
The protests against the nuclear power plant at Kudankulam have intensified over the recent weeks. The Kudankulam plant is expected to provide 2 GW of electricity annually. However, activists concerned about the risks of nuclear energy are demanding that the plant be shut down. The safety of nuclear power plants is a technical matter. In this blog post we discuss the present mechanism to regulate nuclear energy and the legislative proposals to amend this mechanism. Atomic materials and atomic energy are governed by the Atomic Energy Act, 1962. The Act empowers the central government to produce, develop and use atomic energy. At present, nuclear safety is regulated by the Atomic Energy Regulatory Board (AERB). Some of the drawbacks of the present mechanism are discussed below. Key issues under the present nuclear safety regulatory mechanism The AERB is not empowered to operate as an independent operator. The AERB was established by the government through a notification and not through an Act of Parliament. Its powers and functions are therefore amendable by the Department of Atomic Energy through executive orders. The parliamentary oversight exercised upon such executive action is lower than the parliamentary oversight over statutes. [1. The executive action or the Rules are in force from the date of their notification. They are to be tabled before Parliament mandatorily. However, an executive action is discussed and put to vote in Parliament only if an objection is raised by a Member of Parliament. The executive orders may be reviewed by the committee on sub-ordinate legislation. However, this committee has to oversee a large volume of rules and regulations. For instance, there were 1264 statutory notifications that were tabled before the Rajya Sabha in 2011-12.] Furthermore, the Atomic Energy Commission that sets out the atomic energy policy, and oversees the functioning of the AERB, is headed by the Secretary, Department of Atomic Energy. This raises a conflict of interest, as the Department exercises administrative control over NPCIL that operates nuclear power plants. It is pertinent to note that various committee reports, including a CAG Report in 2011, had highlighted the drawbacks in the present regulatory mechanisms and recommended the establishment of a statutory regulator. A summary of the Report may be accessed here. Proposed mechanism Following the Fukushima nuclear incident in 2011, the Nuclear Safety Regulatory Authority Bill, 2011 was introduced in Parliament to replace the AERB. The Bill establishes the Nuclear Safety Regulatory Authority (NSRA) to regulate nuclear safety, and a Nuclear Safety Council to oversee nuclear safety policies that the NSRA issues. Under the Bill, all activities related to nuclear power and nuclear materials may only be carried out under a licence issued by the NSRA. Extent of powers and independence of the NSRA The Bill establishes the NSRA as a statutory authority that is empowered to issue nuclear safety policies and regulations. The Nuclear Safety Council established under the Bill to oversee these policies includes the Secretary, Department of Atomic Energy. The conflict of interest that exists under the present mechanism may thus continue under the proposed regulatory system. The Bill provides that members of the NSRA can be removed by an order of the central government without a judicial inquiry. This may affect the independence of the members of the NSRA. This process is at variance with enactments that establish other regulatory authorities such as TRAI and the Competition Commission of India. These enactments require a judicial inquiry prior to the removal of a member if it is alleged that he has acquired interest that is prejudicial to the functions of the authority. The proposed legislation also empowers the government to exclude strategic facilities from the ambit of the NSRA. The government can decide whether these facilities should be brought under the jurisdiction of another regulatory authority. These and other issues arising from the Bill are discussed here.
विश्व में सबसे तेजी से बढ़ते उड्डयन बाजारों में भारत का शुमार भी होता है। दक्षिण एशिया के कुल हवाई यातायात में भारत के घरेलू यातायात का हिस्सा 69% तक है। उम्मीद है कि 2030 तक भारत की हवाई क्षमता सालाना एक बिलियन यात्राओं की हो जाएगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय राष्ट्रीय उड्डयन नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने का काम करता है। हाल ही में लोकसभा में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के बजट पर चर्चा की गई। इसके मद्देनजर हम भारत के उड्डयन क्षेत्र के मुख्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
कोविड-19 महामारी के दौरान उड्डयन क्षेत्र पर गंभीर वित्तीय दबाव पड़ा था। मार्च 2020 में हवाई परिवहन के निरस्त होने के बाद भारत के एयरलाइन ऑपरेटरों को 19,500 करोड़ रुपए के मूल्य से अधिक का नुकसान हुआ जबकि हवाई अड्डों को 5,120 करोड़ रुपए मूल्य से अधिक का घाटा हुआ, हालांकि महामारी से पूर्व भी कई एयरलाइन कंपनियां वित्तीय तनाव में थीं। जैसे पिछले 15 वर्षों में 17 एयरलाइन कंपनियां बाजार से बाहर हो गईं। इनमें से दो एयरलाइंस, एयर ओड़िशा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और डेक्कन चार्टर्स प्राइवेट लिमिटेड 2020 में बाजार से बाहर हो गईं। एयर इंडिया को पिछले चार वर्षों से लगातार नुकसान हो रहा है। देश की दूसरी कई बड़ी निजी एयरलाइन्स जैसे इंडिगो और स्पाइस जेट को 2018-19 में घाटे उठाना पड़े हैं।
रेखाचित्र 1: भारत में प्रमुख एयरलाइन्स का परिचालनगत लाभ/घाटा (करोड़ रुपए में)
नोट: विस्तारा एयरलाइन्स ने 2015 से काम करना शुरू किया, जबकि एयर एशिया ने 2014 में; नेगेटिव वैल्यू परिचालनगत घाटे का संकेत देती है।
स्रोत: 4 अगस्त, 2021 को अतारांकित प्रश्न 1812 का उत्तर, और 21 सितंबर, 2020 को अतारांकित प्रश्न 1127 का उत्तर; राज्यसभा; पीआरएस।
एयर इंडिया की बिक्री
2011-12 से नागरिक उड्डयन मंत्रालय का सबसे अधिक व्यय एयर इंडिया पर हुआ है। 2009-10 और 2020-21 के बीच सरकार ने बजटीय आबंटनों के जरिए एयर इंडिया पर 1,22,542 करोड़ रुपए खर्च किए। अक्टूबर 2021 में टेलेस लिमिटेड को एयर इंडिया को बेचने को मंजूरी दी गई। यह टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड की सबसिडियरी है। एयर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ रुपए की बोली को अंतिम रूप दिया गया।
जनवरी 2020 तक एयर इंडिया पर 60,000 करोड़ रुपए मूल्य का संचित ऋण था। केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में इस ऋण को चुका रही है। बिक्री को अंतिम रूप देने के बाद सरकार ने एयर इंडिया से जुड़े खर्चों के लिए लगभग 71,000 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं।
ऋण पुनर्भुगतान के अतिरिक्त कोविड-19 के झटके से उबरने के लिए 2021-22 में सरकार एयर इंडिया को नया ऋण (4,500 करोड़ रुपए) और अनुदान (1,944 करोड़ रुपए) देगी। एयर इंडिया के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के मेडिकल लाभ का भुगतान करने के लिए केंद्र सरकार हर वर्ष 165 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
2022-23 में एआईएएचएल के ऋण को चुकाने के लिए 9,260 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं (देखें तालिका 1)। एआईएएचएल एक स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) है जिसे सरकार ने एयर इंडिया की बिक्री के दौरान उसके एसेट्स और देनदारियों को नियंत्रित करने के लिए बनाया है।
तालिका 1: एयर इंडिया के व्यय का ब्रेकअप (करोड़ रुपए में)
प्रमुख मद |
2020-21 वास्तविक |
2021-22 संअ |
2022-23 बअ |
2021-22 संअ से 2022-23 बअ में परिवर्तन का % |
एआईएएचएल में इक्विटी इंफ्यूजन |
- |
62,057 |
- |
-100% |
एआईएएचएल की ऋण चुकौती |
2,184 |
2,217 |
9,260 |
318% |
सेवानिवृत्त कर्मचारियों को मेडिकल लाभ |
- |
165 |
165 |
0% |
एयर इंडिया के ऋण |
- |
4,500 |
- |
-100% |
कोविड-19 के दौरान नकद नुकसान के लिए अनुदान |
- |
1,944 |
- |
-100% |
कुल |
2,184 |
70,883 |
9,425 |
-87% |
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; एएआई: भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी; एआईएएचएल – एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड; एआई – एयर इंडिया। प्रतिशत परिवर्तन संअ 2021-22 से बअ 2022-23 में है।
स्रोत: अनुदान मांग 2022-23, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
हवाईअड्डों का निजीकरण
देश में नागरिक उड्डयन से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने, उसे अपग्रेड करने, उसके रखरखाव और प्रबंधन का काम भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी (एएआई) के जिम्मे है। 23 जून, 2020 तक अथॉरिटी देश के 137 हवाईअड्डों का परिचालन और प्रबंधन करती थी। घरेलू हवाई यातायात 2013-14 में लगभग 61 मिलियन यात्रियों से दोगुने से भी ज्यादा होकर 2019-20 में लगभग 137 मिलियन हो गया। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय यात्री यातायात 2013-14 में 47 मिलियन से बढ़कर 2019-20 में करीब 67 मिलियन हो गया यानी हर वर्ष करीब 6% की वृद्धि दर्ज की गई। परिणाम के तौर पर भारतीय हवाईअड्डों पर भीड़भाड़ बढ़ रही है। अधिकतर बड़े हवाईअड्डे अपनी हैंडलिंग क्षमता से 85% से 120% पर काम कर रहे हैं। इस कारण सरकार ने भीड़भाड़ की समस्या को काबू में करने के लिए कुछ हवाईअड्डों के निजीकरण का फैसला लिया है।
एएआई ने अपने आठ हवाईअड्डों को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के जरिए लंबी अवधि की लीज पर दिया है। इसमें हवाईअड्डों का परिचालन, प्रबंधन और विकास शामिल है। इनमें से छह हवाईअड्डों, अहमदाबाद, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुअनंतपुरम और मैंगलुरू को 50 वर्षों के लिए मेसर्स अडानी इंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड (एईएल) को लीज़ पर दिया गया है (पीपीपी के अंतर्गत)। इन हवाईअड्डों का स्वामित्व एएआई के पास है और कनसेशन की अवधि पूरी होने के बाद इनका परिचालन एएआई के पास वापस चला जाएगा। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि सरकार के पास 2024 तक 24 पीपीपी हवाईअड्डे होने की उम्मीद है।
रेखाचित्र 2: एएआई के लिए आबंटन (करोड़ रुपए में)
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान; एएआई: भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी; आईईबीआर– आंतरिक और बजटेतर संसाधन; स्रोत: अनुदान मांग दस्तावेज, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
कमिटी ने हवाईअड्डों को कनसेशन पर देने के तरीके में संरचनागत मुद्दों पर गौर किया। अब तक जो कंपनियां सबसे बड़ी राशि की बोली लगाती हैं, उन्हें हवाईअड्डे के परिचालन का अधिकार दिया जाता है। इससे एयलाइन ऑपरेटर ज्यादा प्रभार वसूलते हैं। इस प्रणाली में सेवा की वास्तविक लागत पर ध्यान नहीं दिया जाता और एयरलाइन ऑपरेटरों की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी होती है। मंत्रालय मानता है कि भविष्य में नीतियों से संबंधित मुद्दों में एएआई की बड़ी भूमिका होगी जिसमें अच्छी क्वालिटी, सुरक्षित और ग्राहक अनुकूल हवाईअड्डे और एयर नैविगेशन सेवाएं प्रदान करना शामिल है। 2022-23 में सरकार ने एएआई को 150 करोड़ रुपए आबंटित किए जोकि 2021-22 के बजट अनुमानों से करीब दस गुना ज्यादा हैं।
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस-उड़ान)
देश के 15 प्रमुख हवाईड्डों में लगभग 83% कुल यात्री यातायात है। ये हवाईअड्डे अपनी सैचुरेशन लिमिट के बहुत करीब हैं और इसलिए मंत्रालय का कहना है कि टियर-II और टियर-III शहरों को अधिक संख्या में एविएशन नेटवर्क से जोड़ने की जरूरत है। क्षेत्रीय हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और आम लोगों के लिए हवाई यात्रा को सस्ता बनाने के लिए 2016 में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना को शुरू किया गया। 2016-17 से 2021-22 के दौरान पांच वर्षों के लिए इस योजना का बजट 4,500 करोड़ रुपए है। 16 दिसंबर, 2021 तक इसके लिए 46% राशि को जारी कर दिया गया है। 2022-23 में इस योजना के लिए 601 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया जोकि 2021-22 के संशोधित अनुमानों (994 करोड़ रुपए) से 60% कम है।
योजना के अंतर्गत एयरलाइन ऑपरेटर्स को वायबिलिटी गैप फंडिंग और हवाईअड्डों के शुल्क से छूट देकर अंडरसर्व्ड रूट्स में ऑपरेट करने को प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना की कार्यान्वयन एजेंसी एएआई ने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 948 रूट्स को मंजूरी दी है। 31 जनवरी, 2022 तक इनमें से 43% रूट्स को चालू कर दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार, भूमि की अनुपलब्धता और क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव के कारण योजना में विलंब हुआ है। इसके अलावा लाइसेंस हासिल करने से जुड़ी समस्याएं और मंजूर किए गए रूट्स का परिचालन लंबे समय तक कायम न रहना भी विलंब के कारणों में शामिल है। मंत्रालय के अनुसार, इन कारणों के अतिरिक्त महामारी के झटके ने भी धनराशि के कारगर उपयोग में रुकावट पैदा की है।
रेखाचित्र 3: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना पर व्यय (करोड़ रुपए में)
नोट: बअ – बजट अनुमान; संअ – संशोधित अनुमान।
स्रोत: अनुदान मांग दस्तावेज, नागरिक उड्डयन मंत्रालय; पीआरएस।
एयर कार्गों की क्षमता
परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि भौगोलिक स्थिति, बढ़ती अर्थव्यवस्था और पिछले दशक में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के कारण भारत के कार्गो उद्योग की क्षमता व्यापक है। 2019-20 में सभी भारतीय हवाईअड्डे मिलकर 3.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) माल की ढुलाई करते थे। यह हांगकांग (4.5 एमएमटी), मेम्फिस (4.8 एमएमटी) और शंघाई (3.7 एमएमटी) द्वारा की जाने वाली ढुलाई से काफी कम है जो माल ढुलाई की मात्रा के मामले में शीर्ष तीन हवाईअड्डे हैं। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि देश के हवाई कार्गो क्षेत्र के विकास की सबसे बड़ी रुकावट इंफ्रास्ट्रक्चर का पर्याप्त न होना है। इन रुकावटों को दूर करने के लिए उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय डेडिकेटेड कार्गो हवाईअड्डे बनाए और अनावश्यक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए हवाई कार्गो प्रक्रियाओं और सूचना प्रणालियों को स्वचालित बनाए।
कमिटी ने यह भी कहा कि ओपन स्काई नीति के कारण विदेशी कार्गो कैरियर्स ऐसे किसी भी हवाई अड्डे पर आसानी से कार्गो सेवाएं संचालित कर सकते हैं जहां कस्टम्स/इमिग्रेशन सुविधाएं हैं। भारत में 90%-95% अंतरराष्ट्रीय कार्गो इसी के जरिए लाया-ले जाया जाता है। दूसरी तरफ भारतीय कार्गो ऑपरेटर्स को विदेशों में अंतरराष्ट्रीय कार्गो उड़ानों के संचालन में भेदभावपूर्ण पद्धतियों और रेगुलेटरी रुकावटों का सामना करना पड़ता है। कमिटी ने मंत्रालय से आग्रह किया कि वह भारतीय हवाई कार्गो ऑपरेटर्स के लिए समान अवसर मुहैय्या कराए और यह सुनिश्चित करे कि उन्हें एक बराबर मौके मिलें। मंत्रालय ने दिसंबर 2020 में ओपन स्काई नीति में संशोधन किए। संशोधित नीति के अंतर्गत फॉरेन एडहॉक और शुद्ध गैर-अनुसूचित मालवाहक चार्टर सेवा उड़ानों के संचालन को छह हवाईअड्डों - बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद और मुंबई तक सीमित कर दिया गया है।
एविएशन टर्बाइन ईंधन की बढ़ती कीमत
एविएशन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) की लागत एयरलाइन्स की परिचालन लागत का करीब 40% हिस्सा होती है और उनकी वित्तीय व्यावहारिकता को प्रभावित करती है। पिछले कुछ वर्षों में एटीएफ के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हुई है जिससे एयरलाइन कंपनियों की बैलेंस शीट्स पर दबाव पड़ता है। हाल की न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, हवाई किराये के बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण एटीएफ महंगा हो रहा है।
एटीएफ पर वैट लगता है जोकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है और इस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता। एविएशन ईंधन और वैट, दोनों की उच्च दरें एयरलाइन कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
तालिका 2: पिछले कुछ वर्षों के दौरान एयरलाइन्स का एटीएफ पर व्यय (करोड़ रुपए में)
वर्ष |
राष्ट्रीय जहाज कंपनियां |
निजी घरेलू एयरलाइन्स |
2016-17 |
7,286 |
10,506 |
2017-18 |
8,563 |
13,596 |
2018-19 |
11,788 |
20,662 |
2019-20 |
11,103 |
23,354 |
2020-21 |
3,047 |
7,452 |
स्रोत: अतारांकित प्रश्न 2581, राज्यसभा; पीआरएस।
जनवरी 2020 में मंत्रालय ने ईंधन पर थ्रूपुट चार्ज को खत्म कर दिया जोकि हवाईअड्डा ऑपरेटरों को भारत के सभी हवाईअड्डों पर चुकाना पड़ता था। इससे एटीएफ पर टैक्स का दबाव कम हुआ। 11 अक्टूबर, 2018 से एटीएफ पर केंद्रीय एक्साइज को 14% से घटाकर 11% कर दिया गया। राज्य सरकारों ने भी आरसीएस हवाईअड्डों पर वसूले जाने वाले वैट/सेल्स टैक्स को 10 वर्षों के लिए 1% या उससे कम कर दिया है। गैर आरसीएस-उड़ानों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने एटीएफ पर वैट/सेल्स टैक्स को घटाकर 5% के भीतर कर दिया है। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने एटीएफ को जीएसटी के दायरे में शामिल करने का सुझाव दिया और यह भी कि जीएसटी एटीएफ पर फुल इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 12% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए कृपया नागरिक उड्डयन मंत्रालय की 2022-23 की अनुदान मांगों का विश्लेषण देखें।