ट्रिब्यूनल्स परंपरागत अदालती व्यवस्था के ही समान प्रणाली है। ट्रिब्यूनल्स को दो मुख्य कारणों से स्थापित किया जाता है- तकनीकी मामलों में विवाद होने की स्थिति में विशेष ज्ञान प्रदान करना और न्यायालयों के दबाव को कम करना। भारत में कुछ ट्रिब्यूनल्स अधीनस्थ अदालतों के स्तर के हैं और उनके निर्णयों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, जबकि कुछ उच्च न्यायालय के स्तर के, जिनके फैसलों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। 1986 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि संसद उच्च न्यायालयों के विकल्प स्थापित कर सकती है, बशर्ते उनकी क्षमता उच्च न्यायालयों के समान हो। भारत में ट्रिब्यूनल प्रणाली पर विस्तार से जानने के लिए हमारा नोट देखें

अप्रैल 2021 में केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया जिसमें 15 ट्रिब्यूनल्स के सदस्यों के चयन के लिए सर्च-कम-सिलेक्शन कमिटी के संयोजन, और सदस्यों के कार्यकाल से संबंधित विशिष्ट प्रावधान थे। इसके अतिरिक्त अध्यादेश केंद्र सरकार को यह अधिकार देता था कि वह इन ट्रिब्यूनल्स के चेयरपर्सन और सदस्यों की क्वालिफिकेशंस और सेवा के नियमों और शर्तों को अधिसूचित कर सकती है। जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यादेश के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया (जैसे सदस्यों के लिए चार वर्ष का कार्यकाल निर्धारित करने वाला प्रावधान)। अदालत ने कहा कि इससे सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है। इससे पहले कई फैसलों में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल्स के संयोजन और सेवा शर्तों पर दिशानिर्देश जारी किए हैं ताकि इससे यह सुनिश्चित हो कि इन ट्रिब्यूनल्स को भी कार्यपालिका से उतनी ही स्वतंत्रता मिले, जितनी उन उच्च न्यायालयों को मिलती है जिनके स्थान पर इन्हें स्थापित किया गया है।

इसके बाद संसद ने अगस्त 2021 में ट्रिब्यूनल सुधार बिल, 2021 पारित किया। यह बिल अप्रैल के अध्यादेश के ही जैसा है और इसमें वे प्रावधान भी शामिल हैं जिन्हें निरस्त कर दिया गया था। इस एक्ट को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। बिल पर पीआरएस के विश्लषेण के लिए कृपया देखें।   

16 सितंबर, 2021 को केंद्र सरकार ने ट्रिब्यूनल सुधार एक्ट, 2021 के अंतर्गत ट्रिब्यूनल (सेवा की शर्त) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। इन नियमों के अंतर्गत कई प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकते हैं:

केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के प्रशासनिक सदस्य को चेयरमैन के तौर पर नियुक्त करना 

केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) के मामले में नियम निर्दिष्ट करते हैं कि न्यायिक सदस्य या प्रशासनिक सदस्य के रूप में तीन वर्ष के अनुभव वाले व्यक्ति को चेयरमैन नियुक्त किया जा सकता है। यह सर्वोच्च न्यायालय के पहले के निर्णयों के जरिए स्थापित सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है।

कैट उच्च न्यायालयों की जगह लेता है। 1986 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर कोई प्रशासनिक ट्रिब्यूनल उच्च न्यायालय की जगह लेता है तो ट्रिब्यूनल के चेयरमैन के कार्यालय को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान होना चाहिए। इसलिए उच्च न्यायालय के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश को ट्रिब्यूनल का चेयरमैन होना चाहिए। इसके अतिरिक्त 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था – “किसी ट्रिब्यूनल के सदस्यों या पीठासीन अधिकारियों के ज्ञानप्रशिक्षण और अनुभव कोजहां तक संभव होउस न्यायालय का आइना होना चाहिएजिसका वह स्थान लेना चाहता है।”  

कैट के प्रशासनिक सदस्य ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जोकि केंद्र सरकार के एडीशनल सेक्रेटरी हों या ऐसे केंद्रीय अधिकारी हों जिनका वेतन कम से कम एडीशनल सेक्रेटरी जितना हो। इसलिए कैट के चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति के लिए जिस न्यायिक अनुभव की जरूरत होती है, वह प्रशासनिक सदस्यों के लिए अनिवार्य नहीं।

अवकाश मंजूरी का अधिकार 

नियमों में निर्दिष्ट है कि केंद्र सरकार के पास ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन, और सदस्यों (चेयरपर्सन की अनुपस्थिति में) के अवकाश को मंजूर करने का अधिकार होगा। 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्दिष्ट किया था कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों के साथ केंद्र सरकार (कार्यपालिका) की कोई प्रशासनिक संलग्नता नहीं होनी चाहिए। चूंकि इससे ट्रिब्यूनल के सदस्यों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त यह कहा गया कि कार्यपालिका एक वादी पक्ष हो सकता है और ट्रिब्यूनल के प्रशासनिक मामलों में उसके शामिल होने से निर्णय लेने की प्रक्रिया की निष्पक्षता पर असर हो सकता है। 1997 और 2014 के निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि सभी ट्रिब्यूनल्स का प्रशासन संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय नहीं, एक नोडल मंत्रालय जैसे विधि मंत्रालय के अंतर्गत होना चाहिए। 2020 में उसने सुझाव दिया था कि ट्रिब्यूनल्स की नियुक्तियों और प्रशासन के पर्यवेक्षण के लिए राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग बनाया जाए। लेकिन 2021 के नियम इन सुझावों के अनुकूल नहीं हैं। 

6 जून, 2022 को इलेक्ट्रॉनिक और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम, 2021के ड्राफ्ट संशोधनों पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। आईटी नियमों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) के अंतर्गत 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था। मंत्रालय का कहना है कि व्यापक डिजिटल इकोसिस्टम में उभरती चुनौतियों और अंतराल के मद्देनजर नियमों में संशोधन की जरूरत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आईटी नियम, 2021 की संक्षिप्त पृष्ठभूमि दे रहे हैं और नियमों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तनों को स्पष्ट कर रहे हैं। 

आईटी नियम, 2021 की पृष्ठभूमि

आईटी एक्ट इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूज़र-जनरेटेड कंटेंट की लायबिलिटी से मुक्त करता है, अगर वे कुछ ड्यू डेलिजेंस (सम्यक उद्यम) की शर्तों को पूरा करते हैं। इंटरमीडियरीज़ ऐसी एंटिटीज़ को कहते हैं जोकि दूसरे लोगों की तरफ से डेटा को स्टोर या ट्रांसमिट करते हैं और इसमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेसेज़, सर्च इंजन्स और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं। आईटी नियम इंटरमीडियरीज़ के लिए ड्यू डेलिजेंस की शर्तों को निर्दिष्ट करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) यूजर्स को सेवाओं के यूसेज़ से जुड़े नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तें तथा स्थितियों के बारे में बताना, जिसमें यह बताना भी शामिल है कि किस प्रकार का कंटेट प्रतिबंधित हैं, (ii) अदालत या सरकार के आदेश पर कंटेट को तुरंत हटाना, (iii) नियमों के उल्लंघन के बारे में यूज़र की शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान करना, और (iv) अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ शर्तों के अंतर्गत इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना। नियम ऐसे फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए ऑनलाइन पब्लिशर्स अपने न्यूज और करंट अफेयर्स कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेट को रेगुलेट कर सकें। आईटी नियम 2021 के विश्लेषण के लिए कृपया यहां देखें

आईटी नियम 2021 में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन 

ड्राफ्ट संशोधनों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताएं: 2021 के नियमों में यह अपेक्षित है कि इंटरमीडियरी अपनी सर्विस के एक्सेस या यूसेज के लिए नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट को पब्लिश करे। यूज़र्स किस प्रकार के कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर कर सकते हैं, नियमों में उनकी सीमाएं भी निर्दिष्ट की गई हैं। नियमों के तहत इंटरमीडियरीज़ के लिए यह जरूरी है कि वे अपने यूज़र्स को इन सीमाओं के बारे में सूचित करें प्रस्तावित संशोधनों में इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताओं को व्यापक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल है: (i) नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट के साथ "अनुपालन सुनिश्चित करना"और (ii) "यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर न करने के लिए प्रेरित करना"।
     
  • प्रस्तावित संशोधनों में यह भी जोड़ा गया है कि इंटरमीडियरीज़ को ड्यू डेलिजेंस, प्राइवेसी और पारदर्शिता की उचित अपेक्षा के साथ सभी यूज़र्स तक अपनी सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए। इसके अतिरिक्त इंटरमीडियरीज़ को सभी यूज़र्स के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। मंत्रालय ने गौर किया कि ऐसे परिवर्तन जरूरी थे क्योंकि कई इंटरमीडियरीज़ ने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
     
  • शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षित है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत अधिकारी को निर्दिष्ट करें। मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे कई मामले हैं जहां इन अधिकारियों ने शिकायतों को संतोषजनक तरीके या निष्पक्षता से दूर नहीं किया। शिकायत अधिकारी के फैसलों से पीड़ित व्यक्ति को निवारण मांगने के लिए अदालतों में जाना पड़ता है। इसलिए ड्राफ्ट संशोधनों में अपील के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया है। शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार एक शिकायत अपीलीय कमिटी बनाएगी। इस कमिटी में एक चेयरपर्सन और अन्य सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए नियुक्त करेगी। अपील की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर कमिटी को उसका निस्तारण करना होगा। संबंधित इंटरमीडियरी को कमिटी के आदेश का पालन करना होगा। उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित संशोधन यूज़र्स को अदालतों से सीधा संपर्क करने से नहीं रोकते।
     
  • प्रतिबंधित कंटेट को तुरंत हटाना: 2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की गई है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को 24 घंटे के भीतर स्वीकार करेंगे और 15 दिनों के भीतर उनका निस्तारण करेंगे। प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि प्रतिबंधित कंटेंट को हटाने से संबंधित शिकायत को 72 घंटे में दूर किया जाना चाहिए। मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट पर किसी कंटेंट के वायरल होने की संभावना को देखते हुए समय सीमा को और कड़ा करने से प्रतिबंधित कंटेंट को तेजी से हटाने में मदद मिलेगी। 

ड्राफ्ट संशोधनों पर टिप्पणियां 6 जुलाई, 2022 तक आमंत्रित हैं।