्री की स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने फुटपाथी दुकानदारों को 10,000 रुपए की शुरुआती कार्यशील पूंजी प्रदान की। 28 जून, 2021 तक 25 लाख ऋण आवेदनों को मंजूर किया गया और 21.57 लाख लाभार्थियों में 2,130 करोड़ रुपए वितरित किए गए।  

केंद्र और राज्य सरकारों ने कई दूसरे उपाय भी किए जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के खर्च को बढ़ाना और व्यवसायों के लिए सस्ते ऋण उपलब्ध कराना, ताकि आर्थिक गतिविधियां जारी रहें और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिले।

6 जून, 2022 को इलेक्ट्रॉनिक और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम, 2021के ड्राफ्ट संशोधनों पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। आईटी नियमों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) के अंतर्गत 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था। मंत्रालय का कहना है कि व्यापक डिजिटल इकोसिस्टम में उभरती चुनौतियों और अंतराल के मद्देनजर नियमों में संशोधन की जरूरत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आईटी नियम, 2021 की संक्षिप्त पृष्ठभूमि दे रहे हैं और नियमों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तनों को स्पष्ट कर रहे हैं। 

आईटी नियम, 2021 की पृष्ठभूमि

आईटी एक्ट इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूज़र-जनरेटेड कंटेंट की लायबिलिटी से मुक्त करता है, अगर वे कुछ ड्यू डेलिजेंस (सम्यक उद्यम) की शर्तों को पूरा करते हैं। इंटरमीडियरीज़ ऐसी एंटिटीज़ को कहते हैं जोकि दूसरे लोगों की तरफ से डेटा को स्टोर या ट्रांसमिट करते हैं और इसमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेसेज़, सर्च इंजन्स और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं। आईटी नियम इंटरमीडियरीज़ के लिए ड्यू डेलिजेंस की शर्तों को निर्दिष्ट करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) यूजर्स को सेवाओं के यूसेज़ से जुड़े नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तें तथा स्थितियों के बारे में बताना, जिसमें यह बताना भी शामिल है कि किस प्रकार का कंटेट प्रतिबंधित हैं, (ii) अदालत या सरकार के आदेश पर कंटेट को तुरंत हटाना, (iii) नियमों के उल्लंघन के बारे में यूज़र की शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान करना, और (iv) अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ शर्तों के अंतर्गत इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना। नियम ऐसे फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए ऑनलाइन पब्लिशर्स अपने न्यूज और करंट अफेयर्स कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेट को रेगुलेट कर सकें। आईटी नियम 2021 के विश्लेषण के लिए कृपया यहां देखें

आईटी नियम 2021 में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन 

ड्राफ्ट संशोधनों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताएं: 2021 के नियमों में यह अपेक्षित है कि इंटरमीडियरी अपनी सर्विस के एक्सेस या यूसेज के लिए नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट को पब्लिश करे। यूज़र्स किस प्रकार के कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर कर सकते हैं, नियमों में उनकी सीमाएं भी निर्दिष्ट की गई हैं। नियमों के तहत इंटरमीडियरीज़ के लिए यह जरूरी है कि वे अपने यूज़र्स को इन सीमाओं के बारे में सूचित करें प्रस्तावित संशोधनों में इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताओं को व्यापक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल है: (i) नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट के साथ "अनुपालन सुनिश्चित करना"और (ii) "यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर न करने के लिए प्रेरित करना"।
     
  • प्रस्तावित संशोधनों में यह भी जोड़ा गया है कि इंटरमीडियरीज़ को ड्यू डेलिजेंस, प्राइवेसी और पारदर्शिता की उचित अपेक्षा के साथ सभी यूज़र्स तक अपनी सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए। इसके अतिरिक्त इंटरमीडियरीज़ को सभी यूज़र्स के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। मंत्रालय ने गौर किया कि ऐसे परिवर्तन जरूरी थे क्योंकि कई इंटरमीडियरीज़ ने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
     
  • शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षित है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत अधिकारी को निर्दिष्ट करें। मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे कई मामले हैं जहां इन अधिकारियों ने शिकायतों को संतोषजनक तरीके या निष्पक्षता से दूर नहीं किया। शिकायत अधिकारी के फैसलों से पीड़ित व्यक्ति को निवारण मांगने के लिए अदालतों में जाना पड़ता है। इसलिए ड्राफ्ट संशोधनों में अपील के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया है। शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार एक शिकायत अपीलीय कमिटी बनाएगी। इस कमिटी में एक चेयरपर्सन और अन्य सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए नियुक्त करेगी। अपील की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर कमिटी को उसका निस्तारण करना होगा। संबंधित इंटरमीडियरी को कमिटी के आदेश का पालन करना होगा। उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित संशोधन यूज़र्स को अदालतों से सीधा संपर्क करने से नहीं रोकते।
     
  • प्रतिबंधित कंटेट को तुरंत हटाना: 2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की गई है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को 24 घंटे के भीतर स्वीकार करेंगे और 15 दिनों के भीतर उनका निस्तारण करेंगे। प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि प्रतिबंधित कंटेंट को हटाने से संबंधित शिकायत को 72 घंटे में दूर किया जाना चाहिए। मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट पर किसी कंटेंट के वायरल होने की संभावना को देखते हुए समय सीमा को और कड़ा करने से प्रतिबंधित कंटेंट को तेजी से हटाने में मदद मिलेगी। 

ड्राफ्ट संशोधनों पर टिप्पणियां 6 जुलाई, 2022 तक आमंत्रित हैं।