13 जून, 2022 को पश्चिम बंगाल सरकार ने एक बिल पास किया जिसमें राज्य के 31 सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (जैसे कोलकाता विश्वविद्यालय, जाधवपुर विश्वविद्यालय) में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को चांसलर बनाए जाने का प्रावधान है। जैसा कि उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (2019-20) कहता है, भारत में उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वाले 85% विद्यार्थी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में पढ़ते है। इस ब्लॉग में हम राज्यों के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका पर चर्चा करेंगे। 

सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में चांसलर यानी कुलाधिपति की क्या भूमिका होती है

राज्यों में सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की स्थापना राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कानूनों के जरिए होती है। अधिकतर कानूनों में राज्यपाल को इन विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में नामित किया जाता है। चांसलर सार्वजनिक विश्ववविद्यालयों के प्रमुख के तौर पर काम करते हैं और विश्वविद्यालय में वाइस-चांसलर की नियुक्ति करते हैं। इसके अतिरिक्त अगर विश्वविद्यालय में कोई कार्रवाई मौजूदा कानूनों के अनुसार नहीं होती तो चांसलर द्वारा उसे अमान्य घोषित किया जा सकता है। कुछ राज्यों में (जैसे बिहारगुजरात और झारखंड) चांसलर के पास विश्वविद्यालय में मुआयना करने की शक्ति होती है। चांसलर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हैं और मानद उपाधियां देने के प्रस्तावों की पुष्टि करते हैं। लेकिन तेलंगाना में स्थिति फर्क है। वहां राज्य सरकार चांसलर की नियुक्ति करती है। 

विश्वविद्यालय के विभिन्न निकायों (जैसे विश्वविद्यालय का कोर्ट/सीनेट) की बैठकों की अध्यक्षता भी चांसलर द्वारा की जाती है। कोर्ट/सीनेट विश्वविद्यालय के विकास से संबंधित निम्नलिखित नीतिगत मामलों पर फैसल लेती है(i) विश्वविद्यालयों में नए विभागों की स्थापना, (ii) डिग्री और टाइटिल्स देना और वापस लेना, और (iii) फेलोशिप्स की शुरुआत।

पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) बिल, 2022 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को 31 सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के चांसलर के तौर पर नामित किया गया है। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री (राज्यपाल के स्थान पर) इन विश्वविद्यालयों की प्रमुख होंगी और विश्वविद्यालयों के निकायों (जैसे कोर्ट/सीनेट) की बैठकों की अध्यक्षता करेंगी। 

क्या चांसलर के तौर पर राज्यपाल के पास अपने विवेक का इस्तेमाल करने की शक्ति है?

1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्यपाल अलग वैधानिक कार्य करने के दौरान (जैसे बतौर चांसलर) मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं है।   

सरकारिया और पुंछी आयोगों ने शिक्षण संस्थानों में राज्यपाल की भूमिका पर भी सुझाव दिए थे। इन दोनों आयोगों ने सहमति जताई थी कि वैधानिक कार्य करने के दौरान राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह मानने को कानूनी रूप से बाध्य नहीं होते। हालांकि अगर राज्यपाल संबंधित मंत्री से सलाह ले तो यह लाभप्रद होता है। सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्य विधानमंडलों को राज्यपाल को ऐसी वैधानिक शक्तियां प्रदान करने से बचना चाहिए जिन्हें संविधान में परिकल्पित नहीं किया गया है। पुंछी आयोग ने कहा था कि अगर राज्यपाल विश्वविद्यालय के चांसलर होंगे तो इस पद के विवादग्रस्त होने या सार्वजनिक आलोचना का शिकार होने की आशंका हो सकती है। इसलिए राज्यपाल की भूमिका संवैधानिक प्रावधानों तक सीमित होनी चाहिए। पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) बिल, 2022 के उद्देश्यों और कारणों के कथन में पुंछी आयोग के इस सुझाव का भी उल्लेख है। 

हाल के घटनाक्रम  

हाल ही में कई राज्यों ने सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जिम्मेदारियों को कम करने के लिए कदम उठाए हैं। अप्रैल 2022 में तमिलनाडु विधानसभा ने दो बिल पास करके, वाइस चांसलर को नियुक्त करने की शक्ति (सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में) राज्यपाल से राज्य सरकार को हस्तांतरित कर दी। 8 जून, 2022 तक इन बिलों पर राज्यपाल ने सम्मति नहीं दी है। 

इससे पहले 2021 में महाराष्ट्र ने राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया में संशोधन किया। संशोधन से पूर्व एक सर्च कमिटी चांसलर (जो राज्यपाल है) को कम से कम पांच नामों की सूची भेजती थी। चांसलर सूची में से किसी एक व्यक्ति को वाइस चांसलर नियुक्त कर सकता है, या नई सूची का सुझाव देने को कह सकता है। 2021 के संशोधनों में सर्च कमिटी के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वह पहले राज्य सरकार को नामों की सूची भेजे। राज्य सरकार चांसलर को सूची में से दो नामों (मूल सूची से) का सुझाव देगी। चांसलर को 30 दिनों के भीतर पैनल में से एक नाम को वाइस चांसलर नियुक्त करना होगा। संशोधन के अनुसार, चांसलर के पास नामों की नई सूची मांगने का कोई विकल्प नहीं होगा।  

14 मार्च, 2022 को राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के कामकाज पर चर्चा की। चर्चा के दौरान बजटीय आबंटन, योजनाओं के कार्यान्वयन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया गया। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित विकास योजनाओं और प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने, उनके कार्यान्वयन और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मंत्रालय के लिए 2022-23 के बजटीय आबंटनों का विश्लेषण करेंगे और उससे संबंधित विषयों पर विचार करेंगे।

इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पीएम-डिवाइन नामक नई योजना की घोषणा

2022-23 में मंत्रालय के आबंटन में 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5की वृद्धि हुई है। मंत्रालय को 2,800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसे पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना और पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। तालिका 1 में मंत्रालय के बजटीय आबंटन का क्षेत्रवार ब्रेकअप दिया गया है।   

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर विकास पहल (पीएम-डिवाइन) नाम की एक नई योजना की घोषणा की थी। इसे पूर्वोत्तर परिषद (पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी) द्वारा लागू किया जाएगा। पीएम-डिवाइन सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करेगी। यह योजना मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र या केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं का स्थान नहीं लेगी, या उन्हें समाहित नहीं करेगी। योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का शुरुआती आबंटन किया जाएगा। 

तालिका 1पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के आबंटन का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में) 

 

प्रमुख मद

2020-21

वास्तविक

2021-22

बअ

2021-22

संअ

2022-23

बअ

2021-22 संअ से 2022-23 बअ से परिवर्तन का %

पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना

446

675

674

1,419

111%

पूर्वोत्तर परिषद की योजनाएं

567

585

585

702

20%

पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना

416

696

674

496

-26%

पूर्वोत्तर एवं सिक्किम के लिए संसाधनों का केंद्रीय पूल

342

581

581

-

-

अन्य

270

322

344

241

-30%

कुल

1,854

2,658

2,658

2,800

5%

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नोट: बअ– बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; पूर्वोत्तर परिषद की योजनाओं में विशेष विकास परियोजनाएं शामिल हैं।
स्रोत: 2022-23 के केंद्रीय बजट दस्तावेजों की मांग संख्या 23पीआरएस। 

पूंजीगत परिव्यय के लिए मांग से कम आबंटन

गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि मंत्रालय ने जितनी मांग (794 करोड़ रुपए) की थी, उसके मुकाबले 2022-23 के बजट चरण में आबंटित राशि (660 करोड़ रुपए) 17% कम है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिसके जरिए स्कूल, अस्पतालों, सड़क एवं पुलों जैसी परिसंपत्तियों का सृजन होता है। कमिटी ने गौर किया कि इससे उन परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन पर गंभीर असर हो सकता है जिनके लिए पूंजीगत परिव्यय की जरूरत होती है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस विषय में वित्त मंत्रालय से बात करनी चाहिए और वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित चरण में अतिरिक्त सहायता की मांग करनी चाहिए।  

पिछले कुछ वर्षों में धनराशि की पूरा उपयोग नहीं किया गया

2011-12 (2016-17 को छोड़कर) के बाद से मंत्रालय बजटीय चरण में आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं कर पाया है (रेखाचित्र 1)। उदाहरण के लिए 2020-21 में पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के मामले में धनराशि का 52% उपयोग किया गया, जबकि पूर्वोत्तर विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (जलापूर्ति, बिजली, कनेक्टिविटी, सोशल इंफ्रास्ट्रक्टर से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स) के अंतर्गत केवल 34धनराशि का उपयोग किया गया। मंत्रालय ने धनराशि के उपयोग न हो पाने के कई कारण बताए इनमें परियोजनाओं के प्रस्ताव देर से प्राप्त होना और राज्य सरकारों की तरफ से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स प्राप्त न होना शामिल है।

रेखाचित्र 12011-12 के बाद मंत्रालय द्वारा धनराशि का पूरा उपयोग न करना

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 नोटसंशोधित अनुमान का उपयोग 2021-22 के वास्तविक व्यय के तौर पर किया गया है।
 स्रोतकेंद्रीय बजट दस्तावेज (2011-12 से 2022-23); पीआरएस।

परियोजनाओं की धीमी रफ्तार 

मंत्रालय सड़क एवं पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। कुछ योजनाओं की प्रगति अपर्याप्त रही है। स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत कई सड़क परियोजनाओं की भौतिक प्रगति या तो शून्य है, या सिंगल डिजिट परसेंट में है, इसके बावजूद कि परियोजना के लिए धनराशि जारी की जा चुकी है। इसी तरह करबी अंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (असम में स्वायत्त जिला परिषद) तथा सामाजिक एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़क, पुलों का निर्माण, और स्कूलों एवं जलापूर्ति परियोजनाओं का निर्माण) के अंतर्गत परियोजनाओं की अपर्याप्त प्रगति देखी गई है।

घटते वन आवरण पर ध्यान देने की जरूरत

स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को वन आवरण के संरक्षण के लिए काम करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने पूर्वोत्तर भारत में वन आवरण के घटने पर भी ध्यान दिया। भारतीय वनों की स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच जिन राज्यों के वन आवरण को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं(i) अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किलोमीटर वन आवरण का नुकसान), (ii) मणिपुर (249 वर्ग किलोमीटर), (iii) नागालैंड (235 वर्ग किलोमीटर), (iv) मिजोरम (186 वर्ग किलोमीटर), और (v) मेघालय (73 वर्ग किलोमीटर)। वन आवरण में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे झूम खेती, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएं, मानवजनित (पर्यावरणीय प्रदूषण) दबाव और विकासपरक गतिविधियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के विभिन्न उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और निर्धारित समय अवधि में उन्हें लागू किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए: (i) वन आवरण/घनत्व को बढ़ाने के लिए नियमित पौधरोपण करना चाहिए, और (ii) केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत वनों के संरक्षण के अंतिम लक्ष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण विषय उठाए

राज्यसभा में 14 मार्च, 2022 को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की गई। सदस्यों ने जिन विषयों को उठाया, उनमें से एक यह था कि मंत्रालय के पास अपना लाइन विभाग नहीं है। इस वजह से मंत्रालय को परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के प्रशासनिक बल पर निर्भर रहना पड़ता है। कई दूसरे सदस्यों ने यह भी कहा कि क्षेत्र रेलवे और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है जिससे इसका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। सदन में इसके जवाब में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सड़क, रेलवे, जलमार्ग और दूरसंचार के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार करने के निरंतर प्रयास कर रही है।

पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के आबंटन

केंद्रीय मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर के लिए अपना 10% बजट आबंटित किया (धनराशि के आबंटन और उपयोग के लिए रेखाचित्र 2 को देखें)। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय वह नोडल मंत्रालय है जोकि विभिन्न मंत्रालयों के आबंटनों की निगरानी करता है। 2022-23 में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सभी मंत्रालयों ने 76,040 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों (68,440 करोड़ रुपए) के मुकाबले इसमें 11की वृद्धि है। 2019-20 और 2021-22 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए वास्तविक व्यय बजट अनुमान से क्रमशः 18% और 19% कम था। 

रेखाचित्र 2पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालयों का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)

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स्रोत: रिपोर्ट संख्या 239पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अनुदान मांग (2022-23)गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।