हाल ही में भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए उत्तर प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश की। पिछले महीने 26 मई को उत्तर प्रदेश का बजट (2022-23) पेश किया गया था और उसके साथ 2020-21 के व्यय और प्राप्तियों की ऑडिट रिपोर्ट जारी की गई। वर्ष 2020-21 में राज्यों के लिए दोहरी चुनौती थी। एक चुनौती, कोविड-19 महामारी के असर और लॉकडाउन के कारण पैदा हुई थी, तो दूसरी यह थी कि राजस्व की कमी और प्रभावित लोगों की मदद करने और आर्थिक बहाली के लिए अधिक खर्च पड़ेगा। कैग ने कहा कि 2020-21 में उत्तर प्रदेश की जीएसडीपी में 1.05% की वृद्धि हुई जबकि 2019-20 में इसमें 6.5% की बढ़ोतरी हुई थी। राज्य ने 2006-07 से लगातार 14 वर्ष राजस्व अधिशेष दर्ज करने के बाद 2020-21 में 2,367 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा दर्ज किया था। राजस्व व्यय के राजस्व प्राप्तियों से अधिक होने पर राजस्व घाटा होता है। इस ब्लॉग में हम 2020-21 में उत्तर प्रदेश की वित्तीय स्थिति की मुख्य प्रवृत्तियों और राज्य के वित्तीय प्रबंधन पर कैग के कुछ निष्कर्षों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
2020-21 में खर्च और घाटे
सामान्य से कम खर्च करना (अंडरस्पेंडिंग): 2020-21 में राज्य का कुल खर्च, फरवरी 2020 में प्रस्तुत बजट अनुमान से 26% कम रहा। जलापूर्ति और सैनिटेशन जैसे क्षेत्रों में वास्तविक व्यय बजटीय राशि से 60% कम था, जबकि कृषि एवं संबंधित गतिविधियों में केवल 53% बजटीय राशि खर्च की गई। कैग ने गौर किया कि 57 विभागों की 251 योजनाओं में राज्य सरकार ने 2020-21 में कोई खर्च नहीं किया। इन योजनाओं के लिए कम से कम एक करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान था और 50,617 करोड़ रुपए का संचित आबंटन था। इन योजनाओं में बुंदेलखंड/विंध्य में पाइप पेयजल योजना और पेंशन देनदारियों का विभाजन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 2020-21 में फंड्स को पूरी तरह से इस्तेमाल न करने के कारण होने वाली कुल बचत, कुल बजट प्रावधानों का 27.28% थी। कैग ने गौर किया कि 2016 और 2021 के बीच बजटीय प्रावधानों में वृद्धि हुई। हालांकि बजट प्रावधानों का उपयोग 2018-19 और 2020-21 के बीच कम हो गया।
व्यय की प्रवृत्तियां: कैग ने गौर किया कि 12 विभागों के मामले में वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने मार्च 2021 में 50% से अधिक खर्च किया गया था। नागरिक उड्डयन विभाग में 89% खर्च मार्च महीने में किया गया जबकि समाज कल्याण विभाग (विकलांगों और पिछड़ा वर्ग के कल्याण हेतु) में यह आंकड़ा 62% था। कैग ने कहा कि सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन के तहत स्थिर गति से व्यय किया जाना चाहिए जोकि एक अच्छी पद्धति होती है। हालांकि उत्तर प्रदेश के बजट मैनुअल में इस तरह एक साथ ढेर सारे खर्चे को रोकने के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं हैं। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार वित्तीय वर्ष के अंतिम महीनों में एकाएक इतने खर्च को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकती है।
घाटे और ऋण का प्रबंधन: कोविड-19 के असर को कम करने लिए जून 2020 में एक अध्यादेश जारी किया गया ताकि 2020-21 के लिए राजकोषीय घाटे की सीमा को जीएसडीपी के 3% से बढ़ाकर 5% किया जा सके। राजकोषीय घाटा वर्ष में व्यय और प्राप्तियों के बीच का अंतर होता है और इस अंतर को उधारियों के जरिए पूरा किया जाता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित उत्तर प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट, 2004 (एफआरबीएम एक्ट) में ऋण और घाटों की अधिकतम सीमा निर्दिष्ट की गई है।
2020 के अध्यादेश में राज्य सरकार को बजट व्यय को सतत बनाए रखने के लिए अधिक उधार लेने की अनुमति दी गई है। 2020-21 में राज्य का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.20% था जोकि संशोधित सीमा के भीतर था। दूसरी तरफ 2020-21 में जीएसडीपी पर राज्य का बकाया कर्ज जीएसडीपी का 32.77% था, जो एफआरबीएम एक्ट के तहत निर्धारित 32% के लक्ष्य से अधिक था। बकाया ऋण कई वर्षों का संचित ऋण होता है।
तालिका 1: बजट अनुमानों की तुलना में 2020-21 में उत्तर प्रदेश का व्यय (करोड़ रुपए में)
मद |
2020-21 बअ |
2020-21 वास्तविक |
बअ से वास्तविक में परिवर्तन का % |
शुद्ध प्राप्तियां (1+2) |
4,24,767 |
2,97,311 |
-30% |
1. राजस्व प्राप्तियां (क+ख+ग+घ) |
4,22,567 |
2,96,176 |
-30% |
क. स्वयं कर राजस्व |
1,58,413 |
1,19,897 |
-24% |
ख. स्वयं गैर कर राजस्व |
31,179 |
11,846 |
-62% |
ग. केंद्रीय करों में हिस्सा |
1,52,863 |
1,06,687 |
-30% |
घ. केंद्र से सहायतानुदान |
80,112 |
57,746 |
-28% |
जिसमें से जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान |
7,608 |
9,381 |
23% |
2. गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां |
2,200 |
1,135 |
-48% |
3. उधारियां |
75,791 |
86,859 |
15% |
जिसमें से जीएसटी क्षतिपूर्ति ऋण |
- |
6,007 |
- |
शुद्ध व्यय (4+5+6) |
4,77,963 |
3,51,933 |
-26% |
4. राजस्व व्यय |
3,95,117 |
2,98,543 |
-24% |
5. पूंजीगत परिव्यय |
81,209 |
52,237 |
-36% |
6. ऋण और एडवांस |
1,637 |
1,153 |
-30% |
7. ऋण पुनर्भुगतान |
34,897 |
26,777 |
-23% |
राजस्व संतुलन |
27,451 |
-2,367 |
-109% |
राजस्व संतुलन (जीएसडीपी का %) |
1.53% |
-0.14% |
|
राजकोषीय घाटा |
53,195 |
54,622 |
3% |
राजकोषीय घाटा (जीएसडीपी का %) |
2.97% |
3.20% |
नोट: नेगेटिव राजस्व संतुलन घाटा दर्शाता है। 2022-23 के बजट में 2020-21 के लिए उत्तर प्रदेश द्वारा दर्ज वास्तविक राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 2.8% था। यह अंतर राज्य द्वारा दर्ज उच्च जीएसडीपी आंकड़े के कारण था।
स्रोत: विभिन्न वर्षों के उत्तर प्रदेश बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।
राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की वित्तीय स्थिति
सरकार विभिन्न क्षेत्रों में वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़) की स्थापना करती है। 31 मार्च, 2021 तक उत्तर प्रदेश में 115 पीएसयूज़ थे। कैग ने 30 पीएसयूज़ के प्रदर्शनों का विश्लेषण किया। 38 पीएसयूज़ में से 22 कंपनियों ने 2020-21 में 700 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया जबकि 16 कंपनियों को 7,411 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। उल्लेखनीय है कि 2018-19 के बाद से घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या और नुकसान की मात्रा दोनों में कमी आई है। 2018-19 में, 20 सार्वजनिक उपक्रमों ने 15,219 करोड़ रुपए का नुकसान दर्ज किया था।
रेखाचित्र 1: उत्तर प्रदेश के पीएसयूज़ का संचित घाटा
स्रोत: कैग; पीआरएस।
बिजली क्षेत्र के पीएसयूज़ का घाटा: बिजली क्षेत्र के तीन पीएसयूज़- उत्तर प्रदेश विद्युत निगम लिमिटेड, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड- सबसे ज्यादा घाटे वाले पीएसयूज़ में शीर्ष पर हैं। उपरिलिखित कुल 7,411 करोड़ रुपए के नुकसान में इन तीन पीएसयूज़ का हिस्सा 73% है। उल्लेखनीय है कि जून 2022 तक, बिजली आपूर्ति की हर यूनिट पर उत्तर प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को जो राजस्व प्राप्त हुआ, वह आपूर्ति की लागत से 27 पैसे कम है। राष्ट्रीय स्तर पर 34 पैसे प्रति यूनिट के अंतर से यह अंतर बेहतर है। हालांकि उत्तर प्रदेश के डिस्कॉम्स का कुल तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा (एटीएंडसी) 27.85% है जोकि 17.19% के राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। एटीएंडसी घाटा, डिस्कॉम्स द्वारा बिजली आपूर्ति का वह अनुपात होता है जिसके लिए उसे कोई भुगतान प्राप्त नहीं होता।
ऑफ-बजट उधारियां: कैग ने यह भी गौर किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले पीएसयू/अथॉरिटीज़ के जरिए ऑफ-बजट उधारियों का सहारा लिया। ऑफ-बजट उधारियां राज्य सरकार के ऋण में शामिल नहीं होतीं और संबंधित पीएसयू/अथॉरिटीज़ के बही खातों में दर्ज होती हैं, जबकि राज्य सरकार वह ऋण चुकाती है। नतीजतन, बजट में दर्ज बकाया ऋण राज्य की वास्तविक ऋण स्थिति का प्रदर्शन नहीं करता। कैग ने 1,637 करोड़ रुपए की ऑफ-बजट उधारी को चिन्हित किया है। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को अतिरिक्त बजट उधारियों से बचना चाहिए। उसे राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों/प्राधिकारियों द्वारा लिए गए सभी ऋणों को राज्य सरकार के खातों में जमा करना चाहिए।
रिजर्व फंड्स का प्रबंधन
भारतीय रिजर्व बैंक राज्य सरकारों की तरफ से दो रिजर्व फंड्स (आरक्षित निधियों) का प्रबंधन करता है। इन फंड्स को राज्य सरकार की देनदारियों को पूरा करने के लिए बनाया गया है। ये फंड्स निम्नलिखित हैं: (i) कंसोलिडेटेड सिंकिंग फंड (सीएसएफ), और (ii) गारंटी रिडेम्पशन फंड (जीआरएफ)। वे राज्य सरकारों द्वारा किए गए योगदान से वित्त पोषित हैं। सीएसएफ एक परिशोधन निधि है जिसका उपयोग सरकार के पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने के लिए किया जाता है। परिशोधन का तात्पर्य नियमित किश्तों के माध्यम से ऋण के भुगतान से है। फंड में जमा ब्याज का उपयोग बकाया देनदारियों के पुनर्भुगतान के लिए किया जाता है (जो कि एक वित्तीय वर्ष के अंत में कुल उधारियों का संचय है और इसमें सार्वजनिक खाते पर किसी भी किस्म की देनदारियां भी शामिल हैं)।
12वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने मार्च 2020 में सीएसएफ बनाया था। राज्य सरकार पिछले वर्ष के अंत में अपनी बकाया देनदारियों का कम से कम 0.5% सीएसएफ को हस्तांतरित कर सकती है। कैग ने गौर किया कि 2020-21 में उत्तर प्रदेश ने सीएसएफ को केवल 1,000 करोड़ रुपए दिए जबकि आवश्यकता 2,454 करोड़ रुपए की थी। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बकाया देनदारियों का कम से कम 0.5% हर साल सीएसएफ में दिया जाए।
राज्यों द्वारा जीआरएफ की स्थापना गारंटी से संबंधित दायित्वों को पूरा करने के लिए की जाती है। राज्य सरकार अपने सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा लिए गए ऋणों पर गारंटी बढ़ा सकती है। गारंटी राज्य सरकार की आकस्मिक देनदारियां हैं, क्योंकि कंपनी द्वारा चूक के मामले में, पुनर्भुगतान का बोझ राज्य सरकार पर पड़ेगा। जीआरएफ का इस्तेमाल राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संस्थाओं की उधारी के संबंध में सरकार द्वारा दी गई गारंटियों के निपटान के लिए किया जा सकता है। 12वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्यों को जीआरएफ की स्थापना करनी चाहिए। इसे गारंटी फीस के जरिए वित्त पोषित किया जाता ताकि राज्यों को अचानक अपनी गारंटी को पूरा करने में मदद मिलती। कैग ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जीआरएफ की स्थापना नहीं की। इसके अतिरिक्त राज्य ने गारंटी देने के लिए कोई सीमा भी तय नहीं की है। उत्तर प्रदेश के 2022-23 के बजट के विश्लेषण के लिए कृपया देखें।
जुलाई में राष्ट्रपति के रूप में श्री रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि इस हफ्ते भारतीय निर्वाचन आयोग चुनावों की तारीख को अधिसूचित कर देगा। इसके मद्देनजर हम बता रहे हैं कि भारत अपने अगले राष्ट्रपति का चुनाव कैसे करेगा।
देश के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति संसद का अहम हिस्सा होता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संसद के दोनों सदनों का सत्र बुलाता है। लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कोई भी बिल तब तक कानून नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति की अनुमति न हो। इसके अतिरिक्त जब संसद सत्र में नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास अध्यादेश के जरिए तत्काल प्रभाव से किसी कानून पर दस्तखत करने की शक्ति होती है।
राष्ट्रपति कौन चुनता है?
राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका संविधान के अनुच्छेद 55 में दिया गया है। दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित संसद और विधानसभाओं के सदस्यों (सांसद और विधायक) का एक इलेक्टोरल कॉलेज होता है जो राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है। कम से कम 50 इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव देते हैं (प्रस्तावक) और 50 दूसरे इलेक्टर उसे अपना अनुमोदन देते हैं (अनुमोदक)। इसके बाद वह व्यक्ति राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। विधान परिषदों के सदस्य और राज्यसभा के 12 मनोनीत सदस्य मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।
प्रस्तावकों और अनुमोदकों का इतिहास एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव दें, यह प्रथा पहले पांच राष्ट्रपति चुनावों के बाद शुरू हुई। तब यह बहुत आम बात थी कि बहुत से उम्मीदवार चुनाव में खड़े हो जाते थे, जबकि उनके चुने जाने की संभावना बहुत कम होती थी। 1967 के राष्ट्रपति चुनावों में 17 उम्मीदवार खड़े हुए लेकिन उनमें से नौ को एक भी वोट नहीं मिला। ऐसा 1969 के चुनावों में भी हुआ, जब 15 उम्मीदवारों में से पांच को एक भी वोट नहीं मिला। इस प्रथा को निरुत्साहित करने के लिए 1974 से यह नियम बनाया गया कि उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा होने के लिए कम से कम 10 प्रस्तावकों और 10 अनुमोदकों की जरूरत होगी। इसके अलावा 2,500 रुपए के अनिवार्य सिक्योरिटी डिपॉजिट को भी शुरू किया गया। ये परिवर्तन राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय चुनाव एक्ट, 1952 में संशोधनों के जरिए लाए गए। 1997 में एक्ट में फिर संशोधन किया गया। इन संशोधनों में सिक्योरिटी डिपॉजिट को बढ़ाकर 15,000 रुपए और प्रस्तावकों तथा अनुमोदकों, प्रत्येक की संख्या 50 कर दी गई है। |
मतों की गणना कैसे होती है?
राष्ट्रपति चुनाव में मतों की गणना के लिए विशेष वोटिंग का इस्तेमाल किया जाता है। सांसदों और विधायकों को अलग-अलग वोटिंग वेटेज दिया जाता है। प्रत्येक विधायक की वोट वैल्यू उसके राज्य की जनसंख्या और विधायकों की संख्या के आधार पर निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक की वैल्यू 208 होगी और सिक्किम की विधायक की 7 (देखें तालिका 1)। चूंकि संवैधानिक संशोधन 2002 में पारित किया गया था इसलिए राज्य की जनसंख्या की गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है। देश भर में विधायकों के सभी वोटों के योग को निर्वाचित सांसदों की संख्या से विभाजित करने पर एक सांसद के वोट की वैल्यू मिलती है।
2022 में गणित क्या होगा?
2017 के राष्ट्रपति चुनावों में 31 राज्यों तथा दिल्ली और पुद्दूचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के इलेक्टर्स ने हिस्सा लिया था। लेकिन 2019 में जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन एक्ट के साथ राज्यों की संख्या घटकर 30 रह गई है। एक्ट के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा भंग कर दी गई और जम्मू एवं कश्मीर यूटी के लिए एक नई विधायिका का गठन होना अभी बाकी है। राष्ट्रपति चुनावों के इलेक्टोरल कॉलेज में पहले विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया जाता था। 1992 में संविधान में संशोधन किया गया ताकि दिल्ली और पुद्दूचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें खास तौर से शामिल किया जा सके। उल्लेखनीय है कि जम्मू एवं कश्मीर के विधायक भविष्य में राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा ले सकें, इसके लिए संसद में एक ऐसा ही संवैधानिक संशोधन पारित करना होगा।
इस अनुमान के आधार पर कि जम्मू एवं कश्मीर 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में शामिल नहीं है, इन चुनावों में विधायकों के वोटों की कुल संख्या को समायोजित किया जाएगा। कुल 4,120 विधायकों की संख्या से जम्मू एवं कश्मीर के 87 विधायकों को हटा दिया दिया जाना चाहिए। जम्मू और कश्मीर के वोट शेयर 6,264 को भी कुल वोट शेयर 549,495 से कम किया जाना चाहिए। इन परिवर्तनों को समायोजित करने के बाद, 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में 4,033 विधायक भाग लेंगे और सभी विधायकों का संयुक्त वोट शेयर 5,43,231 होगा।
तालिका 1: 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में विभिन्न राज्यों के निर्वाचित विधायकों के वोटों की वैल्यू
राज्य का नाम |
विधानसभा सीटों की संख्या |
जनसंख्या (1971 जनगणना) |
प्रत्येक विधायक के वोट की वैल्यू |
राज्य के वोटों की कुल वैल्यू (ग x घ) |
क |
ख |
ग |
घ |
ङ |
आंध्र प्रदेश |
175 |
2,78,00,586 |
159 |
27,825 |
अरुणाचल प्रदेश |
60 |
4,67,511 |
8 |
480 |
असम |
126 |
1,46,25,152 |
116 |
14,616 |
बिहार |
243 |
4,21,26,236 |
173 |
42,039 |
छत्तीसगढ़ |
90 |
1,16,37,494 |
129 |
11,610 |
गोवा |
40 |
7,95,120 |
20 |
800 |
गुजरात |
182 |
2,66,97,475 |
147 |
26,754 |
हरियाणा |
90 |
1,00,36,808 |
112 |
10,080 |
हिमाचल प्रदेश |
68 |
34,60,434 |
51 |
3,468 |
जम्मू और कश्मीर |
87 |
63,00,000 |
72 |
6,264 |
झारखंड |
81 |
1,42,27,133 |
176 |
14,256 |
कर्नाटक |
224 |
2,92,99,014 |
131 |
29,344 |
केरल |
140 |
2,13,47,375 |
152 |
21,280 |
मध्य प्रदेश |
230 |
3,00,16,625 |
131 |
30,130 |
महाराष्ट्र |
288 |
5,04,12,235 |
175 |
50,400 |
मणिपुर |
60 |
10,72,753 |
18 |
1,080 |
मेघालय |
60 |
10,11,699 |
17 |
1,020 |
मिजोरम |
40 |
3,32,390 |
8 |
320 |
नगालैंड |
60 |
5,16,449 |
9 |
540 |
ओड़िशा |
147 |
2,19,44,615 |
149 |
21,903 |
पंजाब |
117 |
1,35,51,060 |
116 |
13,572 |
राजस्थान |
200 |
2,57,65,806 |
129 |
25,800 |
सिक्किम |
32 |
2,09,843 |
7 |
224 |
तमिलनाडु |
234 |
4,11,99,168 |
176 |
41,184 |
तेलंगाना |
119 |
1,57,02,122 |
132 |
15,708 |
त्रिपुरा |
60 |
15,56,342 |
26 |
1,560 |
उत्तराखंड |
70 |
44,91,239 |
64 |
4,480 |
उत्तर प्रदेश |
403 |
8,38,49,905 |
208 |
83,824 |
पश्चिम बंगाल |
294 |
4,43,12,011 |
151 |
44,394 |
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली |
70 |
40,65,698 |
58 |
4,060 |
पुद्दूचेरी |
30 |
4,71,707 |
16 |
480 |
कुल |
4,120 |
54,93,02,005 |
5,49,495 |
स्रोत: भारतीय निर्वाचन आयोग (2017); पीआरएस।
एक सांसद के वोट की वैल्यू 2017 में 708 से घटकर 2022 में 700 हो जाएगी।
सांसद के वोट की वैल्यू = विधायकों के सभी वोट्स की कुल वैल्यू = 543231 = 700
निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या 776
उल्लेखनीय है कि सांसदों के वोट की वैल्यू को सबसे करीबी होल नंबर में राउंड ऑफ कर दिया जाता है (यानी उसे पूर्णांक बना दिया जाता है)। इससे सभी सांसदों के वोटों की कंबाइंड वैल्यू 543,200 (700 x 776) हो जाती है।
जीतने के लिए कितने वोट्स की जरूरत होती है?
राष्ट्रपति पद का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली के जरिए किया जाता है। इस प्रणाली में इलेक्टर्स वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं। कोई उम्मीदवार तब विजेता होता है जब उसे वैध वोटों की कुल वैल्यू का आधे से अधिक हासिल हो। इसे कोटा कहा जाता है।
कल्पना कीजिए कि हर इलेक्टर वोट देता है और हर वोट वैध होता है:
कोटा = सांसदों के वोट्स की कुल वैल्यू + विधायकों के वोट्स की कुल वैल्यू + 1
2
= 543200 + 543231 +1 = 1086431 +1 = 543,216
2 2
दलबदल विरोधी कानून जोकि सांसदों को दलगत विचारधारा से इतर जाने से रोकता है, वह राष्ट्रपति चुनावों पर लागू नहीं होता। इसका मतलब यह है कि सांसद और विधायक अपन बैलेट गुप्त रख सकते हैं।
वोटों की गिनती राउंट्स में होती है। पहले राउंड में गिने जाने वाले हर बैलेट पर पहला प्रिफरेंस लिखा जाता है। अगर किसी उम्मीदवार को इस चरण में कोटा मिलता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को कोटा नहीं मिलता तो दूसरे राउंड की गिनती शुरू हो जाती है। जिस उम्मीदवार को पहले राउंड में सबसे कम वोट मिले थे, इस राउंड में उसके वोट ट्रांसफर हो जाते हैं। यानी ये वोट अब उस उम्मीदवार को चले जाते हैं जिसे हर बैलेट में दूसरा प्रिफरेंस मिला था। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक सिर्फ एक उम्मीदवार रह जाता है। यह जरूरी नहीं है कि कोई इलेक्टर सभी उम्मीदवारों के लिए अपने प्रिफरेंस बताए। अगर बैलेट में कोई दूसरा प्रिफरेंस नहीं बताया गया है तो बैलेट को दूसरे राउंड में एग्जॉस्टेड बैलेट माना जाएगा और आगे गिनती में वह शामिल नहीं होगा।
पांचवे राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें श्री वी.वी. गिरी को चुना गया था, वह अकेला अवसर था जब किसी उम्मीदवार ने पहले राउंड में कोटा हासिल नहीं किया था। फिर दूसरे फ्रिफरेंस वोट्स का मूल्यांकन किया गया था और श्री गिरी को 8,36,337 में से 4,20,077 मिले थे और वह राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए थे।
भारत के अकेले राष्ट्रपति जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल की भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी (1977-1982) अकेले राष्ट्रपति थे जिन्हें निर्विरोध चुना गया था। 1977 के चुनावों में 37 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन भरे थे, लेकिन छानबीन करने पर 36 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज कर दिए और श्री रेड्डी एकमात्र उम्मीदवार बचे थे। |