हाल ही में भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए उत्तर प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश की। पिछले महीने 26 मई को उत्तर प्रदेश का बजट (2022-23) पेश किया गया था और उसके साथ 2020-21 के व्यय और प्राप्तियों की ऑडिट रिपोर्ट जारी की गई। वर्ष 2020-21 में राज्यों के लिए दोहरी चुनौती थी। एक चुनौती, कोविड-19 महामारी के असर और लॉकडाउन के कारण पैदा हुई थी, तो दूसरी यह थी कि राजस्व की कमी और प्रभावित लोगों की मदद करने और आर्थिक बहाली के लिए अधिक खर्च पड़ेगा। कैग ने कहा कि 2020-21 में उत्तर प्रदेश की जीएसडीपी में 1.05की वृद्धि हुई जबकि 2019-20 में इसमें 6.5की बढ़ोतरी हुई थी। राज्य ने 2006-07 से लगातार 14 वर्ष राजस्व अधिशेष दर्ज करने के बाद 2020-21 में 2,367 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा दर्ज किया था। राजस्व व्यय के राजस्व प्राप्तियों से अधिक होने पर राजस्व घाटा होता है। इस ब्लॉग में हम 2020-21 में उत्तर प्रदेश की वित्तीय स्थिति की मुख्य प्रवृत्तियों और राज्य के वित्तीय प्रबंधन पर कैग के कुछ निष्कर्षों को प्रस्तुत कर रहे हैं। 

2020-21 में खर्च और घाटे

सामान्य से कम खर्च करना (अंडरस्पेंडिंग): 2020-21 में राज्य का कुल खर्च, फरवरी 2020 में प्रस्तुत बजट अनुमान से 26% कम रहा। जलापूर्ति और सैनिटेशन जैसे क्षेत्रों में वास्तविक व्यय बजटीय राशि से 60कम था, जबकि कृषि एवं संबंधित गतिविधियों में केवल 53बजटीय राशि खर्च की गई। कैग ने गौर किया कि 57 विभागों की 251 योजनाओं में राज्य सरकार ने 2020-21 में कोई खर्च नहीं किया। इन योजनाओं के लिए कम से कम एक करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान था और 50,617 करोड़ रुपए का संचित आबंटन था। इन योजनाओं में बुंदेलखंड/विंध्य में पाइप पेयजल योजना और पेंशन देनदारियों का विभाजन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 2020-21 में फंड्स को पूरी तरह से इस्तेमाल न करने के कारण होने वाली कुल बचत, कुल बजट प्रावधानों का 27.28% थी। कैग ने गौर किया कि 2016 और 2021 के बीच बजटीय प्रावधानों में वृद्धि हुई। हालांकि बजट प्रावधानों का उपयोग 2018-19 और 2020-21 के बीच कम हो गया।

व्यय की प्रवृत्तियांकैग ने गौर किया कि 12 विभागों के मामले में वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने मार्च 2021 में 50% से अधिक खर्च किया गया था। नागरिक उड्डयन विभाग में 89खर्च मार्च महीने में किया गया जबकि समाज कल्याण विभाग (विकलांगों और पिछड़ा वर्ग के कल्याण हेतु) में यह आंकड़ा 62% था। कैग ने कहा कि सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन के तहत स्थिर गति से व्यय किया जाना चाहिए जोकि एक अच्छी पद्धति होती है। हालांकि उत्तर प्रदेश के बजट मैनुअल में इस तरह एक साथ ढेर सारे खर्चे को रोकने के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं हैं। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार वित्तीय वर्ष के अंतिम महीनों में एकाएक इतने खर्च को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकती है।  

घाटे और ऋण का प्रबंधन: कोविड-19 के असर को कम करने लिए जून 2020 में एक अध्यादेश जारी किया गया ताकि 2020-21 के लिए राजकोषीय घाटे की सीमा को जीएसडीपी के 3% से बढ़ाकर 5% किया जा सके। राजकोषीय घाटा वर्ष में व्यय और प्राप्तियों के बीच का अंतर होता है और इस अंतर को उधारियों के जरिए पूरा किया जाता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित उत्तर प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट, 2004 (एफआरबीएम एक्ट) में ऋण और घाटों की अधिकतम सीमा निर्दिष्ट की गई है। 

2020 के अध्यादेश में राज्य सरकार को बजट व्यय को सतत बनाए रखने के लिए अधिक उधार लेने की अनुमति दी गई है। 2020-21 में राज्य का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.20% था जोकि संशोधित सीमा के भीतर था। दूसरी तरफ 2020-21 में जीएसडीपी पर राज्य का बकाया कर्ज जीएसडीपी का 32.77% थाजो एफआरबीएम एक्ट के तहत निर्धारित 32% के लक्ष्य से अधिक था। बकाया ऋण कई वर्षों का संचित ऋण होता है।

तालिका 1बजट अनुमानों की तुलना में 2020-21 में उत्तर प्रदेश का व्यय (करोड़ रुपए में) 

मद

2020-21 बअ

2020-21 वास्तविक

बअ से वास्तविक में परिवर्तन का 

शुद्ध प्राप्तियां (1+2)

4,24,767

2,97,311

-30%

1. राजस्व प्राप्तियां (क+ख+ग+घ)

4,22,567

2,96,176

-30%

क. स्वयं कर राजस्व

1,58,413

1,19,897

-24%

. स्वयं गैर कर राजस्व

31,179

11,846

-62%

. केंद्रीय करों में हिस्सा

1,52,863

1,06,687

-30%

. केंद्र से सहायतानुदान

80,112

57,746

-28%

     जिसमें से जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान

7,608

9,381

23%

2. गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां

2,200

1,135

-48%

3. उधारियां

75,791

86,859

15%

      जिसमें से जीएसटी क्षतिपूर्ति ऋण

-

6,007

-

शुद्ध व्यय (4+5+6)

4,77,963

3,51,933

-26%

4. राजस्व व्यय

3,95,117

2,98,543

-24%

5. पूंजीगत परिव्यय

81,209

52,237

-36%

6. ऋण और एडवांस

1,637

1,153

-30%

7. ऋण पुनर्भुगतान

34,897

26,777

-23%

राजस्व संतुलन

27,451

-2,367

-109%

राजस्व संतुलन (जीएसडीपी का %) 

1.53%

-0.14%

 

राजकोषीय घाटा

53,195

54,622

3%

राजकोषीय घाटा (जीएसडीपी का %)

2.97%

3.20%

 

नोटनेगेटिव राजस्व संतुलन घाटा दर्शाता है। 2022-23 के बजट में 2020-21 के लिए उत्तर प्रदेश द्वारा दर्ज वास्तविक राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 2.8% था। यह अंतर राज्य द्वारा दर्ज उच्च जीएसडीपी आंकड़े के कारण था।
स्रोत: विभिन्न वर्षों के उत्तर प्रदेश बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की वित्तीय स्थिति

सरकार विभिन्न क्षेत्रों में वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) की स्थापना करती है। 31 मार्च, 2021 तक उत्तर प्रदेश में 115 पीएसयूज़ थे। कैग ने 30 पीएसयूज़ के प्रदर्शनों का विश्लेषण किया। 38 पीएसयूज़ में से 22 कंपनियों ने 2020-21 में 700 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया जबकि 16 कंपनियों को 7,411 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। उल्लेखनीय है कि 2018-19 के बाद से घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या और नुकसान की मात्रा दोनों में कमी आई है। 2018-19 में, 20 सार्वजनिक उपक्रमों ने 15,219 करोड़ रुपए का नुकसान दर्ज किया था। 

रेखाचित्र 1: उत्तर प्रदेश के पीएसयूज़ का संचित घाटा 
  image

स्रोतकैग; पीआरएस।

बिजली क्षेत्र के पीएसयूज़ का घाटाबिजली क्षेत्र के तीन पीएसयूज़- उत्तर प्रदेश विद्युत निगम लिमिटेड, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड- सबसे ज्यादा घाटे वाले पीएसयूज़ में शीर्ष पर हैं। उपरिलिखित कुल 7,411 करोड़ रुपए के नुकसान में इन तीन पीएसयूज़ का हिस्सा 73% है। उल्लेखनीय है कि जून 2022 तक, बिजली आपूर्ति की हर यूनिट पर उत्तर प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को जो राजस्व प्राप्त हुआ, वह आपूर्ति की लागत से 27 पैसे कम है। राष्ट्रीय स्तर पर 34 पैसे प्रति यूनिट के अंतर से यह अंतर बेहतर है। हालांकि उत्तर प्रदेश के डिस्कॉम्स का कुल तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा (एटीएंडसी) 27.85है जोकि 17.19% के राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। एटीएंडसी घाटा, डिस्कॉम्स द्वारा बिजली आपूर्ति का वह अनुपात होता है जिसके लिए उसे कोई भुगतान प्राप्त नहीं होता। 

ऑफ-बजट उधारियां: कैग ने यह भी गौर किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले पीएसयू/अथॉरिटीज़ के जरिए ऑफ-बजट उधारियों का सहारा लिया। ऑफ-बजट उधारियां राज्य सरकार के ऋण में शामिल नहीं होतीं और संबंधित पीएसयू/अथॉरिटीज़ के बही खातों में दर्ज होती हैं, जबकि राज्य सरकार वह ऋण चुकाती है। नतीजतन, बजट में दर्ज बकाया ऋण राज्य की वास्तविक ऋण स्थिति का प्रदर्शन नहीं करता। कैग ने 1,637 करोड़ रुपए की ऑफ-बजट उधारी को चिन्हित किया है। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को अतिरिक्त बजट उधारियों से बचना चाहिए। उसे राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों/प्राधिकारियों द्वारा लिए गए सभी ऋणों को राज्य सरकार के खातों में जमा करना चाहिए।

रिजर्व फंड्स का प्रबंधन

भारतीय रिजर्व बैंक राज्य सरकारों की तरफ से दो रिजर्व फंड्स (आरक्षित निधियों) का प्रबंधन करता है। इन फंड्स को राज्य सरकार की देनदारियों को पूरा करने के लिए बनाया गया है। ये फंड्स निम्नलिखित हैं: (i) कंसोलिडेटेड सिंकिंग फंड (सीएसएफ), और (ii) गारंटी रिडेम्पशन फंड (जीआरएफ)। वे राज्य सरकारों द्वारा किए गए योगदान से वित्त पोषित हैं। सीएसएफ एक परिशोधन निधि है जिसका उपयोग सरकार के पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने के लिए किया जाता है। परिशोधन का तात्पर्य नियमित किश्तों के माध्यम से ऋण के भुगतान से है। फंड में जमा ब्याज का उपयोग बकाया देनदारियों के पुनर्भुगतान के लिए किया जाता है (जो कि एक वित्तीय वर्ष के अंत में कुल उधारियों का संचय है और इसमें सार्वजनिक खाते पर किसी भी किस्म की देनदारियां भी शामिल हैं)।

12वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने मार्च 2020 में सीएसएफ बनाया था। राज्य सरकार पिछले वर्ष के अंत में अपनी बकाया देनदारियों का कम से कम 0.5% सीएसएफ को हस्तांतरित कर सकती है। कैग ने गौर किया कि 2020-21 में उत्तर प्रदेश ने सीएसएफ को केवल 1,000 करोड़ रुपए दिए जबकि आवश्यकता 2,454 करोड़ रुपए की थी। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बकाया देनदारियों का कम से कम 0.5% हर साल सीएसएफ में दिया जाए।

राज्यों द्वारा जीआरएफ की स्थापना गारंटी से संबंधित दायित्वों को पूरा करने के लिए की जाती है। राज्य सरकार अपने सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा लिए गए ऋणों पर गारंटी बढ़ा सकती है। गारंटी राज्य सरकार की आकस्मिक देनदारियां हैंक्योंकि कंपनी द्वारा चूक के मामले मेंपुनर्भुगतान का बोझ राज्य सरकार पर पड़ेगा। जीआरएफ का इस्तेमाल राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संस्थाओं की उधारी के संबंध में सरकार द्वारा दी गई गारंटियों के निपटान के लिए किया जा सकता है। 12वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्यों को जीआरएफ की स्थापना करनी चाहिए। इसे गारंटी फीस के जरिए वित्त पोषित किया जाता ताकि राज्यों को अचानक अपनी गारंटी को पूरा करने में मदद मिलती। कैग ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जीआरएफ की स्थापना नहीं की। इसके अतिरिक्त राज्य ने गारंटी देने के लिए कोई सीमा भी तय नहीं की है। उत्तर प्रदेश के 2022-23 के बजट के विश्लेषण के लिए कृपया देखें

6 जून, 2022 को इलेक्ट्रॉनिक और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम, 2021के ड्राफ्ट संशोधनों पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। आईटी नियमों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) के अंतर्गत 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था। मंत्रालय का कहना है कि व्यापक डिजिटल इकोसिस्टम में उभरती चुनौतियों और अंतराल के मद्देनजर नियमों में संशोधन की जरूरत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आईटी नियम, 2021 की संक्षिप्त पृष्ठभूमि दे रहे हैं और नियमों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तनों को स्पष्ट कर रहे हैं। 

आईटी नियम, 2021 की पृष्ठभूमि

आईटी एक्ट इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूज़र-जनरेटेड कंटेंट की लायबिलिटी से मुक्त करता है, अगर वे कुछ ड्यू डेलिजेंस (सम्यक उद्यम) की शर्तों को पूरा करते हैं। इंटरमीडियरीज़ ऐसी एंटिटीज़ को कहते हैं जोकि दूसरे लोगों की तरफ से डेटा को स्टोर या ट्रांसमिट करते हैं और इसमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेसेज़, सर्च इंजन्स और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं। आईटी नियम इंटरमीडियरीज़ के लिए ड्यू डेलिजेंस की शर्तों को निर्दिष्ट करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) यूजर्स को सेवाओं के यूसेज़ से जुड़े नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तें तथा स्थितियों के बारे में बताना, जिसमें यह बताना भी शामिल है कि किस प्रकार का कंटेट प्रतिबंधित हैं, (ii) अदालत या सरकार के आदेश पर कंटेट को तुरंत हटाना, (iii) नियमों के उल्लंघन के बारे में यूज़र की शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान करना, और (iv) अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ शर्तों के अंतर्गत इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना। नियम ऐसे फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए ऑनलाइन पब्लिशर्स अपने न्यूज और करंट अफेयर्स कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेट को रेगुलेट कर सकें। आईटी नियम 2021 के विश्लेषण के लिए कृपया यहां देखें

आईटी नियम 2021 में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन 

ड्राफ्ट संशोधनों में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताएं: 2021 के नियमों में यह अपेक्षित है कि इंटरमीडियरी अपनी सर्विस के एक्सेस या यूसेज के लिए नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट को पब्लिश करे। यूज़र्स किस प्रकार के कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर कर सकते हैं, नियमों में उनकी सीमाएं भी निर्दिष्ट की गई हैं। नियमों के तहत इंटरमीडियरीज़ के लिए यह जरूरी है कि वे अपने यूज़र्स को इन सीमाओं के बारे में सूचित करें प्रस्तावित संशोधनों में इंटरमीडियरीज़ की बाध्यताओं को व्यापक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल है: (i) नियमों और रेगुलेशंस, प्राइवेसी पॉलिसी और यूज़र एग्रीमेंट के साथ "अनुपालन सुनिश्चित करना"और (ii) "यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर न करने के लिए प्रेरित करना"।
     
  • प्रस्तावित संशोधनों में यह भी जोड़ा गया है कि इंटरमीडियरीज़ को ड्यू डेलिजेंस, प्राइवेसी और पारदर्शिता की उचित अपेक्षा के साथ सभी यूज़र्स तक अपनी सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए। इसके अतिरिक्त इंटरमीडियरीज़ को सभी यूज़र्स के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। मंत्रालय ने गौर किया कि ऐसे परिवर्तन जरूरी थे क्योंकि कई इंटरमीडियरीज़ ने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
     
  • शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षित है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत अधिकारी को निर्दिष्ट करें। मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे कई मामले हैं जहां इन अधिकारियों ने शिकायतों को संतोषजनक तरीके या निष्पक्षता से दूर नहीं किया। शिकायत अधिकारी के फैसलों से पीड़ित व्यक्ति को निवारण मांगने के लिए अदालतों में जाना पड़ता है। इसलिए ड्राफ्ट संशोधनों में अपील के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया है। शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार एक शिकायत अपीलीय कमिटी बनाएगी। इस कमिटी में एक चेयरपर्सन और अन्य सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए नियुक्त करेगी। अपील की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर कमिटी को उसका निस्तारण करना होगा। संबंधित इंटरमीडियरी को कमिटी के आदेश का पालन करना होगा। उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित संशोधन यूज़र्स को अदालतों से सीधा संपर्क करने से नहीं रोकते।
     
  • प्रतिबंधित कंटेट को तुरंत हटाना: 2021 के नियमों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की गई है कि वे नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को 24 घंटे के भीतर स्वीकार करेंगे और 15 दिनों के भीतर उनका निस्तारण करेंगे। प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि प्रतिबंधित कंटेंट को हटाने से संबंधित शिकायत को 72 घंटे में दूर किया जाना चाहिए। मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट पर किसी कंटेंट के वायरल होने की संभावना को देखते हुए समय सीमा को और कड़ा करने से प्रतिबंधित कंटेंट को तेजी से हटाने में मदद मिलेगी। 

ड्राफ्ट संशोधनों पर टिप्पणियां 6 जुलाई, 2022 तक आमंत्रित हैं।