2 अक्टूबर, 2021 को स्वच्छ भारत अभियान (एसबीएम) के सात साल पूरे हुए हैं। 2 अक्टूबर, 2019 को स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के मकसद से इसे 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्त करना, मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना और वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरा प्रबंधन करना है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम स्वच्छ भारत अभियान के तहत सैनिटेशन कवरेज और इस योजना की प्रगति पर चर्चा कर रहे हैं।

पिछले दशकों में देशव्यापी सैनिटेशन कार्यक्रम

जनगणना के अनुसार, 1981 में भारत में ग्रामीण स्तर पर सैनिटेशन कवरेज सिर्फ 1% था।  

सैनिटेशन से संबंधित भारत का पहला देशव्यापी कार्यक्रम केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) था। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटेशन की सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से 1986 में शुरू किया गया था। इसके बाद 1999 में सीआरएसपी को पुनर्गठित किया गया और फिर टोटल सैनिटेशन कैंपेन (टीएससी) के तौर पर शुरू किया गया। जबकि सीआरएसपी एक आपूर्ति संचालित, इंफ्रास्ट्रक्चर केंद्रित कार्यक्रम था जोकि सबसिडी पर आधारित था, टीएससी मांग आधारित, समुदाय के नेतृत्व वाला, परियोजना आधारित कार्यक्रम था जो जिले में एक इकाई के तौर पर संचालित किया जाता था। 

2001 में 22% ग्रामीण परिवारों को शौचालयों की सुविधा प्राप्त थी। 2011 में यह बढ़कर 32.7हो गया। 2012 में सैचुरेशन एप्रोच के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटेशन कवरेज में तेजी लाने और व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (आईएचएचएल) के लिए इनसेंटिव्स को बढ़ाने के माध्यम से टीएससी का निर्मल भारत अभियान (एनबीए) के तौर पर कायापलट किया गया।

ग्रामीण सैनिटेशन की तुलना में कुछ कार्यक्रम शहरी सैनिटेशन की कमियों को दूर करने के लिए चलाए गए। अस्सी के दशक में एकीकृत निम्न लागत वाली सैनिटेशन योजना परिवारों को निम्न लागत पर शौचालय बनाने के लिए सबसिडी देती थी। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्लम विकास परियोजना और उसके रिप्लेसमेंट कार्यक्रम वाल्मीकि अंबेडकर आवास योजना को 2001 में शुरू किया गया था। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में सामुदायिक शौचालय बनाना था। 2008 में मानव मल और संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों का प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय शहरी सैनिटेशन नीति (एनयूएसपी) की घोषणा की गई

2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई। इसके दो घटकों स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) क्रमशः ग्रामीण और शहरी सैनिटेशन पर केंद्रित हैं। इस अभियान के ग्रामीण घटक को पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग तथा शहरी घटक को आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है। 2015 में नीति आयोग के अंतर्गत स्वच्छ भारत अभियान पर मुख्यमंत्रियों के उपसमूह ने पाया कि एसबीएम और पहले के कार्यक्रमों के बीच कुछ अंतर था। अंतर यह था कि नया कार्यक्रम सैनिटेशन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में सहयोग हेतु अधिक भागीदारों को आकर्षित करने का प्रयास करता है।

स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण (एसबीएम-ग्रामीण) 

मुख्यमंत्रियों के उपसमूह (2015) ने कहा था कि भारत के 25 करोड़ में से आधे परिवारों को उन जगहों के निकट शौचालय उपलब्ध नहीं, जहां वे रहते हैं। उल्लेखनीय है कि 2015-19 की अवधि के दौरान पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग ने एसबीएम-ग्रामीण पर अपने व्यय का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया (देखें रेखाचित्र 1)। 

रेखाचित्र 1: 2014-22 के दौरान स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण पर व्यय 

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नोट: 2020-221 के आंकड़े संशोधित और 2021-22 के बजट अनुमान हैं। 2019-20 से पहले का व्यय पूर्ववर्ती पेयजल एवं सैनिटेशन मंत्रालय का था। 
स्रोत: केंद्रीय बजट 2014-15 से 2021-22; पीआरएस

स्वच्छ भारत-ग्रामीण के व्यय में 2015-16 (2,841 करोड़ रुपए) से 2017-18 (16,888 करोड़ रुपए) के बीच लगातार बढ़ोतरी हुई, और फिर बाद के वर्षों में गिरावट। इसके अलावा 2015-18 के दौरान योजना का व्यय बजटीय राशि से 10से अधिक बढ़ गया। हालांकि 2018-19 से हर साल आबंटित राशि से कुछ कम उपयोग हुआ है।

पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग के अनुसार, 2014-15 में 43.79% ग्रामीण परिवारों को शौचालय उपलब्ध था, जोकि 2019-20 में बढ़कर 100हो गया (देखें रेखाचित्र 2)।

हालांकि 15वें वित्त आयोग (2020) ने कहा था कि शौचालयों की उपलब्धता के बावजूद खुले में शौच की प्रथा चालू है और इस बात पर जोर दिया कि लोग शौचालयों का उपयोग करते रहें, इस आदत को बरकरार रखने की जरूरत है। ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने 2018 में ऐसा ही मामला उठाया था और कहा था कि "यहां तक कि 100% घरेलू शौचालय वाले गांवों को भी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि सभी निवासी उनका उपयोग करना शुरू न कर दें"। स्टैंडिंग कमिटी ने शौचालयों के निर्माण की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े किए थे और गौर किया था कि सरकार नॉन फंक्शनल शौचालयों को भी गिन रही है जिससे बढ़े हुए आंकड़े मिल रहे हैं।

रेखाचित्र 2: ग्रामीण परिवारों के लिए शौचालयों का कवरेज

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स्रोत: एसबीएम (ग्रामीण) का डैशबोर्डजल शक्ति मंत्रालय; पीआरएस

15वें वित्त आयोग ने यह भी कहा है कि योजना गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों और गरीबी रेखा से ऊपर के चुनींदा परिवारों को लैट्रिन बनाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देती है। उसने कहा कि बीपीएल परिवारों को खोजने में गलतियां की जा रही हैं, जिससे बहुत से इसमें शामिल नहीं हो पाते। आयोग ने सुझाव दिया था कि 100% ओडीएफ दर्जा हासिल करने के लिए योजना का सार्वभौमीकरण किया जाए। 

मार्च 2020 में पेयजल एवं सैनिटेशन मंत्रालय ने एसबीएम-ग्रामीण के चरण दो की शुरुआत की जोकि ओडीएफ प्लस पर केंद्रित होगा और 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय से 2020-21 से 2024-25 के बीच लागू किया जाएगा। ओडीएफ प्लस में ओडीएफ दर्जे को बरकरार रखना, तथा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन शामिल हैं। विशेष रूप से यह देश की प्रत्येक ग्राम पंचायत में ठोस एवं तरल कचरे के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करेगा।

स्वच्छ भारत मिशन- शहरी (एसबीएम-शहरी) 

एसबीएम-शहरी का उद्देश्य देश के शहरों को खुले में शौच से मुक्त करना और देश के 4000+ शहरों में म्यूनिसिपल ठोस कचरे का 100वैज्ञानिक प्रबंधन हासिल करना है। इनमें से एक लक्ष्य यह था कि 2 अक्टूबर, 2019 तक 66 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएलज़) बनाए जाएं। हालांकि 2019 में इस लक्ष्य को कम करके 59 लाख किया गया। इस लक्ष्य को 2020 तक हासिल करना था (देखें तालिका 1)। 

तालिका 130 दिसंबर, 2020 तक स्वच्छ भारत मिशन- शहरी की प्रगति

लक्ष्य

मूल लक्ष्य 

संशोधित लक्ष्य (2019 में संशोधित)  

वास्तविक निर्माण

व्यक्तिगत घरेलू लैट्रिन

66,42,000

58,99,637

62,60,606

सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय

5,08,000

5,07,587

6,15,864

 स्रोत: स्वच्छ भारत मिशन शहरी- डैशबोर्ड; पीआरएस 

रेखाचित्र 3: 2014-22 के दौरान स्वच्छ भारत मिशन-शहरी पर व्यय (करोड़ रुपए में)

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नोट: 2020-221 के आंकड़े संशोधित और 2021-22 के बजट अनुमान हैं। 

स्रोत: केंद्रीय बजट 2014-15 से 2021-22; पीआरएस

 

शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने 2020 की शुरुआत में यह जानकारी दी कि पूर्वी दिल्ली सहित कई क्षेत्रों में योजना के तहत बनाए गए शौचालय बहुत खराब क्वालिटी के हैं, और उनकी उचित देखभाल भी नहीं की जाती। इसके अतिरिक्त खुले में शौच से मुक्त 4,320 शहरों में से सिर्फ 1,276 में पानी, देखरेख और साफ-सफाई वाले शौचालय हैं। इसके अतिरिक्त उसने सितंबर 2020 में यह भी कहा कि कार्यक्रम के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों/यूटीज़ में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए असमान धन वितरण को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। 

शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने स्रोत पर कचरे को अलग-अलग करने और कचरा प्रोसेसिंग के लक्ष्यों को हासिल करने की धीमी गति पर भी चिंता जताई थी। 2020-21 के दौरान एसबीएम-शहरी के अंतर्गत इनके लिए निर्धारित लक्ष्य क्रमशः 78% और 68% थे। इसके अतिरिक्त कचरे को घर-घर जाकर जमा करने से संबंधित दूसरे लक्ष्य भी पूरा नहीं हुए हैं (देखें तालिका 2)।

तालिका 2: 30 दिसंबर, 2020 तक स्वच्छ भारत मिशन-शहरी की प्रगति 

लक्ष्य

लक्ष्य 

मार्च 2020 तक प्रगति

दिसंबर 2020 तक प्रगति

घर-घर कचरा एकत्रण (वॉर्ड में)

86,284

81,535 (96%)

83,435 (97%)

स्रोत पर कचरे को अलग-अलग करना (वॉर्ड में) 

86,284

64,730 (75%)

67,367 (78%)

कचरे की प्रोसेसिंग (में) 

100%

65%

68%

 स्रोत: शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021); पीआरएस 

फरवरी 2021 में वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2.0 को शुरू किया जाएगा। शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2.0 निम्नलिखित पर केंद्रित होगा(i) कीचड़ का प्रबंधन(ii) अपशिष्ट जल उपचार, (iii) कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग करना, (iv) सिंगल-यूज़ प्लास्टिक को कम करना, और (v) निर्माण, ध्वंस के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को रोकना, और डंप साइट्स का बायो-रेमिडिएशन। 1 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री ने एसबीएम-शहरी 2.0 को शुरू किया जिसका उद्देश्य हमारे सभी शहरों को गारबेज फ्री बनाना है। 

6 जून, 2022 को इलेक्ट्रॉनिक और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम, 2021के ड्राफ्ट संशोधनों पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। आईटी नियमों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) के अंतर्गत 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था। मंत्रालय का कहना है कि व्यापक डिजिटल इकोसिस्टम में उभरती चुनौतियों और अंतराल के मद्देनजर नियमों में संशोधन की जरूरत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आईटी नियम, 2021 की संक्षिप्त पृष्ठभूमि दे रहे हैं और नियमों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तनों को स्पष्ट कर रहे हैं। 

आईटी नियम, 2021 की पृष्ठभूमि

आईटी एक्ट इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूज़र-जनरेटेड कंटेंट की लायबिलिटी से मुक्त करता है, अगर वे कुछ ड्यू डेलिजेंस (सम्यक उद्यम) की शर्तों को पूरा करते हैं। इंटरमीडियरीज़ ऐसी एंटिटीज़ को कहते हैं जोकि दूसरे लोगों की तरफ से डेटा को स्टोर या ट्रांसमिट करते हैं और इसमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेसेज़, सर्च इंजन्स और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं। आईटी नियम इंटरमीडियरीज़ के लिए ड्यू डेलिजेंस की शर्तों को निर्दिष्ट करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) यूजर्स को सेवाओं के यूसेज़ से जुड़े नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तें तथा स्थितियों के बारे में बताना, जिसमें यह बताना भी शामिल है कि किस प्रकार का कंटेट प्रतिबंधित हैं, (ii) अदालत या सरकार के आदेश पर कंटेट को तुरंत हटाना, (iii) नियमों के उल्लंघन के बारे में यूज़र की शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान करना, और (iv) अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ शर्तों के अंतर्गत इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना। नियम ऐसे फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए ऑनलाइन पब्लिशर्स अपने न्यूज और करंट अफेयर्स कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेट को रेगुलेट कर सकें। आईटी नियम 2021 के विश्लेषण के लिए कृपया यहां देखें

आईटी नियम 2021 में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन 

ड्राफ्ट संशोधनों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताएं: 2021 के नियमों में यह अपेक्षित है कि इंटरमीडियरी अपनी सर्विस के एक्सेस या यूसेज के लिए नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट को पब्लिश करे। यूज़र्स किस प्रकार के कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर कर सकते हैं, नियमों में उनकी सीमाएं भी निर्दिष्ट की गई हैं। नियमों के तहत इंटरमीडियरीज़ के लिए यह जरूरी है कि वे अपने यूज़र्स को इन सीमाओं के बारे में सूचित करें प्रस्तावित संशोधनों में इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताओं को व्यापक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल है: (i) नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट के साथ "अनुपालन सुनिश्चित करना"और (ii) "यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर न करने के लिए प्रेरित करना"।
     
  • प्रस्तावित संशोधनों में यह भी जोड़ा गया है कि इंटरमीडियरीज़ को ड्यू डेलिजेंस, प्राइवेसी और पारदर्शिता की उचित अपेक्षा के साथ सभी यूज़र्स तक अपनी सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए। इसके अतिरिक्त इंटरमीडियरीज़ को सभी यूज़र्स के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। मंत्रालय ने गौर किया कि ऐसे परिवर्तन जरूरी थे क्योंकि कई इंटरमीडियरीज़ ने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
     
  • शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षित है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत अधिकारी को निर्दिष्ट करें। मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे कई मामले हैं जहां इन अधिकारियों ने शिकायतों को संतोषजनक तरीके या निष्पक्षता से दूर नहीं किया। शिकायत अधिकारी के फैसलों से पीड़ित व्यक्ति को निवारण मांगने के लिए अदालतों में जाना पड़ता है। इसलिए ड्राफ्ट संशोधनों में अपील के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया है। शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार एक शिकायत अपीलीय कमिटी बनाएगी। इस कमिटी में एक चेयरपर्सन और अन्य सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए नियुक्त करेगी। अपील की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर कमिटी को उसका निस्तारण करना होगा। संबंधित इंटरमीडियरी को कमिटी के आदेश का पालन करना होगा। उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित संशोधन यूज़र्स को अदालतों से सीधा संपर्क करने से नहीं रोकते।
     
  • प्रतिबंधित कंटेट को तुरंत हटाना: 2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की गई है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को 24 घंटे के भीतर स्वीकार करेंगे और 15 दिनों के भीतर उनका निस्तारण करेंगे। प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि प्रतिबंधित कंटेंट को हटाने से संबंधित शिकायत को 72 घंटे में दूर किया जाना चाहिए। मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट पर किसी कंटेंट के वायरल होने की संभावना को देखते हुए समय सीमा को और कड़ा करने से प्रतिबंधित कंटेंट को तेजी से हटाने में मदद मिलेगी। 

ड्राफ्ट संशोधनों पर टिप्पणियां 6 जुलाई, 2022 तक आमंत्रित हैं।